आधुनिक काल(लगभग 1750 ई. 1950 ई. तक)
भारतीय इतिहास के तृतीय चरण को आधुनिक काल कहते हैं। साधारणतया इसका काल लगभग 1750 ई. से 1950 ई. तक माना जाता है। यह काल मुख्य रूप से भारत पर यूरोपीय शक्तियों का आधिपत्य, भारतीयों का धार्मिक, सामाजिक पुनर्जागरण, ब्रिटिश शासन के विरुद्ध भारतीय स्वाधीनता संघर्ष फिर भारतीय स्वतंत्रता, देशी राज्यों का भारत राष्ट्र में विलिनीकरण एवं भारत में नवीन संविधान निर्माण पर आधारित है। इस काल में फ्रांसीसी एवं अंग्रेज व्यापारिक कंपनियों तथा ब्रिटिश शासन ने भारत पर राज्य किया। आधुनिक काल को निम्नानुसार तीन भागो में विभाजित किया गया है।
1. ब्रिटिश कंपनी काल 2. ब्रिटिश शासन काल 3. राष्ट्रीय आन्दोलन काल
ब्रिटिश कंपनी काल(लगभग 1740 ई. 1857 ई. तक)
आंग्ल-फ्रांसीसी संघर्ष
बंगाल में ब्रिटिश कंपनी का अधिकार
मैसूर में ब्रिटिश कंपनी का अधिकार
ब्रिटिश कंपनी के गवर्नर जनरल
आंग्ल-मराठा संबंध
आंग्ल-सिक्ख संबंध
1857 का स्वतंत्रता संग्राम
मुगल साम्राज्य की संध्या (सन् 1707 ई. से 1761 ई. तक)
औरंगजेब के पुत्र, उत्तराधिकार का युद्ध, मुगल सम्राट बहादुरशाह, सम्राट जहांदारदशाह, सैयद बंधु, सम्र्राट फर्रूखसियर, मुगल सम्राट रफी उद्दरजातह, रफीउद्दौला, नेकुसियर, सम्राट, मुहम्मद शाह, मुगल सम्राट और मराठे, मुगल साम्राज्य की विशम परिस्थितियाँ,नादिरशाह के आक्रमण, नादिरशाह के आक्रमण के परिणाम, सम्राट अहमदशाह, सम्राट आलमगीर द्वितीय, शाहजहाँ द्वितीय, शाहआलम द्वितीय, अहमदशाह अब्दाली तृतीय पानीपत युद्ध के कारण, युद्ध, परिणाम और महत्व, अंतिम मुगल सम्राट और मुगल साम्राज्य का पतन, मुगल साम्राज्य के पतन के कारण, मुगल साम्राज्य के पतन के लिये औरंगजेब का उत्तरदायित्व, मुगल साम्राज्य के पतन के अन्य कारण।
पेशवाओं का उत्त्कर्ष और मराठा प्रभुत्व
शिवाजी का उत्त्कर्ष और मराठा राज्य की स्थापना, शिवाजी के उत्तराधिकारी, शम्भाजी, राजाराम, मराठा स्वतंत्रता संग्राम, शिवाजी द्वितीय और ताराबाई, छत्रपतिशाहू, पेशवा बालाजी विश्वनाथ, मुगलों से संधि, बालाजी विश्वनाथ का मूल्यांकन, पेशवा बाजीराव, उद्देश्य व नीति, निजाम से युद्ध और संधि, नीति विवाद और बाजीराव की सफलता, शम्भाजी द्वितीय की पराजय, त्र्यम्बकराव दाभाड़े की पराजय और मृत्यु, मालवा विजय, छत्रसाल से संधि, मुगल सम्राट द्वारा पेशवा को सुविधाएँ, निजाम की भोपाल में पराजय और संधि, गुजरात में मराठों का प्रभुत्व, सिद्दियों की पराजय और कोंकण तट पर मराठा प्रभुत्व, पेशवा द्वारा आंग्रे बंधुओं से समझौता, पेशवा और पुर्तगाली, बाजीराव का मूल्यांकन, पेशवा बालाजी बाजीराव, बालाजी बाजीराव की कठिनाइयाँ, आर्थिक समस्या का निराकरण, कर्नाटक में अरकाट में मराठा प्रभुत्व, पेशवा और तुलाजी आंग्रे, शाहू का देहावसान और रामराजा छत्रपति, बंगाल, बिहार, उड़ीसा में मराठा शक्ति का विस्तार, निजाम की पराजय और संधि,उत्तरी भारत में मराठा शक्ति और प्रभुत्व का विस्तार, मालवा और बुन्दलखंड में मराठा प्रभुत्व, राजस्थान में हस्तछेप और मराठा प्रभुत्व, मराठे और जाट, दिल्ली में मराठा प्रभुत्व मराठों का साम्राज्य, पंजाब में मराठे और पानीपत का युद्ध, बालाजी बाजीराव का मूल्यांकन, पेशवा माधवराव, पेशवा नारायणराव।
प्रमुख नवीन स्वतंत्र प्रान्तीय राज्य
बंगाल, बंगाल का सूबेदार शाहजादा अजीमुश्शान, मुर्शिद कुलीखां, शुजाउद्दीन मुहम्मदखाँ, सरफराजखां, अलीवर्दीखां, सिराजुद्दौला, गुजरात, हामिदखां की सूबेदारी, गुजरात में मराठों का प्रवेश और प्रसार,सरबुलन्दखाँ की सूबेदारी, अभयसिंह की सूबेदारी गुजरात का मुगल साम्राज्य से पृथकत्व और गुजरात में मराठा सामन्त गायकवाड़ का स्थायीराज्य, मालवा-मालवा में मराठों के आक्रमण और प्रवेश, तिरला युद्ध में मुगल सूबेदार की पराजय व मराठों की विजय, मालवा के सूबेदार जयसिंह द्वारा मराठों से समझौते के प्रयास, मुहम्मदखाँ बंगश की सूबेदारी, सवाई जयसिंह की पुनः मालवा में सूबेदारी, सवाई जयसिंह का मराठों से समझौता, मालवा में से मराठों को निश्कासित करने के शाही प्रयास, समझौते के प्रयास, बाजीराव का दिल्ली के विरुद्ध सैनिक अभियान, मालवा में निजाम-उल-मुल्क की पराजय, मराठों को मालवा समर्पण, बुन्देलखंड-छत्रसाल और उसके पुत्रों द्वारा बादशाह की अधीनता स्वीकार करना, छत्रसाल की मुगल विरोधी गतिविधियां और मुल सेनानायक दिलेरखां की पराजय, मुहम्मदखाँ बंगश का सैनिक अभियान, उसकी पराजय और समझौता, राजस्थान - बहादुरशाह और राजपूत नरेश, राजपूत राज्यों की सीमाओं में वृद्धि, फर्रुखसियर और राजपूत नरेश, मुहम्मदशाह और राजपूत, राजस्थान में दृढ़ केन्द्रीय सत्ता का अभाव और उसके दुश परिणाम, गृह युद्धों का प्रारंभ, राजस्थान में मराठों का हस्तक्षेप , राजस्थान में मुगल प्रभुसत्ता का अंत, जाट क्षेत्र और नवीन भरतपुर राज्य, चूड़ामण, बदनसिंह अवध- सआदतखाँ का उत्त्कर्ष , सआदतखां अवध का सूबेदार, सआदतखां मराठों के विरुद्ध, सआदतखां द्वारा आत्महत्या और सफदरजंग अवध का सूबेदार, सफदरजंग वजीर के पद पर, सफदरजंग का रूहेलों से संघर्ष , बादशाह और सफदरजंग में गृह-युद्ध, शुजाउद्दौला, रूहेले और रूहलेखंड, रूहेलखण्ड में अफगानों की शक्ति का उत्त्कर्ष , दाऊदखां, अलीमुहम्मदखां रूहेला, सफदरजंग और रूहेलों का संघर्ष , अलीमुहम्मदखां, रूहेलखण्ड का विभाजन, सफदरजंग का रूहेलों से युद्ध, रूहेलों से संधि, पंजाब सिक्ख शक्ति का अभ्युदय और उत्त्कर्ष , सिक्ख धर्म का प्रचार और सिक्ख गुरुओं का योगदान, बन्दाबहादुर और सिक्ख राजशक्ति का विकास, सिक्खों का क्रूर दमन, अहमद शाह अब्दाली व तैमूरशाह द्वारा सिक्खों का असफल दमन, सिक्ख मिसलें, सिक्ख संप्रभुता की अभिव्यक्ति और उनकी राज्य सीमाओं का विस्तार, जम्मू और काश्मीर, नदियों और पर्वतीय घाटियों के छोटे-छोटे राज्य, जम्मू, जम्मू नरेश राजा रणजीतदेव काश्मीर, उत्तरी पश्चिमी सीमान्त क्षेत्र दक्षिण-जुल्फिकारखां दक्षिण का सूबेदार, निजमा-उल-मुल्क दक्षिण का सूबेदार, सैयद हुसैन अली दक्षिण का सूबेदार, सैयद मराठा समझौता, मराठों को दक्षिण की चैथ व सरदेशमुखी का शाही फरमान, निजाम-उल-मुल्क और सैयद बंधुओं का संघर्ष , सैयद हुसैन अली का वध और सैयद बंधुओं का पतन, निजाम-उल-मुल्क दक्षिण का सूबेदार, निजाम-उल-मुल्क पुनः दक्षिण में और मुबारिजखां पर विजय, मुगल साम्राज्य से दक्षिण का विघटन, दक्षिण में निजाम की मराठा-विरोधी नीति, निजाम-उल-मुल्क और पेशवा बाजीराव के बीच संधि, निजाम का दक्षिण से दिल्ली प्रस्थान, भोपाल का युद्ध और बाजीराव से समझौता, दक्षिण में स्वतंत्र शासक के रूप में निजाम, निजाम-उल-मुल्क का देहान्त और उत्तराधिकारी का युद्ध, कर्नाटक, मैसूर राज्य, केरल।
ब्रिटिश राजसत्ता पूर्व भारत
पतनोन्मुखी मुगल साम्राज्य और नवोदित स्वतंत्र राज्य, सामन्तवादी व्यवस्था, जर्जरित अर्थव्यवस्था, सामाजिक दुव्र्यवस्था।
भारत में यूरोपीय जातियों का प्रवेश यूरोपीय जातियों के व्यापारिक हित
भारत में प्रवेश करने के लिये नवीन जलमार्ग की खोज, भारत में पुर्तगाली राज्य, अलबुकर्क, पुर्तगालियों के राज्य का उत्थान और पतन, पुर्तगाली राज्य के पतन के कारण, भारत में डचों का प्रवेश, उनका व्यापार व राज्य, डचों और अंग्रेजों का संघर्ष , अंग्रेज कंपनी, अंगेजों का पुर्तगालियों से संघर्ष ,अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी की प्रगति, अंग्रेजों का मुगलों से संघर्ष ,संयुक्त ईस्ट इंडिया कंपनी।
आंग्ल फ्रांसीसी प्रतिस्पर्धी संघर्ष (सन् 1744 ई. से 1763 ई. तक)
संघर्ष से पूर्व फ्रांसीसी और अंग्रेज कंपनियों की दशा, कर्नाटक की स्थिति, प्रथम कर्नाटक युद्ध, कारण, महत्व और परिणाम, द्वितीय कर्नाटक युद्ध सन् 1748-54, हैदराबाद और कर्नाटक में उत्तराधिकारी की समस्या, युद्ध की घटनाएँ, फ्रांसीसियों की सफलता और प्रभाव की चरम सीमा, अंग्रेजों की नीति और अर्काट का घेरा तथा अंग्रेजों की सफलता, पांडेचेरी की संधि, संधि की समीक्षा , कर्नाटक का तृतीय युद्ध, सन् 1756-1763, पेरिस की संधि, सन् 1763 संधि का प्रभाव और महत्व, आंग्ल फ्रांसीसी संघर्ष के निष्कर्ष , अंग्रेजों की सफलता और फ्रांसीसियों की असफलता के कारण, बूसी और उसका मूल्यांकन, डुप्ले, डुप्ले की नीति, अंग्रेजों से संघर्ष और युद्ध, डुप्ले की नीति की समीक्षा , डुप्ले की नीति के परिणाम और दोष , डुप्ले की असफलता के कारण, डुप्ले का मूल्यांकन।
भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना
