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मध्य काल(1200 ई. से 1750 तक)

भारतीय इतिहास के द्वितीय चरण को मध्यकाल कहते हैं। साधारणतया इसका काल लगभग 1200 ई. से 1750 ई. तक माना जाता है। यह काल मुख्य रूप से मुस्लिम संस्कृति पर आधारित है। इस काल में मुस्लिम एवं मराठा शासको ने भारत पर राज्य किया। मध्यकाल को निम्नानुसार तीन वर्गों में विभाजित किया गया है:
1. सल्तनत काल
2. मुगल काल
3. मराठा काल

सल्तनत काल (लगभग 1200 ई. से 1525 ई. तक)

भारतीय इतिहास का यह काल दिल्ली सल्तनत के नाम से ही जाना जाता है क्योकि इस काल में जितने भी राजवंशो ने शासन किया उनमें से अधिकांश ने अपनी राजधानी दिल्ली को ही बनाये रखा। इस काल में निम्नलिखित राजवंशो ने शासन किया:
1. गुलाम वंश
2. खिलजी वंश
3. तुगलक वंश
4. सैयद वंश
5. लोधी वंश

मुस्लिम आक्रमण के पूर्व भारत की दशा

उत्तरी भारत के राज्य कान्यकुब्ज या कन्नौज के मौखरी, आयुध और प्रतिहार राज्य कन्नौज का गहढ़वाल राज्य, शाकंरी, दिल्ली तथा अजमेर का चौहान राज्य, बुन्देलखण्ड का चंदेल राज्य, त्रिपुरी का कलचूरि राज्य, मालवा का परमार राज्य, गुजरात का सौलंकी अथवा चालुक्य राज्य, सीमान्त क्षेत्र और पंजाब का शाही राज्य, सिंध का ब्राह्मण राज्य, कश्मीर में कार्कोटक, उत्पल और लोहर राज्य, बंगाल का पालवंशीय और सेन वंशीय राज्य, कलिंग का गंग राज्य, कामरूप या आसाम का राज्य, प्रशासन व्यवस्था: प्रान्तीय और वंशानुगत राज्य, निरंकुश राजतंत्र, राजा का देवत्व, पृजावत्सलता का उद्देश्य, जनता में राजनीतिक उदासीनता, राजनीतिक एकता और समष्टि का आभाव, दृढ़ विदेशी नीति और सुरक्षात्मक सीमान्त नीति का आभाव , सामन्तशाही, सैन्य संगठन, युद्ध प्रियता, न्यायदान की व्यवस्था, राज्य के आय-व्यय के स्त्रोत, प्रान्तीय शासन, स्थानीय शासन, सामाजिक जीवन: वर्णाश्रम व्यवस्था, नवीन वर्गीकरण और जातियों की विविधता, जातियों के व्यवसाय, जाति व्यवस्था की जटिलता और संकीर्णता, आहार और वेशभूषा, सामाजिक संस्कार, विवाह प्रणाली, स्त्रियों की दशा, मनोरंजन, चरित्र और आचरण, धर्म परिवर्तन और शुद्धि, आर्थिक जीवन: ग्रामऔर नगर, कृषि, उद्योग-व्यवसाय, वाणिज्य व्यापार और संघ, धार्मिक जीवन: बौद्ध धर्म, जैन धर्म, हिन्दू धर्म या ब्राह्मण धर्म, व्यक्तिवाद, शक्ति उपासना, मंत्रवाद, अंधविश्वास की प्रधानता, पारसी धर्म, शिक्षा, साहित्य प्राकृत साहित्य: दक्षिण भारत, दक्षिण भारत के राज्य, चालुक्य राज्य, राष्ट्रकूट राज्य, देवगिरि का यादव राज्य, वनवासी का कदम्ब राज्य, तलकाड का गंग राज्य, वारंगल का काकतीय राज्य, द्वार समुद्र का होयसल राज्य, चोल राज्य, पांड्य राज्य, चेर राज्य, दक्षिण भारत में जीवन और संस्कृति: राज्य का स्वरूप, सामंती व्यवस्था, साम्राज्य का गठन, मंत्री-परिषद और अधिकारी, राज्य की आय के स्त्रोत, स्थानीय शासन, सैन्य व्यवस्था, सामाजिक जीवन, आर्थिक जीवन, कृषि, भूमि का स्वामित्व, उद्योग-धन्धे, व्यापार, आयात-निर्यात, व्यापारिक निगम और श्रेणियाँ, ऋण और ब्याज, सिक्के, धार्मिक जीवन, वैष्णव सम्प्रदाय, शैव सम्प्रदाय, जैनधर्म, ब©द्ध धर्म, साहित्य, तमिल, तेलुगु, कन्नड़

इस्लाम का उत्कर्ष

अरब देश और उसके निवासी पैगम्बर मुहम्मद साहब, इस्लाम के सिद्धान्त, विभिन्न इस्लामी राज्यो का उत्कर्ष: अब्वासी खलीफाओं का या तुर्को के प्रभुत्व का युग, छोटे-छोटे इस्लामी राजवंशो का युग,खलीफाओं का अभ्युदय और इस्लाम का प्रसार, भारत में इस्लाम का प्रवेश और प्रसार

अरबो के सिंध पर आक्रमण

मुहम्मद बिन कासिम के आक्रमण: आक्रमण के कारण, तात्कालिक कारण, सिंध की दशा, हज्जाज के सिंध पर आक्रमण, मुहम्मद बिन कासिम का सिंध अभियान , देवल पर आक्रमण और अधिकार, रावर का युद्ध, मुलतान पर आक्रमण और आधिपत्य, मुहम्मद बिन कासिम का देहावसान, अन्य प्रदेशों पर अरबो के धावे, अरबो का सिंध में प्रशासन, सिंध और दाहिर की पराजय के कारण: राजनीतिक कारण, धार्मिक कारण, सामरिक और सैनिक कारण, आर्थिक कारण, अरब सेना का धार्मिक उत्साह, मुहम्मद बिन कासिम का नेतृत्व, अरब राज्य और शासन की असफलता और अल्पकालीनता, अरब आक्रमण का मूल्यांकन, प्रभुत्व महत्व

तुर्को का उत्कर्ष और भारत पर महमूद गजनवी का आक्रमण और विजय

तुर्को का इस्लामीकरण और शक्ति संचय, तुर्को के राज्य, सुबक्तगीन और भारत पर तुर्को के प्रारम्भिक आक्रमण महमूद गजनवी: महमूद गजनवी के आक्रमणो के समय भारत की दशा, राजनीतिक दशा, सामाजिक दशा, आर्थिक दशा, धार्मिक दशा। महमूद गजनवी, प्रारम्भिक जीवन, राज्यारोहण और प्रारम्भिक विजयें, महमूद का साम्राज्य विस्तार, महमूद के भारत आक्रमण के कारण और लक्ष्य, महमूद गजनवी के आक्रमण, महमूद की मृत्यु, महमूद के आक्रमणो का प्रभाव, महमूद की सफलता और विजय के कारण, महमूद का व्यक्तित्व, चरित्र और उसका मूल्यांकन, क्या महमूद धर्मान्ध था और इस्लाम धर्म का प्रचारक था? क्या उसने इस्लाम धर्म के प्रचार और प्रसार के लिये भारत पर आक्रमण किये? क्या महमूद ने साम्राज्य विस्तार के लिये भारत पर आक्रमण किये? इतिहास में महमूद का स्थान, हिन्दू शाही राज्य: उत्तर पश्चिमी प्रदेश अफगानिस्तान में हिन्दूशाही राज्य, पिरीतगीन और जयपाल, सुबक्तगीन और जयपाल, महमूद गजनवी और जयपाल, महमूद और आनन्दपाल, राष्ट्रीय युद्ध, त्रिलोचनपाल और महमूद, भीमपाल, शाहीराज्य का महत्व अलबरूनी और उसका भारत वर्णन

मुहम्मद गौरी और भारत में मुस्लिम सत्ता की स्थापना

सल्जुक साम्राज्य, कराखिताई तुर्को की सत्ता, ख्वारज्मी साम्राज्य, गौरी राज्य का उत्कर्ष, मुहम्मद गौरी के आक्रमणो के समय भारत की दशा: राजनीतिक दशा, उत्तरी भारत में मुस्लिम बस्तियाँ, राजनीतिक, दुर्बलताएँ और दोष ,सामन्तवादी व्यवस्था, सामाजिक व्यवस्था, आर्थिक दशा, मुहम्मद गौरी के भारतीय आक्रमणो के उद्देश्य, मुहम्मद गौरी के भारत पर आक्रमण: तराइन का प्रथम युद्ध व मुहम्मद गौरी की पराजय, तराइन की द्वितीय विजय और पृथ्वीराज की पराजय, तराइन के युद्ध का महत्व, ऐवक की विजयें, मुहम्मद गौरी का पराव,खोखरो का विद्रोह और मुहम्मद गौरी की हत्या, मुहम्मद गौरी का चरित्र और मूल्यांकन, मुहम्मद गौरी के भारत आक्रमण के परिणाम या तुर्की आक्रमणो और विजय के परिणाम और महत्व, महमूद गजनवी और मुहम्मद गौरी की तुलना: प्रारम्भिक परिस्थितियाँ, चरित्र और व्यक्तिव, सैनिक योग्यता , विजेता, उद्देश्य, राजनीतिज्ञता, कला और साहित्य का संरक्षण, मुसलमानो की भारत विजय के कारण, या मुसलमानो के या तुर्को के विरुद्ध राजपूतो की पराजय के कारण: राजनीतिक कारण, सामाजिक कारण, सैनिक कारण, आर्थिक कारण, धार्मिक कारण

कुतुबुद्दीन ऐबक (सन्1206 ई. से 1210 ई. तक)

तथाकथित दासवंश, तथाकथित दास सुल्तानो के राज्य का महत्व, सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक, कुतुबुद्दीन ऐबक का प्रारम्भिक जीवन, प्रगति और पदोन्नति, कुतुबुद्दीन मुहम्मद गौरी के राजप्रतिनिधि के प्रशासक के रूप में, विद्रोह, दमन और विजयें, कुतुबुद्दीन ऐवक सुल्तान के रूप में, कठिनाइयाँ और समस्याएँ, उनका निराकरण, कुतुबुद्दीन के प्रतिद्वन्दी, कुतुबुद्दीन का शासन-प्रबंध, कुतुबुद्दीन ऐवक का चरित्र, उसकी सफलताएँ और उसका मूल्यांकन, इतिहास में ऐवक का स्थान

आरामशाह (सन् 1210 ई. से 1211 ई. तक)
शम्सुद्दीन इल्तुतमिश(सन् 1211 ई. से 1236 ई. तक)

इल्तुतमिश का प्रारम्भिक जीवन, भारत में कुतुबुद्दीन के संरक्षण में इल्तुतमिश की पदोन्नति, इल्तुतमिश का सिंहासन पर अधिकार या क्या इल्तुतमिश ने दिल्ली के सिंहासन का अपहरण किया?, इल्तुतमिश की कठिनाइयाँ और समस्याएँ, इनका सामना और उन पर विजय, राजपूत राज्यों से युद्ध और विजय, इल्तुतमिश के निरन्तर संघर्ष और युद्धों का महत्व, इल्तुतमिश को खलीफा का प्रमाण-पत्र, इल्तुतमिश का देहावसान, इल्तुतमिश की प्रशासन व्यवस्था, इल्तुतमिश के कायरो का मूल्यांकन, इल्तुतमिश का इतिहास में स्थान, भारत में इल्तुतमिश मुस्लिम साम्राज्य का संस्थापक

रूकनुद्दीन फिरोजशाह और सुल्ताना रजिया (सन् 1236 ई. से 1240 ई. तक)

सुल्तान रूकनुद्दीन फिरोजशाह, रजिया सुल्ताना, रजिया को उत्तराधिकारी बनाने की घोषणा, रजिया का सिंहासनारोहण, रजिया का सुल्तान होने के कारण, रजिया की समस्याएँ और कठिनाइयाँ, इनका निराकरण और विजयें, राजप्रभुत्व को दृढ़ता और स्थायित्व, रजिया का प्रशासन, रजिया की सफलता, रजिया सुल्ताना का पतन, रजिया और याकूत के संबंध, रजिया की निरंकुश नीति से तीव्र असन्तोष, जुवैदी का वध, तुर्की सुल्तानो का विद्रोह और षड़यंत्र, याकूत का वध और रजिया का बन्दी होना, सुल्तान बहरामशाह, रजिया की पराजय और उसका वध, रजिया के पतन और असफलता के कारण, रजिया का मूल्यांकन, सुल्तान बहरामशाह, सुल्तान अलाउद्दीन मसूदशाह

नासिरूद्दीन महमूद (सन् 1246 ई. से 1266 ई. तक)

नासिरूद्दीन का राज्यारोहण, नासिरूद्दीन की समस्याएँ, समस्याओ का निराकरण, अन्य अमीरो का विद्रोह और बलबन का पदच्युत होना, पदों व परिस्थियों में परिवर्तन, बलबन का पुन पदासीन होना, बलबन द्वारा प्रतिस्पर्धी व विरोधियों का दमन, नासिरूद्दीन और मंगोल , नासिरूद्दीन और राजपूत, मेवातियो के उपद्रव और भीषण दमन, नासिरूद्दीन का देहावसान, नासिरूद्दीन का मूल्यांकन, नासिरूद्दीन एक अकर्मण्य शासक था और वास्तविक शासन-शक्ति बलबन के हाथों में केन्द्रित थी

गयासुद्दीन बलबन (सन् 1266 ई. से 1286 ई. तक)

बलबन का प्रारम्भिक जीवन, दिल्ली में बलबन की प्रगति, बलबन का प्रारम्भिक राजनीतिक जीवन और उसकी अवसरवादिता, सुल्तान बलबन की प्रारम्भिक कठिनाइयाँ और समस्याएँ, बलबन द्वारा समस्याओ का निराकरण और कठनाइयों का समाधान, अराजकता और अशांति, मेवातियो की समस्या, आर्थिक समस्या और रिक्त राजकोष, चालीस गुलामो का मण्डल, विरोधी अमीर, सरदार और सामन्त, मुल्ला मालवियो का दूषित प्रभाव , राजपूतो का शक्ति संगठन और विद्रोह ,मंगोलियो के आक्रमण और पश्चिमोत्तर सीमा की सुरक्षा, प्रशासकीय समस्या, सुल्तान के पद और प्रतिष्ठा की क्षीणता, मेवातियो का दमन, दोआब में विद्रोह को कुचलना, कटेहर में रराजपूतो और विदोर्हियो का दमन, चालीस गुलामो के मण्डल का तथा तुर्की अमीरो और सरदारों की शक्ति का विनाश, हिन्दुओं का नृशंसता और क्रूरता से विनाश, तुगरिल के विद्रोह का दमन, बलबन की रक्त-रंजित नीति का महत्व, मंगोलियो के आक्रमण और सीमान्त क्षेत्र की सुरक्षा, बलबन का शासन प्रबंध, बलबन के शासन का स्वरूप, निरंकुश राजतंत्र बलबन के राजत्व का आदर्श दैवी सिद्धान्त, प्रजावत्सलता की भावना, इस्लामेत्तर भावना व कार्य, लौह और रक्त की क्रूर नीति, सुल्तान के पद की प्रतिष्ठा और गौरव में वृद्धि, उच्चवंश परम्परा और कुलीनता, राजकीय वैव, ऐश्वर्य और राजसत्ता, निरीक्षण एवं नियंत्रण, साहित्यकारों व विद्वानो को आश्रय, कठोर तथा निष्पक्ष न्याय व्यवस्था, सेना का पुनर्गठन, गुप्तचर व्यवस्था, बलबन की आर्थिक नीति, बलबन की धार्मिक नीति और हिन्दुओं के प्रति व्यवहार, बलबन के प्रशासन की समीक्षा, बलबन का चरित्र एवं उसका मूल्यांकन, इतिहास में बलबन का स्थान, बलबन और इल्तुतमिश की तुलना

कैकुबाद (सन् 1287 ई. से 1289 ई. तक) व दास वंश का अन्त

कैकुबाद का राज्यारोहण, निजामुद्दीन के षड़यंत्र और उसके कुकृत्य, बुगराखाँ और कैकुवाद की टैंट और बुगराखाँ द्वारा सुधार का प्रयास, अमीरो का षड़यंत्र और कैकुबाद का वध, दासवंश के पतन के कारण, दासवंश की देन, दास सुल्तानों की शासन-व्यवस्था, निरंकुश, इस्लामी व सैनिक राजतंत्र, दैवी अधिकार का सिद्धान्त, उत्तराधिकार के नियम का आभाव और उसके दुष्परिणाम, सुल्तान के अधिकार और सत्ता ,खलीफा से संबंध, सुल्तान के कर्तव्य, गैर-मुस्लिम जनता पर अत्याचार और नियंत्रण, न्याय-व्यवस्था, सेना की व्यवस्था, राज्य की आय-व्यय, मंत्रीगण और उच्च पदाधिकारी, प्रान्तीय प्रशासन

दिल्ली सल्तनत का चरम उत्कर्ष
खिलजी साम्राज्यवाद

खिलजी राजवंश, खलजी कौन थे ,

सुल्तान जलालुद्दीन फिरोज खिलजी (सन् 1290 ई. से 1296 ई. तक)

जलालुद्दीन का प्रारम्भिक जीवन और पदोंन्नति, जलालुद्दीन का राज्यारोहण, जलालुद्दीन का उदारता के पद और उपाधि वितरण, जलालुद्दीन की नीति और उसकी समीक्षा, हिन्दुओं के प्रति जलालुद्दीन की असहिष्णुता और धार्मिक कट्टरता की नीति, मलिक छज्जू का विद्रोह, अलाउद्दीन कड़ा का शासक, सिद्दी मौला का षड़यंत्र और उसका वध, जलालुद्दीन की बाह्य नीति, रणथं©र पर आक्रमण, मालवा पर आक्रमण, मदौर पर आक्रमण, मंगोलो से युद्ध, सुल्तान जलालुद्दीन की हत्या, जलालुद्दीन का मूल्यांकन, जलालुद्दीन का इतिहास में स्थान

अलाउद्दीन खिलजी (सन् 1296 ई. से 1316 ई. तक)

अलाउद्दन खिलजी की राजसत्ता प्राप्ति, समस्याएँ और नीति, अलाउद्दीन खिलजी का प्रारंभिक जीवन, स्वतंत्र सुल्तान बनने की महत्वाकांक्षा, खालसा पर आक्रमण और धन-सम्पत्ति की प्राप्ति सन 1292, देवगिरि पर आक्रमण करने के कारण, देवगिरि पर आक्रमण, प्रथम संधि, अलाउद्दीन और सिंघल में युद्ध, द्वितीय संधि, देवगिरि में अलाउद्दीन की सफलता और रामचन्द्र की पराजय के कारण, देवगिरि आक्रमण का महत्व, सुल्तान जलालुद्दीन की हत्या, दिल्ली की ओर अलाउद्दीन का प्रस्थान और तत्कालीन समस्याओं का निराकरण, अलाउद्दीन का राज्यारोहण, अपनी स्थिति को दृढ़ करने के लिये अलाउद्दीन के प्रारंभिक कार्य, राजनीतिक समस्याएँ सेना, विपक्षी विरोधी अमीर, सुल्तान जलालुद्दीन के पुत्रो की प्रतिद्वन्दिता और उनका विनाश, जलाली अमीरो का दमन, सीमान्त क्षेत्र की असुरक्षा और मंगोल आक्रमण, विद्रोह और उनका दमन, धर्म और राजनीति, सिकन्दर महान बनने और साम्राज्य विस्तार करने की महत्वाकांक्षा, धर्म निरपेक्ष राज्य, दृढ़ सीमान्त नीति, राजपूत नीति, हिन्दू विरोधी नीति, अर्थ नीति, निरंकुश शासन और सैनिक तानाशाह की नीति, अलाउद्दीन के राजनीतिक कार्य।

अलाउद्दीन की विजयें और साम्राज्य विस्तार

अलाउद्दीन की विजय और विस्तार की योजना, उत्तरी भारत, सिंध और मुलतान विजय, राजा कर्ण पर विजय और गुजरात की लूट, सोमनाथ मंदिर की लूट, खंभ त पर आक्रमण, जालौर में लूट के धन के लिए नव मुस्लिमो का विद्रोह, जेसलमेर विजय, रणथं©र की विजय, झायन विजय, चितौड़ पर आक्रमण और मेवाड़ विजय, रानी पùमनी की गाथा और उसकी ऐतिहासिकता, मालवा और मांडु की विजय, उज्जैन, धार और चंदेरी की विजय, मारवाड़ विजय,जालौर विजय, उत्तरी भारत में साम्राज्य विस्तार, सफलता के कारण अलाउद्दीन खलजी की दक्षिण भारत विजय 1307-1313 ई. दक्षिण भारत की दशा, अलाउद्दीन के दक्षिण भारत के सैनिक अभियान और आक्रमण के कारण, गुजरात नरेश कर्ण बघेला की पराजय व देवलदेवी की प्राप्ति, राजा रामन्द्रदेव की पराजय और संधि, देवगिरि पर तृतीय आक्रमण, वारंग विजय, संधि, द्वार समुद्र के ह©यसल राज्य की विजय, बल्लाल तृतीय से युद्ध, संधि, माबर या मदुरा विजय, गृह-युद्ध, वीरपाण्ड की खोज और उसका पीछा, काफूर का अपार धन सहित दिल्ली लौटना , काफूर का दक्षिण में अन्तिम आक्रमण, अलाउद्दीन की दक्षिण विजय का स्वरूप और उसका महत्व

सुल्तान अलाउद्दीन की सुरक्षा नीति, बाह्य एवं आन्तरिक

मंगोलिया की विशिष्टताएँ, मध्यएशिया में मंगोल राज्य, मंगोलिया के प्रारंभि क आक्रमण, अलाउद्दीन द्वारा पश्चिमोत्तर सीमान्त क्षेत्र की सुरक्षा व मंगोल नीति, मंगोल आक्रमण, मंगोलिया के विरूद्ध अलाउद्दीन की सफलता, सुल्तान बलबन और अलाउद्दीन की मंगोल नीति की तुलना, मंगोलिया की असफलता और अलाउद्दीन की सफलता के कारण, मंगोल आक्रमणो के परिणाम, आन्तरिक विद्रोह, विद्रोहियों के कारण, अलाउद्दीन के प्रशासकीय सुधार और विद्रोहियों का निराकरण, अमीरो और मलिको पर नियंत्रण, वैवाहिक संबंधो पर नियंत्रण, मिलन, सहज और गोष्ठियों पर प्रतिबंध, परिणाम, संपत्ति का अपहरण और आर्थिक शोषण, भभूमि की जब्ती, करो में वृद्धि, हिन्दुओं के प्रति व्यवहार और उनका दमन, दमन नीति के परिणाम

अलाउद्दीन के विभि न्न सुधार

सुल्तान अलाउद्दीन के राजस्व के सुधार, राजस्व सुधार के लिये अलाउद्दीन के उद्देश्य, अलाउद्दीन के सुधारो के पूर्व राजस्व व्यवस्था, राजस्व संबंधी सुधार और व्यवस्था, भूमि अपहरण, राजस्व के कर्मचारियो की विशेष सुविधओं का अन्त, भूमि की पैमाइश और भूमि कर का निर्धारण, करों में वृद्धि, कर वसूली की निर्ममता और कठोर दण्ड-व्यवस्था, राजस्व की बहियो का निरीक्षण, राजस्व विभाग का पुर्नगठन, राजस्व सुधार के परिणाम, अलाउद्दीन के सैनिक सुधार, सेना की वृद्धि और सैनिक रती, स्थायी सेना-पदाति और अश्वार¨ही सेना, नकद वेतन, श्रेष्ठ अश्वो की प्राप्ति और अश्वो क¨ दागने की प्रथा, अनुवी सेनापतियो की नियुक्ति, निरीक्षण और प्रशिक्षण, विभिन्न अस्त्र-शस्त्र, उनका निर्माण और शस्त्रगार, सैन्य विभाग और सैन्य अधिकारी, सैनिक सुधार के परिणाम, अलाउद्दीन का बाजार नियंत्रण और मूल्य निर्धारण, बाजार नियंत्रण और मूल्य निर्धारण नीति के उद्देश्य और कारण, बाजार नियंत्रण और मूल्य निर्धारण में जनकल्याण की भावना, मूल्य निर्धारण, खाद्यान्न का क्रय-विक्रय और तत्संबंधी नियम, शासकीय अन्नागार, वस्त्र बाजार और उसकी व्यवस्था, पशुअो तथा दासो के व्यापार पर नियंत्रण, कठोर नियंत्रण और दण्ड-व्यवस्था, बाजार के अधिकारी और कर्मचारी, उनके अधिकार, अलाउद्दीन के अन्य सामाजिक सुधार, अलाउद्दीन की बाजार-नियंत्रण नीति का प्रभाव या अलाउद्दीन के सुधारो के परिणाम, अलाउद्दीन के सुधारो की सफलता और समीक्षा, अलाउद्दीन के सुधारो में दोष और दुर्बलताएँ

अलाउद्दीन का शासन-प्रबन्ध

खलजी क्रांति, सैनिक शासन तंत्र या निरंकुश सैनिक तानाशाही, अलाउद्दीन के राजत्व का आदर्श, दैवी अधिकार का सिद्धान्त, निरंकुशता, धर्माचायर्ो के हस्तक्षेप का विरोध, खलीफा से संबंध, क्या अलाउद्दीन असाम्प्रदायिक था और क्या उसका राज्य धर्म निरपेक्ष था ? अलाउद्दीन का शासन प्रबन्ध, केन्द्रीय शासन, सुल्तान और मंत्री परिषद, न्याय व्यवस्था, दण्ड विधान, पुलिस और गुप्तचर व्यवस्था, डाक प्रशासन, प्रान्तीय शासन, प्रान्तो और प्रान्तपतियो के नाम, अधिकारीगण और अमीर वर्ग, सुधार

अलाउद्दीन का अवसान व खिलजी साम्राज्य का पतन

सुल्तान अलाउद्दीन के अन्तिम दिन, मलिक काफूर सर्वाधिक वरिष्ठ अधिकारी, अलाउद्दीन की रूग्णावस्था, खिज्रखाँ का विद्रोह , मलिक काफूर का षड़यंत्र और अलपखाँ की हत्या, खिज्रखाँ का बन्दी बनाया जाना, विद्रोह , शहाबुद्दीन, अलाउद्दीन का उत्तराधिकारी घोशित, अलाउद्दीन का निधन, अलाउद्दीन का मूल्यांकन, अलाउद्दीन के शासन के दोष और उसके पतन के कारण, सुल्तान कुतुबुद्दीन मुबारक शाह, सुल्तान नासिरूद्दीन खुसरो, खलजी साम्राज्य के पतन के कारण

तुगलक साम्राज्य-गयासुद्दीन तुगलक

तुगलक वंश की उत्त्पत्ति, तुगलक मंगोल थे, तुगलक तुर्क थे, गयासुद्दीन मिश्रित जाति का था, गयासुद्दीन तुगलक 1320-1325 AD गयासुद्दीन तुगलक का प्रारंभिक जीवन, सिंहासन और सत्ता की प्राप्ति, गयासुद्दीन तुगलक की प्रारंभिक समस्याएँ और उनका निराकरण, शांति-व्यवस्था के कार्य, विद्रोह का दमन, शासन सुधार, आर्थिक सुधार, भूमि और कृषि संबंधी सुधार, न्याय-व्यवस्था, यातायात के साधनो की व्यवस्था, सैन्य सुधार, दान-व्यवस्था, धार्मिक नीति और धर्म परायणता, जनकल्याण के कार्य, हिन्दुअो के प्रति नीति, गयासुद्दीन तुगलक के आक्रमण और विजय, वारंगल पर आक्रमण और विजय, उड़ीसा विजय, बंगाल पर आक्रमण और विजय, तिरहुत विजय, मंगोलो के आक्रमण, सुल्तान गयासुद्दीन की हत्या, सुल्तान गयासुद्दीन का मूल्यांकन

मुहम्मद बिन तुगलक(सन् 1325 ई. से 1351 ई. तक)

गयासुद्दीन की हत्या, क्या फखरूद्दीन जूनाखाँ या मुहम्मद तुगलक पितृहन्ता था ? मुहम्मद तुगलक निर्दोष था, मुहम्मद तुगलक का निर्विरोध सिंहासनारोहण, सुल्तान मुहम्मद तुगलक शाह की विशेष दृढ़ परिस्थिति, मुहम्मद तुगलक की धारणाएँ और महत्वाकांक्षाएँ, सुल्तान मुहम्मद की योजनाएँ, दोआब में करवृद्धि, कारण, करवृद्धि की योजना, करवृद्धि की दर, करवृद्धि के परिणाम, राजधानी परिवर्तन- राजधानी स्थानान्तरित करने का समय, विभिन्न मत, कारण, राजधानी स्थानान्तरण की योजना और उसका स्वरूप, राजधानी स्थानान्तरण के परिणाम, राजधानी परिवर्तन योजना की समीक्षा, योजना की असफलता, समीक्षा, मुद्रा नीति और सांकेतिक मुद्रा, प्रचलन, मुद्रा संबंधी सुधार, सांकेतिक मुद्रा-प्रचलन, प्रचलन के कारण, सांकेतिक मुद्रा का स्वरूप, सांकेतिक मुद्राअो के प्रचलन का समय, मुद्राअो का प्रचलन, प्रसारण और परिणाम, आलोचना, मुहम्मद तुगलक की विजय योजनाएँ और युद्ध, राजस्थान विजय, खुरासान विजय, नगरकोट विजय, कराजिल की विजय, क्या सुल्तान ने चीन विजय की योजना बनाई ? दक्षिण भारत की विजय, मुहम्मद तुगलक के शासन काल के विद्रोह और उनका दमन, दक्षिण भारत के विद्रोह , सुल्तान मुहम्मद की दक्षिण नीति समीक्षा, मंगोल आक्रमण, मुहम्मद तुगलक का शासन-प्रबंध, मुहम्मद तुगलक का विशाल साम्राज्य, सुल्तान मुहम्मद की नीति के परिणाम और उसकी असफलता के कारण, मुहम्मद तुगलक और उल्मा वर्ग, सुल्तान मुहम्मद तुगलक का मूल्यांकन, उज्जवल पक्ष, अन्धकार पक्ष (दुर्गुण और दुर्बलताएँ), मुहम्मद तुगलक के संबंध में विभिन्न मत, क्या सुल्तान मुहम्मद में विरोधी तत्वो,गुणो , विभिन्नताअो का सम्मिश्रण था ? क्या सुल्तान मुहम्मद तुगलक पागल और मूर्ख था ? क्या सुल्तान मुहम्मद तुगलक रक्त-पिपासु था ? क्या सुल्तान मुहम्मद अपने युग से आगे था? मुहम्मद तुगलक भ ग्यहीन आदर्शवाही सुल्तान था, सुल्तान मुहम्मद की नास्तिकता और अधर्मीपन, तुगलक साम्राज्य का विघटन और सुल्तान मुहम्मद का उसके लिये उत्तरदायित्व, इतिहास में मुहम्मद तुगलक का स्थान, इब्नबतूता

फिरोजशाह तुगलक (सन् 1351 ई से 1388 ई. तक)

फिरोजशाह तुगलक का प्रारंभि क जीवन, फिरोज तुगलक का सिंहासनारोहण, क्या फिरोज तुगलक राज्य का अपहरणकर्ता था ? विभिन्न इतिहासकारो के मत, फिरोजशाह तुगलक का लक्ष्य, फिरोजशाह की प्रारंभिक समस्याएँ, समस्याअो के निराकरण के लिये फिरोज के कार्य, फिरोज की वैदेशिक नीति और विजय अभियान, फिरोज की चारित्रिक दुर्बलता और विदेशी नीति, बंगाल पर आक्रमण, जाजनगर की विजय, नगरकोट की विजय, थट्टा विजय, कटेहर के विरूद्ध अभियान, दक्षिण भारत के प्रति नीति, फिरोज की वैदेशिक नीति के परिणाम, फिरोज का शासन-प्रबंध, शासन-प्रबंध का उद्देश्य, सुल्तान फिरोजशाह के शासन का उज्वल पक्ष, आर्थिक नीति, कर व्यवस्था, कर निस्ती की समीक्षा, कृषि को प्रोत्साहन, कारखाने और उधोग-व्यवसाय, नवीन सिक्के, आर्थिक नीति के परिणाम, सार्वजनिक हित के लोकोपकारी कार्य, दीवान-ए-खेराज, चिकित्सालय, न्याय-व्यवस्था व दण्ड विधान, सार्वजनिक निर्माण कार्य, शिक्षा और साहित्य की उन्नति, सामन्तवर्ग, अंधकार पूर्ण और कलुषित पक्ष, जागीर प्रथा, वंशानुगत पद, दास प्रथा, दोषपूर्ण सैन्य व्यवस्था और संगठन, संकीर्ण धार्मिक नीति, फिरोज और उल्मा वर्ग, हिन्दुअो के प्रति कट्टरता और असहिष्णुता की नीति, फिरोज की नीतियो की आलोचना, व्यापक भ्रष्टाचार, फिरोज तुगलक का मूल्यांकन, क्या सुल्तान फिरोजशाह तुगलक श्रेष्ठ और आदर्श शासक था ?

तुगलक साम्राज्य का विघटन, तैमूर का आक्रमण

तुगलकशाह द्वितीय, अबुल नासिरूद्दीन मुहम्मदशाह, मुहम्मदशाह, तैमूर का आक्रमण 1338, तैमूर का प्रारंभि क जीवन, तैमूर की विजय और राज्य विस्तार, भारत पर तैमूर के आक्रमण के कारण, तैमूर का भारत पर आक्रमण, सुल्तान मुहम्मद औरतैमूर का युद्ध, दिल्ली की लूट और कत्लेआम, तैमूर का लौटना , आक्रमण से तैमूर क¨ ला, तैमूर के आक्रमण के प्रभाव, तुगलक साम्राज्य के पतन के कारण, तुगलक सुल्तानो का उत्तरदायित्व

सैयद और लोदी सुल्तान

खिज्रखाँ सैयद, खिज्रखाँ का दिल्ली पर अधिकार, सैयद, सुल्तान खिज्रखाँ सैयद 1414 से 1421 विद्रोहो का दमन, खिज्रखाँ की विजय, खिज्रखाँ का अन्त, खिज्रखाँ का चरित्र, मुबारकशाह, मुहम्मद बिन फरीद, अलाउद्दीन आलमशाह, सैयद सुल्तानो के शासनकाल का महत्व, लोदी सुल्तान, लोदी सुल्तानो का महत्व, भारत में अफगानो का प्रवेश और प्रसार, लोदी सत्ता का उत्कर्ष, सुल्तान बहलोल लोदी , सन 1451-89, बहलोल की समस्याएँ और विषम परिस्थिति, समस्याअो का निराकरण और ज©नपुर विजय, सुल्तान बहलोल लोदी का मूल्यांकन, सुल्तान सिकन्दर शाह लोदी 1489-1517, राज्यारोहण, उद्देश्य, समस्याएँ, समस्याअो का निराकरण, बारबकशाह का दमन, आलमखाँ, आजम हुमायूं, और तातारखाँ का दमन, विद्रोह ो का दमन, आगरा नगर की स्थापना, सिकन्दर की विजय, विजयो का परिणाम सिकन्दर लोदी का शासन प्रबंध, धार्मिक नीति, सिकन्दर का चरित्र और मूल्यांकन, धार्मिक संकीर्णता और पक्षपात, सुल्तान इब्राहीम लोदी , सन 1517-1526, राज्यार¨हण गृह-युद्ध और जलालखाँ का दमन, ग्वालियर पर आक्रमण और विजय, मेवाड़ के राणा संग्रामसिंह पर आक्रमण, आजम हुमायूं, मियां हुसैन फर्मूली और मियां मुवा का दमन और उनका अन्त, अफगान अमीरो और सरदारो का दमन, बाबर का आक्रमण और पानीपत का प्रथम युद्ध, इब्राहीम लोदी की पराजय के कारण, इब्राहीम लोदी का मूल्यांकन और लोदी वंश के पतन में उसका उत्तरदायित्व, दिल्ली सल्तनत के पतन के कारण

भारत के नवीन प्रान्तीय राज्य

उत्तरी भारत के स्वतन्त्र राज्य, बंगाल, जौनपुर, काश्मीर मालवा, खानदेश, गुजरात, सिंध, मेवाड़, दक्षिण भारत , चार प्रादेशिक राज्यो का उदय, वारंगल का काकतीय राज्य, देवगिरि का यादव राज्य, द्वार समुद्र का होयसल राज्य, मदुरा का पाण्ड्य राज्य, दक्षिण में तेरहवी सदी में नजीवन और संस्कृति, दक्षिण भारत में विद्रोह और नवीन स्वतन्त्र राज्य, बहमनी राज्य, सुल्तान अलाउद्दीन हसन गंगू बहमनी, मुहम्मदशाह प्रथम, मुजाहिद खाँ तथा दाउदखाँ मुहम्मदशाह द्वितीय, ताजुद्दीन फिरोजशाह , अहमदशाह, अलाउद्दीन द्वितीय, हुमायूं, निजामशाह, महमूदशाह, बहमनी राज्य का विभाजन, बरार, अहमदनगर, बीजापुर गौलकुण्डा, बीदर, महमूद गवाँ, बहमनी राज्य में दलबन्दियाँ और दलगत राजनीति, बहमनी राज्य के पतन के कारण, बहमनी राज्य में प्रशासन और जन जीवन, दक्षिण में दिल्ली सुल्तान की सत्ता के विरूद्ध विद्रोहो की श्रृंखला, विजय नगर की स्थापना, हरिहर, बुक्का, हरिहर द्वितीय, देवराय प्रथम, देवराय द्वितीय, मल्लिकार्जुन, विरूपाक्ष द्वितीय, नरसिंह सलुव, इमादी नरसिंह और नरसा नायक, तुलुब राजवंश, वीर नरसिंह, कृष्णदेव राय, बहमनी सुल्तान से विजय और युद्ध, अन्य युद्ध, पुर्तगालियो से संबंध, कृष्णदेव राय का मूल्यांकन, अच्युतदेव राय, सदाशिव, रक्षसी-तंगड़ी (तालीकोट) के युद्ध के कारण, युद्ध, युद्ध के परिणाम, विजय नगर-बहमनी-संघर्ष, विजय नगर के पतन के कारण, विजय नगर राज्य की शासन-व्यवस्था और जन जीवन, विदेशी यात्री निकोलो कौन्टी, अब्दुर्रज्जाक

सल्तनत काल की शासन प्रणाली

सल्तनत काल की प्रमुख विशेषताएँ, दिल्ली सल्तनत में शीघ्र राजवंशीय परिवर्तन के कारण, मंगोलो के आक्रमण, इल्तुतमिश के समय मंगोलो का आक्रमण, सुल्तान बहरामशाह और अलाउद्दीन मसूद के शासन काल में मंगोल आक्रमण, नासिरूद्दीन के शासन काल में मंगोलो का आक्रमण और विजय, बलबन के शासन काल में मंगोल आक्रमण, सुल्तान कैकुबाद के समय मंगोल आक्रमण, सुल्तान अलाउद्दीन के शासन काल में मंगोल आक्रमण, तुगलक राज्य काल में मंगोलो के आक्रमण, मंगोल आक्रमणो का प्रभ व, तैमूर और बाबर के आक्रमण, दिल्ली सुल्तानो की पश्चिमोत्तर सीमा नीति, दिल्ली सुल्तानो के राजत्व का सिद्धान्त, दिल्ली सल्तनत की शासन-व्यवस्था, दीवाने-ए-वजारत, दिल्ली सल्तनत धर्म-सापेक्ष उल्मा-प्रधान राज्य, दिल्ली सल्तनत में उल्मा

सल्तनत काल में जन-जीवन

सांस्कृतिक समन्वय, कारण समन्वय के क्षेत्र, हिन्दुअो पर इस्लाम का प्रभाव, मुसलमानो पर हिन्दू धर्म का प्रभाव, सल्तनत काल में सामाजिक जीवन, मुस्लिम समाज, हिन्दू समाज, आर्थिकदशा, धार्मिक जीवन, भक्ति आंदोलन के उद्देश्य, भक्ति आंदोलन के प्रवर्तक सन्त,भक्ति आंदोलन के सन्तो की देन और उनका प्रभाव, सूफी सन्त और सूफीवाद, सूफीमत के सन्त, शिक्षा और साहित्य, फारसी साहित्य और इतिहास ग्रंथ, कला, हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य कला शैलियो की विशेषताएँ, हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य कला शैलियो का समन्वय, दास सुल्तानो के समय के वन, खिलजी सुल्तानो के वन, तुगलक सुल्तानो के वन, सैयद और लोदी सुल्तानो के वन, विभिन्न प्रान्तो में स्थापत्य कला शैली का विकास, दक्षिण में बहमनी सुल्तानो के वन, हिन्दू नरेशो के वन, अन्य ललितकलाअो का अभाव

मुगल काल(लगभग 1525 ई. से 1750 ई. तक)

भारतीय इतिहास का यह काल मुगल काल के नाम जाना जाता है क्योकि इस काल में मुगल वंशीय शासकों ने भारत पर शासन किया एवं सभी ने अपनी राजधानी दिल्ली को ही बनाये रखा । इस काल में निम्नलिखित शासकों ने शासन किया ।

सोलहवीं सदी और मुगल युग का महत्व

सुल्तान सोलहवीं शताब्दी का महत्व, भक्ति आन्दोलन और धार्मिक परिवर्तन, हिन्दू-मुस्लिम सहिष्णुता और समन्वय, मुगल साम्राज्य की स्थापना, राष्ट्रीयता की भावना, भारत के लिए समुद्री मार्ग की खोज और उसके परिणाम, मुगल युग का महत्व: नवीन राजवंश की स्थापना, पर्याप्त ऐतिहासिक सामग्री, प्रतिभा सम्पन्न सम्राटों का काल, प्रशासकीय समरूपता और स्थायित्व तथा एकता, निरंकुश पर प्रजापालक सम्राट, दैवी पादशाहत, महान विजेताओं का समय, सम्राटों की धर्मनिरपेक्ष सार्वभौमिकता, हिन्दू-मुस्लिम सहयोग, समन्वय और सहिष्णुता में अधिक वृद्धि, साहित्य और कला का संरक्षण, राष्ट्रीयता का विकास, भक्ति आन्दोलन और धार्मिक परिवर्तन, पाश्चात्य देशों से सम्पर्क, अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि, काबुल और कन्धार का महत्व

सोलहवीं सदी के पूर्वार्द्ध में उत्तरी भारत या बाबर के आक्रमण के समय भारत की दशा

प्रमुख राज्य: दिल्ली, सिंध और मुलतान, काश्मीर, पंजाब, जौनपुर, बिहार, उड़ीसा, बंगाल, गुजरात, मालवा, खानदेश स्वतंत्र राजपूत राज्य, बहमनी राज्य, विजयनगर, पुर्तगाली सत्ता , राजनीतिक एकता व दृढ़ केन्द्रीय सत्ता का अभाव, राजनीतिक अस्त व्यस्तता और असंतुलन प्रजा की भक्ति व सहयोग का अभाव, दूषित सैन्य व्यवस्था, असुरक्षित सीमान्त क्षेत्र, दक्षिण भारत के राजनीतिक संघर्ष और शिथिलता, सामाजिक दशा, धार्मिक दशा, मुस्लिम समाज, उदारता, सहिष्णुता और समन्वय की भावना, आर्थिक दशा

जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर

तैमूर और उसके वंशज, बाबर का प्रारंभिक जीवन: बाबर का बाल्यकाल, बाबर फरगना का शासक, बाबर का समरकन्द पर प्रथम बार अधिकार, बाबर का प्रथम भ्रमणशील जीवन, बाबर का द्वितीय बार समरकन्द पर अल्पकालीन अधिकार, बाबर का द्वितीय बार भ्रमण शील जीवन, बाबर काबुल का शासक, समरकन्द पर तृतीय बार बाबर का अधिकार और फिर पराजय, बाबर के जीवन का शांत समय, बाबर के मध्य एशिया के जीवन का महत्व और उसके अनुभव, बाबर के भभारतीय आक्रमणों के कारण बाबर की तीव्र महत्वाकांक्षा, इस्लाम के प्रचार की भावना, भारत में समृद्धि और सम्पन्नता, भारत की भौगोलिक जानकारी, बाबर की सैन्यशक्ति, भारत की दयनीय राजनीतिक स्थिति, वृद्धा और अमीर का प्रोत्साहन, बाबर के भारत पर आक्रमण, प्रथम आक्रमण, द्वितीय आक्रमण, तृतीय आक्रमण, चतुर्थ आक्रमण, पांचवां आक्रमण, छठा आक्रमण, सातवां आक्रमण, दौलत खाँ लोदी की पराजय और उसका आत्म-समर्पण, इब्राहीम लोदी के अधिकारी हामिद खाँ की पराजय, इब्राहीम लोदी के अग्रिम सैनिकों की पराजय, पानीपत का युद्ध, 21 अप्रैल 1526, पानीपत के युद्ध में बाबर की विजय के कारण: इब्राहीम की अन्यायपूर्ण नीति और दुव्र्यवहार तथा अमीरों का तीव्र असंतोष, इब्राहीम में कूटनीति और दूरदर्शिता का अभाव, इब्राहीम के अनुभवहीन अनुशासनहीन, अयोग्य सैनिक, इब्राहीम लोदी की सैनिक दुर्बलता, इब्राहीम द्वारा युद्ध में हाथियों का उपयोग, इब्राहीम की दुर्बल गुप्तचर व्यवस्था, इब्राहीम को सामूहिक सहायता और सहयोग का अभाव, बाबर की दक्षता, रणकुशलता और सैन्य संचालन, बाबर द्वारा युद्ध में नवीन उपकरणों का उपयोग, बाबर द्वारा तुलुगमा रणपद्धति का अनुकरण, पानीपत के युद्ध के परिणाम, अंतिम लोदी शासक की मृत्यु और लोदी वंश का अंत, अफगान शक्ति और शासन का अंत, नवीन मुगल राजवंश की स्थापना, बाबर एक महान विजेता, बाबर के प्रभुत्व व शक्ति में वृद्धि, नवीन युग और प्रतिभाशाली सम्राट, हिन्दुओं की अत्यधिक निराशा, बाबर को आर्थिक लाभ, पानीपत के युद्ध के बाद बाबर की कठिनाइयाँ और समस्याएँ, बाबर द्वारा समस्याओं का निराकरण, बाबर और राणा संग्रामसिंह, राणा संग्रामसिंह का उत्कर्ष, राणा संग्रामसिंह की विजय और सुल्तान इब्राहीम लोदी की पराजय, मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी पर विजय, संग्रामसिंह की सैनिक विजय और गुजरात से संधि, संग्रामसिंह की शक्ति और वैभव, कनवाह या खनवाह का युद्ध, सन् 1527, बाबर पर राणा सांगा का आक्षेप, भारत में मुगल साम्राज्य स्थापित करने का बाबर का दृढ़ निर्णय, राणा संग्रामसिंह की हिदू साम्राज्य स्थापित करने की महत्वाकांक्षा, बाबर का बयाना पर अधिकार, हसनखाँ मेवाती और राणा सांगा में बाबर के विरुद्ध संधि, बाबर द्वारा जिहाद का नारा, बयाना पर राणा सांगा का आक्रमण, बाबर का ऐतिहासिक भाषण, खानवा का युद्ध, संग्रामसिंह की मृत्यु, खानवा के युद्ध का महत्व और उसके परिणाम, मेवाड़ के गौरव का अंत, राजपूतों की महत्वाकांक्षा की असफलता, राजपूतों की सैनिक शक्ति और वीरता का परिचय, राजपूत शक्ति का ह्रास, मुगल साम्राज्य के नींव की दृढ़ता, बाबर का स्थायीन जीवन और भारत उसकी गतिविधियों का केन्द्र, खानवा के युद्ध में राणा सांगा की पराजय और बाबर की विजय के कारण, बाबर की रणकुशलता और सैन्य संगठन, बाबर द्वारा तोपखाने का उपयोग, बाबर की सेना को विश्राम और शक्ति-संगठन का अवसर, राणा सांगा की भूलें, राजपूत सैन्य की विशालता और हाथियों का उपयोग, चंदेरी पर आक्रमण, दोआब में अफगान विद्रोहियों का दमन ओर गंगातट का युद्ध, घाघरा का युद्ध, बाबर का साम्राज्य, खलीफा का षड़यंत्र, षड़यंत्र के कारण और उद्देश्य, षड़यंत्र का प्रारंभ, षड़यंत्र का अंत, षड़यंत्र की असफलता के कारण, बाबर की मृत्यु, बाबर का राज्य-प्रबंध, बाबर के शासन का मूल्यांकन, बाबर का मूल्यांकन, बाबर का व्यक्तित्व एवं चरित्र, बाबर की दुर्बलताएँ और दोष, बाबर योद्धा और सेनापति के रूप में, बाबर एक प्रशासक, बाबर एक राजनीतिज्ञ, बाबर, विद्वान, कवि और साहित्य अनुरागी, बाबर की धार्मिकता और हिन्दुओं के प्रति उसकी नीति, कला प्रेमी बाबर, इतिहास में बाबर का स्थान, बाबर एक महान विजेता था, साम्राज्य निर्माता या प्रशासक नहीं था, निष्कर्ष, बाबर की आत्मकथा-बाबरनामा, बाबरनामा में बाबर के समस्त जीवन विवरण का अभाव, बाबरनामा की भाषा और शैली, बाबर नामा की विशेषताएँ, बाबरनामा के विषय, बाबरनामा का महत्व, बाबर द्वारा बाबरनामा में भारतवर्ष का वर्णन