बंगाल में अंग्रेज सत्ता और प्रभुत्व, सन् 1757 से 1784, ब्रिटेन में वाणिज्यवाद, पूँजीवाद और राष्ट्रवाद का विकास, भारत में ब्रिटिश विजय और राजसत्ता व साम्राज्य, अंग्रेजों की विजय और सफलता के कारण, बंगाल में स्वतंत्र नवाब, बंगाल में यूरोप के व्यापारी, सिराजुद्दौला और अंगेजों के मध्य संघर्ष , सिराजुद्दौला के विरुद्ध अंग्रेजों की गतिविधियाँ, व्यापारिक सुविधा का अंग्रेजों द्वारा दुरुपयोग, नवाब सिराजुद्दौला द्वारा अंगेजों पर आक्रमण और कासिम बाजार की कोठी पर आक्रमण, अंग्रेजों की कलकत्ते की कोठी और फोर्ट विलियम पर अधिकार, कालकोठरी की घटना, अंग्रेजों का कलकत्ता पर पनुः अधिकार और सिराजुद्दौला से अलीनगर की संधि, अंग्रेजों का फ्रांसीसियों पर आक्रमण और चन्द्रनगर पर अधिकार, प्लासी का युद्ध 23 जून 1757, कारण, प्लासी का युद्ध, प्लासी के युद्ध का महत्व और परिणाम अंगेजों की व्यापारिक और राजनीतिक लिप्सा, नवाब मीरजाफर, सन् 1757-1760, हिन्दू वैमनस्य और विद्रोह, मुगल शाहजादे अलीगौहर का आक्रमण, डचों का आक्रमण और उनका उन्मूलन, मीरजाफर को राजसिंहासन से पृथक करने के कारण, नवाब मीर कासिम सन् 1760-63, शाहजादा की घटना, मीर कासिम की समस्याएँ, मीर कासिम के सुधार, मीरकासिम और अंग्रेजों के संघर्ष के कारण, मीरजाफर से गुप्त संधि और एलिस की पटना पर आक्रमण, मीरकासिम की प्रारंभिक पराजय और पटना का हत्याकाण्ड, बक्सर का युद्ध, 22 अक्टूबर 1764, परिणाम और महत्व, मीरजाफर पुनः नवाब, नवाब नजमुद्दौला, द्वितीय बार क्लाइव बंगाल का गर्वनर मई 1765 से फरवरी 1767, बंगाल के नवाब से संधि, इलाहाबाद की संधि, 1765, मुगल सम्राट शाहआलम से संधि, अवध के शुजाउद्दौला से संधि, बंगाल के नवाब नजमुद्दौला से संधि, क्लाइव के प्रशासकीय सुधार, क्लाइव की वापसी और मृत्यु क्लाइव की उपलब्धियाँ, क्लाइव का मूल्यांकन, बंगाल के द्वैध शासन से अभिप्राय, द्वैध शासन के गुण-दोष , बंगाल में द्वैध शासन का युग, वारेनहेस्टिंग्स के सुधार और द्वैध शासन का अंत।
दक्षिण भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार (सन् 1766 ई. से 1801 ई. तक)
आंग्ल मैसूर संघर्ष सन् 1766-1799, दक्षिण भारत में राजनीतिक शक्तियाँ, हैदरअली का उत्त्कर्ष , मैसूर राज्य, हैदरअली का मैसूर का शासक बनना, हैदरअली का राज्य विस्तार, हैदरअली और मराठे, प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध सन 1766-1769, मद्रास की संधि, द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध सन् 1780-84, कारण, युद्ध की घटनाएं, मंगलौर की संधि, तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध सन् 1790-1792, कारण युद्ध की घटनाएँ, श्रीरंगपट्टम की संधि, 1792, चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध सन् 1799, कारण, युद्ध की घटनाएँ, मैसूर का राजनीतिक निर्णय और विभाजन, मैसूर राज्य अंगे्रज प्रशासन के अधीन, हैदरअली की उपलब्धियाँ और मूल्यांकन, टीपू की उपलब्धियाँ और मूल्यांकन, दक्षिण भारत के अन्य राज्यों पर अंग्रेजों का आधिपत्य-कुर्ग पर अंग्रेजों का आधिपत्य, कर्नाटक पर अंग्रेजों का आधिपत्य, तंजौर और सूरत का अपहरण, निजाम अंग्रेजों की अधीनता में, अंग्रेजों की निजाम से संधियाँ, मराठों का निजाम पर आक्रमण और निजाम की पराजय, निजाम के साथ अंग्रेजों की प्रथम सहायक संधि, द्वितीय सहायक संधि, दक्षिण भारत में अंग्रेजी राज्य।
सहायक संधि व्यवस्था और साम्राज्य विस्तार
लार्ड वेलेजली, अठारहवीं सदी के अंतिम चरण में अंतर्राष्ट्रीय परिस्थिति, भारत में फ्रांसीसी प्रभुत्व और प्रभाव, शक्तिहीन संघर्ष रत राज्य, भारतीय नरेशों में दृढ़ संयुक्त मोर्चे और राजनीतिक दूरदर्शिता का अभाव, अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी की सुदृढ़ परिस्थिति, वेलेजली का उद्देश्य अंग्रेजी राज्य का विस्तार, सक्रिय हस्तक्षेप की नीति, वेलेजली द्वारा हस्तक्षेप की नीति और विस्तारवादी नीति अपनाने के कारण, लक्श्यपूर्ति और नीति को कार्यान्वित करने के लिये तथा अंग्रेजी साम्राज्य के विस्तार के लिये वेलेजली के साधन और कार्य, सहायक संधि की नीति, सहायक संधि का अर्थ, सहायक संधि का प्रारम्भ और विकास, विकास के चार सोपान, सहायक संधि के विकास में वेलेजली का योगदान, सहायक संधि की प्रमुख शर्तें, सहायक संधि के लाभ, सहायक सधि से हानियाँ, इसके दोष , वेलेजली द्वारा भारतीय राज्यों से सहायक संधियाँ, फ्रांसीसियों के प्रभुत्व और प्रभाव की समाप्ति, वेलेजली और मराठा, वेलेजली का मूल्यांकन, वेलेजली की उपलब्धियाँ अंग्रेजी साम्राज्य का विस्तार, निष्कर्ष ।
उत्तर भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार, अंग्रेज मराठा संघर्ष (सन् 1772 ई. से 1818 ई. तक)
प्रथम मराठा युद्ध सन् 1772-84, द्वितीय मराठा युद्ध, 1803-06, बेसिन की संधि, देवगाँव की संधि, सुर्जी अर्जुनगाँव की संधि, सिंधिया से सहायक संधि, होल्कर से अंग्रेजों का युद्ध, उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भ मराठा शासक, तृतीय मराठा युद्ध सन् 1817-18, अंग्रेजों का पेशवा से संघर्ष , कारण पेशवा और अंग्रेजों के बीच युद्ध और पेशवा की पराजय, पेशवा के साथ संधि और उसका अंत, अंग्रेज-भोंसला संघर्ष , अंग्रेज होल्कर संघर्ष , अंग्रेज और सिंधिया, अंग्रेज और गायकवाड़, मराठा युद्ध और संधियों के परिणाम, मराठों के पतन के कारण, राजस्थान और मध्यभारत के राजपूत राज्यों पर अंग्रेज प्रभुसत्ता का विस्तार।
सिक्ख शक्ति का उत्थान और पतन पंजाब में ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार
विभिन्न सिक्ख राज्यों का उत्त्कर्ष , रणजीतसिंह का प्रारम्भिक जीवन, रणजीतसिंह की विजयें और उत्त्कर्ष , सतलज नदी, के पार के पूर्व में सिक्ख राज्यों पर अधिकार करने के प्रयास, अमृतसर की संधि, रणजीतसिंह का राज्य विस्तार, रणजीतसिंह और अंग्रेजों के पारस्परिक संबंध, रणजीतसिंह का शासन प्रबंध, रणजीतसिंह का चरित्र और मूल्यांकन, इतिहास में रणजीतसिंह का स्थान, रणजीतसिंह के बाद आंग्ल सिक्ख संबंध, रणजीतसिंह के देहांत के बाद अशांत और अव्यवस्थित पंजाब, सिक्ख सेना का बढ़ता हुआ आतंक, प्रथम सिक्ख युद्ध सन् 1845, कारण, युद्ध की घटनाएँ, लाहौर की संधि, 9 मार्च, 1846, भैंरोवाल की संधि, द्वितीय सिक्ख युद्ध, सन् 1848-49, कारण, युद्ध की घटनाएँ युद्ध के परिणाम, सिक्खों की असफलता के कारण, रानी झिन्दन और महाराजा दिलीप सिंह के अंतिम वर्श ।
अंग्रेजों की सिंध विजय(सन् 1843)
सिन्ध प्रदेश, सिन्ध का महत्व, सिन्ध के अमीरों से अंगे्रजों की संधियाँ, सन् 1809-1832, सिंध पर अंग्रेजों के आक्रमण के कारण, युद्ध की घटनाएँ, और सिन्ध विजय, युद्ध के परिणाम, अंग्रेजों की सिन्ध नीति और सिन्ध विजय की समीक्षा ।
आंग्ल-अवध संबंध अवध का अंग्रेजी राज्य में विलय
अवध राज्य और उसका महत्व, इलाहाबाद की संधि, वारेन हेस्टिंग्ज और अवध, कार्नवालिस और अवध, सरजानशोर और अवध से नयी संधि, वेलेजली और अवध के नवाब के साथ सहायक संधि, अवध के नवाब सादतअली, गाजीउद्दीन और नासिरुद्दीन, अवध में कुशासन, बेंन्टिंग द्वारा हिदायत, आकलेण्ड और नवाब मुहम्मदअली, नवीन संधि, नवाब मुहम्मद अली और वाजिदअली शाह, प्रशासन में सुधार के लिये चेतावनी, अवध के रेजीडेन्ट डब्ल्यू. एच. स्लीमन की रिपोर्ट, रेजीउेन्ट कर्नल आउटरम की रिपोर्ट, डलहौजी द्वारा नवाब से संधि करने का प्रयास, डलहौजी द्वारा अवध का अपहरण, 13 फरवरी 1856, अवध अपहरण की नीति की समीक्षा|
साम्राज्य विस्तार का अन्तिम चरण लार्ड डलहौजी
डलहौजी की नीति, साम्राज्यवादी नीति, आधुनिकीकरण की नीति, नीति को कार्यान्वित करने के साधन, नीति की समीक्षा, डलहौजी द्वारा अंग्रेजी साम्राज्य का विस्तार, साम्राज्य विस्तार की नीति, आक्रमण, युद्ध और विजय द्वारा साम्राज्य का विस्तार, कुशासन के आधार पर साम्राज्य विस्तार, नवाबों और नरेशों के पदों व पेशनों की समाप्ति, गोदप्रथा निषेध के आधार पर साम्राज्य विस्तार, डलहौजी की गोद प्रथा निषेध की नीति या हड़प नीति, डलहौजी की हड़प नीति का सिद्धांत, हड़प नीति का कार्यान्वयन और भारतीय राज्यों का अपहरण, हड़प नीति या गोद प्रथा निशिद्ध करने की नीति की समीक्षा,डलहौजी साम्राज्य निर्माता व प्रशासक।
अंग्रेज सत्ता के सीमावर्ती राज्यों से संबंध उत्तर और पूर्वी सीमाएँ
उत्तरी और पूर्वी सीमाएँ, उत्तर में नेपाल राज्य, आंग्ल नेपाल संबंध सन् 1767 से 1813, गोरखों से युद्ध (नेपाल युद्ध), सन् 1814-16, कारण, युद्ध की घटनाएँ, सिंगोली की संधि, संधि का महत्व, इससे लाभ, भीमसेन थापा और राज्य सीमा निर्धारण, जंग बहादुर राणा और अंग्रेजों के साथ मैत्री संबंध, आंग्ल नेपाल संधि, सन् 1923, आंग्ल तिब्बत संबंध, तिब्बत से व्यापारिक संबंध स्थापित करने के अंग्रेजों के प्रयास, चीफू कन्वेंशन, आंग्ल-तिबब्त संघर्ष , सिक्किम तिब्बत सीमा का निर्धारण, ब्रिटेन और चीन में समझौता, डोरजीफ की रूस यात्रा और अंग्रेजों को रूस के विस्तार का भय, तिब्बत पर अंग्रेजों का आक्रमण ल्हासा की संधि, सन् 1904 रूस के प्रति तिब्बत का मैत्री भाव, रूस का एशियायी साम्राज्यवाद, तिब्बत के विषय में ब्रिटेन और चीन में संधि, सन् 1906, ब्रिटेन और रूस में तिब्बत के विषय में संधि, शिमला में त्रिशक्ति सम्मेलन, तिब्बत और अंग्रेज सरकार के मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध, आंग्ल बर्मा संबंध और बर्मा का अंग्रेजी राज्य में विलय - बर्मा से अंगेजों के व्यापार का प्रारम्भ, बर्मा में स्वतंत्र राज्य का प्रारंभ, बर्मा का प्रथम युद्ध, सन् 1824-26, कारण, युद्ध की घटनाएँ यांडूब की संधि, 24 फरवरी, 1826, बर्मा का द्वितीय युद्ध, सन् 1852, कारण, युद्ध की घटनाएँ, युद्ध के परिणाम, बर्मा में अंग्रेजों को व्यापारिक और राजनीतिक सुविधाएँ, बर्मा का तृतीय युद्ध, सन् 1885-86, कारण, युद्ध की घटनाएँ, अंग्रेजों की बर्मा नीति की समीक्षा , आसाम, ओहम राजवंश की स्थापना, बर्मा नरेश द्वारा आसाम की राजनीति और श ड़यंत्रों में हस्तक्षेप व आसाम पर अधिकार, आसाम में बर्मी राजसत्ता और बर्बर अतयाचार, यांडूब की संधि और आसाम अंग्रेजों के आधिपत्य में, आसाम में ब्रिटिश राजसत्ता के विरुद्ध विद्रोह, उत्तरी आसाम में पुरन्दरसिंह के साथ संधि, पुरन्दरसिंह पदच्युत और उत्तरी आसाम का अंग्रेजी राज्य में विलय, भूटान, आंग्ल-भूटान संधि, 25 अप्रैल 1774, भूटान को अंग्रेजी शिश्टमंडल और भूटान के व्यापारिक मार्ग भारतीयो के लिये निशिद्ध, भूटान के क्षेत्र का सामरिक और आर्थिक महत्व और अंग्रेजों की महत्वाकांक्शा, भूटान के कुछ क्षेत्र अंग्रेजों के आधिपत्य में, भूटान, दरबार में अंग्रेज शिश्ट मण्डल, आंग्ल भूटान संधि, 11 नवम्बर, 1865, आंग्ल भूटान मैत्री सम्बन्ध, कछार यांडूब की संधि और कछार अंगे्रजों के संरक्श ण में कछार नरेश गोविन्दचन्द्र की हत्या और उत्तराधिकारी के लिये विवाद तथा कछार राज्य का विलय, जैन्तिया, मणिपुर, बर्मा के आधिपत्य में मणिपुर नरेश जयसिंह और अंग्रेज-सरकार से संधि सन् 1762, अंग्रेजों की असफलता और मणिपुर बर्मा के ही अधीन, यांडूब संधि और मणिपुर अंग्रेजों के संरक्शण में, चन्द्रकीर्तिसिंह और अंग्रेज संरक्शण, मणिपुर दरबार में गुट बंदी और महल में विप्लव, राजा सूरचंद्र का प्रतिवेदन, तिकेन्द्रजीत को बंदी बनाकर मणिपुर से निश्कासित करने का प्रयास, तिकेन्द्रीजीत को बंदी बनाने के लिये उनके निवास पर अंग्रेज सैनिकों का आक्रमण, मणिपुर पर अंग्रेजों का आक्रमण और राजा और राज परिवार के सदस्यों का व अन्य व्यक्तियों का बंदी बनाया जाना, अभियुक्तों पर मुकदमे और मृत्यु दण्ड चूड़चन्द्र मणिपुर का नया राजा, 1891 मणिपुर के प्रति अंगेज नीति की समीक्षा , उत्तर पूर्वी सीामन्त क्षेत्र मे वन्य जातियाँ और अंगे्रज राजसत्ता का विस्तार, वन्य जातियों के विद्रोह, नागा पहाड़ी क्षेत्र नागाओं के विद्रोह, कुकी और खासिया वन्य जातियां, खासियों के विद्रोह, सिक्किम-आंग्ल सिक्किम संबंधों का प्रारम्भ, सन् 1817, अंगे्रज सरकार को सिक्किम से दार्जलिंग क्षेत्र की प्राप्ति, दार्जलिंग और मुरंग क्षेत्र का अंग्रेजी साम्राज्य में विलय, सिक्किम के साथ संधि, सिक्किम सीमा पर तिब्बत के विरुद्ध अंगेजों का आक्रमण, कारण, तिब्बतियों से युद्ध, आंग्ल-चीनी-समझौता, सन् 1899, भारतीय शक्तियों के विरुद्ध अंगे्रजों की विजय और सफलता के कारण।
आंग्ल-अफगान-संबंध/आंग्ल-अफगान-संघर्ष उत्तर पश्चिमी सीमा
भारत में उत्तर पश्चिम में अंग्रेज साम्राज्य की सीमाएँ और अफगानिस्तान, रूसी आक्रमण के भय का प्रारम्भ, भारत की सीमा सुरक्षा के लिये अफगानिस्तान का महत्व, अंग्रेजों की उग्रअग्रगामी नीति और महान अकर्मण्यता की नीति, अंग्रेजी राज्य की उत्तरी-पश्चिमी सीमा सुरक्षा के लिये संधियाँ और समझौते, सन् 1809 से 1831, प्रथम अफगान युद्ध, सन् 1838-42, कारण, युद्ध की घटनाएँ, अफगानों का विद्रोह, अकबर खां की अंग्रेजों के साथ अपमानजनक संधि, येकनाटन की हत्या और नवीन संधि, अंगे्रज सेना की वापसी और हत्या, लार्ड एलनबरो की अफगान नीति, अंगेज सेना की वापसी और गजनी व काबुल का विध्वंस, दोस्त मुहम्मद अफगानिस्तान का अमीर, प्रथम अफगान युद्ध में अंगे्रजों की असफलता के कारण, प्रथम अफगान युद्ध की आलोचना या अंग्रेजों की अफगान नीति की समीक्षा , अफगान नीति, आक्रमण और युद्ध अनैतिक और अनुचित, अफगान आक्रमण और युद्ध, अनावश्यक, अनिश्टकारी और अव्यावहारिक, रूस के बढ़ते हुए प्रभाव को अवरूद्ध करने के लिये ब्रिटिश नीति, अफगानिस्तान के प्रति अकर्मण्यता की नीति, महान अकर्मण्यता की नीति का कार्यान्वयन, लारेन्स की नीति या अकर्मण्यता की नीति का मूल्यांकन लार्ड लिटन की अग्रगामी नीति, नीति के प्रमुख लक्श ण, द्वितीय अफगान युद्ध सन् 1878-1880, कारण, युद्ध की घटनाएँ, गंडमक की संधि, अफगान विद्रोह लिटन की अफगास्तिान विभाजन की योजना लार्ड लिटन की अफगान नीति की समीक्षा , द्वितीय अफगान युद्ध का औचित्य, अफगान अमीर अब्र्दुरहमान के साथ मैत्री संधि, रूस के साथ समझौता, ड्यूरण्ड रेखा, अमीर हबीबुल्ला और अंग्रेजों की अफगान नीति, तृतीय अफगान युद्ध, सन् 1919, अफगानिस्तान में विद्रोह, गृह-युद्ध और अंग्रेजों की तटस्थता की नीति, उत्तर-पश्चिमी सीमान्त नीति, उत्तर-पश्चिमी सीमान्त क्षेत्र , प्रारम्भिक उत्तरी-पश्चिमी सीमा नीति, वज्र की नीति की समीक्षा , अग्रगामी नीति और सीमान्त नीति में परिवर्तन, क्वेटा पर अधिकार और ब्लूचिस्तान में ब्रिटिश एजेन्सी, प्रशासन के लिये सीमान्त प्रान्त की कमीश्नरी और ब्रिटिश एजेन्सीज, उत्तर पश्चिमी सीमान्त क्षेत्र ों में अग्रगामी नीति का अनुकरण, डयूरन्ड सीमा रेखा से कबाइली क्षेत्र ों का विभाजन, विभिन्न कबीलों के विद्रोह, सन् 1897-98, लार्ड कर्जन और उसकी मध्यम मार्ग की सीमा नीति, नीति के प्रमुख लक्श ण, उत्तरी पश्चिमी सीमा के लिये कर्जन के कार्य, कर्जन की नीति की समीक्षा ।
भारत में ब्रिटिश साम्राज्य संगठन और सुदृढ़ीकरण
ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना, ईस्ट इंडिया कंपनी का नवीन राजनीतिक स्वरूप बंगाल में द्वैध शासन और उसका अंत रेग्यूलेटिंग एक्ट, सन् 1773, वे परिस्थितियाँ और कारण जिनसे रेग्युलेटिंग पारित हुआ, रेग्यूलेटिंग एक्ट की धाराएँ, रेग्युलेटिंग एक्ट का महत्व, रेग्युलेटिंग एक्ट के दोष ,रेग्युलेटिंग एक्ट के दोष का निवारण, पिट का इण्डिया एक्ट, पिट के इण्डिया एक्ट का महत्व, सन् 1786 का अधिनियम, सन् 1793 का आदेश पत्र या अधिनियम, सन् 1813 का आदेश पत्र या अधिनियम, सन् 1833 का आदेश पत्र या अधिनियम, सन् 1853 का आदेश पत्र या अधिनियम, भारत में ब्रिटिश प्रदेशों में प्रशासन, केन्द्रीय शासन, प्रान्तीय शासन, भूराजस्व और वित्त, बंगाल में कंपनी की प्रारम्भिक भू-राजस्व व्यवस्था और भूमि कर वसूली के विभिन्न प्रयोग, राजस्व संभाग और राजस्व समितियाँ, राजस्व मंडल, राजस्व संबंधी सुधार और स्थायी बन्दोवस्त, स्थायी बंदोवस्त के पूर्व व्यवस्था, राजस्व संबंधी कार्नवालिस के प्रारम्भिक कार्य, स्थायी बन्दोवस्त और उसकी विशेष ताएँ स्थायी बंदोवस्त के लाभ, स्थायी बन्दोबस्त से हानियाँ, रैयतवाड़ी बन्दोबस्त, बम्बई प्रान्त में भूमि कर व्यवस्था, महालवाड़ी भूराजस्व व्यवस्था, ब्रिटिश शासन कालीन भू-राजस्व व्यवस्था के दोष और परिणाम, वित्त ,न्याय-प्रशासन, बंगाल में अंग्रेज कंपनी को दीवानी, और निजामत की प्राप्ति, जिले में दीवानी और निजामत अदालत का संगठन, सदर दीवानी अदालत और सदर निजाम अदालत का संगठन, रेग्युलेटिंग एक्ट द्वारा सुप्रीम कोर्ट की स्थापना, पुलिस प्रबंध, न्याय-व्यवस्था में सुधार और उसका विकास, दीवानी न्यायालय, फौजदारी न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय, कार्नवालिस संहिता, पुलिस व्यवस्था, सन् 1798 से 1824 तक की अवधि में न्याय-व्यवस्था में सुधार, गवर्नर जनरल बेंटिक द्वारा प्रशासन और न्याय व्यवस्था में सुधार, सुधारों के परिणाम, कानून का शासन और कानून की समानता, शांति व्यवस्था के प्रयास, पुलिस व्यवस्था, पिण्डारियों का दमन, ठगों का अंत, जेल, यातायात आवागमन और संचार-व्यवस्था, भारतीय सेवा या लोकसेवा या नागरिक सेवा, कंपनी का प्रशासन और व्यापार दोनों ही प्रथक, प्रशासन में भारतीयों की उपेक्षा, कर्मचारियों के प्रशिक्षण की व्यवस्था, प्रशासकीय सेवाओं में भारतीयों की नियुक्ति, प्रशासकीय ऊँचे पदों के अभभारतीयकरण से तीव्र असंतोष , वैधानिक नागरिक सेवा या संविधिक नागरिक सेवा, इण्डियन सिविल सर्विस की परीक्षा में आयु का प्रतिबन्ध, प्रशासकीय सेवाएँ, ब्रिटिश साम्राज्य की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये, ब्रिटिश शासन के पोशण,में दक्श और सशक्त सेवा, परन्तु उसका अप्रगतिशील संकीर्ण दृश्टिकोण।