हुमायूँ और मुगल साम्राज्य के अस्तित्व के लिये युद्ध

हुमायूँ का प्रारंभिक जीवन, भारत आक्रमण में बाबर को हुमायूँ का सैनिक सहयोग, भारत में हुमायूँ का प्रथम युद्ध और विजय, पानीपत के युद्ध में हुमायूँ, पूर्व के अफगानों का हुमायूँ पर आक्रमण, खानवा के युद्ध में हुमायूँ, हुमायूँ का उजबेगों से युद्ध, खलीफा का षड़यंत्र, बाबर का देहावसान और हुमायूँ का राज्यारोहण, हुमायूँ की प्रारंभिक कठिनाइयाँ और समस्याएँ, राजनीतिक समस्याएँ, आर्थिक समस्या, सैनिक समस्याएँ, पारिवारिक और आंतरिक समस्याएँ, हुमायूँ द्वारा स्वयं उत्पन्न की गयी समस्याएँ और कठिनाइयाँ, मुगल-साम्राज्य का विभाजन, हुमायूँ द्वारा शत्रुओं से कड़ा संघर्ष, सन् 1530-40, अफगानों से प्रथम संघर्ष, दादरा का युद्ध, चुनार दुर्ग पर आक्रमण और शेरखाँ से संघर्ष, आनन्दोत्सव, समय और धन का अपव्यय, मिर्जाओं के विद्रोह, हुमायूँ का गुजरात अभियान और बहादुर शाह से संघर्ष, अभियान और संघर्ष के कारण, बहादुरशाह के राज्य का विस्तार और उसकी बढ़ती हुई शक्ति, बहादुरशाह की महत्वाकांक्षा, बहादुरशाह द्वारा हुमायूँ के शत्रुओं को शरण, मुगल साम्राज्य पर आक्रमण करने की बहादुरशाह की सैनिक योजना, मंदरौल का युद्ध, हुमायूँ और बहादुरशाह में पत्र-व्यवहार और उसकी विफलता, तात्कालिक कारण, हुमायूँ का गुजरात अभियान हुमायूँ का बहादुरशाह के विरुद्ध कूच, हुमायूँ की भूल, मन्दसौर का युद्ध व हुमायूँ की बहादुरशाह पर अस्थायी विजय, मांडू से बहादुरशाह का पलायन, बहादुरशाह का चांपानेर से पलायन, कैम्बे से बहादुरशाह का ड्यू द्वीप मे पलायन, खंभात में हुमायूँ का प्रवेश और उसकी लूट, हुमायूँ द्वारा चांपानेर विजय और आनन्दोत्सव, हुमायूँ द्वारा इमादुलमुल्क पर विजय और अहमदाबाद पर अधिकार, हुमायूँ द्वारा गुजरात की शासन-व्यवस्था, गुजरात से हुमायूँ का प्रस्थान और मांडू में विश्राम, गुजरात में मुगल विरोधी आंदोलन और बहादुरशाह का संघर्ष, हुमायूँ का आगरा लौटना, गुजरात अभियान के परिणाम, बहादुरशाह का वध, बहादुरशाह का मूल्यांकन, हुमायूँ के गुजरात से पलायन के कारण और उसकी भूलें, हुमायूँ का शेरखाँ से संघर्ष-शेरखाँ का उत्कर्ष, हुमायूँ का आगरा में विश्राम और शेरखाँ के विषय में हिन्दूबेग की असत्य सूचना व मत, हुमायूँ का बंगाल अभियान के लिये प्रस्थान, हुमायूँ द्वारा चुनार दुर्ग का घेरा और विजय, रोहतस दुर्ग पर शेरखाँ का अधिकार, हुमायूँ की वाराणसी विजय और शेरखाँ से संधि, हुमायूँ का बंगाल में प्रवेश और तेलिया गढ़ी का युद्ध, हुमायूँ का गौड़ पर अधिकार, हुमायूँ की भूल, मिर्जा हिदाचल का विद्रोह, हुमायूँ के बंगाल अभियान के दुष्परिणाम, हुमायूँ की बंगाल से वापसी, चैसा युद्ध के पूर्व की स्थिति और संधि, चैसा का युद्ध, चैसा युद्ध का महत्व, चैसा युद्ध के परिणाम, चैसा युद्ध में हुमायूँ की पराजय के कारण, हुमायूँ का चैसा से आगरा पलायन, चैसा युद्ध के बाद शेरखाँ की शक्ति और राज्य मेें वृद्धि, हुमायूँ आगरा से कन्नौज, कन्नौज का युद्ध, हुमायूँ का कनौज के युद्ध से पलायन, कन्नौज के युद्ध का महत्व, कन्नौज के युद्ध के परिणाम, शेरखाँ के साथ संघर्ष और कन्नौज के युद्ध में हुमायूँ की पराजय के कारण, सैनिक कारण, राजनीतिक कारण, आर्थिक कारण, हुमायूँ का निर्वासन

हुमायूँ का निर्वासन तथा साम्राज्य की पुनः प्राप्ति (सन् 1541 ई. से 1555 ई. तक)

लाहौर में हुमायूँ, सिंध में हुमायूँ, हुमायूँ द्वारा शाह हुसैन से सहायता की याचना, हुमायूँ द्वारा भक्खर दुर्ग का घेरा, हुमायूँ का हमीदा बानू से विवाह, हुमायूँ द्वारा सेहबान दुर्ग का निष्फल घेरा, हुमायूँ को मालदेव का निमंत्रण और सिंध से जोधपुर की ओर प्रस्थान, मालदेव की विवशता और हुमायूँ की जोधपुर से वापिसी, हुमायूँ अमरकोट मे और वहाँ अकबर का जन्म, ईरान में हुमायूँ, निष्कासन, सिन्ध से ईरान, कामरान द्वारा हुमायूँ को बंदी बनाने के प्रयास, हुमायूँ का ईरान में प्रवेश और शाही स्वागत, हुमायूँ की शाह तहमास्प से भेंट और सहायता समझौता, हुमायूँ के ईरान निवास का महत्व, ईरान से बिदाई, कंधार विजय 1545, हुमायूँ की वापिसी, हुमायूँ का उसके भाइयों से संघर्ष और काबुल विजय, अस्करी का निर्वासन और हिन्दाल की मृत्यु तथा कामरान की पराजय, कामरान का अंत, कामरान का चरित्र

मुगल साम्राज्य की पुनस्र्थापना (सन् 1554 ई. से 1555 ई. तक)

शेरशाह की हुमायूँ के प्रति नीति, सलीम शाह (इस्लाम शाह 1545-53), मुहम्मद आदिलशाह (1553-57), सूर साम्राज्य का विघटन, उत्तरी भारत की राजनीतिक दशा, हुमायूँ का भारतीय अभियान, 1554-55 हुमायूँ का पंजाब पर आक्रमण और लाहौर पर अधिकार, मच्छीवाड़ा युद्ध 12 मई 1555, मच्छी वाड़ा युद्ध के परिणाम, सरहिन्द का युद्ध, 22 जून 1555, सरहिन्द युद्ध के परिणाम, सरहिन्द युद्ध में अफगानों की पराजय के कारण, हुमायूँ का दिल्ली पर अधिकार और द्वितीय बार राजत्व, हुमायूँ की मृत्यु, हुमायूँ का राज्य-प्रबन्ध, एकतंत्रात्मक निरंकुश शासन प्रणाली, दैवी सिद्धांत, साम्राज्य और उसका विभाजन, प्रशासन के चार भाग, अमीरों व राज कर्मचारियों का तीन श्रेणियों में विभाजन, तीनों श्रेणियों और राज कर्मचारियों के लिये सप्ताह के तीनों दिनों का वर्गीकरण, राज कर्मचारियों के वर्ग के बारह भाग और उनके बारह स्वर्णबाण, आर्थिक कार्य, न्याय-व्यवस्था, बिसाते, निसात, नवीन राजकीय प्रणालियाँ और निर्माण, हुमायूँ द्वारा निर्मित भवन, हुमायूँ का मूल्यांकन, हुमायूँ का व्यक्तित्व, हुमायूँ की धार्मिक नीति, विद्यानुरागी और साहित्य का संरक्षक, ललित कलाओं का संरक्षक, असफल शासक, हुमायूँ के चारित्रिक दोष और दुर्बलताएँ, हुमायूँ जीवन भर लड़खड़ाता रहा और लड़खड़ाकर ही उसने अपने जीवन का अंत कर दिया, हुमायूँ के चरित्र व गुणों के विषय में विद्वानों के मत, हुमायूँ की असफलता के कारण, वे कारण और परिस्थितियाँ जिनके लिये हुमायूँ स्वयं उत्तरदायित्व नहीं था, वे कारण और परिस्थितियाँ जिनके लिये हुमायूँ स्वयं उत्तरदायित्व था, क्या हुमायूँ के लिये अपनी विषम परिस्थितियों से छुटकारा पाना और कठिनाइयों से बाहर निकलना सम्भव था? इतिहास में हुमायूँ का स्थान

शेरशाह का अभ्युदय

शेरशाह का प्रारंभिक जीवन, फरीद का बाल्यकाल और शिक्षा, फरीद द्वारा पिता हसनखाँ की जागीर का प्रबंध, फरीद का जागीर प्राप्ति के लिये प्रयास और बिहार में सेवाकाल (1519-26), शेरखाँ मुगल सेवा में (1527-28), सुल्तान मुहम्मद (बिहारखाँ) के प्रतिनिधि के रूप में शेरखाँ, बिहार में शेरखाँ का उत्कर्ष, शेरखाँ का चुनार दुर्ग पर अधिकार, सुल्तान, महमूद लोदी का बिहार पर अधिकार और दादरा युद्ध में मुगलों के हाथों पराजय, हुमायूँ द्वारा चुनार दुर्ग पर आक्रमण और शेरखाँ तथा हुमायूँ के बीच संघर्ष, सन् 1532, गूगारघर में हुमायूँ और अफगानों का संघर्ष, तेलियागढ़ी का युद्ध, हुमायूँ की बंगाल से वापिसी, चैसा का युद्ध, शेरखाँ का राज्याभिषेक और राज्य तथा शक्ति का विस्तार, कन्नौज का युद्ध, शेरखाँ द्वारा हुमायूँ का पीछा और दिल्ली, आगरा तथा पंजाब पर शेरखाँ का अधिकार

शेरशाह सूरी (सन् 1540 ई. से 1545 ई. तक)

शेरशाह की समस्याएँ, बलूचियों का दमन, गक्खड़ प्रदेश की विजय, और पश्चिमोत्तर प्रदेश सीमा क्षेत्र की सुरक्षा, बंगाल के विद्रोही शासक खिजरखाँ का दमन और बंगाल का नवीन प्रशासन, (1541), मालवा, विजय, शेरशाह का ग्वालियर पर अधिकार, शेरशाह और कादिरशाह, सारंगपुर, उज्जैन व मांडू पर शेरशाह का अधिकार, रणथंभौर पर अधिकार, मालवा में उपद्रव और शुजातखाँ तथा हाजीखाँ की विजय, रायसेन पर आक्रमण तथा विजय, शेरशाह की राजस्थान में विजय, शेरशाह और मालदेव समेल जेतारण का युद्ध, जोधपुर, अजमेर, जालौर और अन्य दुर्गों पर शेरशाह की विजय, कालिंजर पर आक्रमण और शेरशाह की मृत्यु शेरशाह का साम्राज्य, शेरशाह का शासन-प्रबन्ध, शेरशाह के प्रशासन के उद्देश्य और सिद्धांत, शेरशाह के राजत्व के आदर्श, शेरशाह से पूर्व शासन-व्यवस्था, शेरशाह के शासन का स्वरूप, शेरशाह की शासन-प्रणाली, केन्द्रीय शासन, सुल्तान, मंत्रि-परिषद और प्रशासनिक विभाग, दीवान-ए-वजारत, दीवान-ए-अर्ज, दीवान-ए-रिसालत, दीवान-ए-इंशा, दीवान-ए-काजा, दीवान-ए-बरीद, शाही महल का अधीक्षक, सैनिक व्यवस्था, सेना की संख्या और संगठन, सैनिकों की जागीर प्रथा का अंत, दाग और हुलिया प्रणाली, कठोर अनुशासन और दण्ड, न्याय-व्यवस्था, पुलिस व गुप्तचर व्यवस्था, भूमि कर सम्बन्धी व्यवस्था और सुधार, राजस्व संबंधी शेरशाह के सिद्धांत, भूमि का सर्वेक्षण और वर्गीकरण, भूमिकर का निर्धारण और उसकी विभिन्न पद्धतियाँ, पट्टा तथा कबूलियत, जरीबाना, मुहसिलाना और दाहअस्तरी कर, कृषकों के कल्याण संबंधी नियम और आदेश, राजस्व के अधिकारी, शेरशाह की राजस्व-व्यवस्था के दोष, शेरशाह की राजस्व-व्यवस्था और राजस्व सुधारों का महत्व, राज्य की आय के साधन और व्यय के मद, मुद्रा संबंधी सुधार और परिवर्तन, शेरशाह के जनहित के कार्य, सड़कें व सरायें, डाकचैकी और डाक प्रबन्ध शिक्षा, दान-व्यवस्था, शेरशाह का प्रांतीय शासन-प्रबन्ध, शेरशाह का प्रशासकीय आदर्श, सरकार (जिले) के अधिकारी परगना और उसके अधिकारी, सरकार और परगने के शासन की विशेषताएँ, ग्राम का शासन-प्रबन्ध और स्थानीय शासन-व्यवस्था, शेरशाह के प्रशासन का महत्व, शेरशाह की धार्मिक नीति, शेरशाह और अकबर की धार्मिक नीति की तुलना, शेरशाह के भवन, शेरशाह के चरित्र, व्यक्तित्व और कार्यों का मूल्यांकन, विशिष्ट विद्वानों के मत, शेरशाह मनुष्य के रूप में, महानयोद्वा और सफल सेनापति, महान साम्राज्य निर्माता और विजेता, सफल प्रतिभावान शासक, भवन निर्माता, शेरशाह अफगानों का नेता, शेरशाह राष्ट्र निर्माता? शेरशाह अकबर का अग्रगामी, अग्रगामी से तात्पर्य, राजस्व का आदर्श, प्रशासन में शेरशाह की नीतियों, प्रणालियों और कार्यों का अनुकरण, धार्मिक नीति, लोकोपकारी कार्य, स्थापत्यकला, प्रशासन के कार्य, राजत्व के आदर्श में सुधार, केन्द्रीय और प्रान्तीय प्रशासन, धार्मिक नीति, सैनिक संगठन, इतिहास में शेरशाह का स्थान

सूर साम्राज्य का पतन

शेरशाह के उत्तराधिकारी, इस्लामशाह (1545-54), मुहम्मद आदिल शाह, 1554-56, सूर साम्राज्य का विघटन, सर्व व्यापी विद्राह, हुमायूँ का भारत पर आक्रमण, सूरवंश के पतन के कारण, राजनीतिक कारण, सैनिक कारण, आर्थिक कारण

अकबर महान, संरक्षण शासनकाल (सन् 1556 ई. से 1605 ई. तक)

अकबर का प्रारंभिक जीवन, अकबर की शिक्षा की व्यवस्था, अकबर सरहिन्द के युद्ध में, अकबर का राज्यारोहण, अकबर के राज्यारोहरण के समय भारत की दशा, राजनीतिक दशा, आर्थिक स्थिति, अकबर की प्रारंभिक कठिनाइयाँ और समस्याएँ, अकबर की समस्याओं का निराकरण, हेमू या हेमूशाह या हेमचंद्र, हेमचंद्र का प्रारंभिक जीवन, सुल्तान की सेवा में हेमू, आदिलशाह के शासनकाल में हेमू की सर्वोच्च सत्ता , हेमू द्वारा विद्रोहियों का दमन और उसकी विजयें, ग्वालियर, आगरा और दिल्ली पर हेमू का अधिकार, हेमू का हिन्द सम्राट बनना, हेमू से युद्ध करने का बैरामखाँ का परामर्श, युद्ध के लिये व्यूह रचना पानीपत का द्वितीय युद्ध 5 नवम्बर 1556, हेमू का वध, हेमू का मूल्यांकन, पानीपत के युद्ध में अकबर की विजय और हेमू की पराजय के कारण, पानीपत के द्वितीय युद्ध के परिणाम और उसका महत्व, बैरामखाँ के संरक्षण में अकबर की प्रारंभिक विजयें, दिल्ली और आगरा की पुनः प्राप्ति, मेवात विजय, ग्वालियर विजय, जम्मू पर आक्रमण और लूट, जौनपुर विजय, मालवा में सिरोंज विजय, बैरामखाँ का संरक्षण, सफलताएँ और मूल्यांकन, बैरामखाँ के संरक्षण में प्रशासन, बैरामखाँ का पतन और उसके कारण, बैरामखाँ के चरित्र और व्यवहार में परिवर्तन, तारदीबेग का वध, बैरामखाँ का पक्षपातपूर्ण व्यवहार और नीति, ईरानी-नूरानी ईष्र्या-द्वेष, शिया-सुन्नी का भेद और तीव्र प्रतिक्रिया, अतकाखाँ का विरोध और शत्रुता, आर्थिक कठिनाइयाँ और असुविधाएँ, सैनिक असफलताएँ, अकबर का तीव्र असंतोष और स्वयं शासन संभालने की लालसा, बैरामखाँ का विद्रोह, बैरामखाँ का वध, अकबर का बैरामखाँ के पुत्र के साथ उदारता का व्यवहार, बैरामखाँ के प्रति अकबर के व्यवहार की आलोचना, बैरामखाँ का मूल्यांकन तथा कथित स्त्री शासन 1560-62, प्रधानमंत्री पद पर विभिन्न व्यक्तियों की नियुक्ति, मालवा पर आक्रमण और आदमखाँ के अत्याचार, प्रधानमंत्री पद पर अतकाखाँ की नियुक्ति, चुनार और मेड़ता विजय, पीर मुहम्मद का खानदेश पर आक्रमण और उसकी मृृृत्यु, अतकाखाँ का वध और आदमखाँ का अन्त, माहम अनगा का मूल्यांकन, क्या वास्तव में अकबर स्त्री शासन के अधीन और उसके प्रभाव में था?

अकबर की विजयें और साम्राज्य विस्तार

साम्राज्यवादी अकबर, अकबर की विजयें, बैरामखाँ के संरक्षण में विजय और राज्य विस्तार, स्त्री-शासन के समय अकबर की विजयें, मालवा विजय, चुनार दुर्ग की विजय, मालवा में मिर्जाओं का विद्रोह, अकबर के शासनकाल की विजयें, केरामचन्द्र बघेल पर विजय, गक्खड़ प्रदेश की विजय, गोंडवाना की विजय रोहतास दुर्ग पर अधिकार, गुजरात विजय, गुजरात पर अकबर के आक्रमण के कारण, अकबर का गुजरात पर आक्रमण और अहमदाबाद पर अधिकार, विद्रोही मिर्जाओं का दमन और सरनाल का युद्ध, सूरत दुर्ग विजय, पाटन का युद्ध, मुहम्मद हुसैन मिर्जा और इख्तियार-उल-मुल्क के नेतृत्व में विद्रोह, अमहदाबाद का युद्ध, गुजरात में शासन-व्यवस्था, जूनागढ़, सौराष्ट्र और द्वारका की विजय, गुजरात विजय के परिणाम और महत्व, बंगाल और बिहार की विजय, बंगाल का सूर राज्य, बंगाल बिहार का कर्रानी राज्य, बिहार विजय के लिये मुनीमखाँ का अभियान और लोदी खाँ से युद्ध, पटना का घेरा, हाजीपुर पर अधिकार, पटना का पतन, बिहार भी शासन-व्यवस्था, तेलियागढ़ी और टांडा की विजय, तुकरा का युद्ध और मुनीमखाँ की दाऊद से संधि, बिहार में अफगान विद्रोह का दमन, राजमहल का युद्ध, रोहतासगढ़ और शेरगढ़ पर मुगलों का अधिकार, उड़ीसा विजय, अफगानों की पराजय के कारण पश्चिमोŸार सीमा संबंधी अकबर की नीति और विजय, अकबर की नीति के प्रमुख तत्व, मिर्जाहकीम का पंजाब पर प्रथम और द्वितीय आक्रमण, अकबर का काबुल पवर अस्थायी अधिकार, मानसिंह काबुल का सूबेदार, कबीली प्रदेश, रोशनिया सम्प्रदाय रोशनियों की पराजय, स्वात और बाजौर पर आक्रमण और युसुफजाइयों की पराजय, काश्मीर विजय, पंजाब के राजाओं और लद्दाख तथा बल्टिस्तान द्वारा अकबर की अधीनता स्वीकार करना, सिंधविजय, बलूचिस्तार और मकरान विजय, कन्धार विजय, दक्षिण भारत की विजय, दक्षिण के राज्यों की विजय में अकबर का उद्देश्य, अकबर की खानदेश विजय, अकबर और मीरन मुबारक शाह, कबर और मीरन बहादुशाह असीरगढ़ दुर्ग का घेरा, असीरगढ़ का पतन और फारुखी वंश का पतन, अकबर की नीति की आलोचना, अहमदनगर के विरुद्ध अकबर का अभियान और उसकी विजय, मुर्तजा निजामशाह और अकबर अहमदनगर के विरुद्ध, अकबर का असफल अभियान, बुरहान-उल-मुल्क, अहमदनगर पर मुगल आक्रमण और उसका घेरा तथा चांदबीबी द्वारा मुकाबला, बरार में मुगल सेनानायकों की विजय और दक्षिण के कुछ वर्गों पर अधिकार, अहमदनगर का द्वितीय घेरा और उसका पतन, अकबर की दक्षिण विजय के परिणाम

अकबर की राजपूत नीति और राजस्थान विजय

बाबर और राजपूत, हुमायूँ और राजपूत, अकबर की मैत्रीपूर्ण उदार राजपूत नीति के कारण, हिन्दू प्रधान भारत, राजपूतों की जातीय विशिष्टताओं का मुगल-साम्राज्य के लिए उपयोग करने की लालसा, विदेशी सैन्य बल से मुक्ति की भावना, साम्राज्यवादी नीति की सफलता के लिये राजपूतों की मैत्री अनिवार्य, स्वतंत्र राजपूत राज्यों का सानिध्य, राष्ट्रीय राज्य और समन्वय की भावना, अकबर का निजी स्वार्थ और आंतरिक कारण, मुगलों के विदेशीपन का निराकरण करने और भभारतीय ों की राजभक्ति प्राप्त करने की भावना, अकबर की कृतज्ञता की भावना, पितृकुल तथा गुरुओं की उदार प्रवित्तियों का प्रभाव, अकबर की राजपूत नीति का स्वरूप और उसके अंग, तीन विकल्प अपनी राजपूत नीति को कार्यान्वित करने के लिये अकबर के कार्य-अधीनस्थ राजपूत राजाओं का विश्वास और उत्तरदायी पूर्ण पदों पर नियुक्ति, राजपूतों के प्रति धार्मिक सहिष्णुता तथा समभाव, राजपूतों से वैवाहिक संबंध, अकबर की राजपूत नीति के परिणाम-राजपूत मुगल साम्राज्य और सुरक्षा के दृढ़ स्तंभ, राजस्थान पर प्रभुत्व, मुस्लिम और अन्य राजपूत राज्यों को विजित करने का साधन, दरबारी मुस्लिम अमीरों पर अंकुश और दरबार की गौरव-वृद्धि, नये युग का प्रारम्भ, सांस्कृतिक प्रगति, राजपूत शक्ति और एकता पर कुठाराघात, अकबर की राजपूत नीति का विवरण और राजपूत राज्यों की विजय, राजपूत राजवंशों से अकबर के विवाह, अकबर द्वारा राजपूत राज्यों की विजय, मेड़ता विजय, जोधपुर विजय, रणथंभौर विजय, कालिंजर विजय, जोधपुर, बीकानेर तथा जेसलमेर द्वारा अकबर की अधीनता स्वीकार करना, अकबर और मेवाड़ या चित्तौड़ राज्य, उदयसिंह और अकबर के बीच युद्ध के कारण या चित्तौड़ पर आक्रमण के कारण, चित्तौड़ पर आक्रमण चित्तौड़ का घेरा, चित्तौड़ का पतन और कत्ले आम, चित्तौड़ के पतन का प्रभाव, अकबर और राणा प्रतापसिंह, राणा प्रताप का राज्यारोहण, मेवाड़ की दशा, राणा प्रताप सिंह के उद्देश्य और नीति, राणा प्रताप के पास अकबर के दूत मण्डल, राणा प्रताप के विरुद्ध अकबर का अभियान, हल्दी घाटी का युद्ध, हल्दी घाटी युद्ध के परिणाम, राणा को घेरने के लिये अकबर के अभियान, राणा का संगठित संघर्ष, राणा के विरुद्ध शाहबाजखाँ के तीन अभियान और उसकी राजधानी कुंभलगढ़ का पतन, राणा के विरुद्ध जगन्नाथ कछवाहा का असफल सैनिक अभियान, राणा द्वारा मेवाड़ के अनेक भागों पर अधिकार, राणा प्रताप के प्रतिरोध और संघर्ष का स्वरूप, राणा प्रताप का मूल्यांकन, मेवाड़ का राणा अमरसिंह, मेवाड़ पर सलीम के नेतृत्व में आक्रमण, अकबर का साम्राज्य

अकबर की धार्मिक नीति और दीन इलाही

अकबर की धार्मिक उदारता और सहिष्णुता राजनीतिक आवश्यकता थी, राज्य के स्थायित्व के लिये हिन्दुओं के सहयोग की आवश्यकता, अराजकता और अशांति निवारण तथा मुस्लिम शत्रुओं के दमन के लिये हिन्दुओं के सहयोग की आवश्कयता, अकबर का स्वयं का उदार धार्मिक दृष्टिकोण और आध्यात्मिक अनुभव, हिन्दू, विवाहों, उदार अध्यापक व अधिकारियों का प्रभाव, अकबर की धार्मिक नीति को बनाने और प्रभावित करने वाले तत्व, घटनाएँ और परिस्थितियाँ, तैमूरी राजवंश की उदार धार्मिक परम्परा, अकबर के शिक्षकों का उदारतापूर्ण दृष्टिकोण, भक्ति आंदोलन और सूफी विचारधाराएँ, हिन्दू राजकन्याओं से विवाह और उनका प्रभाव, हिन्दू अधिकारियों का सम्पर्क और प्रभाव, राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का प्रभाव, विभिन्न धर्माचार्यों से सम्पर्क और उसका प्रभाव, अकबर की जिज्ञासु और सत्यान्वेषण की प्रवित्तिया, इस्लाम के धर्मांध कट्टर नेताओं और उल्माओं का स्वार्थ और पतित चरित्र, अकबर की धार्मिक नीति का विकास, सन् 1526 से 1562 की अवधि में अकबर सुन्नी मुसलमान, सन् 1562 से 1578 की अवधि में नवीन धार्मिक नीति का प्रारम्भ, आमेर की राजकुमारी से विवाह, अकबर की आध्यात्मिक जागृति, युद्ध बंदियों को बलपूर्वक मुसलमान बनाने का निषेध, तीर्थयात्रा कर की समाप्ति, गैर मुसलमानों को स्वतंत्रतापूर्वक अपने धार्मिक स्थान निर्माण करने की आज्ञा, राज्य के उच्च पदों पर गैर मुसलमानों की नियुक्ति, हिन्दू मुसलमानों के सांस्कृतिक सम्पर्क के प्रयास, इबादतखाने की स्थापना और इस्लाम धर्म पर वाद-विवाद, विभिन्न धर्मों का ज्ञान प्राप्त करना और उदार, सहिष्णु, व्यापक, धार्मिक विचारधाराएँ, (सन् 1578-1582), इबादतखाने में विभिन्न धर्मों की विचार-गोष्ठियां और वाद-विवाद, अकबर का खुतबा पढ़ना, महजर या अभ्रान्ति आज्ञा-पत्र, प्रपत्र या महजर का महत्व और परिणाम, अनुदार मुसलमानों का अकबर पर दोषारोपण, दीनइलाही या तोहीदेहलाही (दैवी एकेश्वरवाद), दीनइलाही का स्वरूप, दीनइलाही के प्रवर्तन के कारण, प्रभावोत्पादक परिस्थितियाँ, अकबर के मानवीय कार्य, अकबर का अध्यात्म ज्ञान और सत्यान्वेषण की जिज्ञासा, इबादतखाना, दीनइलाही का प्रारम्भ-दीनइलाही के सिद्धांत और संस्कार, दीनइलाही के अनुयायियों का वर्गीकरण या श्रेणियाँ, दीनइलाही के विषय में विभिन्न विद्वानों के मत, दीनइलाही की आलोचना व समीक्षा, दीनइलाही की असफलता के या अल्पकालीन अस्तित्व के कारण, दीनइलाही के परिणाम, क्या अकबर ने इस्लाम धर्म को त्याग दिया था ? इस्लामदमन के सम्बन्ध में बदायूँनी के अभियोग, आरोपों की समीक्षा, अकबर के दरबार में विभिन्न धर्मों के प्राचार्य और ईसाई पादरी, अकबर और हिन्दू आचार्य, अकबर और पारसी धर्माचार्य, अकबर और जैनधर्माचार्य अकबर और ईसाई धर्म, पुर्तगाली ईसाई पादरियों का प्रथम शिष्ट मंडल, द्वितीय ईसाई शिष्ट मंडल, तृतीय ईसाई शिष्ट मंडल ईसाई शिष्ट मंडलों की सफलताएँ

सलीम के विद्रोह और अकबर के अंतिम वर्ष

सलीम के विद्रोह केारण, सलीम के प्रथम, विद्रोह, अबुलफजल का वध, सलीम का द्वितीय विद्रोह, अकबर के जीवन के अंतिम वर्ष, तूरान विजय की योजना, मेवाड़ पर दो बार आक्रमण अकबर की अस्वस्थता और शारीरिक दुर्बलता, मानसिक चिंताएँ, अकबर की रुग्णता, सलीम के विरुद्ध षड़यंत्र, अकबर का प्राणान्त, क्या अकबर को विष दिया गया था?

अकबर का व्यक्तित्व, चरित्र और उपलब्धियाँ

शारीरिक गठन और शक्ति, वेशभूषा, भोजन, स्वभाव, संयमित जीवन और दिनचर्या, अकबर की साक्षरता और शिक्षा, अकबर के मानसिक गुण और विद्यानुराग, अकबर का पारिवारिक स्नेह, सहृदयता, मित्रता, और स्नेह संचित संबंध, बुद्धिवादिता तर्क और अन्ध विश्वास, महत्वाकांक्षी, सम्राट, अकबर शासक तथा प्रबंधक के रूप में, धर्म निरपेक्ष शासक, अकबर राजनीतिज्ञ के रूप में, अकबर वीर योद्धा और सेनानायक के रूप में, अकबर एक महान विजेता के रूप में, उदार और सहिष्णु सम्राट ललित कला का संरक्षक, स्थापत्यकला चित्रकला, सुन्दरलेखन कला, संगीतकला, उद्यानकला, साहित्य का संरक्षक, क्या अकबर मुसलमान नहीं रहा था? अकबर एक राष्ट्रीय सम्राट और अकबर की समन्वय की नीति, मुगल शासन का वास्तविक संस्थापक बाबर नहीं अकबर था, अकबर ने मुगल साम्राज्य को संगठित और व्यवस्थित किया, अकबर एक महान सम्राट, इतिहास में अकबर का स्थान, प्रमुख इतिहासकारों के मत

अकबर के सुधार

अकबर की राजसत्ता का स्वरूप, अकबर में सुधार और संशोधन की प्रबल भावना, प्रशासकीय सुधार, हिन्दुओं और मुसलमानों की निष्पक्षता से शासन में नियुक्ति, युद्ध बंदियों की दासप्रथा का अंत, पदाधिकारियों और उनके सैनिकों व सेवकों की संख्या निर्दिष्ट करना, दरबारी सेवाओं का वर्गीकरण, शाही लेखागार की स्थापना, मनसबदारों की विभिन्न व्यवस्थित श्रेणियाँ और घोड़ों को दागने की व्यवस्था, टकसालों के सुधार, सुधारों और संशोधनों के लिये सुझाव, केन्द्रीय विभागों का पुनर्गठन, अकबर के सामालिक सुधार, तीर्थयात्रा का अंत, जजिया कर का अंत, गुलामों की मुक्ति, विवाह प्रथा में सुधार, सती प्रथा का निषेध, मद्यपान का निषेध, वेश्यावित्ती पर नियंत्रण, शिशु हत्या की रोकथाम, हीन व्यवसायियों के निवास की व्यवस्था, भिक्षावित्ती पर नियंत्रण, बलात धर्म परिवर्तन की निस्सारता और धार्मिक स्वतंत्रता, इलाही संवत और फसली सन, पशुवध का निषेध, बाजार नियंत्रण, शिक्षा सुधार, अनुवाद विभाग, नवीन ग्रंथ, पुस्तकालय

जहाँगीर (सन् 1605 ई. से 1627 ई. तक)

जन्म, सलीम की शिक्षा, सलीम के विवाह और पुत्र, सलीम प्रशासन में, सलीम के विद्रोह, सलीम के विरुद्ध असफल षड़यंत्र, जहाँगीर का राज्यारोहण, प्रथम नौरोज का उत्सव, न्याय की जंजीर, जहाँगीर के बारह फरमान या अध्यादेश, खुसरो का विद्रोह, खुसरो को अजीज कोका और मानसिंह का संरक्षण, खुसरो को सम्राट बनाने का असफल प्रयत्न, खुसरो की महत्वाकांक्षा और पलायन, जहाँगीर द्वारा खुसरो का पीछा, खुसरो द्वारा लाहौर का घेरा, भैरोवाल का युद्ध और खुसरो की पराजय, खुसरो और उसके साथियों को कठोर दंड, खुसरो द्वारा जहाँगीर की हत्या का षड़यंत्र, खुसरो का महत्व और उसके पक्ष में विद्रोह, खुसरो का अंत, क्या खुर्रम भ्रातहन्ता था, सिक्ख गुरु अर्जुनदेव को मृृत्युदंड, खुसरो के विद्रोह के परिणाम, अन्य विद्रोह और उनका दमन, जहाँगीर के सैनिक अभियान और विजय, मेवाड़ पर आक्रमण और विजय, मेवाड़ के विरुद्ध प्रथम अभियान, द्वितीय अभियान, तृतीय अभियान और मेवाड़ विजय, मेवाड़ की संधि और उनकी शर्तें, संधि की समीक्षा, दक्षिण भारत में अहमद नगर की विजय, अहमद नगर के विरुद्व मुगल सैनिक अभियान, शाहजादा खुर्रम की अल्पकालीन अहमदनगर विजय, खुर्रम की प्रथम विजय और संधि, खुर्रम की द्वितीय विजय और संधि, जहाँगीर की दक्षिण नीति की असफलता के कारण, कांगड़ा विजय, किश्तवार विजय, कंधार का मुगलों के हाथों से निकल जाना, शाह अब्बास का कंधार पर आक्रमण और विजय, जहाँगीर की मध्य एशिया संबंधी नीति, मलिक अम्बर और उसकी सफलताएँ, मलिक अम्बर का मूल्यांकन, प्रतिभा सम्पन्न, प्रभावशील नूरजहाँ, नूरजहाँ का प्रारंभिक जीवन, मेहरुन्निसा का विवाह, शेर अफगन का वध, मेहरुन्निसा और जहाँगीर का विवाह, क्या जहाँगीर शेर अफगन का हन्ता था ? नूरजहाँ का प्रभुत्व का प्रथम युग, सन् 1611 से 1622, नूरजहाँ के प्रभुत्व का द्वितीय युग, नूरजहाँ के प्रभुत्व के दोष और उनका कुप्रभाव, नूरजहाँ का व्यक्तित्व, चरित्र और मूल्यांकन

जहाँगीरी शासन की संध्या

खुर्रम का विद्रोह, विद्रोह के कारण, शाहजहाँ का उड़ीसा और बंगाल पर अधिकार, दक्षिण में शाहजहाँ की पराजय, जहाँगीर द्वारा शाहजहाँ को क्षमादान और विद्रोह का अंत, शाहजहाँ के विद्रोह के परिणाम, शाहजहाँ के विद्रोह की असफलता के कारण, महाबतखाँ का विद्रोह, विद्रोह के कारण, महाबतखाँ का विद्रोह और जहाँगीर को बंदी बनाना, महाबतखाँ की सुदृढ़ स्थिति, महाबतखाँ के प्रभुत्व का ह्रास, नरजहाँ द्वारा सम्राट जहाँगीर की मुक्ति, महाबतखाँ की असफलता, जहाँगीर और यूरोपवासियों के संबंध (यूरोप के यात्रियों के वर्णन) पुर्तगाली और मुगल दरबार, जहाँगीर और पुर्तगाली ईसाई पादरी, जहांगीर और अंग्रेज, विलियम हाकिंस, विलियम फिच, थोमस कुरेट, सरटाॅमसरो, टाॅमसरो द्वारा जहाँगीर से संधि प्रस्ताव और सुविधा प्राप्ति के लिये प्रयास, सरटाॅमस रो का विवरण, एडवर्ड टेरी, पीट्रोडेल वैले, जहाँगीर की मृत्यु, जहाँगीर का मूल्यांकन, विभिन्न इतिहासकारों के मत, जहाँगीर के व्यक्तित्व और चरित्र के विषय में विरोधी मत, जहाँगीर की धार्मिक नीति, जहाँगीर की चारित्रिक दुर्बलताएँ, शासक के रूप में जहाँगीर, ललित कलाओं का उदार संरक्षक सम्राट, इतिहास में स्थान

ऐश्वर्यशाली शाहजहाँ, विद्रोह और विजय

शाहजहाँ का प्रारंभिक जीवन: खुर्रम का उत्कर्षकाल, खुर्रम का विद्रोह, उत्तराधिकारी के लिये संघर्ष, राज्यारोहण, शाहजहाँ के शासनकाल की प्रारम्भिक घटनाएँ, शाहजहाँ की प्रारंभिक घटनाएँ, दुर्भिक्ष एवं प्लेग, शाहजहाँ द्वारा दुर्भिक्ष पीड़ितों की सहायता, शाहजहाँ के शासनकाल के विद्रोह, बुन्देलखंड में जुझारसिंह का विद्रोह, जुझारसिंह के विरुद्ध सैनिक आक्रमण और उसका अंत, चम्पतराय का विद्रोह, खानजहाँ लोदी का विद्रोह, मऊनूरपुर के जमींदारों का विद्रोह, शाहजहाँ की विजयें, कोचक तिब्बत (छोटा तिब्बत) आसाम, उज्जैनिया, रतनपुर, पलामऊ, गढ़वाल और कुमायूँ, मालवा, गोंडवाना, शाहजहाँ की दक्षिण नीति, शाहजहाँ की दक्षिण नीति और दक्षिण में अभियान के कारण, अहमद नगर विजय, बीजापुर युद्ध और संधि, दक्षिण में औरंगजेब की प्रथम सूबेदारी, दक्षिण में औरंगजेब की द्वितीय सूबेदारी गोलकुण्डा पर औरंगजेब के आक्रमण के कारण, गोलकुण्डा सुल्तान से संधि, बीजापुर पर आक्रमण, बीजापुर से संधि, शाहजहाँ की दक्षिण नीति की समीक्षा, मीरजुमला

शाहजहाँ की विदेशी नीति

शाहजहाँ की वैदेशिक नीति के मूल लक्षण, शाहजहाँ की उत्तर-पश्चिमी सीमान्त नीति, ईरान के प्रति शाहजहाँ की नीति, मुगल बादशाहों का कंधार पर अधिकार, ईरान के प्रति मुगलों का दृष्टिकोण, शाहजहाँ का कंधार पर अधिकार, कंधार का शाहजहाँ के हाथ से निकल जाना, कंधार को पुनः जीतने का प्रथम प्रयत्न, कंधार को पुनः विजय करने का द्वितीय प्रयास, कंधार विजय का तृतीय प्रयत्न, कंधार अभियान की असफलता के परिणाम, कंधार नीति की असफलता के परिणाम, शाहजहाँ और तुर्की सुल्तान, शाहजहाँ की केन्द्रीय एशियायी नीति, केन्द्रीय एशिया के विषय में शाहजहाँ की महत्वाकांक्षा, शाहजहाँ के शासनकाल में बल्ख और बदख्शां की स्थिति, नजर मुहम्मद का काबुल पर आक्रमण, इमाम कुली ओर नजर मुहम्मद के साथ मैत्री संबंध, शाहजहाँ का बदख्शां और बल्ख पर प्रथम आक्रमण, बदख्शां और बल्ख की समस्याएँ, बल्ख पर द्वितीय आक्रमण, नजर मुहम्मद से संधि, शाहजहाँ की मध्य एशिया की नीति की असफलता, असफलता के कारण, शाहजहाँ और पुर्तगाली, पुर्तगालियों से युद्ध के कारण, बंगाल में पुर्तगालियों से युद्ध, पुर्तगालियों के साथ व्यवहार, शाहजहाँ की पुर्तगाली नीति की समीक्षा, दक्षिण में पुर्तगालियों के विरुद्ध कार्यवाही, शाहजहाँ और डच, डचों को व्यापारिक सुविधाएँ और उनकी समृद्धि, मुगल दरबार में डच शिष्टमंडल और व्यापारिक अधिकारों की प्राप्ति, शाहजहाँ और अंग्रेज, अंग्रेजों को व्यापारिक सुविधाएँ अंग्रेजों के व्यापार पर कुप्रभाव और उनकी सुविधाएँ प्रतिबन्धित, अंग्रेजों को व्यापारिक सुविधाएँ और उनकी संतोषजनक स्थिति, शाहजहाँ की नीति की समीक्षा

शाहजहाँ का मूल्यांकन

मुमताज महल, शाहजहाँ की सन्तान, शाहजहाँ का मूल्यांकन, शाहजहाँ मानव के रूप में, सफल सेनापति, कुशल शासक, न्यायप्रिय शासक, विद्या, कला और सौन्दर्य का अनुरागी, शाहजहाँ की धार्मिक नीति, शाहजहाँ का शासनकाल, मुगलों का स्वर्णयुग, विभिन्न इतिहासकारों के मत, मुगल साम्राज्य का विस्तार, प्रजा कल्याणकारी दृढ़ शासन-व्यवस्था, शांति और सुरक्षा, आर्थिक समृद्धि, सांस्कृतिक क्षेत्र की उन्नति, स्वर्ण युग की समीक्षा, निष्कर्ष, शाहजहाँ की आलोचनात्मक समीक्षा

उत्तराधिकार का युद्ध

दाराशिकोह, शाह शुजा, औरंगजेब, मुराद, जहाँनारा; रोशनआरा; मुगल सम्राटों में उत्तराधिकार, उत्तराधिकार के लिये युद्ध के कारण, उत्तराधिकार के युद्ध के परिणाम

मुगल शासन व्यवस्था

मुगल शासन का स्वरूप, केन्द्रीय शासन-प्रबन्ध, मुगल सम्राट, झरोखा दर्शन, दीवान-ए-आम और दीवान-ए-खास की बैठकें, रात्रि की बैठकें, गुसलखाना अथवा दौलतखाना, शाहबुर्ज, मंत्रीगण, वकील, वजीर या दीवान-ए-आला, मीरबख्शी अथवा अफसर-ए-खजाना, खान-ए-सामान अथवा मीर सामां, सद्र-ए-सदूर या सदे्रजहाँ, काजी-उल-कुजात, मुहतासिब, दरोगा-ए-डाकचैकी, मीर आतिश या दरोगा-ए-तोपखाना, दरोगा-ए-टकसाल, दीवान-ए-बयूतात, दरोगा-ए-किताबखाना, अन्य कर्मचारी गण, सामन्तवाद