1857 के पूर्व सशस्त्र आंदोलन विरोध और विद्रोह
अंग्रेजों की राजसत्ता के विरुद्ध सशस्त्र विरोध और विद्रोहों की श्रृंखला, नागरिक और राजनीतिक विद्रोह, सन्यासी विद्रोह, चुनार का विद्रोह, अपदस्थ नरेशों और सत्ता धारियों के विद्रोह, चेतसिंह का विद्रोह, अवध के अपदस्थ वजीर अली का विद्रोह, दक्षिण भारत में विजयनगरम् के राजा का विद्रोह, पूर्वी घाट में पल्लयकारों के विद्रोह ट्रावनकोर के दीवान वेलाटम्पी का विद्रोह, सौराष्ट्र में विद्रोह, बघेरा विद्रोह, अजमेर क्षेत्र में विद्रोह, सहारनपुर के पास गुर्जर, विद्रोह, हरियाणा में रोहतक के जाटों का विद्रोह, मध्यप्रदेश के सागर, जबलपुर मे बुन्देला विद्रोह, दक्षिण में बीजापुर के समीप विद्रोह, कित्तूर में विद्रोह उड़ीसा में, सम्बलपुर में विद्रोह, महाराष्ट्र में सतारा में विद्रोह, रमोसी विद्रोह, कोल्हापुर तथा सावन्तवाड़ी के विद्रोह, कुरनूल में नरसिंह रेड्डी का विद्रोह, तथा कथित अप्पा साहब का विद्रोह, पंजाब में नादिरखां का विद्रोह, आर्थिक कारणों से विद्रोह, नयी राजस्व व्यवस्था, नवीन ब्रिटिश प्रणाली और व्यवस्था, अंग्रेज कंपनी की व्यापारिक और आर्थिक नीति, आर्थिक ओर नवीन ब्रिटिश प्रशासकीय व्यवस्था से हुए विद्रोह, दक्षिण भारत में मदुरै में कल्लार लोगों का विद्रोह, उड़ीसा तट के क्षेत्र में पायकों का विद्रोह, पलकोण्डा में जमींदार का विद्रोह, धनंजय मंज का विद्रोह, पारलेकमडी या पर्लकीमेडी के जमींदार का विद्रोह, जंगल और तराई क्षेत्र और मिदनापुर क्षेत्र में विद्रोह, रंगपुर क्षेत्र में विद्रोह, मेमनसिंह में कृश कों का विद्रोह, बारसाल विद्रोह, फरैजी लोगों का विद्रोह, आदिवासियों या जनजातियों के विद्रोह, पालामऊ में विद्रोह, चेरों और मुण्डाओं का विद्रोह, पोराहट में होस आदिवासियों का विद्रोह, छोटा नागपुर क्षेत्र के मुण्डा आदिवासियों का विद्रोह, छोटा नागपुर संभाग का निर्माण, मनभूम में भूमजी का विद्रोह, खोंद आदिवासियों का विद्रोह, खासी विद्रोह, नागा आदिवासियों का विद्रोह, संथालों का विद्रोह, गोंड और भीलों के विद्रोह, कूकी विद्रोह, भीलों के विद्रोह, रंघा आदिवासियों का विद्रोह, मुण्डा आदिवासियों का विद्रोह, सूरत का नमक आंदोलन ?, सुरन नाप-तोल आंदोलन, अण्मान और निकोबार द्वीप समूह में आदिवासियों के विद्रोह, आदिवासियों के विद्रोहों की असफलता के कारण, विद्राहों के परिणाम, अहिंसात्मक विरोध।
1857 का विद्रोह
सन् 1857 के पूर्व सैनिक विद्रोह, बक्सर की रणभूमि में सैनिक विरोध, वैल्लौर का विद्रोह सन् 1806 बैरकपुर विद्रोह, सन् 1824, आसाम में सैनिकों का विद्रोह, 1825, शोलापुर में विद्रोह, 1838, सिकन्दराबाद, हैदराबाद, मालेगांव व कोटा में विद्रोह, सन् 1844, पंजाब में गोविन्दगढ़ में सैनिक विद्रोह, सन् 1849, सन् 1857 के विद्रोह के कारण-राजनीतिक कारण, प्रशासकीय कारण, सामाजिक कारण, धार्मिक कारण, आर्थिक कारण, सांस्कृतिक कारण, सैनिक कारण, तात्कालिक कारण, नवीन चरबी वाले कभारतूस, भारतीय सैनिक जन-साधरण का अंग, विद्रोह का आयोजन और संगठन, विद्रोह का प्रारम्भ, 10 मई 1857, विद्रोह का प्रसार, विद्रोह का दमन।
विद्रोह की असफलता और विद्रोह का स्वरूप
विद्रोह की असफलता के लिये उत्तरदायी परिस्थितियाँ और कारण, विद्रोह की असफलता के लिये विद्रोहियों का उत्तरदायित्व, विद्रोह की असफलता के लिये अंग्रेजों का उत्तरदायित्व, सन् 1857 के विद्रोह का स्वरूप, अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन का अंत, रानी विक्टोरिया की घोषणा , सन् 1858 और ब्रिटिश शासन की नीति में परिवर्तन, प्रशासकीय सुधार, सैनिक सुधार, सैनिक संगठन व नीति में परिवर्तन, सन् 1857 के विद्रोह का महत्व, सन् 1857 के विद्रोह का स्वरूप सन् 1857 का विद्रोह सैनिक विद्रोह था, यह विद्रोह खोई हुई सत्ता को प्राप्त करने का प्रयास था, यह सामन्ती विद्रोह था, सन् 1857 का विद्रोह मुस्लिम षड्यंत्र था, यह विद्रोह प्रतिक्रिया का प्रतीक था, धर्मान्तो का ईसाईयों के विरुद्ध युद्ध था, यह बर्बरता तथा सश्यता के बीच संघर्ष था, यह विद्रोह एक सुनियोजित और सुसंगठित प्रयत्नों का परिणाम था जो अवसर की प्रतीक्षा में थे, सन् 1857 का विद्रोह, राष्ट्रीय संग्राम था स्वाधीनता संघर्ष था स्वतंत्रता का प्रथम युद्ध था।
ब्रिटिश शासन काल (लगभग 1858 ई. 1900 ई. तक)
भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का स्वरूप और शोशण
उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद,ब्रिटिश साम्राज्यवाद के दो स्वरूप ब्रिटेन में वाणिज्यवाद और पूँजीवाद की प्रवितिया, भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद का प्रथम चरण, ब्रिटिश साम्राज्यवाद का द्वितीय चरण, विश्व अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण परिवर्तन, भारत में ब्रिटिश पूँजीनिवेश, ब्रिटिश साम्राज्यवाद का तृतीय चरण।
केनिंग से कर्जन तक
लार्ड केंनिग, अन्य गवर्नर जनरल और ब्रिटिश नीतियाँ, लार्ड एलगिन, सर जान लारेंस लार्ड मेयो, लार्ड नार्थ ब्रुक, लार्ड लिंटन का मूल्यांकन, लार्ड रिपन, प्रजातीय विभेद की नीति और ब्रिटिश हित संवर्धन की नीति, भारत के नवीन औद्योगिक और व्यावसायिक वर्ग और उनके उद्योगों के विरुद्ध नीति, शिक्षित मध्यम वर्ग के दमन और कुलीन अभिजात व सामन्त वर्गों का समर्थन प्राप्त करने की नीति, भारतीय शस्त्र अधिनियम, सन 1878, वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट, सन् 1878, प्रजातीय नीति की तीव्रता, इलबर्ट बिल, शिक्षित मध्यम वर्ग को प्रशासन में भागीदार बनाने का प्रयास, भारतीय भाषा यी समाचार पत्र अधिनियम निरस्त, सन् 1882, भारतीय नागरिक सेवा, स्थानीय प्रशासन में सुधार और प्रगति, शिक्षा सम्बंधी सुधार, हन्टर कमीशन सन्, 1882, अंग्रेजी साम्राज्य के हित संवर्धन के कार्य, प्रान्तीय सरकारों को आर्थिक दृश्टि से अधिक दृढ़ करने के प्रयास, आयात कर की समाप्ति और कर-मुक्त व्यापार, फेक्ट्री अधिनियम, सन् 1881, भारतीय नरेशों के प्रति, ब्रिटिश नियंत्रण की नीति, लिटन और रिपन की अफगान नीति और द्वितीय अफगान युद्ध, लार्ड रिपन की अफगान नीति और द्वितीय अफगान युद्ध का अंत, रिपन का मूल्यांकन, ब्रिटिश साम्राज्यवाद का नवीन स्वरूप, आर्थिक शोशण का युग, लार्ड कर्जन, सन् 1899-1905, दुर्भिक्श , प्लेग, कर्जन के आंतरिक सुधार, आर्थिक सुधार, कृषि संबंधी सुधार, पुलिस विभाग के सुधार, सैनिक सुधार, रेल्वे के सुधार, प्राचीन सुरक्षा स्मारक एक्ट, सचिवालय की कार्य प्रणाली में सुधार, न्याययिक सुधार कर्जन के अप्रिय विवादग्रस्त सुधार,कलकत्ता कारपोरेशन, एक्ट, भारतीय विश्वविद्यालय कानून, शिक्षा में सुधार,आफिशियल सीक्रेट एक्ट, बंग-भंग विभाजन के कारण, बंग-भंग के विरोध के कारण, बंग-भंग विरोधी आंदोलन, आंदोलन के परिणाम और प्रभाव, बंग-भंग निरस्त कर्जन के अन्य अलोकप्रिय कार्य, कर्जन की विदेशी नीति, अफगानिस्तान, उत्तर-पश्चिम सीमा नीति, फारस में खाड़ी की समस्या, तिब्बत नीति की समीक्षा , कर्जन-किचनर विवाद और कर्जन का त्यागपत्र, कर्जन का मूल्यांकन।
भारतीय राज्यों के प्रति ब्रिटिश नीति
भारतीय राज्यों से अंग्रेजों के संबंध
भारतीय राज्य या रियासतें, भारतीय राज्यों के संबंधों के चार चारण, प्रथम युग, ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारतीय राज्यों से समानता के आधार पर संबंध स्थापित करने के प्रयास,सन् 1740-65, द्वितीय युग, सन् 1765-1813, वेलेजली की सहायक संधि प्रणाली, सहायक संधि, की प्रमुख शर्तें, भारतीय राज्यों से सहायक संधियाँ, तृतीय युग, अधीनस्थ अलगाव, या प्रथकक्रण की नीति, सन् 1814-1858, लार्ड डलहौजी की हड़प नीति, चतुर्थ युग, अधीनस्थ, संघ की नीति, सन् 1858-1947, महारानी विक्टोरिया की घोषणा, अंग्रेज सरकार की सार्वभौमसत्ता , भारतीय राज्यों की बाह्य नीति व संबंधों का अंत, गोद लेने शक्ति पर नियंत्रण, आर्थिक विकास के लिये भारतीय राज्य व ब्रिटिश प्रान्त एक ‘‘ईकाई’’ लार्ड कर्जन और भारतीय राज्य, स्थायित्व और सुधार का युग, नरेन्द्रमण्डल, बटलर कमेटी, समान संघ की नीति, देशी रियासतों में उत्तरदायी शासन की माँग, भारतीयों को सत्ता हस्तान्तरण की विभिन्न योजनाएँ और भारतीय राज्य, भारतीय राज्यों का पुनर्गठन और विलय, उड़ीसा की रियासतों का उड़ीसा प्रान्त में विलय, छत्तीसगढ़ की रियासतों का विलय, विन्ध्य प्रदेश, संयुक्त काठियावाड़ रियासत, दक्षिण की रियासतों का विलय, गुजरात की रियासतों का विलय, मणिपुर और त्रिपुरा, मध्य भभारत संघ, पंजाब रियासत संघ, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, त्रावनकोर-कोचीन संघ, मैसूर रियासत, अत्यन्त छोटी रियासतों का समीप के ब्रिटिश प्रान्तों में एकीकरण, भोपाल, जूनागढ़ हैदराबाद, काश्मीर, रियासतों के एकीकरण में सरदार पटेल का मूल्यांकन, राज्य-पुनर्गठन आयोग।