प्रान्तीय शासन प्रबन्ध

साम्राज्य के सूबे, प्रान्तपति या सूबेदार, दीवान, बख्शी, कोतवाल, सद्र, काजी, सरकार या जिले का शासन प्रबन्ध, फौजदार, अमलगुजार या करोड़ी, बितिक्ची और फौतदार (खजानदार) काजी, परगना या महाल का शासन-प्रबंध, शिकदार, काजी, आमिल, फौतदार (खजानदार) कानूनगो, ग्रामों में शासन-व्यवस्था, ग्राम पंचायत

सैन्य व्यवस्था और मनसबदारी

मुगलों का सैनिक संगठन और मनसबदारी प्रथा, मुगल सेना की संख्या, सैनिकों की भ्रती, वेतन और प्रशिक्षण, मुगल सेना के अंग, पैदगान, रिसाला, हस्तीसेना, तोपखाना, नौसेना या समुद्री बेड़ा, मुगलसेना की रसद, सेनाओं का वितरण, दुर्गों में सैन्य व्यवस्था, मुगल सैन्य संगठन के दोष, मनसबदारी प्रथा, प्रशिक्षण, अनुशासन ओर नियंत्रण का अभाव, सेना में विविधता, सेना में स्त्रियां और बेगमों तथा विलासिता की सामग्री, दाग और हुलिया की प्रथा में शिथिलता, श्रेष्ठ युद्ध सामग्री का अभाव, रसद विभाग का अभाव, मनसबदारी प्रथा, मनसबदारी के प्रमुख लक्षण, सैनिक और असैनिक दोनों प्रकार के प्रशासन में मनसबदार, मनसबदारों की श्रेणियाँ और वृद्धि के पैमाने, मनसबदारों को निश्चित सैनिक रखने की अनिवार्यता, हुलिये और दाग की प्रथा की अनिवार्यता, मनसबदारों को वेतन, मनसबदारों के लिये जब्ती प्रथा, ‘‘जात’’ और ‘‘सवार’’, ‘‘दु-अस्पा’’ और ‘‘सिह-अस्पा’’ मनसबदारों की पदोन्नति मनसबदारी प्रथा और जामीरदारी प्रथा, मनसबदारी प्रथा की आंशिक सफलता, मनसबदारी के दोष और उसकी असफलता

राजस्व व्यवस्था

मुगल साम्राज्य की आय और उसके प्रमुख साधन; व्यय के मद; भूमिकर व्यवस्था, भूमि-सुधार के लिये अकबर के उद्देश्य,भूमि सुधार के प्रयोग, दहसाला प्रथा या जाबती प्रथा, दहसाला व्यवस्था के प्रमुख तत्व, भूमि की पैमाइश, कृषि योग्य भूमि का वर्गीकरण, पोलज, परती, चाचर, बंजर, भूमि की उर्वरता के आधार पर वर्गीकरण, भूमि कर की दर निश्चित करना, अनाज का नगदी में परिवर्तन और 95 दस्तूर (दर सूचियाँ), भूमि कर वसूल और संग्रह करना, इलाही संवत, कृषकों को व्यावहारिक सुविधाएँ, भूमि कर व्यवस्था की अन्य प्रणालियाँ, बटाई प्रणाली, नसक प्रणाली, जागीर में भूमिकर, करद राजाओं के राज्यों में भूमि कर-व्यवस्था, राजस्व विभाग के कर्मचारी और अधिकारी, अकबर के भूमि सुधारों के परिणाम, अकबर के उत्तराधिकारियों के समय भूमि कर व्यवस्था, जहाँगीर के शासन काल में भूमि कर व्यवस्था, शाहजहाँ के शासनकाल में भूमि कर व्यवस्था, औरंगजेब के शासनकाल में भूमि कर व्यवस्था

न्याय व्यवस्था

मुगल सम्राटों की न्यायप्रियता, विभिन्न न्यायालय, सर्वोच्च न्यायाधीश मुगल सम्राट, केन्द्रीय न्यायालय, प्रान्तीय न्यायालय, ग्रामों की पंचायतें और जातीय पंचायतें, कानून, इस्लामी, कानून, शाही कानून, परम्परागत प्रचलित कानून, दण्ड विधान, ईश्वरीय अपराध, व्यक्तिगत अपराध, राज्य के विरुद्ध अपराध, राजद्रोह का दण्ड, मृत्यु-दण्ड बंदीगृह, न्याय-व्यवस्था, संबंधी सुधार, न्याय-व्यवस्था के दोष, पुलिस व्यवस्था, मुगल शासन के दोष

मुगल युग में लोक जीवन

समाज का स्वरूप, मुगल सम्राट, सामन्त वर्ग, शासक वर्ग, धन सम्पन्न वर्ग, मध्यम वर्ग, निम्न वर्ग, हिन्दू समाज, विभिन्न जातियाँ, आहार, वेशभूषा, आमोद-प्रमोद, स्त्रियों की दशा, दासप्रथा, सामाजिक प्रथाएँ, और रीति विाज, समाज में नैतिक पतन, हिन्दुओं और मुसलमानों में सामाजिक समन्वय, सम्मिश्रण, सहानुभूति और सहयोग, आर्थिक दशा, कृषि और कृषक, दुर्भिक्षर व महामारी, खनिज पदार्थ, उद्योग धंधे, श्रमिक वर्ग, व्यापारी वर्ग, वस्तुओं के मूल्य, मुगल मुद्राएँ या सिक्के, व्यापार, आयात-निर्यात, मुगल सम्राटों की आर्थिक नीति, धार्मिक दशा, सन्तों की परम्परा, भक्ति आंदोलन और समन्वय व सहिष्णुता की भावना, शैव और वैष्णव सम्प्रदाय, ज्ञानाश्रयी सन्त, जैन धर्म, बौद्ध धर्म, दक्षिण भारत में धार्मिक जीवन, दक्षिण के मंदिर सांस्कृतिक और धार्मिक केन्द्र, इस्लाम, शिया-सुन्नी वर्ग, सूफी वर्ग, मुगल सम्राट की धार्मिक नीति

मुगल काल में साहित्य और कला

साहित्य व ललित कलाओं के विकास के कारण, मुगलकाल में शिक्षा, शिक्षा में धर्म की प्रधानता, मकतब, मदरसा, शिक्षा प्रणाली, स्त्री शिक्षा, मुगल शासनकाल, में साहित्य का विकास, फारसी साहित्य, आत्मकथाएँ, काव्य, इतिहास, अनुवाद गं्रथ, पत्र, संस्कृत साहित्य, हिन्दी, प्रेममार्गी सूफी शाखा, निर्गुण पंथी कवि, रामभक्ति शाखा के कवि, कृष्ण भक्ति शाखा के कवि, रीतिकालीन शाखा के कवि, बंगला, गुजराती, मराठी पंजाबी भाषा, उर्दू पुस्तकालय, मुगल युग में ललित कलाएँ, मुगल स्थापत्यकला शैली, स्थापत्यकला शैली की विशेषताएँ, बाबर के काल में भवन निर्माण कला, हुमायूँ के समय में भव निर्माण कला, शेरशाह के शासनकाल में वास्तुकला, अकबर के शासनकाल में भवन निर्माण कला, अकबर के भवनों की विशेषताएँ जहाँगीर कालीन स्थापत्यकला, शाहजहाँ कालीन स्थापत्य कला, औरंगजेब कालीन स्थापत्यकला, मुगलकालीन उद्यान कला, मुगल युग में चित्रकला, बाबर और हुमायूँ के शासनकाल में चित्रकला, अकबर के शासनकाल में चित्रकला, जहाँगीर के शासनकाल में चित्रकला, शाहजहाँ के शासनकाल में चित्रकला, औरंगजेब के शासन काल में चित्रकला, मुगल युग में संगीत कला, बाबर व हुमायूँ के समय संगीतकला, अकबर के शासनकाल में संगीतकला, जहाँगीरा के शासनकाल में संगीतकला, औरंगजेब के शासनकाल में संगीतकला, सुलेखकला

मुगल साम्राज्य का अवसान काल

उत्तराधिकार का युद्ध

शाहजहाँ की संतान, दाराशिकोह, शाहशुजा, औरंगजेब, मुराद, जहाँनारा, रोशनआ,उत्तराधिकार के लिए युद्ध के कारण, उत्तराधिकार के युद्ध की प्रमुख घटनाएँ, धरमत का युद्ध, सामूगढ़ का युद्ध, दारा का आगरा से पलायन, आगरा पर औरंगजेब का अधिकार और शाहजहाँ को बंदी बनाना, मुराद का वध, देवरा का युद्ध और दारा की पराजय, दारा का करुण अंत, शाहजादा शुजा की पराजय और वध, सुलेमान शिकोह की हत्या, उत्तराधिकार के युद्ध के परिणाम,उत्तराधिकार के युद्ध में औरंगजेब की सफलता के और दारा की असफलता के कारण

मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब, औरंगजेब के प्रारम्भिक कार्य

औरंगजेब का प्रारम्भिक जीवन, औरंगजेब की दक्षिण की प्रथम सूबेदारी, गुजरात की सूबेदारी तथा बल्ख और कंधार का अभियान, औरंगजेब की दक्षिण की द्वितीय सूबेेदारी, औरंगजेब का राज्याभिषेक, औरंगजेब के प्रारम्भिक प्रशासकीय कार्य, औरंगजेब का राजस्व का सिद्धान्त, औरंगजेब के प्रारंभिक जन-कल्याण के कार्य, विभिन्न करों की समाप्ति, इस्लाम धर्म परायण कार्य, औरंगजेब के दरबार में राजदूतों का आगमन

औरंगजेब का साम्राज्य-विस्तार

प्रारम्भिक साम्राज्य विस्तार, उत्तर-पूर्वी सीमान्त प्रदेश, उत्तरी -पूर्वी सीमा पर अव्यवस्था, अहोमों तथा कूच-बिहार के नरेश के सैनिक अभियान और आक्रमण, मीर जुमला का आसाम पर आक्रमण और संधि, राजा चक्रध्वज की विजय, अहोमोें का गृह-कलह और मुगलों की अल्पकालीन विजय, कूच-बिहार पर मुगलों का प्रभुत्व, शाइस्ताखाँ की चटगाँव विजय, औरंगजेब की उत्तर-पश्चिमी सीमान्त नीति और विद्रोहों का दमन,पश्चिमोत्तर सीमा क्षेत्र की समस्या, युसुफजाइयों का विद्रोह, अफरीदियों का विद्रोह, खटकों का विद्रोह, विद्रोह के दमनार्थ औरंगजेब द्वारा महाबतखाँ, शुजातखाँ और जसवंतसिंह को ससैन्य भेजा जाना, अफगानों का व्यापक विद्रोह, औरंगजेब के सैनिक नेतृत्व में अफगान विद्रोह का दमन, औरंगजेब की उत्तरी -पश्चिमी सीमान्त क्षेत्र की नीति की समीक्षा

औरंगजेब की धार्मिक नीति, उसकी अनुदारता और कट्टरता

इस्लामी राज्य के सिद्धांत और लक्षण, औरंगजेब की धार्मिक धारणाएँ और विश्वास, औरंगजेब की धार्मिक नीति का विकास, औरंगजेब के सुधारवादी इस्लामी कार्य, औरंगजेब की हिन्दू विरोधी नीति, हिन्दू मंदिरों और देवस्थानों का विध्वंस, जजिया कर का पुनः प्रचलन, हिन्दुओं की पाठशालाएँ बंद, हिन्दुओं पर पृथक कर, हिन्दुओं को शासकीय पदों से पृथक करना, हिन्दुओं पर अन्य सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक प्रतिबंध, मुसलमान बनने के लिये हिन्दुओं को प्रलोभन, बलपूर्वक धर्म परिवर्तन, औरंगजेब की दूषित धार्मिक नीति के परिणाम, औरंगजेब और अकबर की धार्मिक नीति की तुलना, औरंगजेब की हिन्दू विरोधी नीति के विरुद्ध विभिन्न विद्रोह

औरंगजेब की राजपूत नीति और मारवाड़ व मेवाड़ से संघर्ष

मुगल साम्राज्य के लिए राजपूतों का महत्वशाली योगदान, औरंगजेब की राजपूत नीति, औरंगजेब के शासनकाल में प्रमुख राजपूत राज्य, राजपूतों के असंतोष और विरोध के कारण, औरंगजेब के शासनकाल में मारवाड़-मुगल सम्ब्न्ध, महाराजास जसवंतसिंह, जसवंतसिंह की मुगल साम्राज्य के लिए सेवाएँ, जसवंतसिंह का मूल्यांकन, जसवंतसिंह की मृत्यु के उपरान्त राजकुमार को मारवाड़ का राज्य नहीं, औरंगजेब द्वारा मारवाड़ राज्य पर अधिकार करने के कारण, मारवाड़ राज्य पर औरंगजेब का अधिकार करने का प्रयास, मारवाड़ राज्य में औरंगजेब के आधिपत्य का विरोध, मारवाड़ में विद्रोह, अजीतसिंह का दिल्ली से निकलना और मारवाड़ में संरक्षण, औरंगजेब का मारवाड़ पर आक्रमण और आधिपत्य, औरंगजेब की मारवाड़ नीति, औरंगजेब के विरुद्ध मारवाड़-मेवाड़ का संयुक्त मोर्चा, औरंगजेब का मेवाड़ के राणा राजसिह से युद्ध, शाहजादे अकबर का विद्रोह, औरंगजेब और मारवाड़ युद्ध के विभिन्न भाग, अजीतसिंह का जोधपुर और मारवाड़ पर अधिकार, औरंगजेब और मेवाड़ का राजपूत राज्य, मेवाड़ नरेश महाराणा राजसिंह, चित्तौड़ की किलेबंदी का नाश मुगल सम्राट से समझौता, औरंगजेब ने महाराणा राजसिंह को अपने पक्ष में कर लिया, राजसिंह का चारुमति से विवाह और औरंगजेब की रुष्टता, मेवाड़-मुगल संघर्ष, उदयपुर की संधि, महाराणा अमरसिंह, औरंगजेब की राजपूत नीति का सिंहावलोकरन

औरंगजेब और आमेर, बीकानेर व अन्य राजपूत राज्य

औरंगजेब व आमेर के राजपूत नरेश, मिर्जा राजा जयसिंह, रामसिंह, बिशनसिंह, सवाई जयसिंह, औरंगजेब और बीकानेर राज्य, राव कर्णसिंह, अनूपसिंह, बून्दी और कोटा, मुगल राजपूत नीति और सम्बन्ध की विशिष्टताएँ, औरंगजेब की राजपूत नीति के परिणाम, औरंगजेब की राजपूत नीति का सिंहावलोकन, अकबर और औरंगजेब की राजपूत नीति की समीक्षा और तुलना

औरंगजेब की दक्षिण नीति

औरंगजेब की दक्षिण विजय के कारण, औरंगजेब और बीजापुर, बीजापुर सुल्तान की दुरंगी नीति, बीजापुर सुल्तान द्वारा संधि शर्तों की उपेक्षा, जयसिंह के नेतृत्व में बीजापुर पर आक्रमण, दिलेरखाँ का बीजापुर पर असफल अभियान, शाहजादा आजम का बीजापुर विजय का निष्फल प्रयास, बीजापुर सुल्तान को औरंगजेब का मांगपत्र, बीजापुर पर अंतिक आक्रमण, घेरा और विजय, औरंगजेबकी गोलकुण्डा विजय, औरंगजेब द्वारा गोलकुण्डा पर आक्रमण करने के कारण, गोलकुण्डा पर आक्रमण और हैदराबाद पर अधिकार, सुल्तान अबुल हसन से संधि, गोलकुण्डा का घेरा, सरदार खां का विश्वासघात और मुगलों की विजय, दक्षिण में औरंगजेब का मराठों से संघर्ष, शिवाजी के विरुद्ध औरंगजेब के सैनिक अभियान और आक्रमण, शिवाजी के विरुद्ध जयसिंह और दिलेरखां का अभियान और पुरन्दर की संधि, औरंगजेब और शिवाजी का संघर्ष, औरंगजेब द्वारा सम्भाजी का वध और रायगढ़ पर अधिकार, राजाराम का औरंगजेब से संघर्ष, मराठे सेनानायकों द्वारा औरंगजेब से स्वतंत्रता के लिये कड़ा संघर्ष, मराठों के विरुद्ध औरंगजेब की असफलता के कारण, औरंगजेब की दक्षिण नीति के परिणाम, औरंगजेब की दक्षिण नीति की समीक्षा, दक्षिण नीति औरंगजेब की राजनीतिक भूल

औरंगजेब और पुर्तगाली व अंग्रेज

भारत में पुर्तगालियों की बढ़ती हुई शक्ति, औरंगजेब के शासनकाल में पुर्तगालियों से सम्बन्ध, औरंगजेब और अंग्रेज, भारत में अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापार, अंग्रेजों के व्यापार को नियंत्रित करने के लिये औरंगजेब के फरमान, बंगाल में अपने व्यापारिक हितों के लिये अंग्रेजों की धींगा-धांगी और उत्पात, अंग्रेजों का दमन, बंगाल में अंग्रेजों को व्यापार करने की पुनः अनुमति, सूरत में अंग्रेजों का दमन, पुर्तगाली और अंग्रेज समुद्री लुटेरे

उपद्रव व विद्रोह

जाटों का विद्रोह और औरंगजेब से संघर्ष, उद्वव बैरागी और जाटों का प्रथक विद्रोह, नन्दराय का विरोध व उत्पात, गोकुल के नेतृत्व में विद्रोह, राजाराम और रामचेरा का विद्रोह व संघर्ष, चूड़ामन का संघर्ष, सतनामियों का विद्रोह, बुन्देलों का विद्रोह, सिक्खों का विद्रोह, राजपूतों का विद्रोह, मराठों का विद्रोह, बिहार में विद्रोह, मालवा में विद्रोह, गोंडवाना में विद्रोह, काश्मीर में शिया-सुन्नी के झगड़े

औरंगजेब के अंतिम दिन

औरंगजेब की रुग्णावस्था और अहमदनगर की ओर उसकी वापसी, अहमदनगर में औरंगजेब, शाहजादे आजम का अहमदनगरा आगमन, औरंगजेब की मृत्यु, औरंगजेब की दो वसीयतें, औरंगजेब की अन्त्येष्टि, औरंगजेब के दो अंतिम पत्र

औरंगजेब का मूल्यांकन

शान-शौकत और व्यसनों से दूर, पवित्र, सरल व संयमी व्यक्तिगत जीवन, दृढ़ संकल्पी, कठोर परिश्रमी, धैर्यशील, साहसी तथा अनुशासनप्रिय व्यक्ति, धर्मनिष्ठ सुन्नी मुसलमान, श्रेष्ठ विद्वान, वीर, योग्य कुशल सेनानायक, औरंगजेब के चारित्रिक दोष व दुर्बलताएँ, मानवोचित गुणों और पारिवारिक प्रेम का अभाव, सन्देहशील प्रवितिया, धर्मान्धता और असहिष्णुता, औरंगजेब एक महान सम्राट पर असफल शासक, अत्यधिक धार्मिक व्यग्रता, विघटनकारी नीति और कार्य, इतिहास में औरंगजेब का स्थान, औरंगजेब की असफलता के कारण, औरंगजेब के विषय में विद्वानों की धारणाएँ और मत, औरंगजेब और अकबर की तुलना

औरंगजेब की नीतियों की समीक्षा और उसकी मृत्यु के समय भारत की स्थिति

राजनीतिक परिस्थिति, बंगाल, राजस्थाना, मालवा, गुजरात, बुन्देलखण्ड, गोंडवाना, जाटों के विद्रोह और उनकी स्वतंत्र सत्ता , सिक्ख सत्ता का उत्कर्ष, स्वतंत्र पठान राज्य की स्थापना के लिये प्रयास और संघर्ष, दक्षिण भारत में औरंगजेब की नीति और परिणाम, मराठे, विश्रृंखलित राजनीतिक दशा, मराठा साम्राज्यवाद को प्रोत्साहन, मुगल सेना की निष्कृष्ट दशा, साम्राज्य की विशालता, प्रशासन क निष्क्रियता व शिथिलता और भ्रष्टाचार, सरदारों, अमीरों और अधिकारियों का नैतिक पतन, दक्षिण के कृषि, उद्योग और व्यापार का विनाश, क्षत-विक्षत आर्थिक दशा, औरंगजेब की धार्मिक संकीर्णता

उत्तराधिकार का संघर्ष (सन् 1707 ई. से 1709 ई. तक)

औरंगजेब के पुत्र, औरंगजेब के वसीयतनामे, उत्तराधिकार का युद्ध, मुहम्मद आजम का अपने को सम्राट घोषित करना, मुहम्मद मुअज्जम का अपने को सम्राट घोषित करना, मुहम्मद मुअज्जम का मुहम्मद आजम का पत्र, मुअज्जम और आजम की सेनाओं की तुलना, जाजऊ का युद्ध और आजम की पराजय तथा मृत्यु, दक्षिण में कामबख्श द्वारा सत्ता संचय, कामबख्श की युद्ध में पराजय और मृत्यु, उत्तराधिकार के युद्ध के परिणाम, उत्तराधिकार के संघर्ष और युद्धों में बहादुरशाह की विजय के कारण

सम्राट शाहआलम प्रथम या (सम्राट बहादुरशाह प्रथम)(सन् 1707 ई. से 1712 ई. तक)

बहादुरशाह द्वारा पुरस्कार व पदोन्नति, नवीन आदेश, औरंगजेब के शासनकाल की अनुदार नीतियों का अंत, बहादुरशाह की समस्याएँ, बहादुरशाह की नीति, बहादुरशाह की राजपूत नीति, महत्वपूर्ण राजपूत राज्य, बहादुरशाह का आमेर अभियान और विजयसिंह आमेर नरेश, बहादुरशाह और मारवाड़ नरेश अजीतसिंह, बहादुरशाह को मेवाड़ के महाराणा अमरसिंह द्वितीय द्वारा भेंट व उपहार, मेवाड़ के महाराणा अमरसिंह, अजीतसिंह और सवाई जयसिंह में समझौता, अजीतसिंह और सवाई जयसिंह का मुगलों से संघर्ष, बहादुरशाह का राजपूतों से समझौता, बहादुरशाह की राजपूत नवीति की समीक्षा, बहादुरशाह और सिक्ख, बंदा का उत्कर्ष, बन्दा बैरागी और सिक्खों के विद्रोह का स्वरूप, बहादुरशाह द्वारा सिक्खों का दमन, लाहौर में बहादुरशाह, बहादुरशाह की सिक्ख नीति की समीक्षा, सिक्ख विद्रोह का महत्व, बहादुरशाह और मराठे, शाहू की मुगल कैद से मुक्ति, शाहू और उसके प्रमुख सरदारों को बहादुरशाह द्वारा मनसब प्रदान, शाहू और ताराबाई को सरदेशमुखी की सनद, मराठों में गृह-युद्ध, दाऊखां पन्नी का शाहू से गुप्त समझौता,समझौते के परिणाम, बहादुरशाहकी मराठा नीति की समीक्षा, लाहौर में बहादुरशाह और सुन्नी मुल्लाओं में मतभेद, बहादुरशाह का प्रशासन, हिन्दुओं के प्रति, बहादुरशाह की नीति, दयनीय आर्थिक स्थिति, बहादुरशाह का मूल्यांकन

जहांदारशाह(सन् 1712 ई. से 1713 ई. तक)

मुगल साम्राज्य के विभाजन की योजना, उत्तराधिकार का युद्ध सन् 1712, जहांदारशाह का राज्यारोहण, सिंहासन के दावेदारों को कारावास और उनकी हत्याएँ, जुल्फिकारखां, वजीर, उसकी शक्ति एवं अधिकार में वृद्धि, जुल्फिकारखां की नीति और कार्य, जहांदारशाह का कुशासन, फर्रुखसियर का उत्कर्ष और विद्रोह, फर्रुखसियर का पटना में शक्ति संचय, फर्रुखसियर की स्वतंत्रता की घोषणा और सैयद हुसैनअली द्वारा उसका पक्ष स्वीकार करना, सैयद अब्दुल्लाखां द्वारा फर्रुखसियर का पक्ष स्वीकार करना, फर्रुखसियर का जहांदारशाह के विरुद्ध प्रस्थान, शाहजादे आजुद्दीन का फर्रुखसियर के विरुद्ध प्रस्थान, खजुआ का युद्ध, सामूगढ़ का युद्ध, जहांदारशाह की पराजय और उसका वध, जहांदारशाह के शासन काल का महत्व

फर्रुखसियर(सन् 1713 ई. से 1719 ई. तक)

फर्रुखसियर का राज्यारोहण, पुरस्कार और पदोन्नति, आसफउद्दौला की सेवा मुक्ति और अपमान तथा जुल्फिकारखां और जहांदारशाह की हत्या, राजपूतों के प्रति नीति, मेवाड़ राजकुमार प्रतापसिंह का शाही सम्मान और महाराणा को ऊँचा मनसब, अजीतसिंह के विरुद्ध सैनिक अभियान, अजीतसिंह से संधि, अभयसिंह को सौराष्ट्र की सूबेदारी और अजीतसिंह को गुजरात की सूबेदारी, आमेर के राजपूत नरेश सवाई जयसिंह मालवा का सूबेदार, कोटा बून्दी के संघर्ष में फर्रुखसियर व हुसैन अली द्वारा कोटा नरेश भीमसिंह का समर्थन, जयसिंह और सैयद बन्धुओं में विद्वेष, चूड़ामन के दमन के लिये जयसिंह की नियुक्ति, फर्रुखसियर और सैयद बन्धुओं की राजपूत नीति की समीक्षा, सिक्खें से युद्ध और बंदा बैरागी का अंत, चूड़ामण जाट के विरुद्ध सैनिक अभियान, मुगल दरबार में गुट बंदियाँ, बहादुरशाह के शासनकाल में दल बंदियाँ, जहांदारशाह के शासनकाल में दल बंदियाँ

फर्रुखसियर और सैयद बन्धुओं में शक्ति संघर्ष और फर्रुखसियर का वध

फर्रुखसियर और सैयद बंधुओं के मध्य शक्ति-संघर्ष का प्रथक चरण सन 1713 से 1715, सैयद बन्धुओं के हाथों में सर्वोच्च सत्ता , सैयद अब्दुल्लाखां की विजारत और दीवान रतनचंद्र के कार्यों से अमीरों की रुष्टता, फर्रुखसियर और सैयद बन्धुओं में सत्ता संघर्ष के कारण, फर्रुखसियर द्वारा मीर जुमला की पदोन्नति, वजीर अब्दुल्लाखां के विजारत में मीर जुमला का हस्तक्षेप, फर्रुखसियर द्वारा सैयद बंधुओं के विरुद्ध मीर जुमला और खान-ए-दौरान की शक्ति में वृद्धि, सैयद बन्धुओं ने दक्षिण की सूबेदारी प्राप्त कर अपनी शक्ति में वृद्धि की, फर्रुखसियर द्वारा हुसैनअली की हत्या के लिये पत्र, फर्रुखसियर की माता द्वारा सैयद बन्धुओं और फर्रुखसियर में समझौता, फर्रुखसियर द्वारा मीर जुमला पटना को ओर हुसैनअली दक्षिण को भेजे गये, संघर्ष के प्रथम चरण की संपत्ति और उसका महत्व हुसैनअली और दाऊदखां का युद्ध, दाऊद की पराजय और मृत्यु, विजारत की समस्याएँ और प्रशासन में शिथिलता, फर्रुखसियर और सैयद बन्धुओं के बीच शक्ति-संघर्ष का द्वितीय चरण सन् 1716-19, मीर जुमला का पटना से दिल्ली लौटना, मीर जुमला को दिल्ली से दूर पंजाब भेजा गया, फर्रुखसियर और सैयद बन्धुओं में नीतियों का मतभेद, सैयद हुसैनअली की मराठों से प्रस्तावित संधि, फर्रुखसियर द्वारा सैयद बन्धुओं के विरुद्ध गुट बंदी और शक्ति, सैयद अब्दुल्ला द्वारा हुसैनअली का दक्षिण से दिल्ली बुलाना, हुसैनअली की माँगे और बादशाह से भेंट, फर्रुखसियर को बंदी बनाना और उसका वध, फर्रुखसियर का मूल्यांकन

रफीउद्दरजात, रफीउद्दौला और मुहम्मदशाह

रफीउद्दरजात फरवीर से जून सन् 1719, रफीउद्दौला (शाहजहां द्वितीय) जून से सितम्बर 1719, नेकूसियर की पराजय, रफीउद्दौला की मृत्यु, मुहम्मदशाह सन् 1719-48, मुहम्मदशाह की नगण्य सत्ता की स्थिति, विद्रोहों का दमन, सैयद बन्धुओं की समस्याएँ और नीतियाँ, सैयद बन्धुओं के प्रति भय, संदेह और विरोध की भावना और उसके कारण, तूरानी और ईरानी अमीरों की समस्या और नीतियों की मत-विभिन्नता, अदुल्लखां और हुसैनअली दोनों सैयद बन्धुओं में परस्पर मत-भेद, राजपूतों के प्रति सैयद बन्धुओं की नीति, मराठों से मैत्रीपूर्ण सम्बध, सैयद बन्धु और निजाम-उल-मुल्क का संघर्ष, हुसैनअली के विरुद्ध षड़यंत्र और उसका वध, सैयद अब्दुलखां की पराजय और उसका अंत, सैयद बन्धुओं का मूल्यांकन, मुहम्मद अमीनखां की विजारत, निजाम-उल-मुल्क की विचजारत, निजाम-उल-मुल्क का विरोध, कटुता और द्वैष का वातावरण, निजाम का दक्षिण के लिये प्रस्थान, दक्षिण में निजाम-उल-मुल्क की स्वतंत्र सत्ता का प्रारम्भ, मुहम्मदशाह के शासनकाल में दलबंदियाँ, दलबंदी के कारण, विभिन्न दल, विदेशियों का दल-तूरानी-ईरानी और अफगान, हिन्दुस्तानी दल, बादशाह के कृपा पात्रों, मित्रों और समर्थकों का दल, दलबंदी का कुप्रभाव, सैयद बन्धुओं का पतन, तूरानियों का प्रभाव, निजाम की वजारत और दरबार के दलों का बढ़ता हुआ हस्तक्षेप, नादिरशाह के आक्रमण के बाद दरबार में दलबंदी, दलबंदी की विशेषताएँ, बादशाह मुहम्मदशाह के अंतिम वर्ष, अहमदशाह अब्दाली का आक्रमण, मुहम्मदशाह का देहान्त और साम्राज्य का विघटन, मुहम्मदशाह का चरित्र एवं मूल्यांकन सैयद बन्धुओं की नीतियों और कार्यों का सिंहावलोकन, सैयद बंधुओं की नीति, कार्य और उपलब्धियाँ तथा मुगल साम्राज्य के लिये उनकी सेवाएँ, सैयद बंधुओं का मूल्यांकन, सैयद बन्धुओं के उत्कर्ष के कारण, सैयद बन्धुओं की असफलता व पतन के कारण

नादिरशाह का आक्रमण(सन् 1738 ई. से 1739 ई. तक)

मुगल साम्राज्य के उत्कर्ष के समय उत्तर-पश्चिमी सीमा और नीति, औरंगजेब की उत्तर-पश्चिमी सीमान्त नीति, बहादुरशाह की सीमान्त नीति, शक्ति-क्षीण मुगल सम्राटों की दुर्बल उत्तर-पश्चिमी सीमान्त नीति, ईरान के शाह व मुगल सम्राटों में दूतों का आदान-प्रदान, ईरान में राजनीतिक उथल-पुथल, नादिरशाह के आक्रमण के समय भारत की दशा, नादिरशाह के आक्रमण के कारण, नादिरशाह का आक्रमण कोई आकस्मिक घटना नहीं थी, नादिरशाह का उत्कर्ष, ईरान में अफगानों का प्रभुत्व, नादिरशाह का प्रारम्भिक जीवन का उत्कर्ष, नादिरशाह का भारत में प्रवेश और आक्रमण, नादिरशाह का कंधार पर आक्रमण नादिरशाह द्वारा मुगल सम्राट को राजदूत भेजना और नादिरशाह का कुपित होना, गजनी और काबुल पर नादिरशाह का आक्रमण और अधिकार, जलालाबाद पर आक्रमण और उसका विनाश, जमरूद और पेशावर विजय, पंजाब पर आक्रमण, नादिरशाह के आक्रमण को रोकने के लिये मुगल दरबार की प्रारम्भिक उदासीनता और निष्क्रियता, मुहम्मदशाह का सेना सहित प्रस्थान, शाही सेना और ईरानी सेना, करनाल का युद्ध निजाम-उल-मुल्क की उपेक्षा और निष्क्रियता, मुगल सेना की पराजय का उत्तरदायित्व, नादिरशाह की विजय और मुगलों की पराजय के कारण, नादिरशाह से समझौता, नादिरशाह द्वारा मुहम्मदशाह, निजाम और वजीर को बंदी बनाना और दिल्ली के लिये प्रस्थान, नादिरशाह दिल्ली का शहंशाह, दिल्ली में भीषण कत्लेआम, लूट, और आगजनी, नादिरशाह द्वारा दरबार का आयोजन और मुहम्मदशाह की ताजपोशी, नादिरशाह को दिल्ली से प्राप्त धन-संपत्ति और राज्य, नादिरशाह का भारत से लौटना व उसका वध, नादिरशाह के आक्रमण के परिणाम, नादिरशाह के आक्रमण से नये युग का प्रारम्भ

मुगल-राजपूत संबंध(सन् 1712 ई. से 1751 ई. तक)

राजपूतों और मुगलों के परम्परागत सम्बन्धों में परिवर्तन, मेवाडत्र, उदयपुर का समझौता, मेवाड़ की राजकन्या चन्द्रकुंवर का जयसिंह से विवाह, रामपुरा के राज्य में महाराणा का हस्तक्षेप, रामपुरा राज्य पवर महाराणा का अधिकार, मेवाड़ राज्य का विस्तार, सम्राट फर्रुखसियर के शासन काल में महाराणा और मुगलों के अच्छे सम्बन्ध, महाराणा संग्रामसिंह और सवाई जयसिंह की मैत्री का प्रभाव, माधोंसिंह रामपुरा का शासक और जयपुर राज्य में सम्भावित गृह-युद्ध का टलना, मेवाड़ से मराठों द्वारा चैथ की वसूली, आमेर (जयपुर), आमेेर राज्य की सीमाओं का जयसिंह द्वारा व्यापक विस्तार, रामपुरा, बुन्दी और कोटा में जयसिंह द्वारा अपने राजनीतिक प्रभुत्व का विस्तार, प्रथम बार जयसिंह मालवा का सूबेदार सन् 1713-1717, जाटों के दमन के लिये जयसिंह का अभियान, जयसिंह और बुदेले शासक, जयसिंह सैयद संघर्ष, मराठों के प्रति जयसिंह की व्यवहारिकता और समझौते की नीति, द्वितीय बार जयसिंह मालवा का सूबूदार (सन् 1729-30), मराठों से समझौते का प्रयास, तृतीय बार जयसिंह मालवा का सूबेदार, मराठों के विरुद्ध संग्रामसिंह और जयसिंह में समझौता, मराठों की सफलता और जयसिंह द्वारा मराठों से समझौता, जयपुर नगर, मराठों का प्रथम बार राजस्थान के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप, मराठों के विरुद्ध राजपूत नरेशों का सम्ममेलन और विरोध, राजपूतों और मुगलों का मराठों के विरुद्ध संयुक्त प्रयास, जयसिंह द्वारा पेश्वा बाजीराव को उत्तर भारत में आने का निमंत्रण और सहायता का आश्वासन पेशवा बाजीराव का पूना से प्रस्थान और उदयपुर के महाराणा व जयसिंह से भेंट, मराठों से समझौते के प्रयास, बाजीराव की माँगें, जयसिंह का मालवा की सूबेदारी से पृथक होना, राजस्थान में मराठों के पुनः धावे और चैथ वसूली, नादिरषाह के आक्रमण का राजस्थान पर प्रभाव, जयसिंह और अभयसिंह में संघर्ष, जयसिंह का देहावसान, जयसिंह का मूल्यांकन, जयपुर में उत्तराधिकार का संघर्ष और गृह-युद्ध जयपुर के ईश्वरीसिंह व माधोसिंह के गृहयुद्ध में मराठों का हस्तक्षेप, ईश्वरीसिंह द्वारा आत्म-हत्या, माधोसिंह का जयपुर नरेश होना और मराठों के आक्रमण की असफलता, बूदी राज्य, मारवाड़, अजीतसिंह और बहादुरशाह, अजीतसिंह और फर्रुखसियर, अजीतसिंह से संधि, अजीतसिंह गुजरात व अजमेर का सूबेदार, अजीतसिंह और मुहम्मदशाह, अजीतसिंह से समझौता, अजीतसिंह पर आक्रमण, अजीतसिंह के साथ संधि, अजीतसिंह का वध व गृह-युद्ध, अभयसिंह गुजरात का सूबेदार, बीकानेर पर आक्रमण, हुरड़ा का राजपूत सम्मेलन, अभयसिंह की मृत्यु और गृह-युद्ध, मुगल सेना नायक सलातबजंग द्वारा राजपूतों से टांका वसूल करने का असफल प्रयास, प्रमुख राजपूत नरेशों का अंत

मुगल साम्राज्य का विघटन

मुगल साम्राज्य के पूर्वी प्रदेश, बंगाल, बिहार और उड़ीसा, बंगाल का सूबेदार अजीमुश्शा, मुर्शिदकुलीखां बंगाल का नाजिम, मुर्शिदकुलीखां का प्रशासन, मुर्शिदकुलीखां का मूल्यांकन, शुजाउद्दीन मुहम्मदखां बंगाल का नाजिम, शुजाउद्दीनखां का प्रशासन, सरफराजखां, अलीवर्दीखां बंगाल का नबाव, अलीवर्दीखां का मूल्यांकन, सिराजुद्दौला, सिराजुद्दौला के प्रारम्भिक कार्य, सिराजुद्दौला के अंग्रेजों से संघर्ष के कारण, सिराजुद्दौला द्वारा अंग्रेजों पर आक्रमण, अंगे्रजों से संधि, सिराजुद्दौला के विरुद्ध षड़यंत्र, प्लासी का युद्ध और सिराजुद्दौला की हत्या, गुजरात, हैदरकुलीखां की सूबेदारी, हामिदखां की सूबेदारी, गुजरात में मराठों का प्रवेश और प्रसार, सरबुलन्दखां की सूबेदारी, सरबुलन्दखां का बाजीराव से समझौता, अभयसिंह की सूबेदारी, गुजरात में मराठों का प्रभुत्व और गुजरात का मुगल साम्राज्य से पृथकत्व, मालवा का महत्व, मालवा में मराठों के आक्रमण और उनका प्रवेश, मालवा में मराठों द्वारा चैथ की वसूली, तिरला युद्ध में मुगल सूबेदार की पराजय व मराठों की विजय, मालवा के सूबेदार जयसिंह द्वारा मराठों से समझौते के प्रयास मुहम्मदखां बंगश की सूबेदारी, सवाई जयसिंह की पुनः मालवा की सबेदारी, सवाई जयसिंह का मराठों से समझौता, मालवा में से मराठों को निष्कासित करने के शाही प्रयास, निजाम-उल-मुल्क की पराजय, निजाम और बाजीराव के समझौते की शर्तें, मराठों को मालवा समर्पण सन् 1741, बुन्देलखंड, छत्रसाल और उसके पुत्रों द्वारा बादशाह की अधीनता स्वीकार करना, छत्रसाल की मुगल विरोधी गतिविधियाँ, मुहम्मदखां बंगश का सैनिक अभियान, उसकी पराजय और समझौता, राजस्थान, बहादुरशाह और राजपूत नरेश, राजपूत राज्यों की सीमाओं में वृद्धि, फर्रुखसियर और राजपूत नरेश, मुुहम्मदशाह और राजपूत नरेश, राजस्थान में दृढ़ केन्द्रीय सत्ता का अभाव और उसके दुष्परिणाम, गृहयुद्धों का प्रारंभ, राजस्थान में मराठों का हस्तक्षेप, राजस्थान में नादिरशाह के आक्रमण का प्रभाव, राजस्थान में मराठों का पुनः हस्तक्षेप, राजस्थान में मुगल प्रभुसत्ता का अंत, जाटक्षेत्र, चूड़ामण, बदनसिंह अवध, सआदतखां का उत्कर्ष, सआदतखां का असफल जाट अभियान, सआदतखां अवध का सूबेदार, सआदतखां मराठों के विरुद्ध, सआदतखां द्वारा आत्महत्या, सफदरजंग वजीर के पद पर, सफदरजंग का रुहेलों से संघर्श, बादषाह और सफदरजंग में गृहयुद्ध, सफदरजंग का मूल्यांकन, रुहेले और रुहेलखंड, रुहेलखंड में उफगानों की शक्ति का उत्कर्ष, दाऊदखां, अली मुहम्मदखां रुहेला, सफदरजंग और रुहेलों का संघर्ष, अलीमुहम्मदखां सरहिन्द का फौजरार, अलीमुहम्मदखां का रुहेलखंड पर पुनः अधिकार, अलीमुहम्मदखां की मृत्यु और रुहेलखंड का विभाजन, सफदरजंग का रुहेलों से युद्ध और पराजय, सफदरजंग द्वारा मराठों और जाटों की सहायता से रुहेलखंड पर पुनः आक्रमण और विजय, रुहेलों से संधि, पंजाब, सिक्खो की बढ़ती हुई शक्ति और मिसलें, जकरियाखां द्वारा सिक्खों का दमन, याह्यखां द्वारा सिक्खों का दमन, अब्दाली के प्रथम आक्रमण के समय सिक्खों द्वारा लूट और शक्ति संगठन, मुइन-उल-मुल्क द्वारा सिक्खों का दमन, अब्दाली के आक्रमण के समय सिक्खों का उत्कर्ष और शक्ति व सत्ता में वृद्धि, जम्मू, जम्मू, नरेश राजा रणजीतदेव, काश्मीर, उत्तरी -पश्चिमी सीमान्त क्षेत्र, दक्षिण, जुल्फिकारखां दक्षिण का सूबेदार, निजाम-उल-मुल्क दक्षिण का सूबेदार, सैयद हुसैन अली दक्षिण का सूबेदार, सैयद मराठा समझौता, मराठों की दक्षिण की चैथ व सरदेशमुखी का शाही फरमान, निजाम-उल-मुल्क और सैयद बन्धुओं का संघर्ष, सैयद हुसैन अली का वध और सैयद बन्धुओं का पतन, निजाम-उल-मुल्क दक्षिण का सूबेदार, निजाम-उल-मुल्क वजीर, निजमा-उल-मुल्क पुनः दक्षिण में और मुबारिजखां पर विजय, मुगल साम्राज्य से दक्षिण का विघटन दक्षिण में निजाम की मराठा-विरोधी नीति, उसकी पराजय और मुंगीशेवगाँव की संधि, निजाम का दक्षिण से दिल्ली प्रस्थान, भोपाल का युद्ध और बाजीराव से समझौता, दक्षिण में स्वतंत्र शासक के रूप में निजाम, निजाम-उल-मुल्क का देहान्त और उत्तराधिकार का युद्ध

उत्तरी भारत में राजशक्तियों का संघर्ष और मराठा प्रभुत्व का प्रसार

मुगल सम्राट की शक्तिहीनता और वजीरों व सूबेदारों का युग, उत्तरी भारत में मराठों का बढ़ता हुआ प्रभुत्व, सम्राट अहमदशाह (सन्1748-54), सफदरजंग वजीर, ऊधमबाई और जाविदखां, मुगल दरबार में दूषित दलबंदी और षड़यंत्री वातावरण, अव्यवस्था, अशांति और आर्थिक दिवाला, अब्दाली के आक्रमण के भय से मराठों से संधि, सम्राट अहमदशाह और वजीर सफदरजंग में गृहयुद्ध, वजीर इन्तजाम-उद-दौला और मीरबख्शी इमाद में संघर्ष, मीरबख्शी इमाद का वजीर नियुक्त होना, आलमगीर द्वितीय का बादशाह होना और अहमदशाह का बंदी बनाया जाना, बादशाह अहमदशाह का मूल्यांकन, आलमगीर द्वितीय (सन् 1754-59), मराठों की लूटपाट और बादशाह द्वारा कुछ क्षेत्रों को उन्हें समर्पित कर देना, बादशाह की दयनीय आर्थिक दशा, पंजाब में सत्ता संघर्ष, दुव्र्यवस्था और अराजकता, अहमदशाह अब्दाली का आक्रमण सन् 1756-57, दिल्ली की नृशंसलूट और आगजनी, दिल्ली के दक्षिण क्षेत्रों की लूट, अब्दाली, की वापसी, मराठों का दिल्ली पर अधिकार, शाहजादा अलीगौहर, शाहीसत्ता और दबदबे का लोप तथा वजीर की शक्ति हीनता, पंजाब में मराठों का सैनिक अभियान और प्रभुत्व, उत्तरी -पश्चिमी सीमान्त क्षेत्र में मराठा प्रभुत्व व सत्ता का प्रसार, साबाजी सिंधिया पंजाब का मराठा सूबेदार, साबाजी सिंधिया का पंजाब से पलायन, दŸााजी सिंधिया और नजीबखां से संघर्ष, बादशाह आलमगीर द्वितीय का वध और शाहजहाँ तृतीय का राज्यारोहण, आलमगीर द्वितीय का मूल्यांकन

अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण और तृतीय पानीपत युद्ध (सन् 1761)