अठारहवीं सदी में जन-जीवन
समाज में हिन्दू और मुसलमान दो प्रमुख वर्ग, संयुक्त परिवार प्रणाली, विभिन्न धर्मों के लोग, जाति प्रथा, धन-सम्पन्न लोग और सामन्तवर्ग, व्यापारी वर्ग शिल्पी और कारीगर, अन्य व्यवसाय के लोग, निम्न वर्ग और अस्पृश्यता की भावना, स्त्रियों की दशा, दास प्रथा निवास गृह, भोजन और वस्त्राभरण, त्यौहार और मनोरंजन के साधन, सामाजिक रूढ़ियाँ, परम्पराएँ और प्रथाएँ, अठारहवीं सदी के मध्य अर्थ-व्यवस्था, राजनीतिक विघटन आर्थिक विघटन, ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था, ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था की विशेषताएँ, नगरों और कस्बों की अर्थ-व्यवस्था, नगरों व कस्बों के आर्थिक जीवन की विशेषताएँ, कृषि और कृषक , हस्त शिल्प और उद्योग व्यवसाय, रेशमी व ऊनी वस्त्र उघोग चर्म उधोग धातु उधोग अन्य विभिन्न उद्योग, शहरी शिल्पी, वाणिज्य व्यापार, आर्थिक पतन,भारत में यूरोपीय व्यापार का प्रारम्भ और विकास, पुर्तगाली, डच, अंगेज, व्यापार में बिचैलिये और दलाल।
राष्ट्रीय आंदोलन काल(लगभग 1900 ई. 1947 ई. तक)
राष्ट्रीय आंदोलन का विकास
कांगेस का जन्म और उद्देश्य
राष्ट्रीय आंदोलन का उदारवादी युग
राष्ट्रीय आंदोलन का उग्रवादी युग 1905-1909
राष्ट्रीय आंदोलन का शांत युग 1909-1919
राष्ट्रीय आंदोलन का गांधीवादी युग-असहयोग आंदोलन
स्वराज्य दल
सायमन कमीशन और नेहरू रिपोर्ट
सविनय अवज्ञा आन्दोलन और गोलमेज परिशदें
द्वितीय विश्वयुद्ध और राष्ट्रीय आंदोलन
क्रिप्स मिशन
भारत छोड़ो आंदोलन
राजाजी आंदोलन
वेवल योजना
आजाद हिन्द फौज पर अभियोग
नौ-सैनिक क्रांति
मंत्री-मंडल मिशन
माउन्टबैटन योजना
भारतीय स्वतंत्रता
क्रांतिकारी आंदोलन,
भारत में मुस्लिम साम्प्रदायिकता-जन्म से भारत के विभाजन तक
राष्ट्रीय आंदोलन के उदारवादी नेता
राष्ट्रीय आंदोलन के उग्रवादी नेता
राष्ट्रीय आंदोलन के गांधीयुगीन नेता
राष्ट्रीय आंदोलन के क्रांतिकारी नेता
भारत का संवैधानिक विकास
1858 से 1908 तक भारत की संवैधानिक स्थिति
मिन्टो मार्लें सुधार 1909
मान्ट फोर्ड सुधार (1919 का अधिनियम)
1919 के अधिनियम के अन्तर्गत गृह सरकार
1919 के अधिनियम के अंतर्गत केन्द्रीय शासन
1919 के अधिनियम के अन्तर्गत प्रांतीय सरकार
1935 का अधिनियम और उसकी विशेष ताएँ
1935 के अधिनियम के अंतर्गत गृह सरकार
1935 के अधिनियम के अंतर्गत केन्द्रीय सरकार
1935 के अधिनियम के अंतर्गत स्थापित प्रांतीय स्वराज्य
भारत का संविधान
भारतीय संविधान का निर्माण
भारतीय संविधान की विशेष ताए
नागरिकता
भारतीय संविधान में संघात्मकता
मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य
नीति निर्देशक तत्व
भारत का राष्ट्र पति
केन्द्रीय मंत्री परिशद और प्रधानमंत् री
भारतीय संसद - 1 लोकसभा
भारतीय संसद - 2 राज्य सभा
भारतीय संसद - 3
सर्वोच्च न्यायालय
राज्यों का शासन
राज्यों की मंत्री-परिशद और मुख्यमंत्री
राज्यों के विधान-मंडल
उच्च न्यायालय
केन्द्र व राज्य के संबंध
संविधान में संशोधन प्रणाली
लोकसेवाएँ एवं लोक सेवा आयोग
चुनाव आयोग व भारत की चुनाव पद्धति
महान्यायवादी तथा महाधिवक्ता
भारत मे दल पद्धति
आधुनिक भारतीय संस्कृति
अंग्रेजों का भारत-आगमन काल की सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक स्थिति
अंग्रेजों का आगमन, फ्राँसीसियों का आगमन, सामाजिक दशा, आर्थिक दशा, सांस्कृतिक दशा, फ्रांसिस ग्लैडविन की देन, विलियम जोन्स की विचारधारा
भारतीय पत्रकारिता तथा मुद्रण कला
ईस्ट इंण्डिया कंपनी के शासन काल में, दक्षिण भारत में, गुजरात में, बंगाल में मुद्रण कला का विकास, 18 वीं शताब्दी में भारतीय पत्रकारिता, भारतीय समाचार पत्रों का प्रारम्भ, संवाद कौमुदी, ब्राह्मण कालीन मैगजीन, फारसी, पत्र, ‘मरातुल’ तथा जामे जहाँ नया’ 1823 का प्रेस अधिनियम, 1857 का स्वतंत्रता संग्राम तथा समाचार-पत्र, 1857-1947 के मध्य अंग्रेजी की पत्रकारिता और प्रेस नीति
भारतीय स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम
स्वतंत्रता संग्राम के कारण, राजनीतिक कारण, धार्मिक कारण, सामाजिक कारण, आर्थिक कारण, क्रान्ति की योजना, क्रान्ति का सूत्रपात, क्रान्ति का दमन, 1857 की क्रान्ति की असफलता के कारण, 1857 की क्रान्ति का प्रभाव या परिणाम
भारतीय शिक्षा का इतिहास
अंग्रेजों के आगमन से पूर्व भारत में शिक्षा की व्यवस्था, तत्कालीन देशी शिक्षा के पतन के कारण,प्रारम्भिक मिशनरी प्रयास, शिक्षा का विकास 1833-1853, वुड का घोष णा पत्र, 1854, शिक्षा का विकास 1854 से 1902 तक, हण्टर कमीशन 1882, कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग, सार्जेन्ट योजना, अंग्रेजी शिक्षा नीति का मूल्यांकन
दीवानी-प्रशासन: एक अन्धकारतम काल
इलाहाबाद की संधि, दीवानी प्रशासन का स्वरूप, दीवानी प्रशासन के परिणाम, ढीला और छल कपट पूर्ण शासन, जनता की खुली लूट, कानून विहीन, अन्यायपूर्ण प्रशासन, निजी व्यापार तथा भेंट प्रथा, उद्योगों का विनाश, बंगाल का दिन-प्रतिदिन निर्धन होते जाना
सामाजिक विकास
विलियम बैण्टिक के सामाजिक सुधार, सती-प्रथा, सती होने के कारण, सती प्रथा रोकने के प्रयास, कम्पनी की उदासीनता, राजा राममोहनराय, 1829 का सती-प्रथा विरोधी कानून, कानून का विरोध, भारतीय रियासतों में सती-प्रथा को बंद करवाना, ठगों का दमन -ठगों की प्रणाली, ठगी के दमन में कठिनाइयाँ, अलग विभाग की स्थापना, विलियम बैण्टिक के अन्य सामाजिक सुधार ब्र्रिटिश भारत में सामाजिक विकास
भारतीय मध्यम वर्ग
ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार और सामाजिक परिवर्तन, मध्यमवर्ग का उदय, मध्यम वर्ग का स्वरूप, मुगल कालीन मध्यम वर्ग और ब्रिटिश कालीन मध्यम वर्ग में अंतर, मध्यम वर्ग के उदय के कारण, मध्यम वर्ग का महत्व
भारत में ईसाई मिशनरी
साधु वेश में ईसाईयों का प्रचार, शिक्षा , द्वारा धर्म प्रचार, ईस्ट इण्डिया कम्पनी और ईसाई मिशनरियाँ, विलियम कैरी, मार्शल मैन और वार्ड, मिशनरी गतिविधियों का नया युग, मिशनरियों को निराशा, अलेक्जेण्डर डफका प्रचार कार्य, मिशनरियों के सराहनीय कार्य, मिशनरियों के विध्वंसकारी कार्य
भारतीय पुनर्जागरण
पुनर्जागरण का अर्थ और उसका महत्व, पुनर्जागरण के कारण भारतीय पुनर्जागरण की विशेष ताएँ
धार्मिक और सामाजिक सुधार
राजा राममोहनराय और ब्रह्म समाज, राजा राममोहनराय के पश्चात् ब्रह्म समाज, देवेन्द्रनाथ टैगोर और ब्रह्म समाज, केशव चन्द्र से महादेव गोविन्द रानाडे और प्रार्थना समाज, स्वामी दयानन्द सरस्वती और आर्य समाज
रामकृष्ण -मिशन
रामकृष्ण का जीवन परिचय, परमहंस की विचारधारा, स्वामी विवेकानंद, रामकृष्ण मिशन की सेवायें सिद्धान्त, धार्मिक सेवायें, सामाजिक सेवायें पूर्व पश्चिम का सुन्दरतम समन्वय
थियोसोफिकल सोसाइटी और एनी बीसेन्ट
भारतीय आचरण ग्रहण करना, हिदुत्व तथा भारत प्रेम, पाश्चात्य प्रेम का विरोध, भारतीय राजनीति में भाग लेना, भारतीय राष्ट्रीयता की व्याख्याता, थियोसोफिकल सोसाइटी और ऐनी बेसेन्ट, सोसाइटी के सिद्धान्त, देन
मुस्लिम सुधार आंदोलन
बहावी आंदोलन, भारत में बहाबी आंदोलन, सैयद अहमद बरेलवी, आंदोलन के लक्श्य, जिहाद का संगठन, आंदोलन की विशेष तायें, विफलता के कारण, शेख करामत अली का आंदोलन, अहमदिया आंदोलन, अलीगढ़ आंदोलन
सर सैय्यद अहमद खाँ अलीगढ़ आंदोलन
जीवन परिचय, धार्मिक-सुधारों पर विचार, सामाजिक सुधारों पर विचार, ईसायत के प्रति उदभारता, सरसैयद अहमद खाँ का विरोध, सरसैयद अहमद खाँ और राजनीति, अलीगढ़ आंदोलन, देवबंद आंदोलन शिबालीनुमानी
राष्ट्रीय आंदोलन का इतिहास
राष्ट्रीयता के विकास के कारण, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का जन्म, उदारवादी राष्ट्र वाद, दादाभाई नौरोजी
सुरेन्द्रनाथ बनर्जी
जीवन परिचय, देश सेवा का संकल्प, इण्डियन एसोसिएशन की स्थापना, एक सम्पादक के रूप में, राजनैतिक विचार, कर्जन की नीतियों का विरोध, प्रगति और स्वतंत्रता के अग्रदूत
गोपाल कृश्ण गोखले
दक्षिण शिक्षा -सभा के सदस्य, रानाडे का प्रभाव, राजनीति में प्रवेश, भारत सेवक समाज की स्थापना, विभिन्न सुधारों के प्रयास, गोखले के आर्थिक विचार, अलौकिक व्यक्तित्व
उग्रवादी आंदोलन
भारत में उग्रवाद के उदय के कारण, कुशासन और कांग्रेस की स्थापना, हिन्दू धर्म का पुनरुत्थान, अकाल और प्लेग, आर्थिक असन्तोश , शिक्शित व्यक्तियों में असन्तोश , कर्जन की नीति, बंगाल का विभाजन
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
जीवन परिचय, मराठा और केसरी का सम्पादन, उदारवाद का विरोध, कांग्रेस को जनव्यापी बनाना तिलक की राजनीतिक प्रणाली, 1897 में कारावास, बंगाल विभाजन की आलोचना, होमरूल लीग की स्थापना, तिलक की राष्ट्र वादी धारणा, तिलक का असाम्प्रदायिक दृश्टिकोण, तिलक और सामाजिक सुधार, सामाजिक कुरीतियों पर तिलक के विचार, तिलक के शिक्षा विषय क विचार, महान देश भक्त और राष्ट्र उन्नायक, गोखले और तिलक, महादेव गोविन्द रानाडे और लोकमान्य तिलक
श्री अरविन्द घोष
जीवन परिचय, विदेश गमन, आई. सी. एस. की परीक्षा में उत्तीर्ण होना, भारत आगमन, अलीपुर बमकेस, महान चिन्तक, और विद्वान लेखक, इतिहास तथा संस्कृति दर्शन, राष्ट्र वाद और मानव एकता का सिद्धान्त, राजनीतिक दर्शन
गाँधीवादी युग
गाँधीजी का जीवन परिचय चम्पारन और खेड़ा आंदोलन सहयोगी से असहयोगी, रौलट एक्ट, जलियाँवाला हत्याकाण्ड, खिलाफत आंदोलन, असहयोग आंदोलन, असहयोग आंदोलन का प्रसार, आंदोलन का स्थगन, सविनय अवज्ञा, प्रथम गोलमेज सम्मेलन, पृथक निर्वाचन पद्धति, क्रिप्स योजना, भारत छोड़ो आन्दोलन, राष्ट्रीय आन्दोलन में गाँधीजी का योगदान, गाँधीजी का दर्शन, गाँधीजी के सामाजिक विचार, गाँधीजी का आधुनिक भारत पर प्रभाव
पं. जवाहरलाल नेहरू
जीवन परिचय, महान त्यागी, राष्ट्रीय भावनाओं के जनक, राष्ट्रीय एकता पर बल, साम्प्रदायिकता का विरोध और धर्म निरपेक्शता पर बल, धार्मिक संकीर्णता का विरोध, समाजवाद पर बल, औद्योगीकरण पर बल देना, नवभभारत के निर्माता, महान व्यक्तित्व
रवीन्द्रनाथ टैगोर
जीवन परिचय, राजनैतिक विचार, नैतिक शिक्षा के सृजन पर बल, ग्रामोद्धार के पक्श में, ब्रिटिश प्रशासन की आलोचना, स्वतंत्रता का सिद्धान्त, चिन्तन का समाज शास्त्रीय आधार, जाति व्यवस्था का विरोध, मानवतावाद, शिक्षा सम्बन्धी विचार
भारत और पाश्चात्य संस्कृति
एक अपूर्व हलचल और विरोधाभास का जन्म, अनिश्चय की स्थिति, पाश्चात्य संस्कृति की चुनौती और उसका प्रभाव, पाश्चात्य सभ्यता व शिक्षा , पाश्चात्य सभ्यता व भारतीय साहित्य, पाश्चात्य सभ्यता और राजनीति, भारतीय समाज, धर्म, ललित कलायें और पाश्चात्य संस्कृति, आर्थिक जीवन और पाश्चात्य सभ्यता
ब्रिटिश शासन की विरासतें
देश का एकीकरण, शान्ति व सुरक्शा की स्थापना, संगठित प्रशासनिक व्यवस्था, आधुनिक शिक्षा , राजनीतिक संस्थाओं का विकास, भारतीय इतिहास का पुनरुत्थान, जनता में एकान्विति का उदय होना, भारतीय समाज का आधुनिकीकरण, कलात्मक भावनाओं का विकास
साहित्य का विकास
भारतीय साहित्य पर पश्चिम का प्रभाव, गद्य साहित्य पर प्रभाव, काव्य पर प्रभाव, भाषा और व्याकरण पर प्रभाव, हिन्दी साहित्य का विकास, बंगाल साहित्य का विकास, उर्दू साहित्य, मराठी साहित्य का इतिहास, गुजराती साहित्य का विकास, तमिल साहित्य का विकास
ललित कलाओं का विकास
भारतीय चित्रकला, बंगाल शैली के प्रमुख चित्रकार, भारतीय स्थापत्य कला, भारतीय कला के अवशेश
भारतीय संगीत और नृत्य
बहादुरशाह जफर और संगीत, ब्रिटिश काल के प्रारम्भ में संगीत ग्रन्थों की रचना, दक्षिण भारत में संगीत, पुनर्जागरण, 20.वीं शताब्दी में संगीत, विश्णुनारायण भातखण्डे, विश्णु दिगम्बर पलुस्कर, भारतीय नृत्य कला का विकास
भारत की सामाजिक दशा
भारत में सामाजिक परिवर्तन, जातिवाद, स्त्रियों की दशा, भारतीय समाज में अस्पृश्यता
छात्र असन्तोश
छात्र असन्तोश के कारण, छात्र असन्तोश को दूर करने के उपाय
राष्ट्रीय एकता की समस्या
भारत और राष्ट्रीय एकता, राष्ट्रीय एकता की समानता, राष्ट्रीय एकता के बाधक तत्व, राष्ट्रीय एकता और शिक्षा , भावात्मक एकता समिति के सुझाव
माध्यमिक शिक्षा
माध्यमिक शिक्षा का संक्शिप्त इतिहास, माध्यमिक शिक्षा , स्वतंत्रता के पश्चात् माध्यमिक शिक्षा की समस्यायें, माध्यमिक शिक्षा की समस्याओं का समाधान
उच्च शिक्षा
स्वतंत्रता से पूर्व उच्च शिक्षा का विकास, स्वतंत्रता के पश्चात् उच्च शिक्षा का विकास, उच्च शिक्षा की प्रमुख समस्यायें, उच्च शिक्षा की समस्याओं का समाधान
कुछ प्रमुख व्यक्तियों पर टिप्पणियाँ
मि. जिन्ना और द्विराष्ट्र का सिद्धान्त, मुहम्मद इकबाल, पं. मदनमोहन मालविया, सर्वपल्ली राधाकृश्णन, आचार्य विनोबा भावे
आर्थिक इतिहास
भूमि-व्यवस्था एवं सुधार, स्थायी बन्दोवस्त या जमींदारी प्रथा (इस्तमरारी बन्दोवस्त), रैयतवारी बन्दोवस्त, महालवारी व्यवस्था, कृषि और सरकारी नीति, कृषि -उत्पादन में प्रवृŸिायाँ और व्यापारीकरण ब्रिटिशकालीन भारत में कृषि -साख, ब्रिटिशकालीन भारत में अकाल और अकाल-नीतियाँ, उन्नीसवीं और बींसवीं शताब्दी के कृषक -आंदोलन, भारत में औद्योगिक विकास, भारत के बृहत उद्योग, ब्रिटिश भारत में तटकर नीति, ब्रिटिश भारत में - वाणिज्य और व्यापार, बैंकिंग और मुद्रा, फैक्ट्री अधिनियम: 1857 से 1947 तक, सामाजिक सुरक्शा, ब्रिटिश भारत में परिवहन- रेल-परिवहन, सड़क-परिवहन, सामुद्रिक यातायात, हवाई यातायात
संस्कृति का अर्थ: संस्कृति और सभ्यता में अंतर: भारतीय संस्कृति की कुछ मुख्य विशेष ताएँ
संस्कृति का अर्थ, संस्कृति और सभ्यता में अंतर, भारतीय संस्कृति की कुछ मुख्य विशेष ताएँ
जाति-प्रथा-उत्त्पत्ति ,विकास और अवनति
उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में ईसाई धर्म का भारतीय समाज और संस्कृति पर प्रभाव
अंग्रेजी भाषा की शिक्षा - आरम्भ तथा दोष और लाभ
1836 ई. तक की शिक्षा नीति और अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम बनान, अंगे्रजी शिक्षा के भारत में आरम्भ किये जाने का उद्देश्य, अंग्रेजी भाषा का पक्श और विपक्श , अंग्रेजी भाषा की शिक्षा के दोष और लाभ
भारतीय पुनरुद्धार-आंदोलन और उन्नीसवीं सदी के धार्मिक व सामाजिक आंदोलन
(अ) कारण,(ब) धार्मिक और सामाजिक आंदोलन,
1. राजा राममोहनराय और ब्रह्म समाज
i) पद्ध राजा राममोहन राय
ii) पपद्ध महर्शि देवेन्द्रनाथ टैगोर और आदि ब्रह्म-समाज
iii) पपपद्ध केशवचंद्र सेन और भारतीय ब्रह्म-समाज
iv)पअद्ध साधारण ब्रह्म-समाज
v) अद्ध प्रार्थना समाज
1. ब्रह्म-समाज का भारत के समाज-सुधार और आधुनिक विचारधारा के निर्माण में सहयोग
2. जवान-बंगाल आंदोलन
3. ईश्वरचंद्र विद्यासागर
4. कण्डूकुरी वीरेसलिंगम् 1848-1919
5. स्वामी दयानन्द सरस्वती और आर्य -समाज
6. रामकृष्ण मिशन और रामकृष्ण परमहंस
7. थियोसोफिकल समाज
8. महाराष्ट्र में सामाजिक और धार्मिक सुधार
9. अन्य धर्म-सुधार
10. मुसलमानों के आंदोलन
11.अलीगढ़ आंदोलन
(स) भारतीय पुनरुद्धार-आंदोलन की प्रगति और परिणाम
1. तार्किक दृश्टिकोण का विकास
2. धर्म-सुधार
3. सामाजिक सुधार
4. भारतीय इतिहास की पुनः प्राप्ति
5. प्राचीन साहित्य की प्राप्ति
6. प्रादेशिक भाषा ओं के साहित्य का विकास
7. अनुसंधान की वैज्ञानिक भावना का विकास
8. औद्योगीकरण की भावना
9. ललित-कलाओं की उन्नति
10. मध्यम-वर्ग का उत्त्कर्ष
11. भारत की राष्ट्रीयता का निर्माण और राजनीतिक आंदोलन का आरम्भ
अखिल भारतीय कांग्रेस की उत्त्पत्ति
राष्ट्रीय आंदोलन अथवा कांग्रेस का सामाजिक आधार
भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में बाल गंगाधर तिलक का सहयोग
महात्मा गाँधी का आधुनिक भारतीय संस्कृति को योगदान
राजनीतिक विचार
सत्याग्रह
गाँधीजी का मानवीय दृश्टिकोण
गाँधीजी के सामाजिक विचार
आधुनिक भारतीय संस्कृति के लिए पं. जवाहरलाल नेहरू का योगदान
रवीन्द्रनाथ टैगोर की भारतीय संस्कृति की देन
अरविन्द घोष की भारतीय संस्कृति को देन
भारतीय संस्कृति को अंग्रेजी शासन की देन
धर्म : समाज
राजनीति: शिक्षा
मध्यमवर्ग की उत्त्पत्ति ,विभिन्न भारतीय भाषाओं के साहित्य का विकास
वैज्ञानिक अन्वेषण की भावना, ललित कलाएँ, संस्कृत साहित्य
भारत का आर्थिक जीवन
मध्यम-वर्ग की उत्त्पत्ति कारण और भारतीय समाज व राजनीति पर प्रभाव
आधुनिक भारतीय शिक्षा इतिहास और प्रभाव
1. इतिहास
मैकाले की शिक्षा व्यवस्था
1854 ई. के चाल्र्स वुड के शिक्षा -सुझाव
हण्टर-कमीशन 1882-83 ई.
भारतीय विश्वविद्यालय कानून 1904 ई.
1913 ई. का शिक्षा -प्रस्ताव
सेडलर विश्वविद्यालय कमीशन, 1917 ई.
हरटोग शिक्षा -समिति, 1929 ई.
सार्जेण्ट शिक्षा -सुझाव, 1944
राधाकृश्णन कमीशन, 1948-49 ई.
कोठारी कमीशन, 1964 ई.