अहमदशाह अब्दाली का उत्कर्ष, अहमदशाह अब्दाली के भारत पर आक्रमण के कारण, प्रथम आक्रमण सन् 1748, द्वितीय आक्रमण सन् 1749, तृतीय आक्रमण सन् 1751-52, पंजाब में अशांति, अराजकता और अव्यवस्था, मीर मुनीम मुगल सूबेदार, चतुर्थ आक्रमण सन् 1756, पंजाब में अव्यवस्था और दिल्ली तथा पंजाब में मराठों का प्रभुत्व, अटक तक मराठा प्रभुत्व का विस्तार, मराठों की शिथिल ढुलमुल विसतारवादी नीति का दुष्परिणाम, अहमदशाह अब्दाली का पांचवाँ आक्रमण सन् 1759-60 दत्ताजी सिंधिया और अब्दाली का युद्ध और मराठों की पराजय, पेशवा बालाजी बाजीराव द्वारा सदाशिवराव भाऊ के नेतृत्व में उत्तरी भारत में मराठा सेना भेजना, पानीपत के तृतीय युद्ध के कारण, पानीपत के युद्ध के पूर्व की घटनाएँ, सदाशिवराव भाऊ का मराठा सेना सहित उत्तरी भारत में प्रवेश अब्दाली की मराठों से संधि वाता, शाही परिवार की दयनीय दशा और दिल्ली में भगदड़, सदाशिवराव भाऊ का दिल्ली पर अधिकार और अब्दाली मराठा संधि चर्चा, भाऊ की दयनीय दुर्बल स्थिति, शाहआलम द्वितीय का बादशाह होना, कुंजपुरा पर भाऊ का अधिकार, अब्दाली और भाऊ दोनों का ससैन्य पानीपत पहुँचना, नजीवखां द्वारा अब्दाली को खाद्यान्न व सेना की सहायता और शुजाउद्दौला द्वारा अब्दाली का पक्ष ग्रहण करना, पानीपत में मराठों और अब्दाली का सैन्यबल, युद्ध से पूर्व सैनिक झड़पे और मराठों की भारी क्षति, पानीपत का युद्ध 14 जनवरी 1761, अब्दाली द्वारा नृशंस कत्लेआम और लूट, पेशवा बालाजी बाजीराव का देहान्त, तृतीय पानीपत युद्ध के परिणाम, विभिन्नमत, पानीपत की पराजय के दस वर्ष बाद मराठा शक्ति पुनः उभर गयी, पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों की पराजय या अब्दाली की विजय के कारण, पानीपत के युद्ध के बाद अब्दाली दिल्ली में, अब्दाली द्वारा दिल्ली में व्यवस्था और नजीबुद्दौला के हाथों सर्वोच्चसत्ता , अब्दाली के साथ समझौते सन् 1762 और सन् 1764, अहमदशाह अब्दाली का छठा और सातवां आक्रमण, अब्दाली के आक्रमणों के परिणाम

मुगल साम्राज्य का अवसान

नजीबुद्दौला की संकटापन्न स्थिति और समस्याएँ, नजीबुद्दौला द्वारा विभिन्न इलाकों पर अधिकार और धन वसूली, नजीबुद्दौला का सिक्खों से संघर्ष सन् 1764-67, पानीपत के युद्ध के बाद नजीबुद्दौला और मराठे, सम्राट शाहआलम द्वितीय और शुजाउद्दौला, बक्सर का युद्ध और अलाहाबाद की संधि, शाहआलम अंग्रेजों के संरक्षण में, दिल्ली लौटने की शाहआलम की आतुरता और मराठों से समझौता, दिल्ली में शाहआलम की वापसी और मराठों का संरक्षण, शाहआलम को पुनः अपने संरक्षण में लेने का अंग्रेजों का प्रयास, महादजी सिंधिया का दिल्ली और आगरा में प्रभुत्व, महादजी सिंधिया वकील-ए-मुतलिक, शाहआलम की संकटापन्न, स्थिति और उसकी समस्याएँ, गुलाम कादिर का दिल्ली पर अधिकार, उसके क्रूर अत्याचार और शाहआलम को सिंहसनाच्युत करना, महादजी सिंधिया का दिल्ली पर अधिकार और शाहआलम को पुनः सिंहासन पर आसीन करना, शाहआलम सिंधिया के संरक्षण में, सिंधिया के संरक्षण में दोषपूर्ण मराठा नीति, शाहआलम अंग्रेजों के संरक्षण में अकबर द्वितीय (सन् 1806-1837), बादशाह को अंग्रजों का संरक्षण और बादशाह के प्रति अंग्रेजों की परिवर्तित होती हुई सम्प्रभुता की नीति, बादशाह द्वारा राजा राममोहनराय को अपने प्रतिनिधि के रूप में इंग्लैंड भेजना सन् 1830, अकबर शाह नाममात्र का बादशाह, बहादुरशाह द्वितीय, सन् 1837-1857, मुगल सम्राट का अस्तित्व समाप्त करने के अंग्रेजों के प्रयास, सन् 1857 का विप्लव और बहादुरशाह, दिल्ली पर अंग्रेजों का आक्रमण और आधिपत्य, अंग्रेज सत्ता द्वारा बादशाह बहादुरशाह पर अभियोग, उसका निष्कासन और उसकी मृत्यु, मुगल साम्राज्य का ऐतिहासिक अवसान, मुगल साम्राज्य के पतन और अवसान के कारण

बाबर

(भारत में मुगल साम्राज्य का संस्थापक)

(सन् 1526 ई. से 1530 ई. तक)

हुमांयु - मुगल

(सन् 1530 ई. से 1540 ई. तथा 1555 ई. से 1556 ई. तक)

शेरशाह

(अफगान षासन - सूर साम्राज्य)

(सन् 1540 ई. से 1555 ई. तक)

अकबर - मुगल

(सन् 1526 ई. से 1530 ई. तक)

जहांगीर - मुगल

(सन् 1526 ई. से 1530 ई. तक)

शाहजहां - मुगल

(सन् 1526 ई. से 1530 ई. तक)

औरंगजेब - मुगल

(सन् 1526 ई. से 1530 ई. तक)

उत्तर मुगल सम्राट

मराठा काल

महाराष्ट्र की राजनीतिक पृष्ठभूमि

महाकाव्यकाल, मौर्यकाल, सातवाहनकाल, गुप्त और वाकाटक, सम्राटों का काल, वातापि के चालुक्य सम्राटों का काल, राष्ट्रकूट काल, कल्याणी, के चालुक्य शासकों का काल, देवगिरी के यादव शासक, अलाउद्दीन का देवगिरी पर प्रथम आक्रमण और विजय, देवगिरी पर द्वितीय आक्रमण, तृतीय आक्रमण, देविगिरी का अंत, तुगलक शासन में दक्षिण विजय, दक्षिण में विद्रोह और स्वतंत्र राज्यों की स्थापना, दक्षिण में इस्लामी सत्ता के विरुद्ध हिन्दुओं के विद्रोह, विजयनगर, साम्राज्य, तालीकोट का युद्ध, विजयनगर राज्य का महत्व, बहमनी राज्य, बहमनी राज्य का विभाजन, बरार, बीदर, अहमदनगर, बीजापुर गोलकुण्डा, महाराष्ट्र में पुर्तगाली व अंग्रेज सत्ता , महाराष्ट्र में विधर्मी इस्लामी राज्यों की स्थिति

मराठा शक्ति का अभ्युदय और उत्कर्ष

महाराष्ट्र, मराठा शक्ति के अभ्युदय और उत्कर्ष के कारण, महाराष्ट्र की भौगोलिक स्थिति और प्राकृतिक परिवेश, महाराष्ट्र के प्राकृतिक परिवेश या भौगोलिक दशा का प्रभाव, प्राकृतिक दुर्गों की बाहुल्यता और उनका सामरिक महत्व, सैनिक अभियानों की प्रेरणा, सैनिक वित्ति अपनाने की विवशता, विलासिता तथा आलस्य का अभाव, कठोरता व जोखिम भरे सैनिक जीवन में अभिरुकिच, परिश्रमी, संघर्षप्रिय, आत्मनिर्भर, उत्साही, साहसी तथा अन्य चारित्रिक गुण, कूटनीतिज्ञता और यथार्थवादिता, समाज में समानता का भाव, स्वतंत्रता और विद्रोह की भावना, दक्षिण भारत की प्राचीन ऐतिहासिक परम्पराएँ और हिन्दू प्रभुत्व की भावनाएँ, धार्मिक जागरण और सामाजिक चेतना, मराठी भाषा तथा साहित्य, आर्थिक दुव्र्यवस्था, मराठों को राजनीतिक सत्ता , प्रशासन और सैनिक शक्ति का अनुभव, दक्षिण में मुगल साम्राज्यवाद और मराठों का संगठन, दक्षिण की सल्तनतों का ह्रास, शिवाजी का सुयोग्य कुशल नेतृत्व और उनके कर्मठ सहयोगी

महाराष्ट्र-धर्म

महाराष्ट्र की राजनीतिक व धार्मिक दशा, महाराष्ट्र धर्म मराठों के उत्कर्ष का कारण, महाराष्ट्र धर्म से अभिप्राय, महाराष्ट्र धर्म का स्वरूप, महाराष्ट्र धर्म के संत, तुकाराम और शिवाजी, रामदास और शिवाजी, महाराष्ट्र धर्म की विशेषताएँ महाराष्ट्र धर्म का प्रभाव, कला के क्षेत्र में योगदान, महाराष्ट्र धर्म में आवश्यकतानुसार परिवर्तन का अभाव

भोंसले परिवार का अभ्युदय

भोंसलों का उत्कर्ष, अहमदनगर का निजामशाही राज्य और बीजापुर राज्य का आदिलशाही राज्य, शाहजी भोंसले निजाम शाही राज्य का सशक्त जागीरदार, भरवाड़ी का युद्ध और शाहजी के सम्मान व शक्ति में वृद्धि, खान-ए-जहाँ लोदी का विद्रोह, सुल्तान मुर्तजाखँ के विरुद्ध शाहजहाँ का अभियान, लखुजी जाधव की अहमदनगर के सुल्तान द्वारा हत्या, शाहजी भोंसले का मुगल सेवा में प्रवेश, शाहजी मुगल सेवा से पुनः अहमदनगर के सुल्तान की सेवा में, सुल्तान मुर्तजाखाँ की हत्या और अहमदनगर पर शाहजहाँ का अधिकार, सुल्तान हुसैन शाह का बंदी बनाया जाना और अहमदनगर के निजामशाही राज्य का अंत, शाहजी द्वारा अहमदनगर के निजामशाही के राज्य के पुनर्निर्माण के प्रयास, शाहजी का मुगलों से संघर्ष शाहजी बीजापुर की सेवा में, बीजापुरा और गोलकुण्डा के सुल्तानों द्वारा कर्नाटक जीतने की महत्वाकंक्षा, कर्नाटक अभियान शाहजी का कर्नाटक में बंगलौर पर अधिकार और शासन, शिवाजी और शाहजी की तथाकथित भेंट, कर्नाटक में बीजापुर सुल्तान के विरुद्ध विद्रोह, शाहजी का बंदी बनाया, जाना, शाहजी को मुक्त कराने के लिये शिवाजी के प्रयास, शाहजी का बीजापुर सुल्तान से समझौता और उनकी मुक्ति, कर्नाटक में विद्रोह और शम्भाजी का स्वर्गवास, बीजापुर सुल्तान द्वारा शाहजी को उनके पद व प्रतिष्ठा के लिये आश्वासन, शाहजी की मध्यस्थता से शिवाजी और बीजापुर में समझौता, शाहजी का देहान्त, शाहजी का मूल्यांकन, शिवाजी के निर्माण में शाहजी का योगदान, शाहजी स्वतंत्र हिन्दू राज्य की घोषणा करने में असमर्थ

शिवाजी का बाल्यकाल और युवावस्था

राजनीतिक दशा, सामाजिक दशा, आर्थिक दशा, शाहजी भोंसले की संतान, शिवाजी का जन्म, शाहजी की राजनीतिक अस्थिरता और संघर्ष का जीवन, शिवाजी की किशोर-अवस्था का अस्थिर जीवन, शिवाजी का प्रारम्भिक संरक्षण, जीजाबाई, दादाजी कोंणदेव, शिवाजी की शिक्षा, शिवाजी के लक्ष्य और आदर्श, शिवाजी के लक्ष्य और आदर्श को निरूपित करने वाली परिस्थितियाँ, शिवाजी के लक्ष्य उदार और सहिष्णु, शिवाजी के लक्ष्यों का कार्यान्वयन, शिवाजी का प्रथम विवाह, शिवाजी शाहजी के पास बंगलौर में सैनिक अभियानव और संघर्ष के लिये शिवाजी की तैयारियाँ, शिवाजी द्वारा स्वराज्य की प्रतिज्ञा

शिवाजी का प्रारम्भिक संघर्ष और विजय(सन् 1646 ई. से 1663 ई. तक)

राजनीतिक दशा, बीजापुर के विरुद्ध शिवाजी के संघर्ष के कारण, प्रारम्भिक संघर्ष के लिये शिवाजी की तैयारियाँ, शिवाजी की आत्म-रक्षा और सुरक्षा का तथा मराठा सरदारों व जागीरदारों को सैन्य-शक्ति में संगठित करने का लक्ष्य, लक्ष्यपूर्ति के साधन, शिवाजी के संघर्ष और विजयों का प्रथम चरण (1646-1653), विभिन्न दुर्गों पर अधिकार, शिवाजी द्वारा बीजापुर सुल्तान के प्रति अपनी राजभक्ति की अभिव्यक्ति, शिवाजी की बढ़ती हुई शक्ति के अवरोध हेतु बीजापुर सुल्तान के कदम, बीजापुर सुल्तान द्वारा शाहजी को बंदी बनाया जाना, शाहजी की मुक्ति के लिये शिवाजी की कूटनीतिज्ञता, पुरन्दर दुर्ग पर अधिकार, बीजापुरी सेना से शिरवल में शिवाजी का प्रथम युद्ध और उनकी विजय, चाकण पर शिवाजी का अधिकार , सूपा पर शिवाजी का आधिपत्य, शिवाजी की विजयों का महत्व, शिवाजी के संघर्ष और विजयों का द्वितीय चरण (1654-1663), जावली घटना की जानकारी के प्रमुख स्रोत, जावली राज्य की प्राचीनता और ऐतिहासिकता, मोरे परिवार के तत्कालीन महत्वशाली व्यक्ति, जावली पर शिवाजी के आक्रमण के कारण, मोरे और शिवाजी में शांति समझौता, कृष्णराव मोरे का विश्वासघात, कृष्णराव मोरे की हत्या, शिवाजी का जावली पर आक्रमण और अधिकार, रायरी पर शिवाजी का आक्रमण और अधिकार, मोरे परिवार का अंत, जावली के मोरे हत्याकाण्ड, और जावली विजय का महत्व और परिणाम, मोरे हत्याकाण्ड का औचित्य और उसकी समीक्षा, पक्ष में तर्क, विपक्ष में तर्क, सन् 1657-58 में दक्षिण की राजनीतिक स्थिति बीजापुर की दुर्बलता और अव्यवस्था और शिवाजी द्वारा उसके कुछ दुर्गों पर अधिकार, दक्षिण में मुगल-शक्ति, शिवाजी की कूटनीतिज्ञता और औरंगजेब के साथ पत्र-व्यवहार मुगलों के अधीन दक्षिण प्रदेश पर शिवाजी का प्रथम आक्रमण (1657), शिवाजी के विरुद्ध औरंगजेब द्वारा सेना भेजना, शाहजहाँ की रुग्णता, और औरंगजेब द्वारा उत्तर भारत में जाने की तैयारी, शिवाजी का कोंकण, कलयाणी और भिवण्डी पर आक्रमण और अधिकार, कोलाबा क्षेत्र और अन्य दुर्गों पर शिवाजी का अधिकार, अपने जीते हुए प्रदेश को मान्यता दिलाने के लिये शिवाजी का औरंगजेब से पत्र-व्यवहार, शिवाजी के विजय- अभियान व राज्य-विस्तार (1658-59), जंजीरा के सिद्दियों से संघर्ष, पुर्तगाली कर्नाटक पर शिवाजी के आक्रमण, शिवाजी द्वारा जलपोतों और समुद्रतट के नाविक दुर्गों का निर्माण, विजय-अभियान में शिवाजी की नीति, प्रशासन की सुव्यवस्था

अफजलखां द्वन्द्व और शिवाजी को बीजापुर से संघर्ष

पतनोन्मुखी बीजापुर, शिवाजी द्वारा बीजापुर राज्य के दुर्गों व प्रदेशों पर अधिकार, शाहजी पर राजनीतिक दबाव, बीजापुर द्वारा शिवाजी के विरुद्ध अफजलखां की नियुक्ति, अफजलखां को शिवाजी के विरुद्ध नियुक्त करने के कारण, अफजलखां का पूर्व का जीवन, शिवाजी के विरुद्ध अफजलखां की सेना, शिवाजी के विरुद्ध अफजलखां की धर्मान्धता और क्रूर आतंक-पूर्ण अभियान, वाई प्रदेश में अफजलखां, शिवाजी की सामरिक सुरक्षा और योजना अफजलखां की ओर से व्यक्तिगत भेंट और समझौते के प्रयास, अफजलखां को शिवाजी का उत्तर ऐतिहासिक मिलन की तैयारी, ऐतिहासिक भेंट और अफजलखाँ का वध, प्रतापगढ़ का युद्ध औरा बीजापुरी सेना का विनाश, परिणाम, अफजलखां की हत्या की समीक्षा, शिवाजी के विपक्ष में तर्क, शिवाजी के पक्ष में तर्क, अफजलखाँ की हत्या का महत्व, पन्हाला, विशलगढ़ तथा अन्य स्थानों की विजय, बीजापुरी सेना से युद्ध और शिवाजी की विजय, दक्षिण कोंकण में शिवाजी के अभियान, शाहजी की मध्यस्थता से बीजापुर और शिवाजी के बीच समझौता, बीजापुर की शिवाजी विरोधी, गतिविधियाँ, मुघोल के बाजी घोरपड़े की हत्या, खवासखां की पराजय, राजा जयसिंह और शिवाजी का बीजापुर के विरुद्ध संयुक्त अभियान, शिवाजी द्वारा पुनः बीजापुर से संघर्ष और पन्हाला, सतारा व पर्ली दुर्गों पर अधिकार, उमराणी का युद्ध और बीजापुर सेना की पराजय, कर्नाटक में बीजापुर राज्य के प्रदेशों पर शिवाजी के आक्रमण और उन पर अधिकार, बीजापुर दुर्ग लेने का प्रयास

शिवाजी का मुगलों से संघर्ष और शाइस्ताखां-द्वन्द्व

शइस्ताखां दक्षिण का सूबेदार, शाइसताखां का पूना की ओर प्रस्थान और मार्ग में मराठों से कड़ा संघर्ष, शाइस्ताखां का पूना पर अधिकार और वहाँ निवास, चाकण दुर्ग का घेरा और शाइस्ताखाँ का उस पर अधिकार, शाइस्ताखां से समझौते के लिये शिवाजी की चर्चाएँ, शिवाजी की विषम परिस्थिति, शाइस्ताखां पर रात्रि में आक्रमण, शिवाजी की योजना और पूना नगर में गुप्त रूप से प्रवेश, रात्रि में शाइस्ताखां पर आकस्मिक हमला, आक्रमण के परिणाम, शाइस्ताखां द्वारा जसवंतसिंह की भत्र्सना, शिवाजी और महाराजा जसवंतसिंह, शिवाजी द्वारा कुडाल पर आक्रमण, मुगलों द्वारा सिंहगढ़ जीतने का असफल प्रयास, शिवाजी द्वारा सूरत की प्रथम लूट, सूरत और उसका महत्व, सूरत की लूट के कारण, सूरत की लूट के लिये प्रस्थान, सूरत की लूट के पूर्व शिवाजी द्वारा धन प्राप्त करने के प्रयास, सूरत की लूट, सूरत की लूट के परिणाम

शिवाजी और मिर्जा राजा जयसिंह

जयसिंह, शिवाजी के विरुद्ध जयसिंह नियुक्ति, जयसिंह के व्यापक अधिकार, जयसिंह का दक्षिण में प्रवेश, शिवजी के विरुद्ध जयसिंह की कूटनीति के कार्य और आक्रमण की मोर्चाबंदी, पुरन्दर दुर्ग, जयसिंह की रणनीति, वज्रगढ़ (रुद्रमाल)और पुरन्दर की घेराबंदी, वज्रगढ़ का पतन, मुगल सेना द्वारा लूटमार आगजनी और आतंक, मराठों द्वारा मूगलों का कडा़ सामना, मुगल सेना का पुरन्दर दुर्ग पर भयंकर आक्रमण, युद्ध में मुरारा बाजी का बलिदान, पुरन्दर के पतन की सम्भावना, जयसिंह को शिवाजी का पत्र, जयसिंह को शिवाजी के संदेशवाहक, जयसिंह और शिवाजी की भेंट, शिवाजी की दिलेरखां से भेंट, संधि हेतु त्रिदिवसीय सम्मेलन, पुरन्दर की संधि, जयसिंह द्वारा दुर्गों पर अधिकार, पुरन्दर की संधि के लिए जयसिंह के उद्देश्य, पुरन्दर की संधि के लिये शिवाजी के उद्देश्यय, क्या शिवाजी के लिये पुरन्दर की संधि अपमानजनक समझौता था, मुगलों को आत्मसमर्पण था, पुरन्दर की संधि का महत्व और परिणाम, बीजापुर के विरुद्ध जयसिंह का आक्रमण और शिवाजी की सैनिक सहायता, पन्हाला दुर्ग के आक्रमण में शिवाजी की सफलता, पौंडा दुर्ग का घेरा, नेताजी पालकर का शिवाजी से पृथक होना

आगरा में सिंह की मांद में शिवाजी

शिवाजी को आगरा भेजने में जयसिंह के उद्देश्य, आगरा जाने में शिवाजी के सम्भावित उद्देश्य, शिवाजी की शंकाएँ और जयसिंह का आश्वासन, आगरा प्रस्थान से पूर्व शिवाजी द्वारा प्रशासन की व्यवस्था, शिवाजी का आगरा गमन, जयसिंह से भेंट, औरंगाबाद में शिवाजी, शिवाजी की यात्रा, आगरा में शिवाजी का आगमन, रामसिंह द्वारा शिवाजी की अगवानी और दोनों की परस्पर भेंट, औरंगजेब और शिवाजी की ऐतिहासिक भेंट, औरंगजेब के प्रति शिवाजी की अप्रसन्नता और क्रोध के कारण, शिवाजी को समझाने का प्रयास, शिवाजी के विरुद्ध प्रतिक्रिया, शिवाजी वास्तविक खतरे में, रामसिंह द्वारा शिवाजी की जमानत, शिवाजी का काबुल जाने से इंकार, और शिवाजी नजरबंद, शिवाजी द्वारा मुगल सम्राट को अपनी प्राण रक्षा के लिए अधिकारियों के मारफत आवेदन, शिवाजी कड़े पहरे में, शिवाजी के प्राण खतरे में, शिवाजी द्वारा छुटकारे और सुरक्षा के प्रयास, जयसिंह द्वारा शिवाजी के साथ सम्मानीय व्यवहार करने का परामर्श, शिवाजी का संकट चरम बिन्दु पर, शिवाजी के पलायन के पूर्व परिस्थिति, शिवाजी के सैनिकों व सेवकों का लौटना, शिवाजी द्वारा बीमारी का बहाना, शिवाजी की मुक्ति के लिए औरंगजेब की शर्तें, औरंगजेब द्वारा शिवाजी का वध न किये जाने के कारण, औरंगजेब द्वारा शिवाजी के नजरबंदी के निवास-स्थान का परिवर्तन, शिवाजी का नाटकीय ऐतिहासिक पलायन, शिवाजी के लिए पूछताछ, खेज- खबर और दौड़-धूप, औरंगजेब की धारणा, शिवाजी के पलायन में रामसिंह का हाथ, उसकी पदावनति, शिवाजी के पलायन का स्वरूप, शिवाजी की रोमांचकारी वापिसी यात्रा, शिवाजी का आगरा से लौटने का मार्ग, शिवाजी का रायगढ़ पहुँचना, सम्भाजी का रायगढ़ पहुँचना, शिवाजी की आगरा यात्रा का महत्व और परिणाम

शिवाजी का मुगलों से संघर्ष और विजयें(सन् 1669 ई. से 1673 ई. तक)

दक्षिण में राजनीतिक परिस्थिति, औरंगजेब की विवशताएँ और उसकी दक्षिण में नीति, शिवाजी की नीति, शिवाजी का मुगल सम्राट से समझौता, (1667), शिवाजी द्वारा जंजीरा का घेरा, शिवाजी और मुगलों में पुनः संघर्ष, इसके कारण, शिवाजी का पुनः मुगलों से युद्ध, सिंहगढ़ विजय, पुरन्दर और चान्दवड़ पर अधिकार, कल्याण, भिवन्डी, लौहगढ़ और माहुली की विजय, अन्य दुर्गों की विजय, मुगल सूबेदार मुअज्जम और दिलेरखाँ में पुनः मत विभिन्नता और संघर्ष और शिवाजी द्वारा सूरत की दूसरी बार लूट, वाणी-डिंडोरी का युद्ध शिवाजी की अन्य दुर्गों पर विजय, खानदेश और बरार पर शिवाजी के हमले, शिवाजी के आक्रमणों की व्यापकता, दक्षिण में मुगल प्रदेशों पर शिवाजी के अधिकाधिक हमले, औरंगजेब द्वारा महाबतखाँ की नियुक्ति, बहादुरखाँ की प्रारम्भिक सफलता के बाद निष्क्रियता, साल्हेर का युद्ध और मुगलों की पराजय, कोली प्रदेश पर मराठों की विजय, मुगल सेनापति बहादुरखाँ के सैनिक अभियान और युद्ध, मुगलों द्वारा शिवाजी के विरुद्ध सामूहिक युद्ध, शिवनेरी और चिंचवड़ दुर्ग का संघर्ष, शिवाजी का बीजापुर से संघर्ष, शिवाजी द्वारा पन्हाला दुर्ग की विजय, उम्ब्रानी का युद्ध, हुबली पर मराठों के आक्रमण, सतारा और परली शिवाजी के आधिपत्य में, शिवाजी व बीजापुर का संघर्ष (1673), नेसरी का युद्ध और प्रतापराव गूजर का बलिदान, मराठा सेनानायक आनन्दराव के आक्रमण और लूटपाट तथा बीजापुरी सेना से युद्ध, मुगलों का शिवाजी से संघर्ष, शिवाजी और अंग्रेज

शिवाजी का राज्याभिषेक

सन् 1674 में शिवाजी की दृढ़ राजनीतिक स्थिति, शिवाजी के राज्याभिषेक का महŸव, शिवाजी के राज्याभिषेक के कारण, राज्याभिषेक से पूर्व समस्याएँ, शिवाजी को क्षत्रिय होने की मान्यता, शिवाजी का राज्याभिषेक, राज्याभिषेक की व्यापक तैयारियाँ, शिवाजी द्वारा देवदर्शन, तथा प्रायश्चित, यज्ञोपवीत, तुलादान, आदि अन्य संस्कार। शिवाजी का राज्याभिषेक संस्कार, शिवाजी का अभिषेक, शिवाजी का सिंहासनारोहण, राजदर्शन, और शोभा यात्रा, राज्याभिषेक पर व्यय, शिवाजी का तांत्रिक राज्याभिषेक, राज्याभिषेक के परिणाम

शिवाजी का मुगलों और बीजापुर से पुनः संघर्ष(सन् 1674 ई. से 1676 ई. तक)

पेड़गाँव में मुगल छावनी की लूट, शिवाजी द्वारा अन्य मुगल प्रदेशों की लूट, अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी की फेक्टरी की लूट, मुगलों से संधि समझौते की वार्ता, औरंगजेब द्वारा नेताजी पालकर को शिवाजी के विरुद्ध भेजना, नेताजी पाकर का शिवाजी से मिल जाना, बीजापुर राज्य में आन्तरिक कलह और औरंगजेब से गुप्त समझौते के प्रयास, शिवाजी द्वारा पौंडा और कारवार की विजय, शिवाजी द्वारा कोल्हापुर विजय, सतारा व पार्ली विजय, बीजापुर मुगल संघर्ष और बहलोलखाँ द्वारा शिवाजी से सहायता-समझौता, शिवाजी का मुगल सूबेदार व सेनापति बहादुरखाँ से समझौता, शिवाजी और सिद्दी, शिवाजी और पुर्तगाली

कर्नाटक अभियान

दक्षिण भारत की राजनीतिक स्थिति, दक्षिण में बीजापुर और गोलकुंडा सुल्तान के विजय अभियान और राज्य विस्तार, व्यंकोजी का तंजौर का स्वतंत्र शासक होना, व्यंकोजी को शिवाजी का परामर्श का पत्र, कर्नाटक पर शिवाजी के आक्रमण के कारण, शिवाजी का मुगल सूबेदार बहादुखाँ से समझौता, शिवाजी की प्रशासकीय व्यवस्था, मदन्ना और रघुनाथराव हनुमन्ते का शिवाजी को सहयोग, कर्नाटक अभियान के लिए शिवाजी की तैयारी, कनार्टक अभियान के लिये शिवाजी का प्रस्थान, येलबर्गा का युद्ध और कोपबल (कोप्पल) पर अधिकार, भागानगर में शिवाजी का भव्य स्वागत, कुतुबशाही सुल्तान द्वारा शिवाजी का महल में स्वागत, गोलकुड़ा के कुतुबशाही सुल्तान से संधि, शिवाजी का मद्रास के समीप पेड्डापोलम पहँुचना, जिंजी दुर्ग की विजय और उस पर आधिपत्य, जिंजी की स्थायी सुरक्षा व प्रशासकीय व्यवस्था, वेल्लूर का घेरा और विजय, शेरखां से संघर्ष और उसकी पराजय, विभिन्न स्थानों पर शिवाजी का आधिपत्य, कर्नाटक प्रदेश से धन एकत्र करना, शिवाजी और व्यंकोजी की भेंट और व्यंकोजी का पलायन, व्यंकोजी के अधिकांश राज्य पर शिवाजी का अधिकार, व्यंकोजी को शिवाजी का पत्र, शिवाजी और व्यंकोजी में समझौता, मैसूर क्षेत्र में शिवाजी, बेलवाड़ी पमलवाई देसाइन द्वारा शिवाजी का विरोध, शिवाजी की अनु में स्थिति में उनका मराठा राज्य, शिवाजी के कर्नाटक से शीघ्र लौट आने के कारण, शिवाजी की वापसी, कर्नाटक अभियान के समय शिवाजी और यूरोपीयन्स, शिवाजी के कर्नाटक अभियान के परिणाम

शिवाजी के जीवन की संध्या(सन् 1679 ई. से 1680 ई. तक)

दक्षिण में दिलेरखां, मुगलों में संघर्ष, शिवाजी द्वारा बीजापुर राज्य पर आक्रमण और शिवनेरी दुर्ग को हस्तगत करने का प्रयास, सम्भाजी का विद्रोह और पक्ष त्याग, शिवाजी के विरुद्ध मुगलों और बीजापुर की संयुक्त सेना का आक्रमण, बीजापुर प्रदेश में शिवाजी की आक्रामक कार्यवाहियाँ, दिलेरखां व सम्भाजी द्वारा भूपालगढ़ पर आक्रमण और विजय, दिलेरखं का बीजापुर के लिए बढ़ता हुआ विरोध और मसूद व दिलेरखां में गहरा तनाव, शिवाजी की बीजापुर के प्रति नीति, बीजापुर पर मुगलों का आक्रमण और शिवाजी द्वारा बीजापुर की सहायता, खानदेश में मराठों के हमले व लूटपाट, दिलेरखां और सम्भाजी के संयुक्त आक्रमण, लूूटपाट और अत्याचार, सम्भाजी की वापसी, औरंगजेब को शिवाजी का पत्र, शिवाजी खांडेरी द्वीप और अंग्रेज, अंग्रेजों और मराठों के बीच समुद्री युद्ध, जंजीरा के सिद्दी द्वारा खांडेरी द्वीप लेने का प्रयास, अंग्रेजों और शिवाजी के बीच संधि, सिद्दी और शिवाजी, शिवाजी और पुर्तगाली, शिवाजी व संभाजी की भेंट, राजाराम और शिवाजी, शिवाजी के अंतिम दुखद दिन शिवाजी की मृत्यु

शिवाजी के अन्तरराज्यीय सम्बन्ध

शिवाजी और बीजापुर, बीजापुर राज्य, बीजापुर के प्रशासन का स्वरूप, बीजापुर के प्रति शिवाजी की नीति, शाहजी को बीजापुर के बंदीगृह से मुक्त करवाने का शिवाजी का प्रयास, शिवाजी द्वारा बीजापुर राज्य के दुर्गों व प्रदेशों को जीतना, अफजलखां से द्वन्द्व और शिवाजी द्वारा उसका वध, शिवाजी द्वारा पन्हाला, विशालगढ़ तथा अन्य स्थानों की विजय, शिवाजी और बीजापुर के बीच संधि, बीजापुर की शिवाजी विरोधी गतिविधियाँ, राजा जयसिंह और शिवाजी का बीजापुर के विरुद्ध संयुक्त अभियान, शिवाजी द्वारा पुनः बीजापुर से संघर्ष और पन्हाला, सतारा व पर्ली दुर्ग पर अधिकार और उमराणी का युद्ध, कर्नाटक में बीजापुर राज्य के प्रदेशों पर शिवाजी के आक्रमण और उन पर अधिकार, मुगलों के विरुद्ध बीजापुर को शिवाजी की सहायता, बीजापुर राज्य का विघटन, शिवाजी और मुगल, दक्षिण में मुगल साम्राज्य का विस्तार और मराठों का विरोध, औरंगजेब के प्रति शिवाजी की प्रारम्भिक नीति, संघर्ष व युद्ध को टालना, शिवाजी की कूटनीति और औरंगजेब की अधीनता, शिवाजी के राज्य व सत्ता में वृद्धि, शिवाजी और शाहइस्ताखां, सूरत की लूट, शिवाजी और मिर्जा राजा जयसिंह, पुरन्दर की संधि, शिवाजी के प्रति औरंगजेब की नीति, शिवाजी आगरा में, शिवाजी का मुगल सम्राट औरंगजेब से समझौता, शिवाजी का पुनः मुगलों से युद्ध खानदेश व बरार पर शिवाजी के व्यापक हमले, औरंगजेब द्वारा महाबतखाँ और बहादुरखाँ की नियुक्ति और उनका शिवाजी से संघर्ष, शिवाजी के युद्धों व विजयों के परिणाम, शिवाजी का मुगल सेनापति बहादुरखाँ से समझौता, शिवाजी द्वारा मुगलों के विरुद्ध बीजापुर की सहायता, सम्भाजी का मुगल पक्ष में जाना, शिवाजी के प्रति मुगल नीति की समीक्षा, शिवाजी और सिद्दी, जंजीरा के सिद्दी, शिवाजी और सिद्दियों के संघर्ष के कारण, सिद्दियों के प्रति शिवाजी की नीति, शिवाजी का सिद्दियों से प्रथम संघर्ष, सिद्दियों के विरुद्ध शिवाजी का द्वितीय संघर्ष, मुगलों द्वारा सिद्दियों की सहायता और शिवाजी का सिद्दियों से तृतीय संघर्ष, शिवाजी का सिद्दियों से अंतिम संघर्ष, खांडेरी द्वीप के लिये अंग्रेजों से युद्ध और सिद्दियों का हस्तक्षेप, उन्देरी का नौसैनिक युद्ध, सिद्दियों के विरुद्ध शिवाजी की असफलता के कारण, शिवाजी और यूरोपियन लोग, पुर्तगाली और शिवाजी, डच और शिवाजी, फ्रांसीसी और शिवाजी, अंग्रेज और शिवाजी

शिवाजी का प्रशासन

शिवाजी के राज्य का स्वरूप, केन्द्रीय शासन और उसके विभिन्न अंग, राजा शिवाजी के राजस्व के आदर्श, शिवाजी के प्रशासन के सिद्धान्त, अष्ट प्रधान परिषद, अन्य अधिकारी और कर्मचारी, अष्ट प्रधान की कल्पना, अष्ट प्रधान और मुगल, मंत्रीमंडल, अष्ट प्रधान और आधुनिक संसदीय प्रणाली का मंत्रीमंडल, प्रान्तीय शासन, शिवाजी का राज्य, प्रान्त की प्रशासकीय इकाइयाँ और उनके अधिकारी, न्याय प्रशासन, शिक्षा और दान-अनुदान, कृषि, वाणिज्य-व्यापार, अनुशासन, विŸा-व्यवस्था, राजस्व व्यवस्था, राज्य की आय के साधन, चैथ, सरदेशमुखी, वतनदारों के अधिकार व शक्ति, सीमित व संकुचित, सैनिक व्यवस्था, सेना की संख्या, अश्वारोही सेना, पैदल सेना, अंगरक्षकों की सेना, तोपखाना, जलसेना, सैनिकों की भरती और प्रशिक्षण, सैनिकों को नगद वेतन, सैनिक अनुशासन, शिवाजी की सेना में बलिदान और त्याग की असीम भावना, गुप्तचर प्रथा, दुर्ग और उनका प्रबन्ध, शिवाजी की जलसेना, उसकी व्यवस्था, और प्रगति, शिवाजी के समुद्र-तट के दुर्ग, शिवाजी के जहाजी बेड़े और जल-शक्ति की उपलब्धियाँ, शिवाजी की सैन्य-व्यवस्था और मुगल सैन्य-व्यवस्था की तुलना, शिवाजी के शासन प्रबन्ध की समीक्षा

शिवाजी के राज्य का स्वरूप व नीति

शिवाजी की धार्मिक नीति और उनकी धर्मनिरपेक्षता, शिवाजी और हिन्दू पद-पादशाही, शिवाजी के उद्देश्य हिन्दू-पद-पादशाही स्थापित करना, हिन्दू पद-पादशाही के लक्ष्य का कार्यान्वयन, शिवाजी के हिन्दू पद-पादशाही की समीक्षा, क्या शिवाजी का राज्य केवल सैनिक राज्य या डाकू राज्य था ? शिवाजी के ‘हिन्दवी स्वराज्य’ के लक्ष्य, स्वरूप और संघर्ष की समीक्षा, क्या शिवाजी का राज्य हिन्दू राज्य था ? क्यों उनके संघर्ष का स्वरूप हिन्दू था?

शिवाजी का मूल्यांकन

शिवाजी मानव के रूप में , साहसी वीर सैनिक और योग्य रणकुशल सेनापति, साम्राज्य निर्माता, सफल और कुशल शासक, उच्चकोटि के राजनीतिज्ञ, उदार, सहिष्णु हिन्दू शासक, इतिहास में शिवाजी का स्थान, राष्ट्र-निर्माता, शिवाजी, शिवाजी की उपलब्ध्यिाँ, शिवाजी की सफलता के कारण, शिवाजी के विषय में विभिन्न इतिहासकारों और विद्वानों के मत

सम्भाजी(सन् 1680 ई. से 1689 ई. तक)

सम्भाजी का राज्यारोहण, सम्भाजी का बाल्यकाल, सम्भाजी मुगल मनसबदार, आगरा से सम्भाजी की वापसी, युवराज सम्भाजी प्रशासक, मुगल सेनापति दिलेरखां और सम्भाजी का गठजोड़, औरंगजेब द्वारा सम्भाजी को बंदी बनाने का प्रयास और सम्भाजी का मुगल शिविर से पलायन, शिवाजी का देहान्त और सम्भाजी के विरुद्ध रायगढ़ में प्रथम षड़यंत्र, सम्भाजी का राज्यारोहण

सम्भाजी और शाहजादा अकबर

अकबर का सम्भाजी की शरण में आना, सम्भाजी को अकबर के पत्र, सम्भाजी व अकबर की विशाल योजना, औरंगजेब और अकबर के बीच में समझौता कराने के प्रयास, अकबर को दिये मराठा संरक्षण का महत्व और परिणाम

सम्भाजी और दक्षिण के अन्य राज्य

सम्भाजी का सिद्दियों और अंग्रेजों से संघर्ष, सम्भाजी और पुर्तगाली, सम्भाजी और पुर्तगालियों के मध्य युद्ध के कारण, सम्भाजी की पर्तुगाली नीति की समीक्षा, सम्भाजी और बीजापुर व गोलकुण्डा के सुल्तान, बीजापुर और गोलकुण्डा का पतन

सम्भाजी-मुगल संघर्ष

औरंगजेब का दक्षिण को प्रस्थान, सम्भाजी की नीति और उसके परिणाम, पश्चिम महाराष्ट्र के दक्षिण क्षेत्र में मुगल मराठा संघर्ष, क्या सम्भाजी ने शिवाजी का राज्य खो दिया था

सम्भाजी और कर्नाटक

कनार्टक में सम्भाजी के सैनिक अभियान, सम्भाजी की कर्नाटक नीति और संघर्ष का परिणाम

सम्भाजी का दुखद अंत

सम्भाजी का बंदी बनाया जाना, सम्भाजी की मुक्ति के लिए औरंगजेब का सशर्त प्रस्ताव, सम्भाजी की नृशंस हत्या के परिणाम, कवि-कलश

सम्भाजी का प्रशासन

सैनिक संगठन और व्यवस्था, दुर्ग, जल-सेना, प्रान्तीय प्रशासन, धार्मिक नीति, प्रशासन की समीक्षा

सम्भाजी का मूल्यांकन

सम्भाजी - विद्वान कवि, वीर, साहसी, योद्धा, प्रजाहितैषी शासक, सम्भाजी का महत्व

राजाराम (सन् 1689 ई. से 1700 ई. तक)

राजाराम का राज्यारोहण, औरंगजेब के शिविर की लूट, राजाराम के शासनकाल में मराठा मुगल संघर्ष, स्वतंत्रता और धर्म का युद्ध, मराठों के प्रारम्भिक सैनिक अभियान और उपलब्धियाँ, जिंजी का घेरा, राजाराम का मूल्यांकन

ताराबाई (मुगल मराठा संघर्ष 1700 ई. से 1707 ई. तक)

शिवाजी तृतीय का राज्यारोहण, ताराबाई द्वारा संघर्ष और प्रत्याक्रमणों का संचालन और संगठन, मराठों का स्वतंत्रता संघर्ष और उनकी उपलब्धियाँ औरंगजेब के विरुद्ध मराठों की सफलता के कारण, वे परिस्थितियाँ जिन पर औरंगजेब का नियंत्रण नहीं था और जिन्होंने औरंगजेब को असफल और मराठों को सफल बनाया

पुनरोदय

मराठा साम्राज्य का उदय

छत्रपति शाहू और उसकी प्रारम्भिक समस्याएँ, शाहू का बंदी जीवन, शाहू का बंदी जीवन से मुक्त होना, शाहू का महाराष्ट्र में आगमन और उसकी प्रारम्भिक समस्याएँ, स्वार्थी बलशाली मराठा सरदारों का बाहुल्य, मराठा सामन्तों मे ंदो दल, ताराबाई की शत्रुता और सक्रिय विरोध, शाहू के पास सेना और धन का अभाव, प्रारम्भिक समस्याओं का निराकरण, खेड़ युद्ध में शाहू की विजय और अन्य दुर्गों पर अधिकार, सतारा पर अधिकार, शाहू का राज्याभिषेक और नियुक्तियाँ, राज्याभिषेक के पश्चात् शाहू की समस्याएँ और उनका निराकरण, आन्तरिक समस्याएँ, ताराबाई की शत्रुता और विरोध, शक्तिशाली मराठा सामन्तगण, सम्भाजी द्वितीय का विरोध, स्थायी सेना और पर्याप्त धन व साधनों का अभाव, बाह्य समस्याएँ सिद्दी, पुर्तगाली और अंग्रेज, निजाम-उल-मुल्क, बहादुरशाह की तटस्थता

पेशवा बालाजी विश्वनाथ (सन् 1713 ई. से 1720 ई. तक)

प्रारम्भिक जीवन और समस्याएँ, बालाजी विश्वनाथ के पूर्वज, बालाजी का प्रारम्भिक जीवन और पदोन्नति, मुगल अधिकारियों से बालाजी की मित्रता, बालाजी का शाहू से उसके बंदी जीवन-काल में सम्पर्क, शाहू की मुक्ति के बाद बालाजी का शाहू की सेवा में प्रवेश, शाहू की समस्याएँ और बालाजी द्वारा उनके निराकरण के प्रयास, शाहू की सीमित सत्ता व साधन, ताराबाई का यथावत् संघर्ष, महत्वपूर्ण मराठा सरदारों के सहयोग और समर्थन का अभाव, मुगल सम्राट बहादुरशाह की तटस्थता, पर्याप्त धन और सेना का अभाव, पेशवा बनने के पूर्व बालाजी की शाहू के प्रति सेवाएँ, धन⪅, सेनापति और सरलश्कर द्वारा शाहू का पक्ष त्याग और बालाजी द्वारा नवीन सेना का संगठन, कृष्णराव खटावकर की शक्ति का अंत, परसुराम पंत पुनः प्रतिनिधि के पद पर नियुक्त, कान्होजी आंग्रे का विरोध व विद्रोह, निजाम का विरोध, पेशवा बनने के लिए बालाजी की शर्त, पेशवा के पद पर बालाजी विश्वनाथ की नियुक्ति के कारण, पेशवा के पद पर बालाजी विश्वनाथ की नियुक्ति और उसका महत्व, पेशवा बनने के पश्चात् शाहू के प्रति बालाजी विश्वनाथ की सेवाएँ, कान्होजी आंग्रे से समझौता और उसे शाहू के पक्ष में लाना, ताराबाई और उसके समर्थकों का दमन, दामाजी थोरात का दमन, रम्भाजी निम्बालकर का दमन, उदाजी चव्हाण की शक्ति पर नियंत्रण, मराठा सरदारों में सत्ता व सुविधाओं का वितरण कर उनको शाहू के अधीन करना, मुगल सम्राट से शाहू की मान्यता और चैथ तथा सरदेशमुखी की शाही सनदें प्राप्त करना, दाउदखाँ पन्नी द्वारा शाहू से समझौता, दक्षिण में निजाम-उल-मुल्क और उसके द्वारा मराठा शक्ति का दमन, सैयद हुसैन अलीखाँ दक्षिण का मुगल सूबेदार, शंकरजी मल्हार का दौत्यकार्य, हुसैनअली से संधि, संधि का महत्व, बालाजी विश्वनाथ की दिल्ली यात्रा और मुगल सम्राट से शाहू के लिए सनदें प्राप्त करना, बालाजी की दिल्ली यात्रा के कारण, दिल्ली में बालाजी विश्वनाथ और मराठा सेना की गतिविधियाँ, बालाजी द्वारा मुगल सम्राट से सनदें प्राप्त करना, बालाजी विश्वनाथ की दिल्ली यात्रा के परिणाम, राजनीतिक परिणाम, आर्थिक परिणाम, सामाजिक परिणाम, मुगल सनदों द्वारा प्राप्त अधिकारों का कार्यान्वयन और उसके दुष्परिणम, बालाजी द्वारा विŸाीय व्यवस्था का पुनर्गठन और उसके दोष, बालाजी द्वारा प्रशासन में परिवर्तन, मराठा संघ का प्रारम्भ, मराठासंघ में जागीरदारी प्रथा का प्रारम्भ और विकास, वे परिस्थितियाँ जो मराठा संघ की स्थापना में सहायक हुईं अथवा बालाजी विश्वनाथ द्वारा अष्ट प्रधान के स्थान पर मराठा संघ की स्थापना के कारण, अष्ट-प्रधान की व्यवस्था अर्थहीन और अव्यावहारिक, पृथकतावादी, सामन्तशाही, नवीन मराठा राज्य की सुरक्षा की व्यवस्था, जागीरदारों व सामन्तों की ढीली-ढाली संघीय व्यवस्था, मराठा संघ का प्रारम्भ और प्रमुख सदस्यों में क्षेत्रों का विभाजन, मराठा संघ के सदस्यों के प्रमुख कर्तव्य और उŸारदायित्व, मराठा संघ पर नियंत्रण, समीक्षा, कोल्हापुर के शम्भुजी पर आक्रमण, बालाजी के अन्य कार्य, बालाजी की मृत्यु, बालाजी विश्वनाथ का मूल्यांकन, बालाजी स्वशिक्षित, स्वनिर्मित प्रतिभासम्पन्न और अनुभवी पुरुष, श्रेष्ठ कूटनीतिक और प्रशासक बालाजी की उपलब्धियाँ, बालाजी पर आक्षेप, इतिहास में बालाजी का स्थान