2. प्रभाव
आधुनिक भारतीय स्थापत्य-कला
आधुनिक भारतीय संगीत-कला
आधुनिक भारतीय नृत्य-कला
आधुनिक भारतीय चित्रकला
आधुनिक भारतीय साहित्य
1. हिन्दी, 2. बंगाली, 3. मराठी, 4. गुजराती, 5. तमिल, 6. तेलुगू, 7. संस्कृत, 8. उर्दू, 9. अंग्रेजी
भारत में विद्यार्थी-वर्ग का असंतोष
कारण
1. शिक्षा -नीति और संस्थाएँ
2. आर्थिक परिस्थितियाँ
3. पारिवारिक और सामाजिक मान्यताएँ
4. विद्यार्थी-सभ्यता और नवीन मान्यताएँ, असंतोष को दूर करने के उपाय
आधुनिक भारत में स्त्री उद्धार
भारतीय प्रेस और उसका प्रभाव
ब्रिटिश शासन का भारत की आर्थिक स्थिति पर प्रभाव
कृषि , दस्तकारी, गृह-उद्योग आदि, बड़े उद्योग, भारतीय धन की निकासी ब्रिटेन को पलायन
स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् भारत की आर्थिक प्रगति का अवलोकन
स्वतंत्रता के पश्चात् पनपती हुई भारतीय संस्कृति का एक मूल्यांकन
जन-जीवन और संस्कृति
नवीन सामाजिक समीकरण और वर्ग
अंग्रेजों की व्यापार के साथ-साथ राजनीतिक सत्ता , ग्रामीण क्षेत्र में नवीन वर्ग, शहरी क्षेत्रों में नवीन वर्ग, भारत में मध्यम वर्ग का उदय, भूस्वामियों का मध्यम वर्ग, व्यापारियों का मध्यम वर्ग, मध्यम वर्ग की अन्य विविध श्रेणियाँ।
नवाभ्युत्थान या पुनर्जागरण
पुनर्जागरण का अर्थ और उसका महत्व, पुनर्जागरण के पूर्व की दशा, पुनर्जागरण या पुनरुत्थान के कारण - अंग्रेजों का आगमन और पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव, विश्व के अन्य देशों और विशेष कर पश्चिम से संपर्क अंग्रेजी शिक्षा , प्रारंभिक ईसाई धर्म प्रवर्तक, भारतीय मुद्रणालय, पत्र-पत्रिकाएँ, और साहित्य, भारतीय नवाभ्युत्थान या पुनर्जागरण के लक्षण, पुनरुज्जीवन के विविध आंदोलन, हिन्दू धर्म का पुररुज्जीवन व धार्मिक आन्दोलन सामाजिक सुधार, भारतीय इतिहास की पुनः प्राप्ति, प्राचीन साहित्य की पुनः प्राप्ति, भारत की देशी भाषा ओं के साहित्य का विकास, अनुसंधान की वैज्ञानिक भावना का विकास, ललित कलाएँ, औद्योगीकरण की भावना, नवीन मध्यम वर्गों का उत्त्कर्ष , पुनरुत्थान या पुनर्जागरण के परिणाम, पुनर्जागरण के स्वरूप की समीक्षा ।
उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में भारतीय समाज और धर्म
बंगाल का प्रभाव और महत्व, भारतीय समाज, अभिजात कुलीन वर्ग, व्यापारी वर्ग, मध्यम वर्ग, कृषक और श्रमिक वर्ग, निम्न वर्ग, जाति प्रथा अस्पृश्यता, समाज में स्त्रियों की दशा, भोजन एवं वस्त्राभरण, मनोरंजन के साधन, त्यौहार और मेले, धार्मिक आडम्बर और अंधविश्वास, सामाजिक पतन, एकता और राष्ट्रीयता की भावना का अभाव।
सामाजिक और सांस्कृतिक जागृति और सुधार आन्दोलन
सामाजिक और सांस्कृतिक नवचेतना और जागरण के कारण-राष्ट्रीय एकता, आत्म विश्वास और आत्म-प्रतिश्ठा तथा मानसिक स्वाधीनता की भावना, भारत के अतीत का पुनरअन्वेश ण, प्रारंभिक ईसाई धर्म प्रवर्तक, पाश्चात्य शिक्षा , साहित्य और चिंतन,भारतीय साहित्य और समाचार पत्र, वैज्ञानिक और तार्किक दृश्टिकोण, नवीन मध्यम वर्ग का उदय और विकास, प्रशासन द्वारा सुधार के प्रयास, हिन्दू समाज व धर्म को पुनर्जीवित करने की प्रबल भावना, धार्मिक और सामाजिक सुधार आन्दोलन, राजा राममोहनराय और ब्रह्म समाज, ब्रह्म समाज और उसका योगदान, यंग बंगाल युवा बंगाल आंदोलन, प्रार्थना समाज, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, स्वामी दयानंद और आर्यसमाज, स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण मिशन, राजा राममोहन राय, दयानंद सरस्वती और स्वामी विवेकानंद की तुलना, थियोसोफिकल सोसायटी, श्रीमति एनी बेसेन्ट, राधास्वामी सत्संग देवसमाज, धर्मनिश्ठ सन्यासियों के समूह, श्री अरविन्द घोष , दक्षिण भारत में सुधार आन्दोलन, हिन्दूधर्म की अन्य सुधार व समर्थनवादी धाराएँ, सिक्खों में अकाली आन्दोलन और सुधार, पारसी समुदाय और धम में सुधार, सांस्कृतिक प्रतिरोध व संघर्ष , मुसलमानों में धार्मिक और सामाजिक सुधार आन्दोलन, सर सैयद अहमदखाँ, अलीगढ़ आन्दोलन, धार्मिक और सामाजिक सुधार आन्दोलनों का महत्व और प्रभाव।
धार्मिक और सामाजिक सुधार
धार्मिक और सामाजिक दुर्दशा और दोष , सुधारों के लिये सिद्धान्त, सुधारों के चार चरण, शुद्धता आन्दोलन, सती प्रथा का अंत शिशु हत्या का निषेध , नर-बलि का निषेध , बाल विवाह पर प्रतिबंध, विधवा विवाह, दास प्रथा का अंत पर्दा-प्रथा का उन्मूलन, सुधार के लिये संस्थाएँ, देव-दासी प्रथा का अंत, जाति प्रथा की जटिलता में शिथिलता, अस्पृश्यता निवारण आन्दोलन, हरिजन सेवा-संघ, नवीन संविधान स्त्री शिक्षा और सुधार, नारी-मुक्ति आंदोलन।
पाश्चात्य प्रभाव
विलक्श ण विरोधाभास और अस्त-व्यस्तता, पाश्चात्य संस्कृति की चुनौती और उसका परिणाम, शिक्षा में पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव, पाश्चात्य संस्कृति और भारतीय समाज, भारतीय धर्म और पाश्चात्य सभ्यता व संस्कृति, पाश्चात्य सभ्यता और भारतीय राजनीति, भारत का आर्थिक जीवन और पश्चिम का प्रभाव, वैज्ञानिक अन्वेश ण व अनुसंधान की भावना, भारत की ललित कलाएँ और पश्चिम, आधुनिक पाश्चात्य संस्कृति पर भारत का प्रभाव।
प्रेस या समाचार पत्र
समाचार परिभाशित, समाचार पत्र, समाचार पत्रों का महत्व,प्रेस का प्रारंभिक युग, भारत में समाचार पत्रों का आरंभ, भारत में मुद्रणालय और समाचार पत्रों का प्रारंभ और विकास, उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में समाचार पत्र, परिवर्तन, उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में पत्रकारिता, समाचार पत्रों के प्रति कंपनी सरकार की दमन की नीति, उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में समाचार पत्रों की विशेषताएँ, उन्नीसवीं सदी के उतरार्द्ध में समाचार पत्र, अंग्रेजों द्वारा संपादित अंग्रेजी भाषा के समाचार पत्र, भारतीयों के भारतीयों द्वारा सम्पादित अंग्रेजी समाचार पत्र, भारतीय भाषा ओं के समाचार पत्र, उन्नीसवीं सदी के उतरार्द्ध में समाचार पत्रों की विशेष ताएँ, भारतीय पत्रकारिता का व्यवसाय, राष्ट्रीय भावनाएँ और इंडियन नेशनल कांग्रेस, आर्थिक शोशण के विरुद्ध आवाज, अंग्रेज सरकार की विदेश नीति की आलोचना, भारतीय समाचार पत्रों के विषय ,‘‘मुस्लिम प्रेस’’,समाचार पत्र और सरकारी नीति, ब्रिटिश सरकार का समाचार पत्रों के विरुद्ध प्रतिबंध और अधिनियम, समाचार पत्रों के बढ़ते हुए प्रसारण और सरकार की बढ़ती हुई कटु आलोचना, वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट, इण्डियन प्रेस एक्ट, सन! 1910 से 1921 की अवधि में सरकार की नीति, इण्डियन प्रेस इमरजेन्सी एक्ट, द्वितीय विश्व युद्ध और ‘‘प्री सेंसर शिप’’ समाचार एजेन्सियाँ, विदेशी समाचार एजेन्सियाँ, भारत में समाचार एजेन्सियाँ, बीसवीं सदी में समाचार पत्र, पृ. 200-207, बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में समाचार पत्रों की विशेष ताएँ, उर्दू समाचार-पत्र, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद समाचार पत्र, बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में समाचार पत्र, विशेषताएँ, विभिन्न भाषा ओं के समाचार पत्र, महानगरों में समाचार पत्रों का केन्द्रीकरण और उसके कारण, समाचार पत्रों का स्वामित्व, देश के सबसे बड़े समाचार प्रतिश्ठान, समाचार-पत्र पत्रिकाओं के विषय , समाचार पत्र-पत्रिकाओं के क्षेत्र में श्रम संगठन भारतीय समाचार पत्र परिशद्, समाचार पत्रों की विशिष्ट ताएँ और समस्याएँ, ‘‘प्रेस’’ का योगदान।
ब्रिटिश सत्ता और शासन का प्रभाव
भारत में ब्रिटिश राजसत्ता , ब्रिटिश सत्ता और शासन का राजनैतिक प्रभाव, बाह्य देशों से संपर्क की पुनः स्थापना, भारत की भौतिक प्रगति, व्यापार-वाणिज्य और उद्योग, लोगों में एकान्विति, भारतीय समाज का आधुनिकीकरण, आधुनिक शिक्षा, प्रगति व विकास की नवीन भावना, संस्कृत साहित्य और ललित कलाओं का पुनर्जागरण, ब्रिटिश शासन के आर्थिक प्रभाव, भभारत की तथाकथित आर्थिक प्रगति, नवीन आर्थिक सिद्धान्त, वाणित्यवाद, मुक्त व्यापार, पूँजीवाद, ब्रिटिश शासन के अच्छे आर्थिक प्रभाव, ब्रिटिश शासन के आर्थिक कुप्रभाव, कृषि संरचना में परिवर्तन।
ब्रिटिश शासन में भूमि-व्यवस्था और उसके कुप्रभाव
ईस्ट इण्डिया कंपनी के पूर्व भूमि-व्यवस्था, प्रारंभिक ब्रिटिश भूमिकर-व्यवस्था, ईस्ट इंडिया कंपनी को जमींदारी की प्राप्ति, प्रयोग और परीक्शण की भूल सुधार की नीति, प्रथम चरण सन् 1764-1772, प्रयोग परीक्शण और भूल सुधार की नीति, द्वितीय चरण, सन् 1772-1786, पंचवर्शीय बन्दोवस्त, एक वर्शीय बन्दोवस्त, अंगेज कलेक्टरों की नियुक्ति, राजस्व संभाग, राजस्व समितियाँ, राजस्व मंडल, प्रयोग, परीक्शण और भूल सुधार की नीति, तृतीय चरण, सन् 1786-1793, इस्तमरारी बंदोवस्त या स्थायी बन्दोवस्त और उसकी विशेष ताएँ, स्थायी बंदोवस्त के लाभ, स्थायी बन्दोवस्त से हानियाँ, निश्कर्श , रैयतवाड़ी बन्दोवस्त, मद्रास प्रेसीडेंसी में रैयतवाड़ी भूमि कर व्यवस्था, बम्बई प्रान्त में भूमिकर व्यवस्था, रैयतवाड़ी राजस्व व्यवस्था, महालवाड़ी भू-राजस्व व्यवस्था, उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में भूराजस्व व्यवस्था, ब्रिटिश शासन कालीन भू-राजस्व व्यवस्था के दोष और परिणाम।
ग्रामीण वर्ग, कृषक और कृषि
अठारवीं सदी में ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था, अठारहवीं सदी के ग्रामीण जीवन के विशिष्ट तत्व और विशेषताएँ, कृषक वर्ग, ग्राम अधिकारी, हस्तशिल्प उद्योग और उसके कारीगर, सामन्त या सरदार या जागीरदार, संयुक्त परिवार, जाति प्रथा, पंचायत और ग्रामीण स्वायत्तता, ग्रामीण अर्थ व्यवस्था की विशेषताएँ, आत्मनिर्भरता, रूढ़ियों और रीतिरिवाजों का प्रभाव, वस्तुविनिमय, श्रम की गतिहीनता, उदासीनता और तटस्थता, जीवन और परम्परा की निरन्तरता, पृथकता, स्थिरता और आत्म-निर्भरता के दोष , नगरों और कस्बों की अर्थ व्यवस्था, नगरों व कस्बों के आर्थिक जीवन की विशेषताएँ, उन्नत विकसित उद्योग, विशिष्टीकरण, सिक्कों का उपयोग, संगठित बाजार, प्रतियोगिता, पारस्परिक निर्भरता, कृषि और कृषक , उन्नीसवीं सदी में ग्रामीण वर्ग और ग्रामीण समाज की विविधता।