पेशवा बाजीराव प्रथम (सन् 1720 ई. से 1740 ई. तक)

बाजीराव की प्रारम्भिक समस्याएँ और नीति-निर्धारण, बाजीराव का प्रारम्भिक जीवन, पेशवा पद पर बाजीराव की नियुक्ति, मराठा सरदारों द्वारा बाजीराव की नियुक्ति का विरोध और शाहू का आश्वासन, शाहू के पास बाजीराव के समर्थक प्रतिनिधि, पेशवा बाजीराव की प्रारम्भिक कठिनाइयाँ, श्रीपतराव के नेतृत्व में विरोध, अनियंत्रित मराठा सामन्त, दक्षिण में निजाम मुगल सूबेदार और उसका तीव्र विरोध, मालवा तथा गुजरात में अस्थिर मराठा सत्ता , सिद्दी और पुर्तगाली, मराठा सामन्त आंग्रे और कोल्हापुर के शम्भुजी, आन्तरिक प्रशासन, सत्ता -संघर्ष, मराठा नीति का निर्धारण, प्रतिनिधि श्रीपतराव के तर्क और उसकी शान्ति व समझौते की नीति, बाजीराव की नति के विभिन्न अंग और साक्ष्य, दक्षिण सम्बन्धी नीति, उŸारी भारत में विस्तारवादी नीति, छत्रपति शाहू की स्थिति अधिक दृढ़ करना, समीक्षा

निजाम और मराठे

दिल्ली में रक्तरंजित सत्ता -परिवर्तन, प्रथम बार निजाम दक्षिण का मुगल सूबेदार और उसकी मराठा-विरोधी नीति (सन् 1713-25) दक्षिण का सूबेदार हुसैनअली और मराठों से समझौता (सन् 1716-1718), दक्षिण से चैथ व सरदेशमुखी के अधिकार के लिए मराठों को मुगल फरमान ( सन् 1719), दक्षिण में हुसैनअली का नायब आलमअली, निजाम मालवा का सूबेदार (सन् 1719), सैयद बन्धुओ ंकी सत्ता का अंत (सन् 1720), निजाम-दक्षिण और मालवा का सूबेदार (सन् 1720-21), निजाम और बाजीराव की प्रथम भेंट, दिल्ली में निजाम वजीर (सन् 1722-23), मुबरिज-उल-मुल्क और मराठे, निजाम और पेशवा बाजीराव की दूसरी बार भेंट (24 फरवरी, 1723), निजाम के विरुद्ध सम्राट की कार्यवाही और निजाम द्वारा बाजीराव से तृतीय बार भेंट (18 मई, 1724), मुबरिज-उल-मुल्क की शाहू से चर्चा और शाहू की शर्तें, निजाम के साथ बाजीराव की सहानुभूति, निजाम द्वारा मुबारिज-उल-मुल्क को पत्र, निजाम और मुबारिज-उल-मुल्क में शकरखेड़ा का युद्ध (1 अक्टूबर, 1724), शकरखेड़ा युद्ध का महत्व, सम्राट द्वारा दक्षिण के सूबेदार के पद पर निजाम की नियुक्ति (सन् 1725), मराठों के कर्नाटक अभियान (सन् 1725-27), कनार्टक अभियानों के परिणाम, निजाम द्वारा मराठा नियंत्रण से मुक्त होना और मराठा-विरोेध की तैयारी, निजाम की मराठा नीति का विश्लेषण, निजाम-मराठा संघर्ष अथवा निजाम बाजीराव संघर्ष, संघर्ष के कारण, निजाम और मराठा संघर्ष के चरण, प्रथम चरण, निजाम और बाजीराव का संघर्ष, निजाम की शत्रुवत् गतिविधियाँ और चैथ की अमान्यता और चुनौती, निजाम के विरुद्ध बाजीराव का सैनिक अभियान, पालखेड़ में निजाम का घिर जाना, मुंगीशेगाँव की संधि (6 मार्च, 1728), सन्धि का महत्व और परिणाम, निजाम-मराठा (बाजीराव) संघर्ष का द्वितीय चरण, पेशवा बाजीराव और सेनापति खंड़ेराव दाभाड़े में पारस्परिक वैमनस्य व झगड़े निजाम द्वारा दाभाड़े को पेशवा के विरुद्ध भड़काना, बाजीराव के हाथों दाभाड़े की पराजय, निजाम का पेशवा बाजीराव से समझौता (सन् 1732), निजाम मराठा (बाजीराव) संघर्ष का तृतीय चरण, मालवा और बुन्देलखंड में बाजीराव की विशिष्ट उपलब्धियाँ, मराठोें के विरुद्ध निजाम की गतिविधियाँ, मराठों के उत्तर भारत में आक्रमण और दिल्ली तक धावा, निजाम की दिल्ली यात्रा, मराठों से भोपाल का युद्ध और संधि (सन् 1738), सन्धि का महत्व, निजाम दक्षिण में और पुनःमराठों से समझौता

आन्तरिक कलह संघर्ष और बाजीराव की विजयें

शाहू-शम्भुजी संघर्ष, शाहू और शम्भुजी के संघर्ष के कारण, शम्भुजी को शाहू का पत्र, शाहू द्धारा शम्भुजी पर आक्रमण और विजय, शाहू और शम्भुजी में पत्र-व्यवहार, शाहू और शम्भुजी का मिलन, वारना की सन्धि (13 अप्रैल, 1731), वारना की संधि का महत्व, पेशवा बाजीराव और दाभाड़े का संघर्ष, खण्डेराव दाभाड़े, बाजीराव और दाभाड़े में संघर्ष के कारण, पेशवा बाजीराव द्वारा गुजरात में आक्रमण और चैथ के अधिकार की प्राप्ति (सन् 1726), गुजरात में पेशवा के हस्तक्षेप का दाभाड़े द्वारा विरोध और शाहू के आदेश (सन् 1727), चिमनाजी अप्पा का गुजरात पर आक्रमण और गुजरात के सूबेदार से चैथ वसूली व सरदेशमुखी के लिए समझौता (सन् 1730), त्र्यम्बराव दाभाड़े द्वारा पेशवा के हस्तक्षेप के विरुद्ध शाहू से शिकायत, बाजीराव द्वारा दाभाड़े के अधीनस्थ सरदारों को अपने पक्ष में करना, बाजीराव के विरुद्ध त्र्यम्बकराव दाभाड़े द्वारा निजाम के साथ, षड़यंत्री कार्यवाही, शाहू द्वारा दोनों प्रतिस्पर्धी पक्षों में समझौता कराने का असफल प्रयास, निजाम की षड़यंत्रकारी योजना, शाहू द्वारा दाभाड़े को सतारा लाने के लिए पेशवा को आदेश, दाभाड़े द्वारा पेशवा के साथ सतारा जाने से इंकार और शाहू द्वारा दाभाड़े को सन्तुष्ट करने का प्रयास, बाजीराव द्वारा गुजरात के नये सूबेदार अभयसिंह से समझौता (फरवरी, 1731), डभोई का युद्ध और त्र्यम्बकराव दाभाड़े का अंत (अप्रैल 1731), बाजीराव द्वारा उमाबाई से क्षमा-याचना, डभोई युद्ध के परिणाम, दाभाड़े के साथ हुए संघर्ष में बाजीराव की नीति की समीक्षा

कोंकण में मराठा आधिपत्य और प्रभुत्व के लिए संघर्ष (सन् 1733 ई. से 1739 ई. तक)

बाजीराव का सिद्धियों से संघर्ष - सिद्धियों से संघर्ष के कारण, बाजीराव का सिद्धियों के विरुद्ध सैनिक अभियान और संघर्ष, जंजीरा पर बाजीराव का आक्रमण व घेरा, प्रतिनिधि द्वारा रायगढ़ पर अधिकार, सिद्धी द्वारा धोखेबाजी की चाल, शेखोजी आंग्रे की मृत्यु और इसका सिद्धी मराठा संघर्ष पर प्रभाव, सिद्दी मराठा संघर्ष में शिथिलता, अंाग्रे बन्धुओं में क्षेत्र और शक्ति का विभाजन, विभाजन के परिणाम, मराठों का पुर्तगालियों से संघर्ष (सन् 1731-39) मराठा पुर्तगाली संघर्ष का प्रथम चरण (सन् 1731-32), संघर्ष के कारण, पुर्तगालियों के विरुद्ध कार्यवाही, मराठा-पुर्तगाली, संघर्ष का द्वितीय चरण (सन् 1737-39), पुर्तगालियों के विरुद्ध संघर्ष थाना, सालसिट और अन्य स्थानों पर मराठों का अधिकार, बसई पर मराठों का आक्रमण और विजय, पुर्तगालियों से संधि (1740), संधि का महत्व, मराठा -अंग्रेज संधि (सन् 1740), कोंकण में मराठा प्रभुत्व

बाजीराव द्वारा उŸारी भारत में मराठा शक्ति और प्रभुत्व का प्रसार

बाजीराव की विस्तारवादी नीति, उत्तर भारत में मराठा विस्तारवादी नीति के कारण, बाजीराव द्वारा विस्तारवादी नीति के कार्यान्वयन के सोपान, मालवा में मराठा सत्ता और प्रभुत्व का प्रसार, मालवा में मराठों के प्रारम्भिक आक्रमण, मालवा में राजपूतों, जमींदारों और हिन्दू प्रजा द्वारा आक्रमणकारी मराठों को सहयोग व सहायता, मालवा से चैथ वसूल करने की मराठों की प्रबल महत्वाकांक्षा और उसकी मांग, मालवा में मराठों द्वारा चैथ वसूली, पेशवा बाजीराव को मालवा में चैथ वसूल करने का उŸारदायित्व, मालवा में मराठों द्वारा चैथ व खण्डवी की वसूली, मालवा के मुगल सूबेदार की मराठों के हाथों पराजय (सन् 1728), मराठों की लूटपाट और धन-वसूली, मालवा में अव्यवस्था और अराजकता, मालवा के सूबेदार सवाई जयसिंह द्वारा मराठों से समझौते की नीति अपनाने के प्रयास, जयसिंह का दूत-मण्डल, शाहू और निजाम के पास, जयसिंह का मराठों से प्रस्तावित समझौता और बादशाह द्वारा उसकी अस्वीकृति, मालवा में मुहम्मद बंगश की सूबेदारी और मराठों को चैथ, सवाई जयसिंह पुनः मालवा का सूबेदार (सन् 1732-37), पेशवा के सहायको में मालवा के राजस्व का विभाजन, सवाई जयसिंह का मराठों से समझौता (सन् 1733), बूँदी में मराठों का हस्तक्षेप, मालवा से मराठों को निष्कासित करने के तीन शाही सैनिक अभियान, मालवा में मराठों के विरुद्ध मुगल सैनिक अभियानों की असफलता के कारण, राधाबाई की तीर्थयात्रा, उदयपुर में राधाबाई, राधाबाई की उत्तर प्रदेशों में तीर्थयात्रा, राधाबाई की वापसी यात्रा, राधाबाई की तीर्थयात्रा का महत्व, मुगल दरबार में गुटबंदी और मराठों से समझौता करने के प्रयास असफल, जयसिंह द्वारा बादशाह और पेशवा से भेंट व समझौता करने का प्रयासजयसिंह द्वारा बाजीराव को बादशाह से भेंट और समझौता करने का निमंत्रण, बादशाह से समझौता करने हेतु बाजीराव का उŸारी भारत के लिए प्रस्थान,उदयपुर के महाराणा से बाजीराव की भेंट, भमोलाओं में पेशवा बाजीराव की जयसिंह से भेंट, बादशाह का बाजीराव से भेंट करने से इंकार और प्रस्तावित समझौता असफल, समझौते के लिए बाजीराव की उŸारोतर बढ़ती हुई शर्तें और माँगें, पेशवा बाजीराव का दोआब पर आक्रमण सआदतखाँ के हाथों मराठा सेना की पराजय, सआदतखाँ द्वारा विजय की अतिशयोक्तिपूर्ण सूचना और विजय-उत्सव, बाजीराव का दिल्ली पर अकस्मात धावा, दिल्ली पर बाजीराव के हमले के परिणाम, बाजीराव के बढ़ते हुए प्रभुत्व, और सफलताओं से निजाम-उल-मुल्क आतंकित और चिंतित, सम्राट द्वारा निजाम को उŸारी भारत आने का फरमान, मालवा में बाजीराव के प्रतिनिधि की निजाम से भेंट, निजाम की सम्राट से भेंट और सम्राट द्वारा उसे मराठों के विरुद्ध युद्ध हेतु अधिकृत करना, निजाम का मराठों के विरुद्ध प्रस्थान और निजाम की मराठों के विरुद्ध योजना, बाजीराव द्वारा ससैन्य दक्षिण से प्रस्थान, भोपाल में बाजीराव द्वारा निजाम की घेराबंदी और निजाम का पराभव, निजाम और बाजीराव में दोहरा सराय की संधि (7 जनवरी, 1738) दोहरा सराय की संधि का महत्व

बाजीराव द्वारा गुजरात और राजस्थान में मराठा सत्ता प्रसार

गुजरात में मराठा प्रसार, गुजरात में विघटनकारी प्रवृŸिा, गुजरात पर मराठों का चैथ व सरदेशमुखी का दावा, गुजरात में मराठा प्रसार के चरण, गुजरात पर मराठों के प्रारम्भिक आक्रमण, हैदरकुलीखाँ और हामिदखाँ गुजरात के मुगल सूबेदार, हामिदखाँ द्वारा मराठों को चैथ व सरदेशमुखी वसूल करने का अधिकार प्रदान करना, सरबुलन्दखाँ गुजरात का सूबेदार, सरबुन्दखाँ का पिलाजी व कंठाजी से समझौता (सन्1725), सरबुलन्दखां का चैथ के लिए पेशवा बाजीराव से समझौता (सन् 1726), शाहू द्वारा गुजरात की चैथ का दाभाड़े और बाजीराव में विभाजन, सरबुलन्दखाँ का पेशवा बाजीराव से चैथ के लिए पुनः समझौता (20 फरवरी, 1727), पेशवा और दाभाड़े का संघर्ष और शाहू द्वारा पेशवा का गुजरात की चैथ में दिया हुआ आधा अंश निरस्त करने के आदेश, चिमनाजी अप्पा द्वारा गुजरात पर आक्रमण और सरबुलन्दखाँ द्वारा संधि (23 मार्च, 1730), दाभाड़े द्वारा पेशवा के विरुद्ध संघर्ष के लिए शक्ति⪅, मारवाड़ नरेश अभयसिंह गुजरात का सूबेदार, अभयसिंह का पेशवा बाजीराव से समझौता (फरवरी, 1731), डभोई का युद्ध और दाभाड़े की पराजय और मृत्यु, गुजरात की चैथ व सरदेशमुखी यशवन्तराव दाभाड़े को, पिलाजी गायकवाड़ की हत्या, गुजरात में मराठों के आक्रमण और उत्पात, अभयसिंह द्वारा मराठों से समझौता (सन् 1733), गुजरात के राजस्व का भाग गायकवाड़ को, राजस्थान में मराठा प्रभुत्व का प्रसार, अठारहवीं सदी के प्रारम्भ में राजपूत-मराठा सम्बन्ध, उदयपुर के महाराणा और मराठों की मैत्री की अभिव्यक्ति (सन् 1717-1718), जोधपुर के राठौड़ नरेश और मराठे, मालवा का सूबेदार सवाई जयसिंह और मराठे, बाजीराव और निजाम में क्षेत्र विभाजन के लिए समझौता, उदयपुर के महाराणा और सवाई जयसिंह द्वारा मराठों से समझौता करने के प्रयास, शाहू द्वारा राजपूतों के प्रति मैत्री और सद्भावना की अभिव्यक्ति, उदयपुर के महाराणा द्वारा मराठों के प्रति मैत्री की अभिव्यक्ति, गुजरात और मालवा में मराठा की विजयों से चिन्तातुर महाराणा द्वारा सवाई जयसिंह को पत्र (1728), जयसिंह दूसरी बार मालवा का सूबेदार और मराठों से समझौता करने के प्रयास, सवाई जयसिंह तृतीय बार मालवा का सूबेदार, मराठों के विरुद्ध महाराणा संग्रामसिंह और जयसिंह, समझौता, मराठों की सफलता और सवाई जयसिंह द्वारा मराठों से समझौता, गुजरात में मराठों व राजपूतों की कशमकश और संघर्ष, जयसिंह द्वारा मराठों से समझौता (सन् 1733), महाराणा, संग्रामसिंह का निधन और राजपूत-मराठा सम्बन्धों में परिवर्तन, मराठोें द्वारा मेवाड़ के महाराणा जगतसिंह से धन वसूली, बूंदी राज्य, बूँदी पर मराठा आक्रमण और हस्तक्षेप (सन् 1734), मराठों के प्रसार और हस्तक्षेप के विरुद्ध राजपूत नरेशों का हुरडा में सम्मेलन और समझौता (सन् 1734), मराठों के विरुद्ध मुगल सैनिक अभियान में राजपूतों का सहयोग, मुगल सैनिक अभियान की असफलता और पेशवा से समझौता, मराठों द्वारा सौभार की लूट, जयसिंह का मराठों से समझौता (सन् 1735), जयसिंह से भमोलाओं में भेंट, मराठों से समझौता करने के प्रयास, बाजीराव की व्यापक माँगें, राजस्थान में मराठों के दावे और चैथ वसूली

बाजीराव और बुन्देलखण्ड

बुन्देलखण्ड- दक्षिण में मुगल सेवा में छत्रसाल, छत्रसाल की शिवाजी से भेंट और शिवाजी का परामर्श, उत्तर भारत में छत्रसाल मुगल सेना में मनसबदार, छत्रसाल द्वारा मुगल सत्ता का विरोध और मुहम्मदखाँ बंगश से युद्ध, छत्रसाल द्वारा पेशवा बाजीराव से सहायता की याचना, बाजीराव द्वारा बंगश पर आक्रमण केे कारण, बाजीराव का बंगश के विरुद्ध सफल अभियान और आक्रमण, बंगश और छत्रसाल के बीच संधि, बाजीराव की सैनिक सहायता का परिणाम, बुन्देला-मराठा मैत्री-सम्बन्ध, बाजीराव को बुन्देलखंड में छत्रसाल के राज्य का एक तिहाई भाग प्राप्त होने में विलम्ब, पेशवा बाजीराव का बुन्देलखण्ड में आधिपत्य, बुन्देलखण्ड में मराठा, अधिकृत क्षेत्र का महत्व, नादिरशाह का आक्रमण और मराठा दृष्टिकोण में परिवर्तन, नासिरजंग की पराजय और बाजीराव से समझौता

बाजीराव का निधन और उसका मूल्यांकन

बाजीराव-मस्तानी उपाख्यान, बाजीराव का आकस्मिक निधन, पेशवा बाजीराव का चरित्र और व्यक्तित्व, अलौकिक गुण-सम्पन्न और श्रेष्ठ व्यक्तित्व, महान कूटनीतिज्ञ, उच्च कोटि का सैनिक और श्रेष्ठ सेनानायक, महान मराठा प्रभुसत्ता और राज्य का निर्माता, राष्ट्रीय पुनरुत्थान, बाजीराव में प्रशासनिक और रचनात्मक प्रतिभा का विŸाीय दक्षता का अभाव, बाजीराव के दोष और दुर्बलताएँ, बाजीराव का इतिहास में स्थान, बाजीराव हिन्दू धर्म का रक्षक और उसकी हिन्दू पद पादशाही की भावना, बाजीराव की प्रसार और विजय की अग्रगामी नीति, बाजीराव की प्रसार और विजय की नीति का अभिप्राय, बाजीराव की प्रसार की अग्रगामी नीति के उद्देश्य, प्रसार और प्रभुत्व की अग्रगामी नीति अपनाने के कारण, बाजीराव की प्रसार नीति के परिणाम, बाजीराव की प्रसार की नीति के दोष, बाजीराव की प्रसार नीति की सफलता के कारण, बाजीराव और मराठा संघ, मराठा संघ का प्रारम्भ, मराठा संघ के प्रति बाजीराव की नीति और उद्देश्य, बाजीराव द्वारा नीति का कार्यान्वयन और मराठा संघ के स्वरूप में परिवर्तन, बाजीराव की नीति का मराठा सामन्तों द्वारा विरोध और इसके परिणाम, बाजीराव की नीति सही और व्यावहारिक, बाजीराव की नीति के परिणाम, बाजीराव की उपलब्धियाँ, बाजीराव पेशवा के पद पर, बाजीराव की दिग्विजय और प्रसार की अग्रगामी नीति और उसके उद्देश्य, बाजीराव की प्रमुख उपलब्धियाँ, दक्षिण में मराठा सर्वोच्चता की स्थापना, उत्तर भारत में बाजीराव द्वारा मराठा प्रभुत्व का प्रसारण, मराठा संघ के स्वरूप में परिवर्तन, सैन्यबल का संगठन, निष्कर्ष

पेशवा बालाजी बाजीराव(सन् 1721 ई. से 1761 ई. तक)

बालाजी बाजीराव का प्रारम्भिक जीवन, पेशवा पद पर बालाजी की नियुक्ति, बालाजी को पेशवा पद पर नियुक्त करने का महत्व, पेशवा बालाजी की समस्याएँ, आन्तरिक समस्याएँ, बाह्य समयाएँ, मराठा नीति के दोष और दुर्बलताएँ, पेशवा बालाजीराव के शासन के दो भाग, बालाजी बाजीराव द्वारा विŸाीय समस्या का निराकरण

शाहू के शासनकाल का महत्व और उसका मूल्यांकन

शाहू के शासन की चार सर्वाधिक महत्वपूर्ण बातें, शाहू के उŸाराधिकार की समस्या और उसका निराकरण, शाहू की पत्नियाँ और उसकी सन्तानें, शाहू का चिन्तातुर, निराश और दुःखी जीवन, पेशवा बालाजी का पद-मुक्त होना और उसकी पुनः नियुक्ति, शाहू के उŸाराधिकारी की खोज, ताराबाई द्वारा रामराजा को प्रकट करना, शाहू के दो आदेश और उसका निधन, सकवारबाई का सती होना, छत्रपति शाहू का मूल्यांकन, शाहू के व्यक्तित्व पर मुगल प्रभाव की झलक, शाहू की सद्गुण-सम्पन्नता, शासक के रूप में शाहू, प्रजावत्सलता और लोक-कल्याण की भावना, उदार समझौतावादी नीति, मराठा सरदारों को राज्य-प्रसार तथा रचनात्मक कार्यों में प्रवृŸा करना, लोक रंजन व लोकप्रियता के कार्य, सही व उपयुक्त व्यक्तियों को परखने और उनका सदुपयोग करने की अचूक दृष्टि, प्रशासन में केन्द्रीयकरण की प्रवृŸिा, प्रशासन में अभिरुचि, उदार धर्मनिरपेक्षता, साहू के दोष और दुर्बलताएँ, शाहू के शासनकाल का महत्व और उसकी उपलब्धियाँ, मुगल सम्राट के प्रति उदारता, सहिष्णुता व सुरक्षा की नीति, मराठा सरदारों को रचनात्मक राष्ट्रीय कार्यों की ओर प्रवृŸा करना, मराठा एकता का महत्वपूर्ण कार्य, मराठा राज-शक्ति और प्रभुत्व का प्रसार, विकेन्द्रीकृत मराठा महासंघ या सामन्ती राज-व्यवस्था की सृष्टि और केन्द्रीय सत्ता की क्षीणता, पेशवा का अभ्युदय

कुशल राजनीतिज्ञ निजाम-उल-मुल्क

निजाम-उल-मुल्क के पूर्वज, औरंगजेब के शासनकाल में निजाम-उल-मुल्क का प्रारम्भिक जीवन, निजाम-उल-मुल्क और सम्राट बहादुरशाह, निजाम-उल-मुल्क और जहाँदारशाह, फर्रुखसियर, रफीउद्दरजात और रफीउद्दौला के शासनकाल में निजाम-उल-मुल्क, निजाम-उल-मुल्क मालवा का सूबेदार, निजाम-उल-मुल्क और सैयद बन्धुओं में संघर्ष, दक्षिण में निजाम के शासन का प्रारम्भ, सैयद बन्धुओं की सत्ता का अंत और निजाम के उत्कर्ष का मार्ग-प्रशस्त निजाम-उल-मुल्क की विजारत, दिल्ली से निजाम का दक्षिण मे प्रस्थान और वहाँ उसकी स्वतंत्र सत्ता का प्रारम्भ, दक्षिण, में निजाम की मराठा नीति (सन् 1713-15), सैयद मराठा समझौता और मराठों को चैथ व सरदेशमुखी का शाही फरमान (सन् 1719), दक्षिण में निजाम की मराठा विरोधी नीति, पालखेड़ का युद्ध और मुंगी-शेगाँव की संधि (सन् 1728), निजाम-उल-मुल्क और पेशवा बाजीराव के बीच संधि (सन् 1732), मालवा और बुन्देलखंड में मराठों की विजयें, दोआब पर आक्रमण और दिल्ली पर आकस्मिक धावा, निजाम-उल-मुल्क का दिल्ली प्रस्थान, भोपाल का युद्ध और बाजीराव से समझौता (सन् 1738), नादिरशाह का आक्रमण और निजाम-उल-मुल्क, दक्षिण में स्वतंत्र शासक के रूप में निजाम, निजाम-उल-मुल्क का निधन और उसका मूल्यांकन, निजाम के उŸाराधिकारी

पेशवा बालाजीराव और ताराबाई का संघर्ष

रामराजा का प्रारम्भिक जीवन, रामराजा का राज्याभिषेक, पेशवा पर अक्षम, अयोग्य, व्यक्ति राजसिंहासन पर सौंपने का आरोप, ताराबाई और पेशवा के उद्देश्य, ताराबाई द्वारा रामराजा को अपने नियंत्रण में करने का प्रयास और उसे बंदी बनाना, ताराबाई का रामराजा पर विनाशकारी प्रहार, पेशवा द्वारा रघुजी भोंसले सतारा आमंत्रित और विचार-विमर्श, सत्ता प्राप्ति के लिए रामराजा के प्रयास, ताराबाई के पक्षधर प्रतिनिधि और पंत सचिव से पेशवा का संघर्ष, पूना सम्मेलन, संगोला समझौता, संगोला समझौते का महत्व, ताराबाई द्वारा रामराजा को बंदी बनाना, पेशवा के विरुद्ध ताराबाई की शत्रुवत् षड़यंत्रकारी गतिविधियाँ और संघर्ष, ताराबाई द्वारा पेशवा से समझौते के प्रयास, जैजुरी समझौता, कोल्हारपुर के शंभुजी का निधन और पेशवा की नीति

ताराबाई के जीवन, कार्यकलापों व नीतियों का सिंहावलोकन

ताराबाई का प्रारम्भिक जीवन, राजाराम का निधन, शिवाजी का राज्याभिष्ेाक और ताराबाई के हाथों में सत्ता का केन्द्रीयकरण, मराठों के विरुद्ध औरंगजेब के आक्रमण और दुर्ग-विजय, ताराबाई की समस्याएँ, ताराबाई की नीति, ताराबाई द्वारा मुगलों के विरुद्ध स्वतंत्रता संघर्ष और युद्धों व प्रत्याक्रमणों का सफल संचालन और संगठन, मराठों की विजयें और उपलब्धियाँ स्वतंत्रता संघर्ष में ताराबाई के कार्यों का मूल्यांकन, शाहू का महाराष्ट्र में आगमन और ताराबाई को निवेदन, शाहू के विरुद्ध ताराबाई द्वारा अधिकारियों और सरदारों के सम्मेलन का आयोजन, खेड़ का युद्ध और उसका प्रभाव, शाहू द्वारा अन्य दुर्गों की विजय, शाहू द्वारा सतारा विजय, ताराबाई द्वारा शाहू के समझौते के प्रस्ताव का अमान्य करना, शाहू द्वारा पन्हाला और रंगना दुर्गों का घेरा और आंशिक सफलता, मुगल-सम्राट बहादुरशाह के सम्मुख ताराबाई द्वारा चैथ व सरदेशमुखी सम्बन्धी शाहू के दावे का प्रतिकार और सम्राट की तटस्थता, मराठा सरदारों की सौदेबाजी, शाहू के विरुद्ध ताराबाई द्वारा कुचक्रों और षड़यंत्रों का तूफान, पेशवा बालाजी द्वारा सशक्त विरोधी मराठा सरदारों का दमन, ताराबाई का बंदी बनाया जाना और उसके समर्थंकों का दमन, वारना का युद्ध और संधि, गृह-युद्ध का अंत, राज-सत्ता और अधिकार हथियाने के लिए ताराबाई का अन्य प्रयास, जैजुरी समझौता, ताराबाई का मूल्यांकन, ताराबाई के दोष और दुर्बलताएँ, ताराबाई और मराठों का स्वतंत्रता संघर्ष, मराठा इतिहास में ताराबाई का स्थान, मराठा राजनीति में राजप्रसाद की नारियों के हस्तक्षेप का सूत्रपात

बालाजीराव और मराठा संघ

अवज्ञाकारी सामन्तों की प्रमुख समस्या, बाबूजीनायक, रघुजी भोंसले और पेशवा बालाजीराव, पेशवा बालाजीराव और रघुजी भोंसले में शत्रुता व संघर्ष के कारण, रघुजी और पेशवा में संघर्ष का प्रारम्भ, पेशवा और रघुजी भोंसले में समझौता, रघुजी का मूल्यांकन, रघुजी के उŸाराधिकार की समस्याएँ, पेशवा बालाजीराव का हस्तक्षेप, पेशवा और दाभाड़े एवं गायकवाड़, पेशवा व दाभाड़े तथा गायकवाड़ में शत्रुता के कारण, पेशवा और दाभाड़े व गायकवाड़ में युद्ध, गायकवाड़ और दाभाड़े द्वारा पेशवा से संधि, पेशवा और आंग्रे, पश्चिमी समुद्री तट की सुरक्षा की आवश्यकता, तुलाजी आंग्रे, पेशवा और तुलाजी आंग्रे में शत्रुता और संघर्ष के कारण, तुलाजी के विरुद्ध पेशवा द्वारा अंग्रेजों से समझौता, तुलाजी आंग्रे के विरुद्ध पेशवा और अंग्रेजों का संयुक्त अभियान, पेशवा से अंग्रेजों का समझौता, आंग्रे से हुए युद्ध के परिणाम, पेशवा बालाजी राव ने मराठा जलशक्ति का विध्वंस किया, केन्द्रीय सत्ता में सर्वोच्च संचालन के रूप में पेशवा बालाजीराव का अभ्युदय, पेशवाओं के अभ्युदय और उत्कर्ष के कारण

मराठा-निजाम संघर्ष (सन् 1751 ई. से 1761 ई. तक)

दक्षिण में मराठा सत्ता और प्रभुत्व का प्रसार, दक्षिण भारत में दो प्रमुख शक्तियाँ, नासिरजंग और उसके शत्रुओं द्वारा उत्पन्न संकट, नासिरजंग की हत्या और मुजफ्फरजंग निजाम, मुजफ्फरजंग का निधन, सलाबतजंग निजाम, पेशवा से सलाबतजंग का समझौता, पेशवा के विरुद्ध सलाबतजंग की ओर से आक्रामक कार्यवाहियाँ, पारनेर और माल्थन का युद्ध, सिंग्वा की संधि, गाजीउद्दीन की हत्या और पेशवा की योजना विफल, भलकी की संधि, चार मीनार का संघर्ष और निजाम के राज्य में बूसी द्वारा अपनी शक्ति दृढ़ करना, निजाम का पेशवा से पुनः संघर्ष, सिन्धखेड़ का युद्ध और संधि, निजाम के अधिकारियों की भीषण हत्याएँ और बूसी की निजाम के राज्य से वापसी, निजाम से पुनः युद्ध और उदगिर की संधि, पेशवा बालाजीराव के शासन-काल में कर्नाटक के अभियान, कर्नाटक प्रदेश, कर्नाटक में मराठों के हित, अर्काट में स्वतंत्र मुस्लिम शासन, चाँदा साहब का उत्कर्ष और राजलिप्सा, कर्नाटक में मराठों के अभियानों के कारण, रघुजी भोंसले का प्रथम कर्नाटक अभियान और अर्काट विजय, त्रिचनापल्ली पर रघुजी का आक्रमण और अधिकार, चाँदा साहब दीर्घकाल तक बंदी, रघुजी के कर्नाटक अभियान के परिणाम, निजाम द्वारा अर्काट और त्रिचनापल्ली को अपहृत कर उन पर अधिकार करना, बाबूजी नायक का असफल कर्नाटक अभियान, पेशवा के नेतृत्व में कर्नाटक अभियान और उसके कारण, सदाशिव राव भाऊ के नेतृत्व में कर्नाटक अभियान, निजाम-उल-मुल्क की मृत्यु और मराठों की सफलताएँ, पेशवा के नेतृत्व में कर्नाटक अभियान, पेशवा के सेनानायकों द्वारा अन्य कर्नाटक अभियान, सिन्धखेड़ युद्ध में निजाम की पुनः पराजय और संधि, दक्षिण में पेशवा बालाजीराव के अभियानों और विजयों के परिणाम

बालाजीराव की मराठा-प्रसार नीति और उत्तर भारतीय अभियान

बालाजीराव की साम्राज्यवादी नीति और उसके लक्ष्य, उत्तर भारत में बालाजीराव के चार अभियान, बालाजी की नीति व अभियानांें की समीक्षा, बालाजीराव का उत्तर भारत का प्रथम अभियान, निजाम से बालाजीराव की भेंट और समझौता, धौलपुर के समीप जयसिंह और पेशवा का मिलन और समझौता, पेशवा को मालवा की सूबेदारी का फरमान और समझौता, बुन्देलखण्ड में मराठा राजसत्ता और प्रभुत्व का प्रसार और दृढ़ीकरण, बुन्देलखंड में मराठा, अभियान के कारण, बुन्देलखण्ड में मराठा अभियान, भेलसा अभियान, राजस्थान में मराठा प्रभुत्व व प्रभाव का प्रसार, जयपुर में उŸाराधिकार का संघर्ष और गृहयुद्ध जयपुर के ईश्वरीसिंह और माधोसिंह के गृहयुद्ध में मराठों का हस्तक्षेप, पेशवा का नेवाई अभियान, माधोसिंह द्वारा होल्कर की सहायता से ईश्वरीसिंह को परास्त करना और बंगरु का समझौता, ईश्वरीसिंह द्वारा आत्महत्या, माधोसिंह का जयपुर नरेश होना और धन के लिए बढ़ती हुई मराठों की माँगें, जयपुर में मराठों की हत्या और मराठों के आक्रमण की असफलता, राजपूत राज्यों पर मराठों की धन की माँगों का भारी बोझ, मराठों द्वारा जयपुर से धन-वसूल करने के कई प्रयास, मराठों द्वारा उदयपुर राज्य से धन-वसूली, जोधपुर में उŸाराधिकार का संघर्ष, जयप्पा सिधिंया की हत्या, जोधपुर नरेश विजयसिंह की मराठों से संधि, मराठों की राजपूत नीति की समीक्षा, जाट नरेश सूरजमल से मराठों का संघर्ष, मराठे और रुहेले रुहेलों का उत्कर्ष, अवध के नवाब सफदरजंग और रुहेलों की शत्रुता, वजीर सफदरजंग को मराठा सहायता, सफदरजंग का रुहेलों से संघर्ष, मराठों द्वारा सफदरजंग को रुहेलों के विरुद्ध सहायता, मराठों और रुहेलों का युद्ध लखनऊ की संधि, दाभाड़े परिवार का अंत, गुजरात में मराठा शक्ति का प्रसार, मराठे और अंगे्रज, अंग्रेजों के प्रति पेशवा की नीति की समीक्षा, पेशवा बालाजीराव की सैनिक नीति

ंगाल में मराठा-शक्ति और प्रभुत्व का प्रसार

बंगाल प्रान्त, बंगाल पर मराठा अभियान और आक्रमण के कारण, बंगाल पर मराठा आक्रमण, मराठों के हाथों बर्दवान में अलीवर्दीखां की पराजय, मराठों द्वारा अलीवर्दीखाँ काकटवा की ओर पीछा, मुर्शिदाबाद की लूट, बंगाल में मराठों का कलकŸाा व हुगली तक बढ़ता हुआ प्रभाव, मराठा शिविर पर अलीवर्दीखाँ का आकस्मिक हमला और मराठों की क्षति, पेशवा बालाजीराव का बंगाल की ओर सेना सहित प्रस्थान, मुगल सम्राट द्वारा पेशवा को अलीवर्दीखाँ की सहायतार्थ जाने के आदेश, पेशवा बालाजी का बंगाल में प्रवेश और रघुजी भोंसले से भेंट, पेशवा बालाजीराव का अलीवर्दीखाँ से मिलन और समझौता, पेशवा बालाजी और रघुजी भोंसले को मुठभेड़, पेशवा बालाजी और रघुजी में मेल-मिलाप, अलीवर्दीखाँ द्वारा मराठा सेनापतियों की हत्या, अलीवर्दीखां के हाथों रघुजी की पराजय, अलीवर्दीखां के विरुद्ध अफगानों का विद्रोह, बंगाल पर जानोजी भोंसले और साबाजी भोंसले का आक्रमण और पराजय, बंगाल में अस्त-व्यस्तता और आर्थिक दुर्दशा, रघुजी भोंसले और अलीवर्दीखाँ में संधि

मुगल दरबार और दिल्ली क्षेत्र में मराठों का प्रभुत्व

उŸारी भारत में मराठा प्रसार का प्रथम युग, उŸारी भारत में मराठा प्रसार का द्वितीय युग, सम्राट अहमदशाह, ऊधमबाई और जाविदखाँ, मुगल दरबार में दूषित दलबन्दी और षडयंत्रों का वातावरण, अव्यवस्था, अशांति और आर्थिक दिवाला, वजीर सफदरजंग के शत्रुता के कार्य और दिल्ली की दयनीय दशा, सम्राट अहमदशाह और वजीर सफदरजंग में गृहयुद्ध और मराठों से सैनिक सहायता की याचना, मराठों का दिल्ली व दोआब के क्षेत्र में प्रवेश नये वजीर इन्तजाम-उद-दौला और मीरबख्शी इमाद में संघर्ष, बादशाह का सिकन्दराबाद से पालायन और मल्हारराव द्वारा शाही शिविर की लूट, मीरबख्शी इमाद का वजीर नियुक्त होना, आलमगीर द्वितीय का बादशाह होना और सम्राट अहमदशाह का बंदी बनाया जाना, मराठा नीति की समीक्षा, मराठों की लूटपाट, आतंक और बादशाह द्वारा कुछ क्षेत्रों को उन्हें समर्पित कर देना, रघुनाथराव का उŸारी भारत से पूना के लिए प्रस्थान, बादशाह आलमगीर द्वितीय और वजीर इमाद-उल-दौला, बादशाह की दयनीय आर्थिक दशा

अब्दाली के आक्रमण और पंजाब में अफगान-मराठा संघर्ष

अहमदशाह अब्दाली का उत्कर्ष, अहमदशाह अब्दाली के भारत पर आक्रमण के कारण, अहमदशाह अब्दाली के भारत पर आक्रमण, प्रथम आक्रमण, द्वितीय आक्रमण, तृतीय आक्रमण, वजीरा सफदरजंग द्वारा अब्दाली के विरुद्ध मराठों से समझौता, पंजाब में सत्ता संघर्ष, दुव्र्यवस्था और अराजकता, मुगलानी बेगम का सत्ता व पदविहीन होना, अहमदशाह अब्दाली को भारत पर आक्रमण करने के लिए निमंत्रण, अब्दाली का चतुर्थ आक्रमण, मराठों और जाटों द्वारा अब्दाली को रोकने का प्रयास, अब्दाली का दिल्ली में प्रवेश और दिल्ली की नृशंस लूट और आगजनी, अब्दाली द्वारा दिल्ली की प्रशासकीय व्यवस्था, दिल्ली के दक्षिणी क्षेत्रों की लूट, अब्दाली की वापसी, अब्दाली द्वारा लूट की सम्पŸिा का ले जाना, पंजाब और दिल्ली में अब्दाली की प्रशासकीय व्यवस्था, नजीबखाँ सन् 1757 में रघुनाथराव का उत्तर में अभियान, दिल्ली के पाश्र्ववर्ती क्षेत्रों से मराठों द्वारा धन-वसूली, पंजाब में मराठों का सैनिक अभियान और प्रभुत्व, अदीनाबेग द्वारा मराठों को निमंत्रण, मराठों का पंजाब में सैनिक अभियान और विजय, पंजाब में मराठों की समस्याएँ, मराठों द्वारा अदीनाबेग पंजाब का सूबेदार नियुक्त होना, उत्तर पश्चिमी सीमान्त क्षेत्र में मराठा प्रभुत्व और सत्ता का प्रसार, पंजाब में दŸााजी सिन्धिया, पंजाब में मराठों द्वारा प्रशासकीय और सैनिक व्यवस्था, साबाजी सिंधिया का पंजाब से पलायन, दŸाा जी सिंधिया और नजीबुद्दौला की भेंट, सूकरताल में दŸााजी सिंधिया और नजीबुद्दौला में संघर्ष, वजीर इमाद-उल-मुल्क द्वारा बादशाह आलमगीर का वध और शाहजहाँ तृतीय का राज्यारोहण

पानीपत का तृतीय युद्ध

पेशावर और कटक तक मराठा प्रभुत्व, रघुनाथराव के द्वितीय सैनिक अभियान के परिणाम, मराठों की शिथिल ढुलमुल, विस्तारवादी नीति के दुष्परिणाम, वे परिस्थितियाँ जिनके कारण पानीपत का युद्ध हुआ, अहमदशाह अब्दाली का पाँचवाँ आक्रमण, अब्दाली और दŸााजी में तलवाड़ी का युद्ध, अब्दाली और दŸााजी सिंधिया में बरारीघाट का युद्ध, सिकन्दराबाद के समीप अब्दाली और मल्हारराव में युद्ध, अब्दाली द्वारा सहायता व सहयोग के लिए विभिन्न नरेशों से कूटनीतिक चर्चाएँ और अहमदखां बंगश तथा शुजाउद्दौला का उससे मिल जाना, अब्दाली द्वारा सूरजमल जाट और राजपूतों से मराठों के विरुद्ध सहायता प्राप्त करने के प्रयास, पेशवा बालाजी राव द्वारा सदाशिवराव भाऊ के नेतृत्व में उŸारी भारत में मराठा सेना भेजना, पानीपत के तृतीय युद्ध के कारण, पानीपत के युद्ध के पूर्व की घटनाएँ, सदाशिवराव भाऊ का मराठा सेना सहित उत्तर भारत में प्रवेश और सहायता के लिए विभिन्न नरेशों को निमंत्रण, शाही परिवार की दयनीय दशा और दिल्ली में भगदड़, अब्दाली का दिल्ली पर अधिकार, सदाशिवराव भाऊ का दिल्ली पर अधिकार, सूरजमल द्वारा मराठा पक्ष का त्याग, अब्दाली -मराठा संधि-चर्चा, भाऊ की दयनीय स्थिति, शाहआलम द्वितीय का बादशाह होना, कुंजपुरा पर भाऊ का अधिकार, अहमदशाह अब्दाली का पानीपत पहुँचना, सदाशिवराव भाऊ का पानीपत पहुँचना, पानीपत में मराठों और अब्दाली के सैन्य-दल और सैनिक शिविर, युद्ध के पूर्व सैनिक झड़पे और मराठों की भारी क्षति, 10 नवम्बर, 1760 को पहली बड़ी मुठभेंड़, 22 नवम्बर का युद्ध, 7 दिसम्बर का युद्ध और बलवन्तराव मेहन्दले की मृत्यु, 17 दिसम्बर का युद्ध और गोविन्द पंत की मृत्यु, मराठा कोष का अब्दाली के हाथों में पड़ जाना, बीस सहस्र मराठों की नृशंस कत्लेआम, अब्दाली द्वारा गहन गश्त और घेराबंदी, भाऊ की विषम परिस्थिति और उसके द्वारा अब्दाली को संधि-प्रस्ताव, युद्ध करने का निर्णय, युद्ध के लिए योजना, मराठा युद्ध-क्षेत्र में दोनों पक्षों की स्थिति पानीपात का युद्ध (14 जनवरी, 1761), मराठा सेना के बायें पक्ष का युद्ध, केन्द्र का युद्ध, मराठा सेना के दाहिने पक्ष का युद्ध, अंतिम निर्णायक युद्ध, मराठों का नरसंहार, अब्दाली द्वारा नृशंस कत्लेआम और लूट

तृतीय पानीपत युद्ध के परिणाम और महत्व

पानीपत के युद्ध के बाद अब्दाली दिल्ली में, अब्दाली द्वारा दिल्ली में व्यवस्था और स्वदेश को प्रस्थान, अब्दाली के साथ समझौता, अब्दाली द्वारा मराठों से संधि, अहमदशाह अब्दाली का छठा और सातवां आक्रमण, पानीपत के तृतीय युद्ध का महत्व, मुगल राजसत्ता और शासन का प्रारम्भ, और अंत पानीपत की रणभूमि में हुआ, पानीपत का युद्ध राजनीतिक दृष्टि से अनिर्णीत और महत्वहीन था, मराठों ने गौरवशाली यशस्वी कारण के लिए युद्ध किया, पानीपत के युद्ध में मराठों की अप्रत्यक्ष रूप से विजय हुई थी, पानीपत की पराजय मराठों के लिए नैतिक विजय थी, पानीपत का युद्ध अनिवार्य था, पानीपत का युद्ध मराठों की विदेश नीति का अनिवार्य और दुखद परिणाम था, पानीपत के युद्ध के लिए भारतीय अफगानों (पठानों) और नजीबुद्दौला का उŸारदायित्व, पानीपत के युद्ध में मराठों की पराजय अवश्यभावी थी, पानीपत का तृतीय युद्ध भारतीय इतिहास में युगान्तकारी घटना है, मराठों पर पानीपत के युद्ध का प्रभाव अस्थायी और सीमित, पानीपत की पराजय का प्रभाव मराठा शक्ति पर स्थायी और घातक हुआ, पानीपत की पराजय के बाद मराठा शक्ति पुनः उभर गयी, पानीपत के तृतीय युद्ध के परिणाम, मराठा धन -जन और सैन्य शक्ति की गहरी क्षति, मराठा सम्प्रभुता और शक्ति को गहरा आघात, मराठों का संकुचित राज्य और सीमित प्रभाव क्षेत्र, मराठा सैन्य-बल और शक्ति की अजेयता का खण्डन, नवीन छोटे-छोटे स्वतंत्र मराठा राज्य, मुगल साम्राज्य का विघटन, मुगल साम्राज्य के यश-गौरव और शाही प्रतिष्ठा, और सम्मान का अंत, अब्दाली की शक्ति का ह्रास, सिक्खों का उत्कर्ष, निजाम और हैदरअली का उत्कर्ष, ब्रिटिश राजसत्ता और शक्ति का उत्कर्ष, पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों की पराजय अथवा अब्दाली की विजय के कारण, मराठों की दोषपूर्ण सैन्य-व्यवस्था और संगठन, सदाशिवराव भाऊ की विवेकहीन और अदूरदर्शिता की दोषपूर्ण सामरिक नीति, मराठों की पराजय के लिए सदाशिवराव भाऊ का उŸारदायित्व, मराठों की त्रुटिपूर्ण प्रशासनिक व्यवस्था, दोषपूर्ण मराठा राजनीति, अपर्याप्त सुरक्षा-व्यवस्था, अब्दाली का श्रेष्ठ सेनानायकत्व, नजीब की शत्रुता, विश्वासघात और प्रतिहिंसा, मुस्लिम अमीरों और शासकों की जिहाद भावना और अब्दाली को सहयोग

पेशवा बालाजीराव के अंतिम दिन और उसका मूल्यांकन

उत्तर भारत की ओर पेशवा का प्रस्थान, पेशवा बालाजीराव का दक्षिण लौटना, बालाजीराव का निधन, पानीपत के युद्ध केे लिए पेशवा बालाजी राव का उŸारदायित्व,अप्रैल 1755 की मुगल मराठा संधि को मान्यता, उŸारी भारत की समस्याओं के प्रति बालाजीराव की उपेक्षा, पेशवा द्वारा भाऊ की पर्याप्त आर्थिक सहायता नहीं करना, मराठा संघ का विघटन, अक्षम और भ्रष्ट गोविन्द पंत बुन्देले, दुर्बल केन्द्रीय शक्ति, युद्ध और अभियानों में स्त्रियाँ, पेशवा बालाजीराव के शासनकाल में मराठा साम्राज्य अपने प्रसार, आन्तरिक व्यवस्था और भौतिक सम्पदा की दृष्टि से शीर्ष बिन्दु पर पहुँच गया था, बाजीराव के नेतृत्व में मराठा प्रभुत्व का प्रसारण, पेशवा बालाजीराव के शासनकाल में मराठा साम्राज्य का उत्कर्ष बुन्देलखंड और मालवा में मराठा प्रभुत्व, राजस्थान में मराठा आतंक, मुगल दरबार में मराठा प्रभुत्व, मराठों द्वारा सैनिक सहायता, उŸारी भारत के विभिन्न क्षेत्रों में मराठा अधिकारी और वकील, मराठा -मुगल संधि (सन् 1752) और उसका महत्व, मराठों द्वारा आलमगीर को सम्राट बनाना, पंजाब और सीमान्त प्रदेश में मराठा राजसत्ता और प्रभुत्व का विस्तार, दक्षिण में कर्नाटक अभियान, निजाम की पराजय और मराठों को विस्तृत क्षेत्रों की प्राप्ति, मराठा साम्राज्य का चरम उत्कर्ष, आंतरिक व्यवस्था में पेशवा की सर्वोपरिता, प्रशासनिक व्यवस्था, पेशवा बालाजीराव का मूल्यांकन, प्रशंसनीय और प्रभावशाली व्यक्तित्व, विलासी जीवन, कुशल प्रशासन, पारिवारिक झगड़ों व फूट का सूत्रपात, बालाजीराव में श्रेष्ठतम सैनिक गुणों का अभाव, मराठा राज्य और प्रभुत्व का अधिकतम विस्तार

मराठों के अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध (सन् 1710 ई. से 1761 ई. तक)

मराठे और राजपूत, राजपूतों के प्रति मराठा-नीति के प्रमुख लक्षण, शाहू द्वारा राजपूत राज्यों के मधुर मैत्री सम्बन्ध, पेशवा बालाजी विश्वनाथ द्वारा राजपूतों का सहयोग प्राप्त करने का प्रयास, गुजरात और मालवा में मराठों के बढ़ते हुए आक्रमण और मराठा-राजपूत सम्बन्धों पर इसका कुप्रभाव, महाराजा संग्रामसिंह और जयसिंह द्वारा मराठों से प्रस्तावित समझौता (सन् 1726-1730), जयसिंह द्वारा मराठों से समझौता (फरवरी 1733), गुजरात में मराठा -राजपूत संघर्ष, राजपूतों ंके प्रति मराठा दृष्टिकोण में परिवर्तन, मराठों द्वारा महाराणा जगतसिंह से धन-वसूली, राजस्थान में उŸाराधिकार के लिए गृह-युद्ध, बूँदी में मराठों में हस्तक्षेप और राजपूतों का हुरड़ा में मराठा विरोधी सम्मेलन, राजस्थान में मराठों के आक्रमण और धन-प्राप्ति, मराठों के प्रति जयसिंह की समझौते की नीति, मराठों द्वारा राजस्थान प्रवेश और राजपूत राज्यों से धन-वसूली, जयपुर से उŸाराधिकार के युद्ध में मराठों का सक्रिय हस्तक्षेप, राजपूत राज्यों से मराठों द्वारा लाखों रुपयों की वसूली, उदयपुर राज्य से धन-वसूली, जोधपुर राज्य के उŸाराधिकार के संघर्ष में मराठों का हस्तक्षेप और धन-वसूली, बूँदी और कोटा पर मराठों का राजनीतिक और आर्थिक दबाव, राजपूत राज्यों पर मराठों का सैनिक दबाव और धन-वसूली, मराठों की राजपूत नीति की समीक्षा, मराठा-मुगल सम्बन्ध, शाहू का बंदी जीवन से मुक्त होना और सतारा में मराठा छत्रपति बनना, मुगल सम्राट बहादुरशाह द्वारा शाहू को मान्यता पर शाहू के प्रति उदासीन तटस्थता की नीति, दाऊदखाँ पन्नी द्वारा चैथ के लिए शाहू से समझौता, दक्षिण में निजाम-उल-मुल्क सूबेदार और उसके द्वारा मराठा -शक्ति का दमन, सैयद हुसैनखाँ दक्षिण का मुगल सूबेदार और उसके द्वारा मराठों से संधि, पेशवा बालाजी विश्वनाथ की दिल्ली की यात्रा और मुगल सम्राट से शाहू के लिए सनदें प्राप्त करना (सन्1719), पेशवा बाजीराव और उसकी साम्राज्यवादी व विस्तारवादी नीति, मालवा और गुजरात में मराठा-मुगल संघर्ष और मराठा सत्ता का विस्तार, मराठों द्वारा राजस्थान में मुगल सत्ता को क्षीण करना, नादिरशाह का आक्रमण और मुगलों के प्रति मराठा-नीति में परिवर्तन, मराठा-मुगल-संधि-समझौते का प्रयास (सन्1736), बाजीराव का दोआब और दिल्ली पर धावा, पेशवा-बालाजीराव की विस्तारवादी नीति, मराठों द्वारा वजीर सफदरजंग को रुहेलों के विरुद्ध सहायता, मराठा-मुगल संधि (सन्1752),संधि का महत्व, इंतजाम-उद्-दौला नवीन वजीर (सन्1753), वजीर इंतजाम-उद-दौला और मीरबख्शी इमाद संघर्ष, बादशाह का सिकन्दराबाद से पलायन और मल्हारराव द्वारा शाही शिविर की लूट, इमाद-उद्-दौला वजीर, मराठों की सहायता से आलमगीर का बादशाह होना मराठों को धन व गाँव प्राप्त होना, पंजाब में सत्ता संघर्ष, अहमदशाह अब्दाली का आक्रमण (सन् 1756-57), मराठों का मुगल वजीर से समझौता (जून 1757), मराठों का दिल्ली पर अधिकार, शाही सत्ता और दबदबे का लोप, मराठों का पंजाब में प्रसार, मराठों की विस्तारवादी नीति का दुष्परिणाम, बादशाह आलमगीर द्वितीय का वध, अब्दाली का आक्रमण (सन्1759-60), सदाशिवराव भाऊ का दिल्ली पर अधिकार, मराठों द्वारा शाह आलम द्वितीय को बादशाह बनाना, पानीपत का तृतीय युद्ध और मराठों की पराजय, उत्तर भारत में मुस्लिम राज-शक्तियाँ और मराठे, रुहेले शासक, नजीबखाँ, अवध का सूबेदार सआदतखाँ, सफदरजंग, शुजाउद्दौला, पानीपत के तृतीय युद्ध के पूर्व मराठों के विरुद्ध मुस्लिम राज-शक्तियों का संगठन और गुटबंदी, मुगल-अफगान संघर्ष, मराठा-अफगान संघर्ष, अहमदशाह अब्दाली का आक्रमण और नजीबुद्दौला का मीरबख्शी और वजीर-ए-मुतलक नियुक्त होना (सन् 1757), मराठों का दोआब के इलाकों पर अधिकार और नजीबुद्दौला की मीरबख्शी के पद से मुक्ति तथा दिल्ली से निष्कासन, पंजाब और सीमान्त क्षेत्र में मराठा प्रभुत्व और राजसत्ता का विस्तार, नजीबुद्दौला और शुजाउद्दौला का मराठा विरोधी संगठन, अब्दाली का पांचवाँ आक्रमण और मराठों की युद्धों में पराजय (सन् 1759), नजीबुद्दौला, अहमदखाँ बंगश ओर शुजाउद्दौला द्वारा अब्दाली का पक्ष ग्रहण करना, मराठा-अब्दाली संघर्ष की अनिवार्यता, मराठों के विरुद्ध मुस्लिम राजशक्तियों का सशक्त संगठन, पानीपत का तृतीय युद्ध, मराठा-जाट सम्बन्ध, जयपुर के उŸाराधिकार के युद्ध में सूरजमल और मराठे, सफदरजंग को सूरजमल द्वारा सैनिक सहायता, मराठों द्वारा सूरजमल के कुम्भेर दुर्ग का घेरा, मराठों और सूरजमल का मैत्री समझौता (सन्1754), अब्दाली का आक्रमण और सूरजमल, वजीर-उल-मुल्क और मराठों की त्रिगुटीय मित्रता, अब्दाली का पाँचवाँ आक्रमण और मराठों को सूरजमल के सुझाव, अब्दाली के विरुद्ध प्रारम्भिक युद्धों में सूरजमल द्वारा मराठों की सहायता, सूरजमल की अप्रसन्नता द्वारा मराठा पक्ष का त्याग, पानीपत के तृतीय युद्ध के बाद सूरजमल द्वारा मराठों की सहायता, सूरजमल द्वारा अपने राज्य और शक्ति में वृद्धि

पतन

पेशवा माधवराव

दक्षिण की समस्याएँ, पेशवा पद पर माधवराव की नियुक्ति, तत्कालीन परिस्थितियाँ और माधवराव की समस्याएँ, अहमहशाह अब्दाली का स्वदेश लौट जाना, मराठों में प्रौढ़ कुशल, नेतृत्व का अभाव, निजामअली और हैदरअली की मराठों के प्रति शत्रुता, राघोबा की महत्वाकांक्षा, स्वार्थपरता और राजद्रोहात्मक गतिविधियाँ, मराठा सरदारों में दो दल और गृह-कलह का प्रारम्भ, अंग्रेजों की महत्वाकांक्षा और शत्रुता, धन का अभाव और ऋण का भार, निजाम-मराठा-संघर्ष, जून 1761 से सितम्बर 1762 संघर्ष का प्रथम चरण, निजामअली की पराजय, रघुनाथराव की असामयिक उदारता और निजामअली से संधि, संघर्ष का द्वितीय चरण, निजामअली की माँगें, मराठों की परिस्थिति और नीति, सैनिक अभियान, लूट-पाट और संघर्ष, निजामअली द्वारा पूना पर आक्रमण और पूना का विध्वंस, राक्षसभुवन का निर्णायक युद्ध और निजामअली की पराजय, औरंगाबाद की संधि, 25 सितम्बर, 1763, औरंगाबाद की संधि का महत्व, पेशवा माधवराव द्वारा नियुक्तियाँ, निजामअली से भेंट और मित्रता, सन् 1766, रघुनाथराव की राजद्रोहात्मक गतिविधियाँ और विद्रोह, निजामअली के साथ संधि में रघुनाथराव की स्वार्थभरी चाल, गोपिकाबाई द्वारा अधिकारियों में परिवर्तन, रघुनाथराव द्वारा गृह-युद्ध की तैयारी, पेशवा द्वारा रघुनाथराव से समझौता करने के प्रयास, रघुनाथराव द्वारा मराठा सरदारों और निजामअली से सहायता प्राप्त करना, घोड़ नदी तट का युद्ध, आलेगाँव का युद्ध, आलेगाँव की सभा में पेशवा द्वारा रघुनाथराव को आत्म-समर्पण, रघुनाथराव द्वारा प्रशासन और पदों में परिवर्तन, रघुनाथराव द्वारा मिरज दुर्ग पर अधिकार करना, मराठा-निजाम संघर्ष में रघुनाथराव, पुरन्दर केे कोलियों के विद्रोह से पेशवा और रघुनाथराव में तनाव, रघुनाथराव द्वारा हैदरअली के साथ संधि की उदार और सरल शर्तें, उत्तर भारत में रघुनाथराव का असफल अभियान, सन् 1766-67 पेशवा के विरुद्ध रघुनाथराव की घृणित विद्रोहात्मक गतिविधि, रघुनाथराव और पेशवा में परस्पर तनाव, संदेह और कटुता के कारण, रघुनाथराव के समर्थक अधिकारियों व सरदारों द्वारा पेशवा की उपेक्षा, राज्य के विभाजन की माँग, उत्तर भारत में रघुनाथराव की विफलता और इससे उत्पन्न ईष्र्या-द्वेष, रघुनाथराव द्वारा अपनी विफलता का उŸारदायित्व माधवराव पर थोपना, आनन्दीबाई द्वारा रघुनाथराव को भड़काना, माधवराव द्वारा समझौते के प्रयास, माधवराव और रघुनाथराव में अल्पकालीन समझौता, समझौते के प्रयास, माधवराव और रघुनाथराव में अल्पकालीन समझौता, समझौते की समीक्षा, रघुनाथराव द्वारा पेशवा के विरुद्ध षड़यंत्र व युद्ध की तैयारी करना, रघुनाथराव की ढोडप के युद्ध में पराजय, रघुनाथराव में समर्थकों को दण्ड, रघुनाथराव का बंदी का जीवन, रघुनाथराव की मुक्ति और माधवराव का रघुनाथराव से समझौता, रघुनाथराव का पुनः बंदी बनाया जाना, पेशवा-भोंसलेह-संघर्ष, भोंसले परिवार और उसकी महत्वाकांक्षा, जानोजी भोंसले की पेशवा विरोधी गतिविधियाँ, पेशवा द्वारा जानोजी को 32 लाख की जागीर देना, पेशवा माधवराव द्वारा जानोजी भोंसले के विरुद्ध सैनिक अभियान, सन् 1765-66, जानोजी भोंसले द्वारा पेशवा से समझौता, पेशवा द्वारा जानोजी भोंसले के विरुद्ध पुनः सैनिक अभियान और युद्ध, जानोजी भोंसले और पेशवा में कनकपुर का समझौता, कनकपुर की संधि का महत्व, दामाजी गायकवाड़ का देहान्त

पेशवा माधवराव के कर्नाटक अभियान तथा अंग्रेज विभीषिका

कर्नाटक में हैदरअली का उत्कर्ष, हैदरअली क महत्वाकांक्षा, मराठा क्षेत्रों पर हैदरअली द्वारा अतिक्रमण, कर्नाटक अभियान, कर्नाटक अभियान के कारण, प्रथम कर्नाटक अभियान, सन् 1762-63, द्वितीय कर्नाटक अभियान, फरवरी 1764 से 30 मार्च 1765, पेशवा द्वारा रघुनाथराव को हैदरअली के विरुद्ध संघर्ष में आने का निमंत्रण, हैदरअली के विरुद्ध कड़ा तीव्र संघर्ष, अन्तापुर की संधि, 30 मार्च, 1765, संधि की समीक्षा, तृतीय कर्नाटक अभियान, जनवरी 1767 से मई 1767, संधि, मई 1767, चैथा कर्नाटक अभियान, सन् 1769-1772, अभियान के कारण, पेशवा माधवराव का चतुर्थ कर्नाटक अभियान, गोपालराव के शिविर पर हैदरअली का आक्रमण और हैदरअली द्वारा श्रीरंगपट्टम दुर्ग में शरण, त्र्यम्बकराव पेठे के नेतृत्व में अभियान और आक्रमण, चिन्कुरली या मोती तलाब का युद्ध, 5 मार्च 1771, मराठों द्वारा हैदरअली के इलाकों को रोंदना, तंजौर नरेश, अरकाट के नवाब व अन्य शासकों से कर वसूली, हैदरअली से संधि के कारण, हैदारअली से संधि, सन् 1772, कर्नाटक अभियान की समीक्षा, प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध, हैदर-मराठा-संघर्ष में अंग्रेजों का रुख, अंग्रेज विभीषिका, रघुनाथराव द्वारा अंग्रेजों से सहायता प्राप्त करने के प्रयास, अंग्रेजों द्वारा मालवनगढ़ पर अधिकार, पेशवा से सहायता प्राप्त करने के अंग्रेजों के प्रयास, पूना में अंग्रेज दूत थामस मोस्टिन

उत्तर भारत में मराठा सत्ता का पुनरागमन

उत्तर भारत की राजनीतिक दशा, पंजाब और सीमान्त प्रदेश में अहमदशाह अब्दाली की सत्ता का अंत, नजीबुद्दौला, अहमदखां बंगश और हाफिज रहमतखाँ मराठों के शत्रु, शुजाउद्दौला और शाहआलम द्वारा बुन्देलखण्ड के कुछ भागों पर अधिकार, बढ़ती हुई जाट राजशक्ति, जयपुर का माधोसिंह मराठा विरोधी, अंग्रेजों का बढ़ता हुआ प्रभुत्व और राज्य, मालवा में मराठा-शक्ति क्षीण, पानीपत के युद्ध के बाद उत्तर भारत में मराठों के अग्रसर नहीं होने के कारण, उत्तर भारत में मराठा सत्ता की पुनस्र्थापना, मल्हारराव होल्कर के अभियान और आक्रमण, जाट राजसत्ता और मराठे, सशक्त जाट नरेश जवाहरसिंह और मराठे, जाट राज्य में उŸाराधिकार का संघर्ष, जाट सिंहासन के दावेदार नवलसिंह और रणजीतसिंह तथा मराठे, रघुनाथराव का उत्तर भारत में अभियान, सन् 1766-1767, गोहद का घेरा, जवाहरसिंह से युद्ध़-विराम संधि, सन् 1767, रघुनाथराव का दक्षिण लौटना, रघुनाथराव द्वारा अहिल्याबाई होल्कर के विरुद्ध कुचक्र, गुजरात में रघुनाथराव, रघुनाथराव के अभियान के परिणाम, महादजी सिंधिया और तुकोजी होल्कर द्वारा उत्तर भारत में मराठा राजसत्ता की पुनस्र्थापना के प्रयास, 1769-70, रामचंद्र गणेश और विसाजी कृष्ण का उत्तर भारत का अभियान, रामचंद्र गणेश के उत्तर भारत के अभियान के उद्देश्य, जाट राज्य में उŸाराधिकार के गृह-युद्ध में मराठों का हस्तक्षेप और सफलता, मराठा सैनिक शिविर में मत-विभिन्नता, नजीबुद्दौला से मराठों की संधि, सन् 1770, जाटों की मराठों से संधि, 8 सितम्बर 1770, दोआब में मराठों की विजयें, नजीबुद्दौला का मराठों से विश्वासघात और उसका निधन, जबेताखाँ मीरबख्शी के पद पर, मराठों का रुहेलों और अहमदखाॅं बंगश से युद्ध ओर विजय, जाटों, रुहेलों, अफगानों एवं राजपूतों के विरुद्ध मराठों की सफलता का महत्व, पेशवा माधवराव का 21 दिसम्बर 1770 का पत्र, मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय और मराठे, शाहआलम, बक्सर का युद्ध और इलाहाबाद की संधि, शाहआलम अंग्रेजों के संरक्षण में दिल्ली लौटने की शाहआलम की व्यग्रता और आतुरता, सन् 1766 में मराठों द्वारा शाहआलम को दिल्ली लाने का प्रयास और अंग्रेजों द्वारा विरोध, शाहआलम द्वारा मराठा संरक्षण ग्रहण करने के कारण, दिल्ली पर मराठों का अधिकार, शाहआलम के प्रतिनिधियों द्वारा मराठों से समझौता, दिल्ली में शाहआलमह की वापसी और मराठों का संरक्षण, दिल्ली पर मराठों का अधिकार और सर्वोपरिता, जबेताखाँ और रुहेलों पर मराठों के आक्रमण व युद्ध और विजय, शुजाउद्दौला और रुहेलों में संधि, मराठों को कड़ा और इलाहाबाद की सनद और जबेताखाँ मीरबख्शी, मराठों के उत्तर भारत के अभियानों की उपलब्धियाँ और महत्व

कुछ महत्वशाली घटनाएँ

नकली सदाशिवराव, पुरन्दर के कोलियों का विद्रोह और उससे उत्पन्न समस्या, भवनराव प्रतिनिधि, बापूजी नायक की शक्ति का दमन, उŸाराधिकार की समस्याएँ, सिन्धिया राज-परिवार के उŸाराधिकार की समस्या और महादजी सिंधिया का उत्कर्ष, गायकवाड़ राज-परिवार के उŸाराधिकार की जटिल समस्या, जानोजी भोंसले के उŸाराधिकार की समस्या, कोल्हापुर में उŸाराधिकार का प्रश्न, जंजीरा के सिद्दी से संधि, सन् 1767, मोस्टिन का द्वितीय दूतमण्डल, मोस्टिन की भेंट और चर्चाएँ, सतारा के छत्रपति के साथ माधवराव का उदारतापूर्ण व्यवहार

पेशवा माधवराव का निधन और उसका मूल्यांकन

पेशवा माधवराव का असाध्य क्षयरोग, पेशवा माधवराव की अंतिम अभिलाषा और आदेश, माधवराव का निधन, माधवराव का मूल्यांकन, प्रशंसनीय सद्गुण-सम्पन्न व्यक्तित्व, सादगी व पवित्रता-प्रिय धर्मनिष्ठ पेशवा, सफल और कुशल प्रशासक, माधवराव की उपलब्धियाँ, माधवराव का निधन, मराठा साम्राज्य पर वज्रपात, मराठा साम्राज्य ढीला-ढाला, लुंज-पुंज और असंगठित समूह

पेशवा नारायणराव(सन् 1772 ई. से अगस्त 1773 ई. तक)

नवारायणराव, नारायणराव की पेशवा पद पर नियुक्ति और प्रशासन, संचालन, नारायणराव के शासन के प्रारम्भ के समय राजनीतिक दशा, उत्तर भारत के राजनीतिक दशा, दक्षिण भारत की राजनीतिक दशा, अंग्रेजों का शत्रुवत् रुख, जंजीरा का सिद्दी, पूना की संकटापन्न परिस्थिति, दुर्बल दयनीय आर्थिक दशा, नारायणराव के प्रारम्भिक प्रशासकीय कार्य अंग्रेजों के विरुद्ध नारायणराव के कार्य, रघुनाथराव, रघुनाथराव का पेशवा नारायणराव के विरुद्ध षड़यंत्री होने के कारण, नागपुर के भोंसले परिवार में उŸाराधिकार के लिए प्रतिद्वन्द्वी दावेदारों का संघर्ष, नागपुर के दूतों का रघुनाथराव के लिए षड़यंत्र, नारायणराव पेशवा द्वारा साबाजी को जानाजी भोंसले का उŸाराधिकारी मानना और उसे सेना साहब सूबा के पद पर नियुक्त करना, नारायणराव की हत्या का षड़यंत्र, पेशवा नारायणराव की हत्या, न्यायाधीश रामशास्त्री द्वारा पेशवा हत्याकाण्ड की जाँच और हत्या का उŸारदायित्व, हत्यारों को दण्ड

रघुनाथराव की अस्थायी, अस्थिर पेशवाई

रघुनाथराव का पेशवा बनना, रघुनाथराव के प्रति प्रारम्भिक विरोध, गंगाबाई की हत्या के प्रयत्न और उसकी सुरक्षा, मराठा शत्रुओं के विरुद्ध रघुनाथराव की असफल सैनिक अभियान, रघुनाथराव के विरुद्ध संगठित आंदोलन का सूत्रपात, बड़े भाइयों (बरभाइयों, बारह भाइयों) की परिषद, रघुनाथराव का पलायन, माधवराव नारायणराव का जन्म, सवाइ्र माधवराव पेशवा पद पर नियुक्त, भगोडे रघुनाथराव का पीछा, रघुनाथराव के विवाद में सिंधिया और होल्कर की मध्यस्थता, रघुनाथराव से समझौते की चर्चाएँ और उसका पलायन, माही नदी तट पर अडास का युद्ध और रघुनाथराव की पराजय

मराठा राज्य संकटग्रस्त

आन्तरिक पारस्परिक मतभेद और विद्रोहात्मक गतिविधियाँ, रघुनाथराव और आनन्दीबाई, मराठा राज्य पर बाहरी आक्रमणों का खतरा, कोल्हापुर राज्य की शत्रुवत् गतिविधियाँ, आर्थिक संकट 19 जून, 1776, की सभा, धन-संग्रह ढोंगी सदाशिवराव भाऊ का उत्पात और उसका अंत, प्रतिशोध और विरोधियों का दमन व दण्ड, महादजी सिंधिया और तुकोजी होल्कर, हैदरअली और मराठे, हैदरअली की नीति और अकारण आक्रमण, हैदरअली के विरुद्ध मराठा सेनाओं का आक्रमण और संघर्ष, हैदरअली के साथ संधि, अन्य घटनाएँ, बारहभाई समिति का अंत, राजमाता गंगाबाई की मृत्यु, पेशवा सवाई माधवराव का यज्ञोपवीत संस्कार, मोरोबा फड़नीस का विद्रोह, मोरोबा और सखाराम में नाना के विरुद्ध गुप्त समझौता, मोस्टिन द्वारा मोरोबा को सहायता का आश्वासन, मोरोबा का उद्देश्य, मोरोबा द्वारा सर्वोच्च सत्ता प्राप्त करने का प्रयास, मोरोबा का पुरन्दर पर आक्रमण, नाना फड़नवीस और मोरोबा में समझौता, मोरोबा को सत्ता हस्तरण, फ्रांसीसी राजदूत सेन्ट ल्यूबिन का पूना से निष्कासन, मोरोबा को अंग्रेजों का असहयोग, मोरोबा का प्रशासन, नाना फड़नवीस की नीति और योजना, महादजी के प्रति मोरोबा की शत्रुता की नीति, महादजी सिंधिया का दबदबा और पुरन्दर में भावी योजना के लिए बैठक, मोरोबा का बंदी बनाया जाना, मोरोबा के सहयोगियों को दण्ड, नाना फड़नवीस पुनः सत्ता धारी, सखाराम बापू का अंत, प्रशासन और सत्ता में नाना फड़नवीस सर्वोपरि

अंग्रेज मराठा संघर्ष(सन् 1773 ई. से 1782 ई. तक)

अंग्रेज-मराठा-संघर्ष के कारण, अंग्रेजों की साम्राज्यवादी और विस्तारवादी नीति, अंग्रेजों का थाणा पर अकारण आक्रमण और आधिपत्य, दिसम्बर, 1773, सूरत की संधि, 6 मार्च 1775, युद्ध की घटनाएँ - नापार का युद्ध, समुद्री युद्ध, रेग्युलेटिंग एक्ट द्वारा अंग्रेज कंपनी के स्वरूप में परिवर्तन, वारेन हेस्टिंग्ज द्वारा बम्बई सरकार को मराठा युद्ध के विरुद्ध आदेश, युद्ध बंद होना, अंगे्रज राजदूत कर्नल अपटन से संधि, चर्चा, पुरन्दर की संधि, 1 मार्च 1776, संधि की समीक्षा, पुरन्दर का दरबार और एकता व संगठन का प्रयास, 19 जून 1776, अंग्रेजों की राजनीतिक धूर्तता, पूना की पेशवा सरकार के विरुद्ध रघुनाथराव की शत्रुवत् गतिविधियाँ, अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियाँ, अंग्रेजों के विरुद्ध और भारत में अंग्रेजों की नीति में परिवर्तन, नाना फड़नवीस द्वारा अंग्रेजों की शत्रुवत चुनौती का सामना, सेंट ल्युबिन का स्वागत और अंग्रेज विरोधी चर्चाएँ, मोस्टिन की शत्रुवत गतिविधियाँ, फ्रांस से ल्युबिन के मारफत संधि नहीं करने का नाना फड़नवीस पर आरोप, अंग्रेजों द्वारा मराठों के विरुद्ध युद्ध (प्रथम अंग्रेज-मराठा युद्ध), मार्च 1778 से मई 1782, वे परिस्थितियाँ और कारण, जिनसे युद्ध हुआ, अंग्रेजों और मराठों के बीच युद्ध की पुनरावृŸिा, मार्च, 1778, युद्ध की घटनाएँ, बम्बई सरकार द्वारा रघुनाथराव से नवीन संधि, 24 नवम्बर, 1778, बम्बई की अंग्रेज सेना का मराठों के विरुद्ध प्रस्थान, नाना फड़नवीस द्वारा युद्ध-हेतु सैनिक संगठन और सामरिक तैयारियाँ, इलाहाबाद से प्रस्थान करती हुई अंग्रेज सेना और उसकी क्षति, तलेगाँव का युद्ध और बम्बई की अंग्रेज सेना की पराजय, बड़गाँव की संधि, 16 जनवरी, 1779, बड़गाँव की संधि का महत्व, रघुनाथराव द्वारा महादजी से समझौता, रघुनाथराव का पलायन और पुनः वह अंग्रेजों की शरण में, हेस्टिंग्ज द्वारा बड़गाँव की संधि का विरोध और नवीन संधि का प्रस्ताव, अंग्रेजों द्वारा मराठों के विरुद्ध युद्ध की तैयारी व योजनाएँ और फतेसिंह गायकवाड़ से संधि, अंग्रेज विरोधी संघ, नाना फड़नवीस द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध अन्य राजशक्तियों से सहायता प्राप्त करने के प्रयास, अंग्रेज विरोधी संघ की दुर्बलता और संघ के सदस्यों की स्वार्थपरता, हेस्टिंग्ज की कूटनीति और अंग्रेज विरोधी संघ का विघटन, भोंसले का विश्वासघात, निजाम का अंग्रेज विरोधी संघ से पृथक होना, फतेसिंह गायकवाड़ का अंग्रेजों के पक्ष में हो जाना, युद्ध की घटनाएँ, गुजरात में युद्ध का मोर्चा, महादजी द्वारा फार्मर और स्टुअर्ट की मुक्ति तथा अंग्रेजों से संधि करने की राजनीतिक चाल, अंग्रेजों और मराठों में पुनः युद्ध, मराठों और अंग्रेजों में बड़ौदा के पास, अनिर्णायक युद्ध, बम्बई के समीप युद्ध मोर्चा मद्रास-कर्नाटक का मोर्चा, मालवा का मोर्चा, हेस्टिंग्ज की निराशा, हेस्टिंग्ज द्वारा संधि के लिए अभियान, अंग्रेजों और महादजी के बीच विराम संधि, 13 अक्टूबर 1781, नाना फड़नवीस के पास संधि के प्रस्ताव, महादजी और एण्डरसन द्वारा संधि का स्वरूप निश्चित करना, सालबाई की संधि, 17 मई, 1782, सालबाई की संधि के प्रति नाना का विरोध, सालबाई की संधि का महत्व और उसकी समीक्षा, रघुनाथराव का अंत

मराठा-टीपू युद्ध (सन् 1783 ई. से 1787 ई.)

हैदरअली और फ्रांसीसी सेना का अंग्रेजों से युद्ध, सन् 1782, मराठों का हैदरअली के साथ विश्वासघात और इसका दुष्परिणाम, टीपू और अंग्रेजों में मंगलौर की संधि, मंगलौर की संधि की समीक्षा, निजाम-मराठा समझौता, प्रतिहिंसा से प्रेरित टीपू का आक्रमण, नरगुण्ड और किट्टूर पर आक्रमण और भीषण बर्बर अत्याचार, मराठों का टीपू के विरुद्ध प्रत्याक्रमण, नाना फड़नवीस द्वारा अंगेे्रजों से टीपू के विरुद्ध सहायता की माँग, टीपू की विषम स्थिति और पराजय, मराठों और टीपू में गजेन्द्रगढ़ की संधि, पूना में मेलेट प्रथम अंग्रेज रेजीडेंट, त्रिशक्ति संघ, सन् 1790, और पूना की संधि, 1 जून 1790, टीपू के विरुद्ध युद्ध की घटनाएँ, सन् 1790-92, अंग्रेज सेना की प्रारम्भिक पराजय, परशुराम भाऊ के नेतृत्व में मराठा सेना के आक्रमण और धारवाड़ तथा अन्य स्थानों की विजय, हरिपंत फड़के के नेतृत्व में अन्य मराठा सेना का प्रयाण और निजाम से भेंट, निजाम का टीपू के राज्य पर आक्रमण, कार्नवालिस द्वारा श्री रंगपट्टम की ओर कूच, मित्र सेनाओं द्वारा श्री रंगपट्टम का घेरा और अंतिम प्रहार, श्री रंगपट्टम की संधि, 18 मार्च 1792, श्री रंगपट्टम की संधि का महत्व, नाना फड़नवीस की राजनीतिक भूल, टीपू के विरुद्ध अंग्रेजों का चतुर्थ मैसूर युद्ध, टीपू द्वारा पेशवा से सहायता व मध्यस्थता करने की याचना, टीपू का अंत

मराठा-निजाम-सम्बन्ध(सन् 1773 ई. से 1795 ई. तक)

मराठा-निजाम संधि, सन् 1773, मराठों द्वारा निर्मित अंग्रेज विरोधी गुट में निजाम, सन् 1779-80, टीपू के विरुद्ध मराठा-‘निजाम में यादगिर की संधि, सन् 1784, टीपू के विरुद्ध मराठों, अंग्रेजों और निजाम का त्रिगुट, सन् 1790, निजाम-मराठा-संघर्ष, सन् 1795, मराठों द्वारा निजाम से चैथ व सरदेशमुखी कर की वसूली, निजाम द्वारा मराठों को चैथ व सरदेशमुखी की बकाया धनराशि देने की उपेक्षा, निजाम के दीवान मुइनुद्दीन (मशीर-उल-मुल्क) द्वारा मराठा-निजाम तनाव में वृद्धि, मुइनुद्दीन द्वारा चैथ व सरदेशमुखी की माँग का अपमानजनक उत्तर , निजाम द्वारा मराठों के विरुद्ध अंग्रेजों की सहायता प्राप्त करने के प्रयास पर अंग्रेजों की तटस्थता, टीपू और भोंसले भी निजाम के विरोध में, निजाम का मीरआलम द्वारा मराठों से समझौता करने का ढोंग, सन् 1794, युद्ध की तैयारी और दोनों पक्षों का सैन्यबल, खरड़ा का युद्ध और निजाम की पराजय, मुइनुद्दीन का आत्मसमर्पण, खरड़ा की सधि, 10 अप्रैल, 1795, खरड़ा की संधि और विजय की समीक्षा, निजाम का झुकाव अंगे्रजों की ओर तथा उसके द्वारा सहायक संधि स्वीकार, दक्षिण की राजशक्तियों के प्रति मराठा नीति की समीक्षा

उत्तर भारत में मराठा सत्ता और प्रभुत्व की पुनस्र्थापना (सन् 1784ई. से 1788 ई. तक)

सिंधिया राजपरिवार, राणोजी सिंधिया, जयप्पा सिंधिया, जनकोजी सिंधिया, महादजी सिंधिया, महादजी को पेशवा द्वारा सिंधिया की जागीर प्रदान कर उसे सिंधिया का उŸाराधिकारी घोषित करना, सन् 1767, उत्तर भारत में पुनः मराठा प्रभुत्व स्थापित करने के लिए महादजी के कार्य, उत्तर भारत में मराठा सैनिक अभियानों में महादजी सिंधिया, सन् 1767-71, दिल्ली में नजीबुद्दौला सर्वोच्च शक्ति, शाहआलम अंग्रेजों के संरक्षण में, दिल्ली लौटने के लिए शाहआलम की आतुरता और मराठों से समझौता, दिल्ली में शाहआलम की वापसी और मराठों का संरक्षण, दक्षिण भारत में महादजी की उपलब्धियाँ, महादजी रघुनाथराव का विरोधी और पूना सरकार का समर्थक, महादजी द्वारा कोल्हापुर नरेश का दमन, मोरोबा के विद्रोह का दमन, महादजी द्वारा तलेगाँव में मराठा विजय और बड़गाँव की संधि, महादजी द्वारा मालवा में अंग्रेजों से युद्ध, सालबाई की संधि, महादजी द्वारा पाश्चात्य शैली पर प्रशिक्षित और अनुशासित सेना तैयार करना, दिल्ली की स्थिति, सन् 1772-82, मिर्जा नजफखाँ, शाहआलम को पुनः अपने संरक्षण में लेने की अंग्रेजों की महत्वाकांक्षा और इसके लिए उनका प्रयास, महादजी सिंधिया द्वारा शक्ति संचय और राज्य सीमाओं में वृद्धि, मुगल दरबार में प्रतिस्पर्धी अमीर अफ्रासियाब खाँ और मुहम्मद बेग हमदानी, महादजी सिंधिया को सम्राट द्वारा सहायता के लिए निमंत्रण और शाहजादा जवांबख्त व महादजी की भेंट, महादजी को सम्राट शाहआलम से मिलने का निमंत्रण और अफ्रासियाबखाँ की हत्या, सम्राट द्वारा महादजी को नायब-ए-मुनाइब, बख्शी-ममालिक और वकील-ए-मुतलक नियुक्त करना, वकील-ए-मुतलक, नियक्त होने के बाद महादजी की समस्याएँ और कठिनाइयाँ, समस्याओं व संकटों के निराकरण के लिए महादजी के कार्य, महादजी द्वारा विरोधियों और शत्रुओं का दमन, राजपूतों से युद्ध और उमरावगिरी और अनूपगिरी बन्धुओं का दमन, सन् 1786, मुगल सम्र्राट को टाँके और मराठों को चैथ देने की राजपूतों की परम्परा, जयपुर नरेश प्रतापसिंह से करों के बकाया धन की माँग, महादजी से जयपुर नरेश द्वारा करों की राशि के भुगतान के विषय में सतही ढोंगी चर्चाएँ, राजपूतों और महादजी में लालसोट का युद्ध, महादजी का सफल प्रत्यागमन, महादजी के लिए लालसोट का युद्ध पानीपत के तृतीय युद्ध के समान, महादजी अलवर के शिविर में और शत्रुओं द्वारा उसकी सत्ता और शक्ति को कम करना, महादजी के विरुद्ध जोधपुर नरेश विजयसिंह का नाना फड़नवीस को पत्र, महादजी द्वारा नाना फड़नवीस से सहायता की याचना, अफगानिस्तान के तैमूरशाह को भारत पर आक्रमण करने का निमंत्रण, अंग्रेजों की तटस्थता की नीति, शाहआलम की सहायता के लिए शाहजादा जवांबख्त, दिल्ली में मराठा सत्ता व प्रभुत्व का लोप और महादजी की विषम परिस्थिति गुलाम कादि का दोआब और दिल्ली पर अधिकार तथा वह सम्राट द्वारा मीरबख्शी और अमीर-जल-उमरा नियुक्त, अलीगढ़, आगरा, अजमेर और सम्राट शाहआलम मराठा शत्रुओं के अधिकार में, महादजी चम्बल के दक्षिण में और उसके द्वारा पुनः आक्रमणों की तैयारियाँ, नाना द्वारा भेजी गयी सेना के नेता महादजी के प्रति ईष्र्यालु एवं विरोधी, महादजी के प्रत्याक्रमण और शत्रुओं पर विजय, चकसन का अनिर्णायक युद्ध, बाग दोहरा का युद्ध, और इस्माइल बेग पर महादजी की विजय, अलीगढ़ के पास मराठों द्वारा गुलाम कादिर परास्त, गुलाम कादिर के नृशंस अत्याचार, गुलाम कादिर और इस्माइल बेग में शाही महल और राजकोष को लूटने के लिए समझौता, दिल्ली पर मराठों की सत्ता व अधिकार का लोप, दिल्ली पर गुलाम कादिर का अधिकार, और शाही महल में बर्बर अत्याचार, गुलाम कादिर का अंत और महादजी नायब वकील-ए-मुतलक, महादजी, सिंधिया का दिल्ली पर अधिकार, शाहआलम पुनः मुगल सिंहासन पर आसीन, मराठों द्वारा गुलाम कादिर का पीछा और उसका वध, महादजी नायब वकील-ए-मुतलक नियुक्त

महादजी सिंधिया का चरम उत्कर्ष

महादजी और अलीबहादुर, अलीबहादुर का महादजी के पास पहुँचना, गुलाम कादिर का पीछा कर उसे पकड़ने में तथा लूट के धन को जब्त करने में अलीबहादुर का योगदान, नाना फड़नवीस द्वारा अलीबहादुर को महादजी के विरुद्ध भड़काने के कार्य, अलीबहादुर और महादजी में संघर्ष, महादजी के विरुद्ध अलीबहादुर द्वारा गोसाई बन्धुओं से सांठ-गांठ और षडयंत्र, महादजी द्वारा हिम्मत बहादुर को बंदी बनाये जाने का प्रयास और अलीबहादुर द्वारा इसका विरोध, नाना फड़नवीस द्वारा अलीबहादुर को डाँट-फटकार, अलीबहादुर और महादजी में काम चलाऊ समझौता, महादजी के विरुद्ध राजपूत युद्धों में अलीबहादुर का विश्वासघात, अलीबहादुर की जटिल आर्थिक परिस्थिति, अलीबहादुर बुन्देलखण्ड में और उसके द्वारा बाँदा के छोटे राज्य का निर्माण, महादजी और तुकोजी होल्कर, राजपूत-मराठा-संघर्ष में महादजी के बिना परामर्श के तुकोजी का शांति प्रस्ताव, महादजी द्वारा जीते हुए प्रदेशों के आधे भाग के लिए तुकोजी की माँग, महादजी और तुकोजी में तनाव और संघर्ष की स्थिति, अलीबहादुर और तुकोजी के ईर्षा-द्वेष, वैमनस्य, विरोध और षडयंत्री कार्यों के दुष्परिणाम, महादजी और राजपूतों का संघर्ष और राजपूतों की पराजय, महादजी के विरुद्ध राजपूतों की शत्रुवत् गतिविधियाँ, पाटण का युद्ध और महादजी की विजय, मेड़ता का युद्ध और महादजी की विजय, महादजी और विजयसिंह में संधि, 6 जनवरी, 1791, जयपुर नरेश प्रतापसिंह और महादजी में संधि, फरवरी 1791, तैमूरशाह और सिक्खों से महादजी का समझौता, इस्माइल बेग का अंत, चिŸाौड़ दुर्ग प्राप्त करने में महादजी द्वारा उदयपुर के राणा भीमसिंह की सहायता, अंग्रेज सरकार के प्रति महादजी की नीति, उत्तर भारत में महादजी उत्कर्ष के शिखर पर, उत्तर भारत में महादजी द्वारा अधिकारों व कार्यों का विभाजन।

महादजी सिंधिया और नाना फड़नवीस में प्रतिस्पद्र्धा

महादजी के दक्षिण में पूना जाने के उद्देश्य, महादजी का पूना पहुँचना, महादजी के आगमन से नाना फड़नवीस आतंकित, महादजी की पेशवा सवाई माधवराव से भेंट, दरबार में पेशवा को पदवी प्रदान समारोह, पेशवा और महादजी में परस्पर घनिष्ठता, नाना फड़नवीस द्वारा महादजी से लेखा-जोखा की माँग, नाना फड़नवीस और महादजी सिंधिया का विवाद, नाना फड़नवीस का काशी जाने का प्रस्ताव महादजी के प्रभाव और परामर्श से पेशवा का प्रशासन में हस्तक्षेप, घासीराम काण्ड, गायकवाड़ के उŸाराधिकार की समस्या, सतारा में छत्रपति पर लगे प्रतिबन्ध, शिथिल, सचिव समस्या, महादजी सिंधिया और तुकोजी होल्कर की प्रतिस्पर्धा और मुरावली तथा लखेरी के युद्ध, महादजी की लखेरी विजय के परिणाम नाना, फड़नवीस का महादजी से समझौता, महादजी की मृत्यु, हरिपंत फड़के की मृत्यु