कृषि -व्यवस्था में परिवर्तन
उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ में कृषि व्यवस्था, कृषि के व्यवसायीकरण से अभिप्राय, कृषि में व्यवसायीकरण की प्रावितिया और उसका विस्तार, फसलों की औसत वार्शिक वृद्धि दर, कृषि में व्यवसायीकरण के कारण, कृषि में व्यवसायीकरण के परिणाम और प्रभाव, ग्रामीण क्षेत्रों में कृषकों की ऋणग्रस्तता, ऋणग्रस्तता के कारण और परिणाम, बाजार अर्थ व्यवस्था, बाजार अर्थ व्यवस्था के स्पश्ट संकेत, बाजार अर्थ-व्यवस्था से अभिप्राय, बाजार अर्थ-व्यवस्था की प्रमुख प्रावितिया, बाजार अर्थ-व्यवस्था के उत्त्कर्ष के कारण, गतिहीनता और निर्धनता, निर्धनता का आकार और स्वरूप, गरीबी के कारण, कृषकों के शोशण के विरुद्ध कानून और उनके स्वत्वों और अधिकारों की सुरक्शा।
अभाव और अकाल
ईस्ट इण्डिया कंपनी के शासन काल में अकाल, ‘‘क्राउन’’ शासनकाल में अकाल, अकालों के कारण, अकालों के दुश्परिणाम, सन् 1943 का बंगाल का अकाल।
जनसंख्या और राष्ट्रीय आय
जनसंख्या का महत्व, भारत की जनसंख्या, औसत आयु, राष्ट्रीय आय, भारत की राष्ट्रीय आय - सन् 1901 से 1947, राष्ट्रीय आय नेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट।
कृषक आन्दोलन
कृषक आंदोलनों और संघर्ष के प्रकार, संथाल विद्रोह, सन् 1855-56, नील उत्पन्न करने वाले कृषकों के विद्रोह, पावना विद्रोह, महाराष्ट्र में कृषक विद्रोह सन् 1875, अन्य राज्यों में कृषक आन्दोलन, उन्नीसवीं सदी के कृषक आन्दोलनों और विद्रोहों की समीक्षा , पंजाब में कृषक आंदोलन, मोपला विद्रोह, गांधीजी द्वारा कृषक आन्दोलन, चंपारन कृषक आन्दोलन, खेड़ा जिले में कृषक आन्दोलन, बंगाल में कृषक आन्दोलन, दक्षिण भारत में कृषक आन्दोलन, कृषकों के संगठन, प्रान्तों में कांग्रेस की सरकारें और कृषक आन्दोलन, सन् 1947 के पूर्व प्रमुख कृषक आन्दोलन।
निरुद्योगीकरण
निरुद्योगीकरण से अभिप्राय, अंग्रेजों के शासनकाल के पूर्व भारत के उन्नत उद्योग, विभिन्न उद्योगों का विनाश या निरुद्योगीकरण, निरुद्योगीकरण के कारण, कया निरुद्योगीकरण हुआ।
भारत के धन निश्कासन और भारत में विदेशी पूँजी
धन निश्कासन के अभिप्राय, धन निश्कासन के स्वरूप, धन निश्कासन के परिणाम, भारत में विदेशी पूंजी, सन् 1909-1910 में भारत में विदेशी पूंजी का विनियोग, सन् 1948 में भारत में विदेशी पूंजी का विनियोग, विदेशी पूंजी विनियोग के क्षेत्र और विनियोग का स्वरूप, भारतीय पूंजी निवेश,।
वाणिज्य व्यापार और भारतीय पूंजीपति का उत्त्कर्ष
अंग्रेजी शासन व सत्ता के पूर्व भारतीय व्यापारी वर्ग, ईस्ट इण्डिया कंपनी की भारतीय व्यापार में एकाधिकार की नीति, जहाज कम्पनियों और बैंकों में अंग्रेज पूूंजी और अंग्रेजों का बढ़ता हुआ व्यापारिक एकाधिकार, भारतीय व्यापारियों का उत्त्कर्ष और पूंजी निवेश, नवीन उद्योगों में भारतीय व्यापारी और पूंजीपति।
औद्योगीकरण
अनुद्योगीकरण, भारतीय पूंजीपति वर्ग का उत्थान और औद्योगीकरण, भारतीय उद्योगों के विकास के कारण, औद्योगीकरण की धीमी और सीमित गति, कारण, आधुनिक उद्योगों का विकास, सूती वस्त्र उद्योग, कपड़े का कुटीर उद्योग, जूट या पटसन उद्योग, लोहा और इस्पात उद्योग, कोयला उद्योग, शक्कर उद्योग, कागज उद्योग सीमेंट उद्योग, चमड़ा उद्योग, कांच उद्योग, रसायन उद्योग, इंजीनियरिंग मशीन औजार उद्योग, भारतीय औद्योगिक विकास की कुछ विशेष ताएँ, पूंजीपति वर्ग।
भारत में अंग्रेज सरकार की अर्थनीति
परिवहन के साधनों से अर्थ नीति का निचला ढांचा, रेलों का निर्माण और प्रसार, इसकी दूशित नीति, ब्रिटिश हित संवर्धन में सरकारी उद्योगों का प्रारंभ, चाय उद्योग, लोहा और इस्पात उद्योग, युद्ध सामग्री बनाने के उद्योग, अंग्रेज सरकार की आयात-निर्यात संबंधी करनीति, मुक्त व्यापार नीति, आयात-निर्यात नीति के विभिन्न चरण, प्रथम वित्त आयोग साम्राज्यवादी विभेद नीति।
श्रमिक संघ और श्रमिक आन्दोलन
शहरीकरण, शहरीकरण की प्रावितिया, श्रमिक, श्रमिक संघ और श्रमिक आन्दोलन, श्रमिक या मजदूर, श्रमिकों की संख्या, श्रमिकों की समस्याएँ, श्रमिक आन्दोलन, श्रमिक आन्दोलन के विभिन्न चरण, अखिल भारतीय श्रमिक संघ स्थापित होने के कारण, अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन फेडरेशन और आल इण्डिया रेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस, हिदुस्तान मजदूर सेवक संघ, श्रमिक संघों में वृद्धि, विभिन्न श्रमिक संघों और संगठनों का विलय, प्रान्तों में लोकप्रिय सरकारें और श्रमिकों के ट्रेड यूनियन, द्वितीय विश्व युद्ध और श्रमिक संघ आंदोलन, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद श्रमिक संगठन, भारतीय श्रमिक संघों के विकास में बाधाएँ कारण, समस्याएँ, कठिनाइयाँ, श्रमिकों की हड़ताल औद्योगिक विवाद अधिनियम, श्रमिकों की दशाओं को सुधारने के प्रयास और तत्संबंधी अधिनियम, खानों में श्रम विधान, बागान श्रम विधान, श्रमिकों के हित संवर्धन के लिये अन्य साधारण उपाय, सन् 1948 का कर्मचारीराज्य बीमा अधिनियम, सन् 1952 का कर्मचारी भविश्य निधि तथा विविध उपबन्ध अधिनियम।
भारत का विदेशी व्यापार
विदेशी व्यापार से अभिप्राय, विदेशी व्यापार का महत्व, प्राचीन और मध्ययुग, में विदेशी व्यापार, यूरोप से व्यापार, विदेशी व्यापार में वृद्धि के कारण, सन् 1858 के बाद विदेशी व्यापार, विदेशी व्यापार में आर्यात-निर्यात, विदेशी व्यापार पर राष्ट्रीय आन्दोलन का प्रभाव, दो विश्व युद्धों की अवधि में विदेशी व्यापार, आयात-निर्यात, भारत के विदेशी व्यापार की दिशा।
भारत की मौद्रिक प्रणाली
मुगलकाल में मुद्रा, ब्रिटिश शासनकाल में मौद्रिक प्रणाली, सन् 1861 में पेपर करंसी एक्ट, भारत अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोश का सदस्य, मुद्रा में दशमलव प्रणाली, भारतीय मुद्रा प्रणाली की कुछ विशिष्ट ताएँ, बैंकिंग या बैंक व्यवसाय, आधुनिक बैंकिंग प्रणाली का प्रारंभ, आधुनिक बैंकों की स्थापना, रिजर्व बैंक की स्थापना, भारत में बैंकों के प्रकार, भारत की वित्तीय संस्थाएँ।
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय अर्थव्यवस्था
देश का विभाजन, स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थ-व्यवस्था, उपनिवेशी अर्थ व्यवस्था, अर्द्धसामन्ती अर्थ व्यवस्था, पिछड़ी हुई गतिहीन अर्थ व्यवस्था, औपनिवेशिक विदेशी व्यापार, सामाजिक और आर्थिक सेवाओं का अभाव।
शिक्षा
देशी शिक्षा प्रणाली, ईसाई धर्म प्रचारकों द्वारा संचालित शिक्षण संस्थाएँ, ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों और गैर सरकारी अंग्रेजों द्वारा संचालित शिक्षण संस्थाएँ, भारतीयों द्वारा प्रारंभिक पाश्चात्य शिक्षा के लिये प्रयास, ईस्ट इण्डिया कंपनी की सन् 1813 की सनद और शिक्षा क्षेत्र में अनुदान की नीति, सन् 1835 तक शिक्षा का स्वरूप, शिक्षण संस्थाएँ, शिक्षा के माध्यम पर मतभेद, प्राच्यवादी, पाश्चात्यवादी या आंग्लवादी, मैकाले का निर्णयात्मक विवरण नीति संबंधी लार्ड विलियम बैंटिंग के निर्णय, लार्डआर्कलेण्ड का विवरण और निर्णय, अधोमुखी निस्पंदन सिद्धान्त, नीति समीक्षा , चाल्र्सवुड का घोषणा पत्र, अनुशंसाएँ, घोषण पत्र की समीक्षा , नवीन शिक्षा नीति का प्रभाव और परिणाम, हंटर शिक्षा आयोग, सन् 1882 से 1902 की अवधि में शिक्षण का विकास, माध्यमिक और प्राथमिक शिक्षा, शिक्षा नीति में परिवर्तन, नया युग सन् 1904 से 1921, विश्वविद्यालयीन आयोग, भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम, सन् 1904, शिक्षा क्षेत्र में प्रगति और विकास, सन् 1904 से 1917, मेडलर आयोग, नवीन विश्व विद्यालयों की स्थापना, शिक्षण संस्थाएँ और विद्यार्थियों की संख्या, राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली का प्रयास, गांधीजी की बुनियादी शिक्षा योजना, नवीन शिक्षण योजनाओं का युग, सन् 1937-1964, राधाकृश्णन आयोग, माध्यमिक शिक्षा, प्राथमिक शिक्षा, तकनीति शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष अनुसंधान, प्रौद्योगिकी विकास स्त्री शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा, राष्ट्रीय शैक्शणिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिशद एन.सी.ई.आर.टी. साक्शरता, कोठारी शिक्षा आयोग, भारतीय राष्ट्र वाद और आधुनिक पाश्चात्य शिक्षा, पाश्चात्य शिक्षा और साहित्य का प्रभाव, भारतीय राष्ट्रवाद।
साहित्य
भारत की भाषा एँ, अंग्रेजी भाषा , साहित्यिक जागृति कारण, विकसित लोक साहित्य की नवीन विशेषताएँ, संस्कृत, हिन्दी, बंगला, मराठी, गुजराती, आसामी, उड़िया, सिंधी, पंजाबी, उर्दू, तमिल तेलगू कन्नड़ मलयालम, अरबी और फारसी साहित्य को भारत की देन, इण्डोएंग्लिकन साहित्य।
कला और विज्ञान
कला के विभिन्न अंगों के ह्रास व पतन के कारण, कला के स्वरूप और उद्देश्य में परिवर्तन स्थापत्य कला चित्रकला संगीत, लोक संगीत नृत्य कला भरत नाट्यम, कथकली नृत्य, कथक नृत्य, मणिपुरी नृत्य, ओडिसी नृत्य, भारतीय लोक नृत्य, भारतीय नाट्यकला फिल्म उद्योग का प्रभाव, लोक नाटक और अभिनय, कठपुतली नृत्य, रास लीला और रामलीला, ललित कला अकादमी, संगीत नाटक अकादमी, वैज्ञानिक प्रगति जगदीशचन्द्र बोस, श्री चन्द्रशेखर वेंकटरमण, मेघनाथ शाह, वैज्ञानिक अनुसंधानों को प्रोत्साहन, होमी जहाँगीर भाभा, विज्ञान के लिये विभिन्न प्रयोगशालाओं और विभागों की स्थापना।
|
|