महादजी की उपलब्धियाँ और उनका मूल्यांकन

राणोजी सिंधिया, महादजी सिंधिया का प्रारम्भिक जीवन, पेशवा माधवराव द्वारा महादजी को सिंधिया राज का उŸाराधिकारी नियुक्त करना, पेशवा माधवराव के प्रति महादजी सिंधिया की सेवाएँ, उत्तर भारत के विजय अभियानों में महादजी सिंधिया, महादजी सिंधिया द्वारा नजीबुद्दौला का विरोध, महादजी द्वारा सम्राट शाहआलम को मुगल राजसिंहासन पर आसीन कर मराठा संरक्षण में लेना, महादजी द्वारा रघुनाथराव के विरुद्ध नाना फड़नवीस और पूना सरकार को समर्थन और सहायता देना, प्रथम अंग्रेज-मराठा युद्ध में महादजी की सेवाएँ और सालबाई की संधि, महादजी द्वारा पाश्चात्य शैली से सैन्य संगठन, महादजी द्वारा अपनी राज्य सीमाओं में वृद्धि, मुगल दरबार में प्रतिस्पर्धी अमीरों का संघर्ष और शाहआलम द्वारा महादजी को दिल्ली आने का निमंत्रण सम्राट षाहआलम द्वारा महादजी को वकील-ए-मुतलक नियुक्त करना, महादजी की समस्याएँ, महादजी द्वारा उसकी समस्याओं और संकटों का निराकरण, महादजी द्वारा शत्रुओं का दमन और राजपूतों से लालसोट (तुंगा) का युद्ध, महादजी के शत्रुओं द्वारा उसकी शक्ति क्षीण करने के प्रयास और महादजी का मालवा में लौटना, गुलाम कादिर का उत्कर्ष और दिल्ली में मराठा सत्ता व प्रभुत्व का लोप, महादजी के प्रत्याक्रमण, गुलाम कादिर के नृशंस अत्याचार, दिल्ली पर महादजी का अधिकार, गुलाम कादिर का पीछा और उसका वध, महादजी शाहआलम द्वारा नायब वकील-ए-मुतलक नियुक्त महादजी द्वारा पाटण और मेड़ता के युद्धों में राजपूत नरेशों को परास्त करना, महादजी अपने उत्कर्ष की पराकाष्ठा पर, महादजी के प्रति अलीबहादुर और तुकोजी होल्कर का विरोध, विवादों के निराकरण के लिए महादजी का पूना पहुँचना पूना के दरबार में पेशवा को पदवी-प्रदान समारोह, नाना फड़नवीस और महादजी में परस्पर विवाद और ईर्षा-वैमनस्य, लखेरी का युद्ध व तुकोजी होल्कर की पराजय और उसके परिणाम, महादजी का निधन, महादजी की मृत्यु से मराठा इतिहास में एक नवीन मोड़, उत्तर भारत में अंग्रेजों की उभरती हुई शक्ति के लिए मार्ग प्रशस्त, उत्तर भारत में मराठा विरोधी तत्व और विघटनकारी राजशक्तियों में वृद्धि, मुगल सम्राट शाहआलम की परेशानियाँ और वह ब्रिटिश संरक्षण में, उत्तर भारत के मराठा अधिकारियों में मत विभिन्नता, वैमनस्य और विघटनकारी तत्व, मराठा राज्य के लिए महादजी की सेवाएँ, पेशवा के प्रति महादजी की सेवाएँ, उत्तर भारत के मराठा सैनिक अभियानों में महादजी का योगदान, शाहआलम को मराठा संरक्षण और मराठा राजसत्ता और यशगौरव में वृद्धि, प्रथम अंग्रेज मराठा युद्ध और महादजी द्वारा मराठा हित-संवर्धन, मराठा सेनाओं को पाश्चात्य ढंग पर संगठित करना, महादजी द्वारा उत्तर भारत में मराठा राजसत्ता और प्रभुत्व की पुनस्र्थापना, महादजी का मूल्यांकन,उज्जवल पवित्र चरित्र, महादजी की धर्मनिष्ठा, धार्मिक उदारता और सहिष्णुता, प्रतिभावान न्याय प्रिय शासक, पेशवा का समर्थक, कुशल सेनापति, मराठा संघ का पोषक, अंग्रेज शक्ति और राज्य के प्रति महादजी की नीति, महादजी सिंधिया की उपलब्धियाँ, महादजी के जीवन के चार प्रमुख भाग, महादजी के उद्देश्य, पाश्चात्य प्रणाली का सैन्य संगठन और रण-प्रणाली, राजनीति का केन्द्र दक्षिण भारत से हटाकर उत्तर भारत में स्थापित करना, उत्तर भारत में मराठा राज्य और सम्प्रभुता की पुनस्र्थापना, इतिहास में महादजी का स्थान

पेशवा सवाई माधवराव का निधन उŸाराधिकार के लिए षडयंत्री उथल-पुथल

बंदीगृह में रघुनाथराव के पुत्र, दुखी, विक्षुब्ध और निराश पेशवा सवाई माधवराव, बाजीराव और पेशवा का पत्र-व्यवहार और नाना फड़नवीस का दुव्र्यवहार, पेशवा सवाई माधवराव का निधन - आत्महत्या या दुर्घटना, उŸाराधिकार के संघर्ष और उथल-पुथल, चिमनाजी को गोद लेने की नाना फड़नवीस की योजना, पेशवा बनने के लिए बाजीराव द्वारा दौलतराव सिंधिया से समझौता, नाना फड़नवीस और बाजीराव में समझौता, नाना फड़नवीस का पूना से पलायन और सिंधिया द्वारा चिमनाजी अप्पा को पेशवा बनाना, सुरक्षा के लिए नाना फड़नवीस का कोंकण में महाड़गाँव पहुँचना, नाना फड़नवीस की महाड़ की योजनाएँ, नाना फड़नवीस के उद्देश्य, बाजीराव और नाना फड़नवीस में समझौता, नाना फड़नवीस द्वारा दौलतराव सिंधिया पर विभिन्न स्रोतों से दबाव व आतंक और नाना सिंधिया समझौता, नाना फड़नवीस द्वारा विभिन्न राजशक्तियों से समझौते, परशुराम भाऊ के विरुद्ध नाना का कुचक्र पूना में नाना का बाड़ा व सम्पŸिा जब्त, बाजीराव-सिंधिया-समझौता, नाना फड़नवीस के समर्थकों की सेनाएँ पूना की ओर अग्रसर और परशुराम भाऊ बंदी, नाना फड़नवीस का पूना लौटना, बाजीराव का पेशवा बनना और नाना उसका कारभारी, उŸाराधिकार की षडयंत्री उथल-पुथल का महत्व और दुष्परिणाम, नाना फड़नवीस और बाजीराव में मतविभिन्नता, निजाम, भोंसले और सिंधिया का हित-संवर्धन

पेशवा बाजीराव द्वितीय का राज्यारोहण और प्रारम्भिक संघर्ष

बाजीराव में दुर्बुद्धि, दुष्टता और विश्वासघात की कुप्रवृŸिा, प्रशासन की उपेक्षा, धन का गहरा अभाव, बाजीराव का सैनिक दल तैयार करने का प्रयास, नाना फड़नवीस के विरुद्ध बाजीराव का दौलतराव सिंधिया से समझौता, नाना-सिंधिया-संघर्ष, प्रशासन में सिंधिया का प्रभाव, होल्कर राजगद्दी के लिए उŸाराधिकार का संघर्ष, अमृतराव की आकांक्षा, महादजी की विधवाएँ दौलतराव के विरुद्ध, बाजीराव, सिंधिया और नाना में बढ़ता हुआ तनाव व कटुता, नाना से धन देने की निरन्तर माँग, नाना को पकड़ने और धन प्राप्त करने का बाजीराव का आदेश, नाना फड़नवीस को बंदी बनाने का षडयंत्र नाना फड़नवीस की गिरफ्तारी, बाजीराव द्वारा नाना के विरुद्ध कार्य बाजीराव द्वारा धन वसूल करने के आदेश, सर्जेराव घाटगे के नृशंस अत्याचार, अनाचार और लूट-खसोट, महादजी सिंधिया की विधवाओं का विद्रोह व संघर्ष, विधवाओं के विद्रोह का कारण, विधवाओं के समर्थकों का दमन, सर्जेराव घाटगे द्वारा विधवाओं पर अत्याचार, विधवाओं की मुक्ति, बाजीराव द्वारा सिंधिया-विधवाओं से समझौते के प्रयास, सतारा के छत्रपति शाहू द्वितीय का अपनी स्वतंत्रता के लिए बाजीराव से संघर्ष और युद्ध, सिंधिया-विधवाओं द्वारा शक्ति संचय, सिंधिया विधवाओं और दौलतराव में अस्थायी समझौता, मालवा में सिंधिया विधवाओं का युद्ध और उनकी पराजय, नाना फडनवीस की मुक्ति और वह पुनः सत्ता रूढ़, नाना-सिंधिया समझौता, नाना फडनवीस की मुक्ति, नाना फडनवीस पुनः पेशवा के कारभारी पद पर नियुक्त, अंग्रेज गवर्नर-जनरल वेलेजली और उसकी साम्राज्यवादी नीति, दक्षिण भारत की प्रमुख राजशक्तियाँ, निजाम से सहायक संधि, टीपू सुल्तान के विरुद्ध अंग्रेजों द्वारा सिंधिया को तटस्थ करने के प्रयास, सुल्तान टीपू के विरुद्ध, अंग्रेजों द्वारा पेशवा से सहायता की याचना, टीपू का पराभव और अंत, पेशवा को मैसूर राज्य का भाग देने के लिए वेलेजली की शर्तें, नाना फडनवीस का ऐतिहासिक उत्तर , नाना फडनवीस की मृत्यु

नाना फड़नवीस और उसका मूल्यांकन

नाना फड़नवीस के पूर्वज, नाना फड़नवीस का प्रारम्भिक जीवन, पानीपत के रणक्षेत्र से नाना फड़नवीस का पलायन, फड़नवीस के कार्यों का विभाजन और नाना पूना में पदस्थ, पेशवा माधवराव के शासन काल में नाना फड़नवीस प्रभावशाली मंत्री, पेशवा माधवराव की स्थिति को सुदृढ़ करना, महाराष्ट्र में गृह-युद्ध और नाना फड़नवीस, पेशवा नारायणराव और उसकी हत्या, गंगाबाई और उसके पुत्र की नाना फड़नवीस द्वारा रक्षा, रघुनाथराव के विरुद्ध संगठित आंदोलन और बारहभाई परिषद, रघुनाथराव का पलायन और अड़ास के युद्ध में उसकी पराजय, मराठा राज्य संकटग्रस्त, नाना फड़नवीस द्वारा विरोधियों का दमन और सुरक्षात्मक गतिविधियाँ, हैदरअली से युद्ध और सन्धि, मोरोबा फड़नवीस के विद्रोह का दमन, प्रशासन और सत्ता में नाना फड़नवीस सर्वोपरि, प्रथम अंग्रेज मराठा युद्ध और नाना फड़नवीस, सूरत की संधि और अंग्रेज-मराठा युद्ध, पुरन्दर की संधि, अंग्रेजों द्वारा मराठों के विरुद्ध पुनः युद्ध छेड़ना, बड़गाँव की संधि, अंग्रेजों के विरुद्ध चतुर्गुट, अंग्रेज मराठा युद्ध पुनः प्रारम्भ, सालबाई की संधि, अंग्रेज-मराठा युद्ध में नाना फड़नवीस का योगदान, मराठा-टीपू-युद्ध, निजाम मराठा युद्ध और खरड़ा की संधि, नाना फड़नवीस अपनी समृद्धि और सफलता के शिखर पर, उत्तर भारत में महादजी को नाना फड़नवीस द्वारा सहायता, पूना में नाना फड़नवीस और महादजी में तीव्र प्रतिस्पर्धा, पेशवा सवाई माधवराव का निधन, उŸाराधिकार के लिए रक्तहीन उथल-पुथल, महाड़ में नाना की कुचक्री कूटनीतिक योजनाएँ, बाजीराव का पेशवा बनना और नाना फड़नवीस का उसका कारभारी होना, बाजीराव और नाना फड़नवीस में मतभेद, कटुता और तनाव, नाना फड़नवीस का बंदी बनाया जाना, धन-वसूल करने के लिए बाजीराव के आदेश और सर्जेराव घाटगे के नृशंस अत्याचार, नाना फड़नवीस का बंदीगृह से मुक्त होना और उसका पुनः सत्ता रूढ होना, नाना फड़नवीस की मृत्यु, मराठा राज्य के प्रति नाना फड़नवीस की सेवाएँ, पेशवा माधवराव की स्थिति को सुदृढ़ करना, पेशवा सावई माधवराव की सुरक्षा और रघुनाथराव के विरुद्ध संगठित संघर्ष, संकटग्रस्त मराठा राज्य को नाना फड़नवीस की सेवाएँ, अंग्रेज-मराठा युद्ध में नाना की सेवाएँ, टीपू को परास्त करना और उसके प्रदेश प्राप्त करना, हैदराबाद के निजाम को खरड़ा के युद्ध में परास्त कर धन व प्रदेश प्राप्त करना, अंग्रेजों के प्रति नाना फड़नवीस की नीति, मराठा संघ के विभिन्न सदस्यों और सरदारों में एकता बनाये रखना, नाना फड़नवीस का मूल्यांकन- गम्भीरता से ओत प्रोत संयमित और सादा जीवन, धर्मनिष्ठ विद्यानुरागी ब्राह्मण, प्रतिभा सम्पन्न मंत्री और प्रशासक, सामन्तशही का संरक्षक, मराठा राज्य का महान कूटनीतिज्ञ, मराठा राज्य का रक्षक और प्रशासक, नाना फड़नवीस के दोष और अवगुण, इतिहास में नाना फड़नवीस का स्थान, नाना फड़नवीस और महादजी सिंधिया की तुलना

पेशवा के नेतृत्व व स्वतंत्रता की सौदेबाजी

बाजीराव के बन्धु अमृतराव को पेशवा पद के दावे से पृथक करना, अंग्रेज गवर्नर जनरल वेलेजली द्वारा पेशवा को सहायक संधि के अंतर्गत लेने के प्रयास, दौलतराव सिंधिया द्वारा मालवा में अपने राज्य की सुरक्षा के लिए उत्तर भारत की ओर प्रस्थान, होल्कर राजसिंहासन के लिए उŸाराधिकार का संघर्ष, सन् 1797, बिठोजी होल्कर का अंत, मराठा राज्य में गह-युद्ध सन् 1797-1802, यशवंतराव होल्कर का संघर्ष और उदय, मालवा में होल्कर-सिंधिया युद्ध, यशवंतराव का दक्षिण की ओर प्रस्थान और पेशवा से उसकी माँगें, बारामती का युद्ध और पेशवा की सेना की पराजय, हड़पसर के युद्ध में यशवंतराव द्वारा बाजीराव परास्त, पेशवा बाजीराव का पूना से पलायन और बेसिन पहुँचना, पूना में शासन परिवर्तन, बेसिन (बसई) की संधि, 31 दिसम्बर 1802 बेसिन संधि की शर्तें, बेसिन की संधि का महत्व, संधि के विषय में बाजीराव का पक्ष, पूना में अस्थिरता और अनिश्चितता तथा यशवंतराव व अमृतराव का पूना छोड़ना, पेशवा बाजीराव का पूना में प्रवेश

द्वितीय अंग्रेज-मराठा युद्ध(सन् 1803 ई. से 1805 ई. तक)

अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी की परिस्थिति, गवर्नर-जनरल वेलेजली का उद्देश्य, अंग्रेजी राज्य का विस्तार और सक्रिय हस्तक्षेप की नीति, वेलेजली द्वारा हस्तक्षेप की नीति और विस्तारवादी नीति के अपनाने के कारण, द्वितीय अंग्रेज-मराठा युद्ध, युद्ध के कारण, अंग्रेजों की युद्धनीति, युद्ध का प्रथम भाग, सन् 1903, युद्ध की घटनाएँ, अंगेजों द्वारा अहमदनगर पर आक्रमण और विजय, असाई युद्ध में अंग्रेजों की विजय, बुरहानपुर और असीरगढ़ पर अंग्रेजों का आधिपत्य, अरगाँव के युद्ध में भोंसले की पराजय और गवलीगढ़ पर अंग्रेजों का आधित्य, फ्रेंच सेनापति पेरों का विश्वासघात और उसके द्वारा सिंधिया का पक्ष त्याग, अलीगढ़ विजय, पटपड़गंज का युद्ध और सिंधिया सेना की पराजय, दिल्ली पर अंगे्रेजों का अधिकार और मुगल सम्राट शाहआलम अंग्रेजों के संरक्षण में, आगरा विजय लासवाड़ी के युद्ध में अंग्रेज सेना की विजय और सिंधिया सेना परास्त, गुजरात, बुन्देलखण्ड और उड़ीसा में अंग्रेजों की विजय, भोंसले के साथ देवगाँव की संधि, सिंधिया के साथ सुरजी अर्जुनगाँव की संधि, बुरहानपुर की संधि, संधियों की समीक्षा, युद्ध का द्वितीय भाग, सन् 1804-05, यशवंतराव होल्कर द्वारा अंगे्रजों के विरुद्ध संघ गठित करने के प्रयास, अंग्रेजों को होल्कर का माँगपत्र, यशवंतराव होल्कर की अंग्रेजों को चुनौती, युद्ध का तात्कालिक कारण, युद्ध की घटनाएँ, अंग्रेज सेनानायक मरे व मानसन के नेतृत्व में आक्रमण और उनकी विफलता, ब्रिगेडियर मानसन की पराजय और उसकी कष्टप्रद वापसी, होल्कर का दिल्ली पर आक्रमण का प्रयास, अंग्रेजों द्वारा डींग व भरतपुर का घेरा, भरतपुर की संधि, कार्नवालिस गवर्नर-जनरल, सबलगढ़ में मराठा प्रतिनिधियों की सभा, यशवंतराव होल्कर का मित्रों और सहायता की खोज में पंजाब तक प्रस्थान, अंग्रेज कंपनी की दुखद दयनीय परिस्थिति और नीति-परिवर्तन, मुस्ताफापुर की संधि, राजपुरघाट की संधि, यशवंतराव होल्कर का अंत, द्वितीय अंग्रेज-मराठा युद्ध और संधियों का महत्व

पेशवा बाजीराव द्वितीय का शासन और अंग्रेज सत्ता के विरुद्ध प्रतिरोध

पेशवा बाजीराव और उसका सीमित राज्य, सामन्तों से सम्बंध विच्छेद, आंध्र के प्रतिनिधि का विद्रोह और दमन, बाजीराव का अंातरिक प्रशासन, बाजीराव के निकृष्ट परामर्शदाता, बाजीराव का जागीरदारों से झगड़ा और पंढरपुर की संधि, पेशवा की नवीन सेना और मेजर जानफोर्ड चिमनाजी पर संदेह, बड़ौदा के गायकवाड़ नरेश और अंग्रेज, खम्भात की संधि, रीजेंसी कमीशन और अंग्रेजों के प्रति बढ़ता हुआ विरोध, गायकवाड़ से संधि, गायकवाड़ दरबार में दो विरोधी गुट, पेशवा गायकवाड़ विवाद और गंगाधर शास्त्री की हत्या, पेशवा गायकवाड़ विवाद और उसके कारण, समझौते की चर्चा के लिए शिष्ट-मंडल और गंगाधर शास्त्री की हत्या, शास्त्री की हत्या का आरोेप, त्र्ायम्बकजी का बंदी बनाया जाना, बंदीगृह से उसका पलायन और अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध की तैयारियाँ, नागपुर के भोंसले और अंग्रेज, नागपुर का अप्पा साहेब और अंग्रेजों से सहायक संधि, परसोजा भोंसले की हत्या और अप्पा साहेब द्वारा अंग्रेजों के विरोध में पेशवा से सांठ-गांठ, अप्पा साहेब भोंसले द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध अन्य शासकों से सांठ-गांठ, पेशवा बाजीराव द्वारा अंग्रेज विरोधी होना, अंग्रेजों के विरुद्ध पेशवा बाजीराव के संगठन के प्रयत्न, पेशवा बाजीराव के साथ पूना की संधि, सिंधिया के साथ सहायक संधि, पिण्डारियों का दमन, पिण्डारियों का उत्कर्ष, पिण्डारियों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि, उनकी व्यापक लूटपाट और उपद्रव, पिण्डारियों के नेता, उनकी व्यापक नृशंस लूटपाट और हिंसक विनाश, पिण्डारियों के दमन के कारण, पिण्डारियों के दमन के लिए अंग्रेजों की योजना, पिण्डारियों का दमना

मराठों का अंतिम प्रयास और तृतीय अंग्रेज-मराठा युद्ध

मराठा शासकों की परिस्थितियाँ तृतीय अंग्रेज-मराठा युद्ध, सन् 1817-18, अंग्रेजों का पेशवा से संघर्ष और युद्ध, कारण, युद्ध की प्रमुख घटनाएँ, पेशवा बाजीराव का अंग्रेज रेजीडेंसी पर आक्रमण और किरकी की युद्ध, यरवदा का युद्ध और पूना पर अंग्रेजों का अधिकार, बाजीराव का पलायन और कोड़ेगाँव का युद्ध, एल्फिन्स्टन की घोषणा, अष्टा का युद्ध, अंग्रेजो ंद्वारा छत्रपति सतारा के राजसिंहासन पर आसीन, शिवनी का युद्ध, बाजीराव का आत्म-समर्पण और युद्ध का अंत, पेशवा बाजीराव का आत्म-समर्पण, आत्म-समर्पण की शर्तें, पेशवा को पेंशन और बिठूर में उसका निवास और पेशवा परिवार का अंत, पेशवा राज्य का अंत, अंग्रेज-भोंसले-संघर्ष, भोंसले से नागपुर की संधि, परसोजी भोंसले की हत्या और अप्पा साहेब भोंसले नागपुर नरेश, अंग्रेजों का भोंसला नरेश से युद्ध और विजय, अप्पा साहेब का बंदी बनाया जाना, रघुजी भोंसला तृतीय नागपुर के राजसिंहासन पर, अप्पा साहेब का पलायन और अंत, अंगे्रज-होल्कर संघर्ष अवयस्क मल्हारराव होल्कर और तुलसाबाई संरक्षिका, होल्कर सेना का विद्रोह, तुलसाबाई की हत्या और होल्कर सेना की पराजय, अंग्रेजों द्वारा होल्कर के साथ मंदसौर की संधि, अंग्रेज और सिंधिया, सिंधिया मराठा शासकों में सर्वाधिक शक्तिशाली, सिंधिया पर अंग्रेजों का आरोप, ग्वालियर की संधि, अंग्रेज-सिंधिया संधि

मराठा-राजपूत-सम्बन्ध(सन् 1761 ई. से 1818 ई. तक)

अठारहवीं सदी के उŸारार्द्ध में राजस्थान की दशा, राजस्थान में अशांति और अराजकता, राजपूत राज्यों में उŸाराधिकार के विवाद और मराठों के हस्तक्षेप, मराठों द्वारा राजपूत राज्यों से उŸाराधिकार कर, भेंट, नजराने की वसूली, राजस्थान में एकता का अभाव,राजपूत नरेशों की संकीर्णता, जड़ता और कूप मण्डूकता, दयनीय आर्थिक परिस्थिति, मराठों द्वारा मुगल सत्ता के प्रतिनिधि के रूप में राजपूत राज्यों से धन-वसूली, अजमेर नगर और परगने पर शिथिल मराठा आधिपत्य, राजपूत राज्यों से धन-वसूली, राजपूत दरबारों में मराठा दूत और अधिकारी, मराठों के निरन्तर आक्रमण, लूटपाट और धन की वसूली से कटुुता, घृणा और तिरस्कार की भावना, राजपूत-मराठा संघर्ष राजनीतिक व आर्थिक ही नहीं, अपितु जातिगत और सांस्कृतिक भी। जयपुर और मराठे माधोसिंह की मराठा विरोधी गतिविधियाँ, भटवाड़े का युद्ध, विभिन्न राजपूत-राज्यों के राजदूतों की मल्हारराव से भेंट, जाट नरेश जवाहरसिंह की पराजय, जयपुर का अल्पवयस्क शासक पृथ्वीसिंह, सवाई प्रतापसिंह जयपुर का शासक और मुगल सम्राट शाह आलम का हस्तक्षेप, राजपूत-मराठा संघर्ष अब राजपूत-मराठा-सरदार संघर्ष में परिवर्तित, महादजी सिंधिया द्वारा जयपुर से टांके व चैथ के धन की माँग, राजपूतों और महदजी में तुंगा (लालसोट) का युद्ध, प्रतापसिंह और विजयसिंह द्वारा मराठा-विरोध का संयुक्त प्रयास, पाटण का युद्ध ओर राजपूतों की पराजय, विजयसिंह द्वारा महादजी की शक्ति कम करने के प्रयास, अजमेर पर महादजी का अधिकार, मेड़ता का युद्ध, विजयसिंह द्वारा महादजी से संधि, प्रतापसिंह के साथ संधि सिंधिया होल्कर संघर्ष और लखेरी का युद्ध, सिंधिया के सेनानायक द्वारा जयपुर राज्य से धनवसूली और जयपुर राज्य सिंधिया के नियंत्रण में, राजस्थान पर सिंधिया का एकाधिपत्य और राजपूत राज्यों से धन वसूली, जयपुर पर वामनराव और जार्ज टामस का धन वसूली के लिए आक्रमण, लकवा दादा का जयपुर पर आक्रमण और मालपुरा का युद्ध, लकवा दादा का अंत, जयपुर नरेश सवाई जयसिंह की मृत्यु और सवाई जगतसिंह जयपुर राज-सिंहासन पर आसीन, द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध और राजस्थान में मराठों की पराजय का प्रभाव, राजपुत राजाओं से प्रथम बार अंग्रेजों की संधियाँ, 1803, अंग्रेजों द्वारा राजपूत राज्यो ंपर सिंधिया और होल्कर के आधिपत्य और संरक्षण को मान्यता,मेवाड़ की राजकन्या कृष्णा कुमारी के विवाह की समस्या और उदयपुर, जोधपुर व जयपुर राज्यों में कशमकश और संघर्ष, दौलतराव व सिंधिया का हस्तक्षेप और धन-वसूली, यशवंतराव होल्कर की जयपुर-जोधपुर में मध्यस्थता और धन-वसूली कृष्णा कुमारी के विवाह के प्रश्न पर सवाई जगतसिंह और मानसिंह में गींगोली का युद्ध, कृष्णाकुमारी द्वारा विषपान, बापूजी सिंधिया का जयपुर राज्य पर आक्रमण, दौलतराव सिंधिया से जयपुर का समझौता, राजस्थान में अमीर खाँ की शक्ति की वृद्धि, जयपुर में अमीर खाँ द्वारा धन-वसुली, उसका आतंक और अपमानजनक व्यवहार, अमीर खां द्वारा जयपुर का घेरा और समझौता, चाल्र्स मेटकाफ द्वाराराजपूत राज्यों से संधियाँ और राजस्थान में मराठा संरक्षण व प्रभुत्व का अंत, जोधपुर और मराठे, विजयसिंह और रामसिंह में उŸाराधिकार का संघर्ष, जोधपुर में मराठा हस्तक्षेप और मेड़ता का युद्ध, मराठों और विजयसिंह में नागौर की संधि, विजयसिंह क्षीण -शक्ति नरेश राजपूत-मराठा-संघर्ष में विजयसिंह और प्रतापसिंह का संयुक्त मोर्चा और तुंगा का युद्ध, विजयसिंह द्वारा महादजी की शक्ति क्षीण करने के प्रयास, पाटण का युद्ध और विजयसिंह की पराजय मेड़ता का युद्ध और मराठों के हाथों विजयसिंह की पराजय, द बायने का जोधपुर पर आक्रमण करने का प्रयास, महादजी का राजस्थान में प्रवेश, विजयसिंह और महादजी में संधि, विजयसिंह का देहान्त और भीमसिंह जोधपुर सिंहासन पर आसीन, भीमसिंह और मानसिंह में उŸाराधिकार का संघर्ष, मराठों द्वारा भीमसिंह से धन-वसूली, अफगानिस्तान के जमानशह के आक्रमण की आशंका और राजस्थान में मराठा नीति और घटनाएँ प्रभावित, मानसिंह जोधपुर नरेश, मानसिंह और धौकलसिंह में उŸाराधिकार का संघर्ष और मराठों का हस्तक्षेप तथा मारवाड़ राज्य के विभाजन का उनका प्रयास, धौकलसिंह के समर्थकों की हत्या, मानसिंह द्वारा बीकानेर पर आक्रमण और धौकलसिंह का पक्ष निर्बल, कृष्णाकुमारी के विवाह पर मानसिंह, सवाई जगतसिंह और महाराणा में कशमकश, अमीर खाँ द्वारा धन-प्राप्ति के लिए हत्याएँ और मानसिंह का राजसिंहासन त्याग, अंग्रेजों द्वारा जोधपुर राज्य से संधि, मेवाड़ और मराठे, मेवाड़ में आरिसिंह और रत्नसिंह में उŸाराधिकार का संघर्ष, मराठों का हस्तक्षेप और रत्नसिंह के विरुद्ध अड़सी से समझौता, महादजी सिंधिया द्वारा रत्नसिंह का पक्ष लेना, राजपूतों और महादजी के बीच उज्जैन का युद्ध, महादजी द्वारा उदयपुर का घेरा और अड़सी द्वारा महादजी से उदयपुर की संधि, मराठों द्वारा मेवाड़ राज्य के परगने हड़पना, हड़कियाखाल का युद्ध और मराठों के हाथों राजपूतों की पराजय, अकर्मण्य महाराणा भीमसिंह और मेवाड़ में अराजकता और अव्यवस्था, महादजी सिंधिया से मेवाड़ को अपने संरक्षण में लेने का निवेदन, हमीरगढ़ और चिŸाौड़ दुर्ग का घेरा, मराठों की सहायता से चिŸाौंड़ दुर्ग पर महाराणा भीमसिंह का अधिकार, महादजी द्वारा मेवाड़ के प्रशासन की व्यवस्था और मेवाड़ से प्रस्थान, भीमसिंह के प्रतिद्वन्द्वी रत्नसिंह का दमन, मेवाड़ राज्य पर मराठों का एकाधिपत्य और उसका महत्व, महादजी की विधवा रानियों द्वारा दौलतराव के विरुद्ध विद्रोह और लकवा दादा तथा जग्गू बापू द्वारा उनका समर्थन, लकवादादा द्वारा मेवाड़ से धन वसूली और जयपुर राज्य पर आक्रमण, यशवंतराव होल्कर का मेवाड़ पर आक्रमण और लूट, सिंधिया और होल्कर में मेवाड़ को विभाजित करने के प्रस्ताव, मेवाड़ की राजकन्या कृष्णा कुमारी की सगाई का प्रश्न, मेवाड़ में अराजकता, अव्यवस्था और द्ररिद्रता, मेवाड़ में बापू सिंधिया और जमशेद खाँ के धन प्राप्ति के लिए अत्याचार, मेवाड़ की अंग्रेजों से संधि, कोटा, मराठा-राजपूत सम्बन्धों की समीक्षा, राजस्थान में मराठा आधिपत्य स्थायी और दीर्घकालीन नहीं होने के कारण, मराठों के विरुद्ध राजपूतों की असमर्थता और असफलता के कारण

मराठा-अंग्रेज-सम्बन्ध(सन् 1761 ई. से 1818 ई. तक)

पश्चिमी समुद्र तट पर अंग्रेजों के अधिकार के क्षेत्र, आंग्रे की जलशक्ति का नाश और अंग्रेजों की जलशक्ति व राजसत्ता का उभरना, अंग्रेजों की महत्वाकांक्षाएँ, रघुनाथराव द्वारा अंग्रेजों से सहायता प्राप्त करने के प्रयास, हैदरअली मराठा संघर्ष में अंग्रेजों की तटस्थता की नीति, अंग्रेजों द्वारा मालवनगढ़ पर अधिकार, थामस मोस्टिन के दो दूत-मण्डल, उत्तर भारत में मराठा सत्ता और प्रभुत्व की पुनस्र्थापना और शाहआलम मराठों के संरक्षण में, थाणा, बेसिन, वियजदुर्ग और रत्नागिरि पर अंग्रेजों के आक्रमण, पेशवा नारायणराव की हत्या, और रघुनाथराव द्वारा सत्ता हथियाना, अड़ास के युद्ध में रघुनाथराव की पराजय और वह अंग्रेजों की शरण में पूना में अंग्रेज राजदूत मोस्टिन और मोरोबा में समझौता, अंग्रेजों का थाणा पर आक्रमण और आधिपत्य सूरत की संधि, प्रथम अंग्रेज-मराठा युद्ध सन् 1775-82, युद्ध का प्रथम भाग, कारण, युद्ध की घटनाएँ, वारेन हेस्टिंग्स द्वारा बम्बई सरकार को युद्ध स्थगन के आदेश, पुरन्दर की संधि, युद्ध का द्वितीय भाग, कारण, अंग्रेजों की उग्रविस्तारवादी नीति, सूरत की संधि और अंग्रेजों द्वारा रघुनाथराव का समर्थन, बम्बई सरकार द्वारा पुरन्दर की संधि की अवहेलना और अंग्रेजों की मराठा विरोधी नीति, मराठा राज्यों में उŸाराधिकार के संघर्ष में हस्तक्षेप करके नवीन प्रदश्ेा प्राप्त करने की अंग्रेजों की महत्वाकांक्षा, तथाकथित फ्रेंच राजदूत सेंट ल्युबिन से मराठों की संधि-चर्चाएँ, नाना फड़नवीस के विरुद्ध मोरोबा द्वारा विद्रोह में अंग्रेज सहायता का आश्वासन, तात्कालिक कारण, युद्ध की घटनाएँ, अंग्रेज सेना की पराजय, बड़गाँव की संधि, रघुनाथराव पुनः अंग्रेजों की शरण में, पूना सरकार के विरुद्ध अंगेजों द्वारा फतेसिंह गायकवाड़ से संधि, नाना फड़नवीस द्वारा चार शक्तियों का अंग्रेज विरोधी संघ, अंग्रेज विरोधी संघ का विघटन, विभिन्न मोर्चों पर अंग्रेज मराठा युद्ध, सालबाई की संधि, मराठा टीपू युद्ध और मराठों को अंग्रेजों की सहायता का थोथा आश्वासन, मेलेट पूना में प्रथम अंग्रेज रेजीडेंट, टीपू सुल्तान के विरुद्ध त्रिशक्ति संघ और पूना की संधि, तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध, श्रीरंगपट्टम की संधि, चतुर्थ आंग्ल मैसू युद्ध और मराठों की दोषयुक्त नीति, मराठों द्वारा निजाम से युद्ध और खरड़ा की अपमानजनक संधि से निजाम का अंग्रेजों की ओर झुकाव, महादजी सिंधिया और अंग्रेज, अंग्रेजों के प्रति महादजी की नीति और महादजी की पाश्चात्य ढंग से गठित सेना का प्रभाव, अंग्रेजों के प्रति नाना फड़नवीस की नीति, वेलेजली की मराठा-नीति और पेशवा बाजीराव से सहायक संधि करने के प्रयास, दौलमराव सिंधिया और यशवंतराव होल्कर में गृहयुद्ध, बारामती के युद्ध में पेशवा सेना की पराजय और हड़पसर युद्ध में सिंधिया की पराजय, बाजीराव अंग्रेजों की शरण में और बेसिन की संधि, अंग्रेजों की सहायता से बाजीराव पेशवा पद पर पुनः आसीन, द्वितीय-अंग्रेज-मराठा युद्ध सन् 1803-1805, कारण, युद्ध की घटनाएँ, युद्ध का प्रथम भाग, भोंसले के साथ देवगाँव की संधि, सिंधिया के साथ सुर्जी अर्जुनगाँव की संधि,सिंधिया के साथ बुरहानपुर की सहायक संधि, युद्ध का द्वितीय भाग, यशवंतराव होल्कर द्वारा अंग्रेंजों का विरोध, युद्ध की घटनाएँ, होल्कर से राजपुर घाट की संधि, द्वितीय अंग्रेज-मराठा युद्ध और उसकी संधियों का महत्व, द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध के बाद प्रमुख मराठा शासक और अंग्रेजों द्वारा उनसे संधियाँ, गायकवाड़ और अंग्रेज, भांेसले और अंग्रेज, होल्कर और अंग्रेज, सिंधिया और अंग्रेज, तृतीय अंग्रेज-मराठा युद्ध, सन् 1817-1818, कारण, युद्ध की घटनाएँ, बाजीराव को पेंशन और पेशवा राज्य का अंत, भोंसले-अंग्र्रेज-संघर्ष, होल्कर-अंग्रेज-संघर्ष और मंदसौर की संधि, युद्ध में सिंधिया की तटस्थता और अंग्रेज-सिंधिया संधि, तृतीय अंग्रेज-मराठा युद्ध के परिणाम और महत्व, सतारा के छत्रपति और अंग्रेज, कोल्हापुर के छत्रपति और अंग्रेज, प्रांतीय मराठा राज्य और उनका अंत

मराठा-जाट-सम्बन्ध(सन् 1763 ई. से 1805 ई. तक)

जाट नरेश जवाहरसिंह, जवाहरसिंह द्वारा मराठा सहायता प्राप्त करना, दिल्ली के समीप जवाहरसिंह और नजीबुद्दौला में युद्ध और मल्हारराव होल्कर की उपेक्षापूर्ण नीति, जवाहरसिंह और नाहरसिंह में उŸाराधिकार का संघर्ष, मल्हारराव होल्कर द्वारा उŸाराधिकार के संघर्ष में नाहरसिंह को सहायता, जवाहरसिंह द्वारा मराठों के विरुद्ध सिक्ख सैनिक प्राप्त करना, जवाहरसिंह और मराठों में धौलपुर का युद्ध, नाहरसिंह का अंत, मराठों द्वारा गोहद का घेरा और जवाहरसिंह द्वारा गोहद की सहायता, जाटों और मराठों में संधि, मराठों द्वारा जवाहरसिंह को बंदी बनाने के प्रयास और गुसाई सेनानायकों के शिविर पर जवाहरसिंह का आक्रमण, जवाहरसिंह द्वारा मराठा इलाकों पर आक्रमण और अधिकार, जवाहरसिंह और विजयसिंह द्वारा पुष्कर में मराठा-विरोधी संघ बनाने का प्रयास, भदावर और भिण्ड क्षेत्र में जवाहरसिंह द्वारा मराठा विरोधी गतिविधियाँ, जवाहरसिंह की हत्या, जवाहरसिंह के उŸाराधिकारी रतनसिंह कीहत्या, अल्पवयस्क केसरीसिंह जाट नरेश, रणजीतसिंह और नवलसिंह में उŸाराधिकार का संघर्ष, रामचंद्र गणेश और वीसाजी कृष्ण के नेतृृत्व में विशाल मराठा सेना का उत्तर भारत में पुनरागमन, कुम्भेर दुर्ग के बाहर मराठा सेना के शिविर, मराठों और जाटों में सोंख का युद्ध और मराठों की विजय, मराठों में नीति सम्बन्धी मतभेद और परस्पर फूट, नजीबुद्दौला का मराठों से विश्वासघात, जाट नरेश नवलसिंह से मराठों की संधि, नवलसिंह की मृत्यु और रणजीतसिंह जाट नरेश, जाट-मराठा-सम्बन्ध 1778-1803, मराठों द्वारा रुहेलों के विरुद्ध रणजीतसिंह को सहायता देना, मुगल सेनानायक मिर्जा नजफखाँ द्वारा डींग तथा कुम्भेर और जाट राज्य के इलाकों पर अधिकार, मुहम्मद हमदानी के विरुद्ध रणजीतसिंह और महादजी सिंधिया का पारस्परिक सहयोग, इस्माइल बेग के विरुद्ध जाट-मराठा संयुक्त अभियान, रणजीतसिंह द्वारा मराठा पक्ष का त्याग और अंग्रेजों से संधि रणजीतसिंह द्वारा अंग्रेजों के पक्ष का परित्याग और मराठों से पुनः मैत्री और सहयोग-सम्बन्ध, अंग्रेज, सेनापति लार्ड लेक ओर यशवंतराव होल्कर के डीग में होल्कर शरणागत अंगेजों द्वारा भरतपुर का घेरा और रणजीतसिंह द्वारा होल्कर की सहायता, रणजीतसिंह द्वारा होल्कर के पक्ष का त्याग एवं अंग्रेजों से संधि, मराठा-जाट-सम्बन्धों का अंत, भरतपुर राज्य का अंत 1826

मराठा साम्राज्य के गरिमा विहीन अवसान के कारण

राजनीतिक कारण, दृढ़ केन्द्रीय सत्ता का अभाव, प्रशासकीय अराजकता, ढीला-ढाला लुंज-पुंज मराठा संघ और दृढ़ राजनीतिक संगठन का अभाव, सामन्तवाद की प्रधानता और उनके सांघातिक परिणाम, एकता का अभाव, सुयोग्य व समर्थ नेतृत्व का अभाव, राष्ट्रीयता, देशभक्ति और जनहित की भावना का अभाव, राजनीतिक अदूरदर्शिता और कूटनीतिक अयोग्यता व असमर्थता, भारतीय राजशक्तियों से शत्रुता, आर्थिक कारण, आर्थिक विकास की नीति का अभाव और अनिश्चित, विŸाीय व्यवस्था, धन के अभाव में जागीर देना, धन का गहरा अभाव, और साहूकारों से ऋण सैनिक अभियान, युद्ध व लूटपाट धन-प्राप्ति के साधन, धन-प्राप्ति के लिए राजपूत राज्यों में हस्तक्षेप और उसके दुष्परिणाम, धन प्राप्ति के लिए अन्य शासकों का पक्ष लेकर उनसे धन प्राप्त करना, सैनिक कारण-गैरराष्ट्रीय मराठा सेना और सैनिक शक्ति का ह्रास, गैर-मराठा सैनिकों के कारण मराठा दुर्गों की अभेद्यता की शक्ति का ह्रास मराठों का दूषित सैनिक संगठन, मराठा सेनाओं में दोषयुक्त, यूरोपीयन ढंग का संगठन और प्रशिक्षण, पर्याप्त दूरमारक भारी तोपों, कुशल गोलन्दाजों ओर पर्याप्त गोला बारूद का अभाव, राष्ट्रीय रण-पद्धति और कौशल का परित्याग, उच्च मनोबल, कठोर अनुशासन और एकात्म भाव का अभाव, मराठा सेना में विलास और वैभव की सुख-सुविधाएँ तथा मराठा सैनिक शिविर नगर के समान, मराठा सेना में आपूर्ति विभाग का अभाव, सामाजिक कारण, जातिगत द्वेष कटुता और उसके दुष्परिणाम, मराठों का पिछड़ा सामाजिक परिवेश, श्रेष्ठ आदर्शोंं का त्याग, आकस्मिक कारण, उŸाराधिकार के नियम का अभाव, ज्ञान-विज्ञान की चेतना और उत्कण्ठा का अभाव, संयोग और नियति अंग्रेजों की श्रेष्ठ सैन्य-शक्ति, कूटनीति और राजनीति

मराठा प्रशासन

सरंजामी प्रथा- छत्रपति शिवाजी द्वारा प्रत्यक्ष प्रशासन-व्यवस्था और जागीर के स्थान पर वेतन प्रथा सरंजामी प्रथा, सरंजामी प्रथा से अभिप्राय, सरंजामी प्रथा के गुण-दोष मराठा-मुगल-संघर्ष और शिवाजी के प्रत्यक्ष व्यवस्थित शासन का अंत, प्रशासन का अप्रत्यक्ष स्वरूप और सरंजामी प्रथा, छत्रपति शाहू की दुर्बल राजनीतिक और आर्थिक स्थिति, पेशवा बालाजी विश्वनाथ द्वारा सरंजामदारों से समझौते और सरंजामी प्रथा अधिक व्यापक और स्थायी पेशवा बाजीराव प्रथम द्वारा सरंजामी प्रथा में व्यापक वृद्धि, पेशवा सर्वोपरि सुदृढ़ सरंजामदार, सरंजामी प्रथा के प्रमुख लक्षण और तत्व, विभिन्न प्रकार के सरंजामदार, सरंजामदारों के प्रभाव, शक्ति, हित-संवर्धन और स्वतंत्रता में वृद्धि, सरंजामदारों द्वारा पेशवा की नीतियों व इलाकों मे ंहस्तक्षेप, बेसिन की संधि, और अंग्रेजों द्वारा सरंजामदार प्रथम स्वतंत्र शासक मान्य, पेशवा का अंत और मराठा सरंजामदार अंग्रेज सत्ता के अधीन मराठा साम्राज्य सरंजामदारों का ढीला-ढाला, लुंज-पुंज, समूह, स्वराज्य और साम्राज्य में भेद, स्वराज्य, साम्राज्य, वतन, उत्तर भारत में मराठा प्रशासन, केन्द्रीय प्रशासन, छत्रपति या राजा, पेशवा पूना में पेशवा का हुजूर दफ्तर या पेशवा का सचिवालय, प्रशसकीय इकाइयाँ, मामलतदार, कमाविसदार, कोतवाल, ग्राम-प्रशासन, पटेल, कुलकर्णी, पोद्दार और चोगुला, राज्य की आय के साधन, भूमिकर, राज्य की आय के अन्य साधन, मराठा राज्य की आर्थिक दुर्बलता और धनाभाव, न्याय-व्यवस्था, विभिन्न न्यायालय, कानून, निर्णय और न्याय-दान की प्रक्रिया, दीवानी न्याय, फौजदारी न्याय, कोतवाल, दण्ड विधान, पूना में पुलिस और फौजदारी न्याय-व्यवस्था, मराठा न्याय-व्यवस्था की समीक्षा, सैनिक प्रशासन, अनियमित मराठा अश्ववारोहियों के दल, राजा शाहू के प्रशासनकाल में सेनानायकों को जागीर देकर राजा के अधीन करना, पेशवाओं के शासनकाल में मराठा सेना के विशिष्ट लक्षण, मराठा सेना के अंग, अश्वारोही, बारगीर, शिलेदार, पदाति, येकन्दिया, सैनिकों और अश्वों पर सरकारी नियंत्रण, हथियार, अठारहवीं सदी के अंतिम चरण में मराठा सेना के गठन में परिवर्तन, तोपखाना, पाश्चात्य ढंग पर अनुशासित सेना का गठन, मराठा सेना में भाड़े के गैर-मराठा सैनिकों की बहुलता से सेना का अराष्ट्रीय स्वरूप, पिन्डारी,किले, जलसेना, मराठा प्रशासन और सेना की समीक्षा, चैथ; चैथ के अभिप्राय, चैथ का प्रारम्भ, शिवाजी द्वारा चैथ के रूप में धन वसूली, सरदेशमुखी, सरदेशमुखी से अभिप्राय, शिवाजी द्वारा सरदेशमुखी वसूली, शिवाजी के बाद चैथ और सरदेशमुखी की माँग, मुगल सम्राट बहादुरशाह से चैथ और सरदेशमुखी की माँग, शाहू द्वारा चैथ और सरदेशमुखी की वसूली का अधिकार निजाम द्वारा अमान्य, सैयद हुसैन अली से चैथ और सरदेशमुखी के लिए समझौता, मुगल सम्राट मुहम्मदशाह द्वारा छत्रपति शाहू को चैथ और सरदेशमुखी की सनद, सन् 1719, शाहू के शासनकाल में चैथ और सरदेशमुखी के स्वरूप में अंतर, निजाम द्वारा चैथ व सरदेशमुखी का विरोध और मराठों से निरन्तर संघर्ष, भारत के अन्य क्षेत्रों में मराठों द्वारा चैथ व सरदेशमुखी की वसूली, चैथ और सरदेशमुखी की समीक्षा, चैथ व सरदेशमुखी के परिणाम

मराठों का नवीन इतिहास

आरम्भ काल (1600 ई. तक)

मराठों की उत्पत्ति। मराठी भाषा। महाराष्ट्र की राजनीतिक पृष्ठभूमि। मानभाव सम्प्रदाय का उदय। मानभाव साहित्य। चक्रधर और हेमाद्रि की मृत्यु। मुसलमानों के विरुद्ध सफल विद्रोह। महाराष्ट्र के सन्त और ग्रन्थकार। मराठा जाति की विशेषताएँ। वर्तमान मराठे। महाराष्ट्र में नवजीवन।

उदीयमान सूर्य शाहजी (सन् 1614 ई. से 1636 ई. तक)

परिस्थिति का पर्यवेक्षण। भोंसले-परिवार। रोशनगाँव का युद्ध। शाहजी का विवाह; शिवाजी का जन्म। भटवाड़ी का युद्ध। खानजहाँ लोदी का विद्रोह। शाह के विरुद्ध शाहजहाँ का प्रयाण। शाहजी द्वारा प्रबल प्रतिरोध। दो महापुरुषों से शिक्षा।

शाहजी का उत्तरकालीन जीवन-वृत्त (सन् 1636 ई. से 1664 ई तक)

कर्नाटक में शाहजी का कार्य। बंगलौर पर शाहजी का अधिकार। शाहजी पर राज-कोष। शाहजी के दो पुत्र कार्यक्षेत्र में। शाहजी की मृत्यु।

चन्द्रमा की प्रथम कला (सन् 1644 ई. से 1653 ई तक)

शिवाजी का जन्म और शिक्षण। उनके संरक्षक दादाजी। पहला कार्य। स्वप्न कार्यान्वित। स्वाधीनता की प्राप्ति।

तीव्र प्रगति (सन् 1654 ई. से 1660 ई. तक)

मोरे-परिवार का विनाश। 1657 की राजनीतिक परिस्थिति। उत्तर और दक्षिण कोंकण पर अधिकार। प्रशासकीय कार्य। अफजलखाँ का अन्त। पन्हाला का घेरा-शिवाजी का बच निकलना।

उत्थान और पतन (सन् 1661 ई. से 1665 ई. तक)

कर्तलबखाँ का मान-मर्दन। अंग्रेज व्यापारी कैद में। शाइस्ताखाँ पर रात्रि में धावा। सूरत की लूट। बीजापुर हलचल, बाजी घोरपड़े का दमन। जयसिंह और शिवाजी का सामना।

सिंह अपनी ही गुफा में परास्त (सन् 1666 ई. से 1667 ई. तक)

आगरा जाने में हिचकिचाहट। दरबार खास। आश्चर्यजनक पलायन। बाद के परिणाम; शान्ति।

और महान् विजयें (सन् 1668 ई. से 1673 ई. तक)

मुगल धर्मान्धता की नवीन लहर। शिवाजी की प्रतिक्रिया; अपहृत गढ़ांे पर पुनः अधिकार। सूरत की दूसरी लूट और उसका परिणाम। साल्हेर का भयानक रक्तपात। पन्हाला पर अधिकार। प्रतापराव गूजर का आत्मबलिदान।

कार्य की पूर्ति (सन् 1674 ई. से 1676 ई तक)

राज्याभिषेक-वास्तविक महत्व। राज्याभिषेक-संस्कार। सर्वत्र अशान्ति का वर्ष।

दक्षिण- विजय (सन् 1677 ई. से 1678 ई. तक)

दक्षिण में प्रसार; आवश्यकता और अवसर। कोपबल पर अधिकार। भागानगर में भव्य आगमन। बीजापुरी कर्नाटक पर अधिकार। दोनों भाई और उनकी पैतृक सम्पत्ति। पैतृक सम्पत्ति का सम्मत विभाजन।

चन्द्रास्त (सन् 1678 ई. से 1680 ई. तक)

कर्नाटक-अभियान के परिणाम। औरंगजेब की असहनशीलता की नीति का सार्वजनिक विरोध। शम्भाजी द्वारा पक्ष-त्याग। शम्भाजी के उद्धार के प्रयास विफल। मृत्यु। परिवार और धर्म-गुरु।

शिवाजी का चरित्र और उनके कार्य

अमात्य द्वारा प्रशंसा। शिवाजी और रामदास। शिवाजी और हिन्दु-साम्राज्य। अष्ट प्रधान और प्रशासन। स्थल और समुद्र के दुर्ग। सैन्य-संगठन। नौ-सेना और जंजीरा का सिद्दी। अंग्रेजों के शिवाजी से सम्बन्ध। क्या शिवाजी डाकू मात्र थे?विचारकों और लेखकों द्धारा शिवाजी का मूल्यांकन ।निष्कर्ष।

उग्र शम्भाजी (सन् 1680 ई. से 1689 ई. तक)

राजयारोहण। अकबर का भागकर शम्भाजी के पास आना। औरंगजेब का दक्षिण में आगमन। शम्भाजी के राज्यकाल का रक्तमय आरम्भ। विशाल योजनाएँ। औरंगजेब का पराभव। शम्भाजी द्वारा पुर्तगाली आतंकित। अकबर का दुखद अन्त। वीर दुर्गादास। शम्भाजी का पकड़ा जाना। दुखद मृत्यु।

स्थिर-बुद्धि राजाराम (सन् 1689 ई. से 1700 ई. तक)

दो देदीप्यमान तारे। रायगढ़ का पतन और रामचन्द्र पन्त का नेतृत्व। मराठांे का जिंजी को प्रयाण। सम्राट् की गतिविधि। जिंजी का घेरा। मराठों के उद्देश्य। घेरा डालने वाले स्वयं घेरे में। सन्ताजी के वीरतापूर्ण कार्य। सन्ताजी का दुखद अन्त।गुरिल्ला युद्ध-शैली का वर्णन। राजाराम का पलायन और जिंजी का पतन। राजाराम की मृत्यु और उसका चरित्र।

प्रतिरोध (सन् 1700 ई. से 1707 ई. तक)

ताराबाई द्वारा सम्राट का विरोध। शाहू कैद में। बालाजी विश्वनाथ से सम्पर्क। रायभानजी कक। येसुबाई की मार्मिक प्रार्थना। औरंगजेब के जीवन की करुण गाथा। औरंगजेब की मृत्यु। ताराबाई की विजय।

शाहू की स्थिति का स्थिरीकरण (सन् 1707 ई. से 1715 ई. तक)

शाहू का गृहागमन। खेड़ का युद्ध। सतारा में राज्याभिषेक। बालाजी विश्वनाथ का उत्कर्ष। शाहू तथा बहादुरशाह। चन्द्रसेन द्वारा पक्ष-त्याग; कोल्हापुर का उदय। बालाजी का पेशवा का पद प्राप्त करना।

नवयुग का उदय (सन् 1715 ई. से 1720 ई. तक)

शाही राजनीति शाहू के पक्ष में। मित्र राजपूत राजा। सैयद हुसैनअली दक्षिण में। हुसैनअली का मराठा सहायता प्राप्त करना। मराठा अधीनता की शर्ते। दिल्ली को बालाजी का अभियान। सशस्त्र संघर्ष। येसुबाई की कारागार से मुक्ति तथा मृत्यु। चैथ और सरदेशमुखी की व्याख्या। जागीरदारों का आरम्भ तथा उसके दोष। वंश-परम्परागत पद। बालाजी की मृत्यु, चरित्र-निरूपण।

निजाम तथा बाजीराव-प्रथम सम्पर्क (सन् 1720 ई. से 1724 ई. तक)

प्रतिष्ठापना तथा दरबार में स्थिति। सैयद-बन्धुओं का पतन। निजामुल्मुल्क द्वारा मराठा अधिकारों का विरोध। बाजीराव के सम्मुख नवीन संकट। निजाम का अपने को स्वतन्त्र धोषित करना।

दक्षिण तथा उत्तर में वेगवती सफलताएँ (सन् 1725 ई. से 1729 ई. तक)

कर्नाटक में दृढ़ीकरण। निजामुल्मुल्क का सम्भाजी को छत्रपति बनाना। पालखेड़ में निजाम का मानमर्दन। अंझेरा का तीव्र युद्ध। छत्रसाल का उद्धार।

अन्य विजयें (सन् 1730 ई. से 1731 ई. तक)

दीपसिंह का दूतमण्डल। सम्भाजी अधीन। राजबन्धुओं का यथाविधि मिलन तथा सहमति। सेनापति दाभाड़े का निष्क्रमण।

मुगल सत्ता का पराभव (सन् 1732 ई. से 1739 ई. तक)

जंजीरा पर युद्ध, ब्रह्मेन्द्र स्वामी का प्रतिशोध। बाजीराव की निजाम से भेंट। मराठों को रोकने का जयसिंह द्वारा प्रयास। राधाबाई की उत्तर में तीर्थयात्रा। सम्राट् का बाजीराव से मिलने से इन्कार करना। बाजीराव का दिल्ली पर धावा। निजाम का भोपाल में पराभव।

बाजीराव की अन्तिम अवस्था (सन् 1739 ई. से 1740 ई. तक)

नादिरशाह का आक्रमण- हिन्दू प्रभुत्व (?) पुर्तगालियों से युद्ध; बसई पर अधिकार। बम्बई में प्रतिक्रिया। लघु घटनाएँ- आंग्रे-परिवार। मस्तानी की प्रेम-कथा। नासिरजंग परास्त। आकस्मिक मृत्यु। बाजीराव का चरित्र।

पेशवा बालाजीराव-सफल प्रारम्भ (सन् 1740 ई. से 1741 ई. तक)

पेशवा-पद पर आरोहण; चिमनाजी की मृत्यु। नये स्वामी द्वारा कार्यारम्भ। नासिरजंग का विद्रोह। मालवा पर अधिकार।

बंगाल में मराठा प्रवेश (सन् 1742 ई. से 1752 ई. तक)

उड़ीसा-कष्ट का मूल। भास्करराम कटवा में। रघुजी तथा पेशवा की परस्पर टक्कर। मेल-मिलाप। मराठा सेनापतियों की हत्या। बंगाल पर चैथ लागू।

अधिक सफलताओं की ओर (सन् 1744 ई. से 1747 ई. तक)

बुन्देलखण्ड का दृढ़ीकरण-झाँसी। दो उल्लेखनीय मृत्युएँ। राजपूत-युद्ध। सामाजिक सम्पर्क। आंग्रेबन्धु- मानाजी तथा तुलाजी। पिलाजी जाधव।

त्रिचनापल्ली के निमित्त संघर्ष (सन् 1740 ई. से 1748 ई. तक)

चाँदासाहव का उदय। रघुजी भोंसले का त्रिचनापल्ली पर अधिकार। चाँदासाहब बन्धन में। त्रिचनापल्ली अपहृत। बाबूजी नायक तथा पेशवा।

वैभवशाली शासनकाल का अन्त (सन् 1748 ई. से 1749 ई. तक)

शाहू के अन्तिम दिन। उत्तराधिकारी की खोज। अन्तिम निश्चय। शाहू की मृत्यु। शाहू की सन्तान। समकालीन सम्पत्ति। चरित्र निरूपण। शाहू की उदारता। शाहूनगर।

राजतन्त्र को खतरा (सन् 1750 ई. से 1761 ई. तक)

रामराजा प्रतिष्ठापित। संगोला में वैधानिक क्रान्ति। रामराजा निरोध में। ताराबाई से मेल। कोल्हापुर का सम्भाजी। पेशवा के उद्देश्य तथा उसकी निर्बलताएँ।

गुजरात में दमाजी गायकवाड़ (सन् 1749 ई. से 1759 ई. तक)

पेशवा पर दमाजी का आक्रमण। पेशवा का उत्तर। पेशवा की विजय। अहमदाबाद पर अधिकार। सूरत तथा भड़ौच।

मराठा-निजाम संघर्ष (सन् 1751 ई. से 1761 ई. तक)

बुसी घटनास्थल पर। मराठा-निजाम युद्ध (1751-52)। तोपखाने काउपयोग-मुजफ्फरखाँ। सावनूर का पतन-मुजफ्फखाँ का अन्त। कर्नाटक विषयक कार्य असम्पूर्ण। बुसी चारमीनार में। सिन्धखेड़ पर निजाम की पराजय। भीषण हत्याएँ। उदगीर का युद्ध।

दो न सुधरने योग्य सरदार (सन् 1755 ई. से 1760 ई. तक)

नागपुर का उत्तराधिकार। तुलाजी आंग्रे उद्धत विजयदुर्ग का पतन। पेशवा का विरोध। क्या पेशवा ने मराठा नौ-समूह का नाश किया? मानाजी तथा रघुजी आंग्रे।

दिल्ली में मराठों की जटिल परिस्थिति (सन् 1750 ई. से 1753 ई. तक)

अब्दाली तथा पंजाब। पठान-युद्ध; सफदरजंग द्वारा मराठा सहायता की याचना। मराठों का उद्देश्य। अब्दाली के प्रति पंजाब का समर्पण। दिल्ली में गृहयुद्ध।

मराठों का दुराचार-अब्दाली का अधिकार सुदृढ़ (सन् 1754 ई. से 1757 ई. तक)

रघुनाथराव कुम्भेर के समीप। सम्राट् की हत्या। रघुनाथराव का कुप्रबन्ध। राठौर-युद्ध; जयप्पा की हत्या। अब्दाली को निमन्त्रण। दिल्ली में अत्याचार। अब्दाली का विजयोल्लासपूर्ण निवर्तन।

अब्दाली की विजयिनी प्रगति (सन् 1759 ई. से 1760 ई. तक)

रघुनाथराव दिल्ली में। मराठे अटक में। नजीबखाँ के नियन्त्रण में असफलता। दत्ताजी का शुक्रताल में घिर जाना। दत्ताजी का बरारी घाट पर मारा जाना।

पटदुर से पानीपत तक (मार्च-दिसम्बर, 1760)

भाऊसाहव का दिल्ली को प्रस्थान। शुजाउद्दौला अब्दाली के साथ। शान्ति-प्रस्ताव। कुंजपुरा पर अधिकार। पानीपत में सामना।

पानीपत के युद्ध का दुखद अन्त (सन् 1761)

प्याला लबालब भरा। युद्धक्षेत्र में दोनों दलों की स्थिति। युद्ध। विजेता की पूर्ण दुर्दशा तथा पेशवा से सन्धि। बुन्देलखण्ड में पेशवा की दुर्दशा। विपत्ति का पुनःनिरीक्षण। विपत्ति का महत्व। पेशवा के अन्तिम दिन। बालाजीराव का चरित्र।

माधवराव का स्वत्वाधिकार-ग्रहण (सन् 1761 ई. से 1763 ई. तक)

निजामअली का पूना पर आक्रमण। गृहयुद्ध-पेशवा की पराजय। आलेगाँव की सभा। मराठा-निजाम शत्रुता। राक्षसभुवन का निर्णय।

पेशवा द्वारा अपने अधिकार की माँग (सन् 1763 ई. से 1767 ई. तक)

हैदरअली पर आक्रमण। पुरन्दर के कोली। हैदरअली से सन्धि। जानोजी भोंसले के विरुद्ध प्रयाण। निजामअली से मित्रता। बाबूजी नायक का मानमर्दन। नकली सदाशिवराव भाऊ। महादजी सिन्धिया का उदय। ब्रिटिश विभीषिका।

उत्तर में मराठा आकांक्षाएँ पूर्ण (सन् 1761 ई. से 1772 ई. तक)

उत्तर भारत में मराठा अवनति। मल्हारराव होल्कर परास्त। क्लाइव तथा दीवानी। रघुनाथराव गोहद के सम्मुख। रामचन्द्र गणेश का अभियान तथा उसके परिणाम। अंग्रेजों द्वारा मराठा योजनाओं का विरोध। सम्राट् का दिल्ली में लौटना।

राज्य के आन्तरिक कार्य (सन् 1765 ई. से 1772 ई. तक)

रघुनाथराव द्वारा विभाजन की माँग। रघुनाथराव की पूर्ण पराजय। भोंसले आज्ञापालन पर विवश। दमाजी गायकवाड़ की मृत्यु। हैदरअली से युद्ध का पुनः आरम्भ (1767-1772)।

दुखद अन्त (सन् 1772)

पेशवा का असाध्य रोग। उसकी अन्तिम अभिलाषा। शन्तिपूर्ण मृत्यु। पत्नी तथा माता। पेशवा का चरित्र। विदेशी प्रशंसा। उपाख्यान।

नारायणराव का नौ मास का शासन (सन् 1772 ई. से 1773 ई. तक)

पूना का शासक मन्दप्रभ। नारायणराव पेशवा नियुक्त। पूना की परिस्थिति-गार्दी लोग। उत्तेजना का आरम्भ-विसाजी पन्त लेले। नागपुर का उत्तराधिकार-प्रभु लोग। नारायणराव को राज्यच्युत करने का षड्यन्त्र। हत्या कार्यान्वित। रामशास्त्री द्वारा अन्वेषण तथा दण्ड।

अकारण ब्रिटिश आक्रमण (सन् 1774 ई. से 1776 ई. तक)

बारभाइयों की सभा; हत्यारा पलायक हुआ। मोस्टिन द्वारा अपकार-थाना हस्तगत। कासेगाम की लड़ाई-पेठे का बध। माधवराव नारायण का जन्म। अडास का युद्ध-सूरत की सन्धि। पूना में अपटन का दौत्य। सुन्दर की सन्धि। छाद्यिक का अन्त।

ब्रिटिश चुनौती (सन् 1776 ई. से 1779 ई. तक)

बारभाइयों के सम्मुख कार्य। भारतीय राजनीति में अन्तराष्ट्रीय तत्व। मोरोबा फड़निस द्वारा विश्वासघात; ब्रिटिश का बड़गाँव में पराभव। महादजी घटनास्थल पर। रघुनाथराव की नवीन माया।

ब्रिटिश-मराठा युद्ध का अन्त (सन् 1779 ई. से 1783 ई. तक)

रघुनाथराव तथा गोडार्ड। ब्रिटिश विरोधी संघ। नागपुर के भोंसले परिवार का प्रलोभन। गुजरात तथा मद्रास में युद्ध। गोडार्ड की विचित्र असफलता। मालवा में महादजी की दृढ़स्थिति। सल्बाई की सन्धि। सल्बाई का निर्णय। रघुनाथराव का अन्त। हैदरअली तथा अन्य व्यक्ति। अल्पव्यस्क पेशवा का संवर्धन।

मराठों का दिल्ली में पुनरागमन (सन् 1783 ई. से 1788 ई. तक)

दो समकालीन व्यक्ति-नजफखाँ तथा महादजी। बेनौय द बायने। दिल्ली में इंगलिश महत्वाकांक्षाएँ। महादजी के लिए वकीले मुतलकी। राजपूतों के विरुद्ध महदजी का युद्ध-लालसोट। महादजी का सावधानी से स्थिति में सुधार। गुलाम कादिर मुगल प्रासाद में। अलीबहादुर अग्रदल में।

आन्तरिक शान्ति तथा वृद्धि के वर्ष (सन्1784 ई. से 1792 ई. तक)

युद्ध पश्चात् मराठा राज्य की समस्याएँ। मित्रता की त्रिदलीय सन्धि। मैसूर युद्ध के कारण। टीपू की अधीनता। सर चाल्र्स मैलेट पूना का रेजीडेण्ट।

उत्तर में शिन्दे का कार्य समाप्त (सन् 1789 ई. से 1791 ई. तक)

महादजी को ब्रिटिश की फटकार। अलीबहादुर तथा महादजी में फूट। होलकर परिवार का निराशामय ह्रास। बाबाराब गोविन्द-महादजी का परामर्शक। राजपूतों का क्षय।

शिन्दे पूना में (सन् 1792 ई. से 1794 ई. तक)

दक्षिण आने में शिन्दे के उद्देश्य। 22 जून, 1792 का दरबार। पूना मंत्रिमण्डल का शिन्दे से विरोध। लाखेरी में होलकर का पराभव। पूना में सिन्धिया की विजय। सचिव के प्रति दुव्र्यवहार। घासीराम कोतवाल का दुःखद अन्त।

अन्तिम महान मराठा सरदार (सन् 1794)

महादजी शिन्दे की मृत्यु। चरित्र तथा कार्य। भारत में यूरोपीय साहसिक। महादजी के मुख्य अनुचर।

टिमटिमाती ज्योति (सन् 1795)

अल्पवयस्क पेशवा का पालन-पोषण। पूना समाज पर ब्रिटिश प्रभाव। मराठा-निजाम-वैमनस्य का आरम्भ। मुशीरुल्मुल्क अनम्य। खरडा का रण। नाना तथा काले निजामअली द्वारा वंचित। उज्ज्वल आशा विफल।

दुर्बुद्धि कार्यक्षेत्र में (सन् 1796 ई. से 1798 ई. तक)

उत्तराधिकारी की खोज में षड्यन्त्र। महाद से नाना की आकस्मिक चाल। बाजीराव पेशवा बनता है। दुष्ट त्रिमूर्ति। नाना फड़निस कारावास में। शिन्दे महिलाओं द्वारा युद्ध। छत्रपति द्वारा स्वतन्त्र होने का प्रयास।

संकट की ओर (सन् 1798 ई. से 1801 ई. तक)

भारत में महान शासक का आगमन। वेलेजली की प्रथम सफलता। नाना फड़निस की मृत्यु तथा उसका चरित्र। ढांेडिया बाध का विद्रोह। यशवन्तराव होलकर का उदय। बिठोजी होलकर का बध। यशवन्तराव होलकर रक्षक की स्थिति में। यशवन्तराव का दक्षिण को प्रस्थान। बाजीराव पूना में परास्त।

पेशवा द्वारा स्वातन्त्रय विक्रय (सन् 1802 ई. से 1803 ई. तक)

बाजीराव का पलायन-दारुण प्रहार। बसई की सन्धि-पूना द्वारा शक्ति संग्रह। बाजीराव पूना में पुनः स्थापित। अमृतराव द्वारा देशद्रोह। बाजीराव कार्य तथा उत्तरदायित्व से मुक्त। किंग कालिन्स शिन्दे के पास। होलकर द्वारा संघ का परित्याग।

मराठा स्वातन्त्र का अन्त (सन् 1803 ई. से 1805 ई. तक)

दक्षिण में युद्ध। उत्तर भारतीय अभियान-पेरांे द्वारा विश्वासघात। भोंसले तथा शिन्दे द्वारा शान्ति-सन्धि। आर्थर वेलेजली की वृत्ति। होलकर का प्रकोप। कर्नल मोनान की विपत्ति। अजेय भरतपुर। सबलगढ़ की सभा-ब्रिटिश आवास का अपमान। वेलेजली का वापस बुलाया जाना-नीति परिवर्तन। यशवन्तराव होलकर का अन्त।

न्याय-संगत प्रतिफल (सन् 1806 ई. से 1815 ई. तक)

बाजीराव के कष्ट। बाजीराव का अपने जागीरदारों से झगड़ा। बाजीराव का प्रशासन-सदाशिव मानकेश्वर खांडेराव रस्ते, खुर्शेदजी मोदी-त्रिम्बकजी डैंगले। गायकवाड़ द्वारा सहायक सन्धि पर हस्ताक्षर। पेशवा-गायकवाड़ कलह-शास्त्री का दूतमण्डल। शास्त्री की हत्या। उत्तर कष्ट-त्रिम्बकजी का समर्पण।

अन्तिम प्रयास (सन् 1817 ई. से 1818 ई. तक)

शिम्बकजी का अद्भुत पलायन। बाजीराव पर नवीन सन्धि लागू नागपुर का अप्पा साहेब। पिण्डारी लोग तथा उनके कार्य। पिण्डारियों का विनाश। होलकर की सत्ता नष्ट। पेशवा द्वारा युद्ध। पेशवा का पलायन। ब्रिटिश घोषणा-बाजीराव के कष्ट। माल्कम के प्रति आत्मसमर्पण।

अन्तिम दृश्य (सन् 1818 ई. से 1848 ई. तक)

चतरसिंह भोंसले तथा छत्रपति का परिवार। प्रतापसिंह की सतारा में प्रतिष्ठापना। विजित प्रदेश का प्रबन्ध। प्रतापसिंह की दुखद कथा। मराठा पतन के कारण। संस्मरण।

मध्यकालीन भारतीय संस्कृति

मध्ययुगीन संस्कृति के स्रोत
(1) ऐतिहासिक ग्रन्थ - चचनामा; तारीख-उल-हिन्द; ताजुल-मासिर; तबकाते नासिरी; तारीखे-फीरोजशाही; फतुहाते-फीरोजशाही; सीरते-फीरोजशाही; किताबुल-रहला; तारीखे-सलातीने अफगान।
(2) मुगलकालीन ऐतिहासिक ग्रन्थ - हुमायूँनामा; तबकाते बाबरी; अकबरनामा; आइने-अकबरी; यात्रा-वर्णन।
(3) साहित्यिक ग्रन्थ।
(4) अमीर खुसरो के ग्रन्थ।

भारत में इस्लाम

इस्लाम का जन्म; हिजरत; इस्लाम के सिद्धान्त; भारत और इस्लाम; भारत में मुस्लिम आक्रमण।

मध्ययुगीन समाज

सल्तनत युग में भारतीयों का जीवन- (क) मुस्लिम समाज: (1) सुल्तान; (2) अमीर: अमीरों का प्रभाव, उपाधियाँ, राजनीति में अमीरों का प्रभाव; (3) उलमा, (4) सर्वसाधारण; (ख) हिन्दू समाज; हिन्दुओं की ईमानदारी; हिन्दुओं का दम्भ; अस्पृश्यता तथा दास-प्रथा; अन्धविश्वास; मुगल युग में हिन्दू समाज; हिन्दुओं में जाति-भेद, ब्राह्मणों की स्थिति में परिवर्तन; मुगलकालीन सामाजिक जीवन; मुगलकालीन अमीर और सामन्तवाद; भोग-विलास का जीवन; अमीरों का सम्पŸिा को जब्त करना; मुगल बादशाहों का रहन-सहन; मध्यमवर्ग की दशा; सर्वसाधारण जनता या निम्न वर्ग; स्त्रियों की स्थिति; मुस्लिम-स्त्रियों की स्थिति; पर्दा-प्रथा; विवाह-प्रथा; स्त्री-शिक्षा; सती-प्रथा; जौहर-प्रथा; मुगलकला में स्त्रियों की दशा; पर्दा-प्रथा, जायसी, चैतन्य और विद्यापति; बाल-विवाह; स्वयंवर प्रथा; बहुविवाह प्रथा; विधवा की स्थिति; स्त्रियों का सम्मान; स्त्रियाँ और शिक्षा; स्त्री शासन की प्रबन्धिका के रूप में; स्त्री योद्धा के रूप में; राजपूत नारियाँ और उनका उज्ज्वल चरित्र; दास-प्रथा; शाही-दास दास-प्रथा के लाभ; दासों का सल्तनत के पतन में योग; मध्यकालीन भारतीयों का रहन-सहन; खान-पान; अमीर तथा उच्च वर्ग का भोजन, मध्ययुगीन मनोरंजन।

धार्मिक नीति

सल्तनतकालीन धार्मिक नीति

भक्ति आंदोलन

भक्ति-आंदोलन का स्वरूप; भक्ति-आंदोलन के उदय के कारण; भक्ति-आंदोलन की विशेषताएँ और उसके परिणाम; भक्ति-आंदोलन के सन्त; जाति-प्रथा का विरोध; हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल।

सूफी मत

सूफी शब्द का अर्थ; सूफी मत का मूल तथा विकास; भारत में सूफी मत का विकास; सूफीवाद के प्रमुख सिद्धान्त; ख्वाजा कुतुबद्दीन बख्तियार काकी; ख्वाजा फरीदुद्दीन मसूद गंज-ए-शिकार; निजामुद्दीन औलिया; दिल्ली के शेख नासिरुद्दीन चिराग; शेख सलीम चिश्ती; सूफी मत का प्रभाव।

हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रयास (अकबर एक राष्ट्रीय शासक के रूप में)

सूफी सन्तों के प्रयास; अकबर के प्रयास; दीन-इलाही; दारा शिकोह के प्रयास

अमीर खुसरो

अमीर खुसरो का भारत-प्रेम; संगीत के क्षेत्र मे ंसमन्वय; साहित्यिक क्षेत्र में देन; साहित्यिक रचनायें, ऐतिहासिक रचनायें

मध्यकाल में राज्य का स्वरूप

सल्तनतकाल में राज्य का स्वरूप; अन्य धर्मों का स्थान; सल्तनत काल में खलीफा की स्थिति; प्रभुसत्ता का मुस्लिम सिद्धान्त और इमाम की स्थिति; मुस्लिम प्रभुसत्ता की विशेषताएँ; सुल्तान की स्थिति; मुगलकाल में राज्य का स्वरूप; मुगलों द्वारा खलीफा की अधीनता अस्वीकार; राज्य का सैनिक स्वरूप

धार्मिक दशा

कृषि; उद्योग; राजकीय उद्योग षालाएँ; अन्य विभिन्न उद्योग विदेशी व्यापार; आन्तरिक व्यापार; नगरों की दशा वस्तुओं के मूल्य; मध्ययुगीन समाज का आर्थिक स्तर; सुल्तान; अमीर; व्यापारी; निम्न वर्ग

मध्ययुगीन शिक्षा

मुस्लिम शिक्षा की विशेषता; शिक्षा व्यवस्था; स्त्री-शिक्षा; राज्य और शिक्षा; सल्तनत काल में शिक्षा का विकास; खिलजी वंश; तुगलक वंश; लोदी वंश; मुगल काल में शिक्षा का विकास; परीक्षा प्रणाली तथा उपाधियाँ; व्यावसायिक शिक्षा; ज्योतिष तथा औषधि-विज्ञान; मुस्लिम शिक्षा केन्द्र; दिल्ली; आगरा; जौनपुर; बीदर; काष्मीर; गुजरात; हिन्दू-शिक्षा; हिन्दू शिक्षा केन्द्र; स्त्री-शिक्षा।

साहित्य का विकास

सल्तनत युग में; अनुवाद कार्य; संस्कृत साहित्य; हिन्दी साहित्य; गुजराती; मराठी तथा बंगला साहित्य; तेलगु साहित्य; उर्दू का विकास; मुगल काल में साहित्य का विकास; फारसी साहित्य; अनुवाद; संस्कृत साहित्य; हिन्दी साहित्य; बंगला तथा मराठी साहित्य; गुजराती साहित्य; उर्दू साहित्य।

उर्दू भाषा (उत्पŸिा और विकास)

भक्त कवि और उर्दू; दक्षिण में उर्दू; मुगल काल में उर्दू।

सल्तनतकालीन स्थापत्य-कला

हिन्दू-मुस्लिम कला का समन्वय; गुलाम वंश की इमारतें; कुतुबुद्दीन ऐबक के काल की इमारतें; इल्तुतमिश कालीन स्थापत्य कला; खिलजीकालीन वास्तुकला; तुगलक कालीन स्थापत्य कला; सर जाॅन मार्शल; सैयद तथा लोदीकालीन स्थापत्य कला; प्रान्तीय स्थापत्य कला; मुल्तान बंगाल; मालवा; गुजरात; काश्मीर; दक्षिण।

मुगलकालीन स्थापत्य-कला

बाबरकाली स्थापत्य कला; हुमायूँकालीन स्थापत्य कला; षेरशाहकालीन स्थापत्य कला; हुमायूँ का मकबरा; आगरे का लाल किला अकबरी महल; इलाहाबाद का किला; लाहौर का किला; फतहपुर सीकरी; दीवाने आम; दीवाने खास; जोधाबाई का महल; तुर्की सुल्तान का महल; पंचमहल; टकसाल तथा अस्पताल; ज्योतिष भवन; मरियम का भवन; सराय तथा हिरन मीनार; जामा मस्जिद; बुलन्द दरवाजा; शेख सलीम चिश्ती का मकबरा; फतहपुर सीकरी के स्थापत्य की विशेषतायें; जहाँगीरकालीन स्थापत्य कला; मरियम की समाधि; एत्मादुद्दौला का मकबरा; जहाँगीर का मकबरा; षाहजहाँकालीन स्थापत्य कला; औरंगजेबकालीन स्थापत्य कला; दक्षिणी भारत; हिन्दू स्थापत्य।

चित्रकला का विकास

अकबरकालीन चित्रकला; जहाँगीरकालीन चित्रकला; शाहजहाँ कालीन चित्रकला; मुगल चित्रकला की विशेषताएँ; राजपूत शैली; राजपूत शैली के विषय; राजपूत शैली की शाखायें; मुगल और राजपूत शैली में अंतर।

विभिन्न ललित कलायें

संगीत; मुगलकालीन संगीत; बागवानी; मूर्तिकला।

भारतीय संस्कृति और इस्लाम

स्थायी प्रभाव का अभाव; हिन्दुत्व पर इस्लामी संघात (प्रभाव); समाज के क्षेत्र में; आर्थिक क्षेत्र में; साहित्य के क्षेत्र में; युद्ध-कला तथा प्रशासन के क्षेत्र में; विभिन्न कलाओं के क्षेत्र में; उद्यान कला पर प्रभाव; इस्लाम और हिन्दू संघात; धार्मिक क्षेत्र में सामाजिक क्षेत्र में।

सांस्कृतिक इतिहास जानने के साधन

मध्यकालीन भारतीय संस्कृति के ज्ञान के साधन - ऐतिहासिक ग्रन्थ, ऐतिहासिक ग्रन्थों की विवेचना, अमीर खुसरो के ग्रन्थ, साहित्य, विदेशी यात्रियों के यात्रा-वर्णन, अमुख्य साधन, मध्यकालीन सांस्कृतिक इतिहास के फारसी ग्रन्थ- सल्तनतकाली फारसी साहित्य, मुगलकालीन फारसी साहित्य।

सामाजिक दशा

सल्तनलकालीन सामाजिक दशा - जाति प्रथा, हिन्दुओं की दशा, दास प्रथा, स्त्रियों की दशा, भोजन, वस्त्र आभूषण, मनोरंजन, आर्थिक दशा-कृषि, कला-कौशल एवं दस्तकारियों, व्यापार, मध्ययुगीन भारतीयों का जीवन-खान-पान, माँस का प्रचलन, हिंदू रसोई का ढंग, फल तथा पेय पदार्थ, मादक द्रव्यों का प्रचलन, वस्त्र और श्रृंगार प्रसाधन, मध्ययुगीन मनोविनोद एवं मनोरंजन -सैनिक एवं शारीरिक खेल, घर के भीतर खेले जाने वाले खेल, प्रचलित और लोकप्रिय मनोरंजन -(अ) हिन्दू त्यौहार, (ब) मुस्लिम त्यौहार, (स) शाही त्यौहार तथा उत्सव, फतुहात-ए-फीरोजशाही के अनुसार उत्तरी भारत का जीवन - सामाजिक दशा, शिक्षा एवं साहित्य, आर्थिक दशा, धार्मिक दशा, सल्तनत काल में स्त्रियों की दशा - हिन्दू परिवारों में स्त्री की स्थिति, मुस्लिम परिवारों में स्त्री की स्थिति, स्त्री शिक्षा, पर्दा-प्रथा, विवाह एवं बहुविवाह प्रथा, सती प्रथा, जौहर प्रथा, मुगलकाल में स्त्रियों की दशा - पर्दे की प्रथा, साधारण एवं निम्न वर्ग में पर्दा-प्रथा का होना, लड़की का जन्म: अशुभ, मुसलमानों में बहु विवाह प्रथा, हिन्दुओं में एक विवाह प्रथा, बाल विवाह प्रथा, राजपूतों के पति चुने की स्वतंत्रता, स्त्री: पत्नी के रूप में, स्त्री: विधवा के रूप में, स्त्री: एक माता के रूप में, स्त्री की आर्थिक स्थिति एवं पेशा, शिक्षा-क्षेत्र मे देन, शासन-प्रबन्ध के क्षेत्र में देन, मुगलकालीन स्त्रियाँ: वीर एवं लड़ाकू, हिन्दू स्त्रियों का उच्च चरित्र एवं जौहर प्रथा, मध्यकाल में स्त्रियों की दशा, अमीर और उसका अस्तित्व - अमीरों की उपाधियाँ एवं उनके भेद, अमीरों का दिल्ली सल्तनत पर प्रभाव, मध्य युग में दास-प्रथा, दासों की दशा, शाही दास, दास: सल्तनत के पतन के कारण बने, मध्ययुग में हिन्दुओं की स्थिति -सल्तनत युग में उनकी दशा, मुगल युग में उनकी दशा, हिन्दु-मुस्लिम एकता-सूफी तथा अय संतों के प्रयत्न, शाही प्रयत्न, अमीर खुसरो, साहित्यिक क्षेत्र में देन-साहित्यिक रचनाएँ, ऐतिहासिक रचनाएँ, भारत-प्रेमी और हिन्दी-क्षेत्र में देन, संगीत के क्षेत्र में देन, अमीर खुसरो का चरित्र, बाबर द्वारा भारत का वर्णन, अकबर द्वारा भारत का वर्णन, अकबर द्वारा हिन्दू मुस्लिम एकता।

आर्थिक दशा

मध्यकालीन उद्योग एवं वाणिज्य - उद्योग, वस्त्र उद्योग, धातुओं का उद्योग, पत्थर और ईंटों का उद्योग, कागज का उद्योग, चीनी का उद्योग, चमड़े का उद्योग, कुछ अन्य उद्योग, व्यापार और वाणिज्य - आन्तरिक व्यापार, विदेषी व्यापार, समुद्री व्यापार, सीमान्त प्रदेषों से भू-मार्ग द्वारा व्यापार, मुगलकालीन आर्थिक व्यवस्था, मध्ययुगीन समाज का जीवन-स्तर, सल्तनत-युगीन आवष्यक खाद्य-पदार्थ, अलाउद्दीन खिलजी की आर्थिक नीति।

धार्मिक दषा

भक्ति-आंदोलन -भक्ति आंदोलन की विषेषताएँ, भक्ति-आदोलन के कारण, भक्ति-आन्दोलन के प्रमुख संत, संत कबीर - सामाजिक दशा और कबीर की शिक्षाएँ, धार्मिक दशा एवं विभिन्न आडम्बरों की आलोचना, क्या कबीर का उद्देश्य दोनों धर्मों में समन्वय स्थापित करना था?, गुरू नानकदेव - जीवन परिचय, साहित्यरचना, सिक्ख धर्म के सिद्धान्त, गुरु नानक: हिन्दू या मुसलमान?, कबीर और नानक: एक समीक्षात्मक अध्ययन, चैतन्य महाप्रभु - जीवन परिचय, शिक्षा, व्यवसाय, भक्ति की ओर रुचि, संन्यास और कृष्ण-भक्ति का प्रचार, चैतन्य महाप्रभु की शिक्षाएँ, स्मरण और ध्यान की प्रधानता, चैतन्यमत के पतन के कारण, चैतन्य का महत्व और उनके मत का प्रभाव, गोस्वामी तुलसीदास- जीवन-परिचय, शिक्षा-दीक्षा, गृहस्थ-जीवन, साहित्य-सृजन, समन्वयवादी दृष्टिकोण, कृष्णभक्ति का उŸारी भारत में प्रसार, उत्पŸिा एवं स्थापना, दिल्ली का सल्तनत का धार्मिक दृष्टि-बिन्दु -कुतुबद्दीन ऐबक, इल्तुतमिश, इल्तुतमिश के उŸाराधिकारी एवं बलवन, अलाउद्दीन खिलजी, गियासुद्दीन तुगलक, मुहम्मद तुगलक, फीरोज तुगलक, मुगलकालीन धार्मिक दृष्टिकोण-बाबर के राज्यकाल में, हुमायूँ के राज्यकाल में, शाहजहाँ के राज्यकाल में, औरंगजेब के राज्यकाल में, दीन-ए-इलाही, अकबर और कट्टर उलेमाओं का संघर्ष।

सूफी मत

सूफी मत की उत्पŸिा, ‘सूफी’ शब्द का अर्थ, ‘सूफी’ धर्म का विकास, भारत में सूफी सम्प्रदाय, सूफी धर्म के विभिन्न सम्प्रदाय - (1) कादरी सम्प्रदाय, (2) नक्शबन्दिया सम्प्रदाय (3) शाद-विलिया सम्प्रदाय (4) निमातुल्लादियाँ सम्प्रदाय, (5) शतारी सम्प्रदाय, (6) तेजनियाँ सम्प्रदाय, (7) चिश्ती सम्प्रदाय, (8) रिफाई सम्प्रदाय, (9) सुन्सिया सम्प्रदाय, (10) सुहर्वदिया सम्प्रदाय (11) मौल्वी सम्प्रदाय, सूफी दर्शन एवं सिद्धान्त, चिश्ती सम्प्रदाय की उत्पŸिा और विकास, सूफी और निर्गुण सम्प्रदाय।

राजनैतिक दशा

भारत में मुस्लिम राज्य का स्वरूप, मुस्लिम शासन की कर-प्रणाली, मुस्लिम शासन की प्रभुत्व-शक्ति और इमाम की स्थिति, खलीफा और राज्य के सम्बन्ध, सल्तनतकालीन शासन-व्यवस्था, भूमि कर व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ-(1) सल्तनत-कालीन भू-राजस्व, (2) मुगलकालीन भू-राजस्व, सोलहवीं शताब्दी में भारत का राजनैतिक रंगमंच - दिल्ली, (3) बंगाल, (4) मालवा, (5) गुजरात, (6) मेवाड़, (7) सिन्ध, (8) पंजाब, (9) उड़ीसा, (10) कश्मीर, (11) खानदेश, (12) बहमनी, (13) विजयनगर, मुगल राज्य में केन्द्रीय शासन, मुगल राज्य में प्रान्तीय शासन - (1) सूबेदार: नियुक्ति तथा कार्य, (2) दीवान, (3) सदर, (4) आमिल, (5) बख्शी, (6) पोतदार, (7) फौजदार, (8) कोतवाल, (9) वाक-ए-नवीस, बलवन और अलाउद्दीन के राजस्व सम्बन्धी सिद्धान्त, मुसलमानों की विजय और राजपूतों की पराजय के कारण।

वास्तुकला

सल्तनलकालीन स्थापत्य-कला विशेषताएँ, स्थापत्य-कला की शैली एवं विशेषताएँ, हिन्दू-मुस्लिम वास्तुकला में भेद एवं समानताएँ, मुस्लिम वास्तुकला की शैली, गुलाम वंश की वास्तुकला -कुतुबद्दीन ऐबक की इमारतें, इल्तुतमिश की स्थापत्य कला, खिलजी-काल की वास्तुकला, तुगलक काल की वास्तुकला, (1) गियासुद्दीन तुगलक (1320-25 ई.), मुहम्मद तुगलक (1325-51 ई.), फीराजशाह तुगलक (1351-80 ई.), वास्तुशैली की विशेषताएँ, फीराजशाह तुगलक की इमारतें, सैयद एवं लोदी वंश की वास्तुकला, मुगलकालीन वास्तुकला (1526-1707 ई.), मुगलकालीन स्थापत्य कला (1526-1707 ई.), मुगलशैली, बाबर की वास्तुकला, हुमायूँ की वास्तुकला, अकबर की वास्तुकला, जहाँगीर की वास्तुकला, शाहजहाँ की वास्तुकला, औरंगजेब की वास्तुकला, शेरशाह सूरी की स्थापत्यकला।

चित्र एवं अन्य ललित कलाएँ

सल्तनतयुगीन चित्रकला, मुगलकालीन चित्रकला, मुगल चित्रकला की शैली, बाबर और हुमायूँ की चित्रकला, अकबर के समय की चित्रकला, अकबर के समय के चित्रकार, जहाँगीर के समय की चित्रकला, जहाँगीर-कालीन प्रसिद्ध चित्रकार, शाहजहाँ के समय की चित्रकला, औरंगजेब के समय की चित्रकला!, मुगल चित्रकला शैली के मुख्य विषय, मुगल शैली की कलाकृतियाँ, राजपूत चित्रकला, राजपूत और मुगल चित्रकला में अंतर, अंतर के आधारभूत कारण, मध्य-युगीन ललित कलाएँ, मुगल काल में संगीत-कला, अकबर के काल में, जहाँगीर के काल में, शाहजहाँ के काल में, औरंगजेब के काल में, उस काल के वाद्य-यन्त्र, बागवानी, सुन्दर लिखावट की कला, मूर्ति-कला एवं जाली का काम।

शिक्षा एवं साहित्य

सल्तनत युग में शिक्षा की उन्नति, (1) गुलाम वंश: (1206-1290), (2) खिलजी वंश: (1290-1320), (3) तुगलक वंश: (1320-1414), (4) सैय्यद वंश: (1414-1451), (5) लोदी वंश: (1451-1526), सल्लतन युग में साहित्य की अभिवृद्धि, (1) फारसी साहित्य, (2) हिन्दी तथा संस्कृत साहित्य, (3) जैन साहित्य, (4) गुजराती साहित्य, (5) बंगला साहित्य, (6) मराठी साहित्य, (7) तमिल,, कन्नड़ और तेलगु साहित्य, सल्तनतकालीन मुस्लिम शिक्षा -पद्धति, मुगल काल में शिक्षा एवं साहित्य की अभिवृद्धि, (1) बाबर और शिक्षा, (2) हुमायूँ का शिक्षा-प्रेम, (3) अकबर का शिक्षा-प्रेम, (4) जहाँगीर का शिक्षा-प्रेम, (5) शाहजहाँ और शिक्षा की उन्नति, (6) औरंगजेब की शिक्षा, मुगल काल में साहित्य का विकास - तुुर्की और फारसी साहित्य, (1) बाबर के राज्यकाल में, (2) हुमायूँ के राज्यकाल में, (3) अकबर के राज्यकाल में, (4) जहाँगीर के राज्यकाल में, (5) शाहजहाँ के राज्यकाल में, हिन्दी साहित्य की उन्नति, संस्कृत साहित्य, पंजाबी और बंगला साहित्य, मुगलकाल में मुस्लिम शिक्षा-पद्धति, (1) प्रारम्भिक शिक्षा, (2) हिन्दू शिक्षा के उच्च केन्द्र, (3) मुस्लिम शिक्षा के केन्द्र, (4) पाठ्यक्रम और प्रमाणपत्र, मध्ययुग में उर्दू भाषा की उत्पŸिा और विकास, मध्य युग में स्त्री शिक्षा, सल्तनत काल में ऐतिहासिक गं्रथ-रचना, सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी के ऐतिहासिक गं्रथ।

भारतीय संस्कृति पर इस्लाम का प्रभाव

इस्लाम का भारतीय जीवन पर प्रभाव - व्यापार पर प्रभाव, शासन पर प्रभाव, कलात्मक प्रभाव, साहित्य एवं भाषा पर प्रभाव, सामाजिक प्रभाव, धार्मिक प्रभाव, युद्ध-कला पर प्रभाव।

विविध

विजयनगर हिन्दू संस्कृति का केन्द्र, अकबर द्वारा सांस्कृतिक एकता, मुगल राज्य एक सांस्कृतिक राज्य, मुगल-काल में कृषि-संकट, संक्षिप्त टिप्पणियाँ